सुबह उठते ही झलकारी दौड़ती हुई मां के पास आई और कुछ लजाते हुए मां के सामने खड़ी हो गई।उसको लजाते देख मां ने पूछा,क्या हुआ क्यों इतना लजा रही हो…? झलकारी मां के गले लगते हुए बोली,मां आज मैंने एक सपना देखा और उस सपने में एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर मेरे साथ ब्याह रच रहा था।कहते कहते झलकारी का चेहरा लाल पड़ गया और वह शर्माती हुई अपने दोनों हाथ चेहरे पर लगा ली और तभी मां बोली अरे पगला गई है तू,ऐसे वैसे सपनें मत देखा कर।तेरे लिए राजकुमार ढूंढते रहेगें न तो मेरे और तेरे बापू के सर के बाल पूरे झड़ जायेंगे और तेरी उम्र भी निकल जायेगी।  यही गांव का अपनी बिरादरी का छोरा देख कर हम तेरा ब्याह करने की सोच रहे है और तू…?बडी आई राजकुमार के सपने देखनेवाली,मां फुसलाते हुए भीतर चली गई।
मां की बातों से एक पल में मानों झलकारी का सपना टूट कर चूर चूर हो गया।वह मन ही मन सोचने लगी।मैं क्यों न देखो राजकुमार के सपने,मैं भी तो सुंदर हूं,सुशील हूं और अच्छे अच्छे पकवान बनाने में माहिर हूं। माना की पढ़ी नही ज्यादा,पर थोडा बहुत तो लिखना पढ़ना जानती हूं। फिर क्या कमी है मुझमें जो मां बापू मेरी शादी किसी से भी करा देंगे। मैं न करू किसी भी छोरे से शादी। मैं तो अपने सपने के राजकुमार से ही अपना ब्याह रचाऊंगी। ऐसा सोचते हुए वह अंदर चली गई।
तभी शहर से झलकारी के बापू लौटे।झलकारी के बापू के आते ही,झलकारी की मां उसपर मानो बिजली की तरह बरस पड़ी और बोली झलकारी के बापू शहर ही घूमते रहोगे या अपनी लाडली के हाथ भी पीले करोगे।पता है आज तुम्हारी लाड़ली ने सपना देखा और उस सपने में एक राजकुमार उसे ब्याह रचा रहा था।अब ऐसे बड़े बड़े सपने देखने का कोई फ़ायदा है क्या..? इसपर झलकारी के बापू ने बोला,अरे फ़ायदा न हो पर कोई नुकसान भी नही है।भला हम किसी को सपनों को देखने से कैसे रोक सकते है..? वो पूछ कर थोडी आते है। तुम भी न झलकारी की मां कभी कभी हद पार कर देती हो। जाओ पहले मेरे लिऐ चाय पानी लेकर आना फिर मैं तुम्हरे लिए एक खुश खबरी दूंगा। झलकरी की मां फिर कुछ बड़बड़ाते हुए भीतर चाय लाने गई। झलकारी कोने में खड़ी होकर मां बापू की सारी बातें सुन रही थी।
जेसे ही झलकारी की मां भीतर गई,बापू ने झलकारी को अपने पास बुलाया और कहा देखो बेटा झलकारी हम कोई अमीर लोग तो नही है जो दहेज़ से तुम्हारे लिए कोई राजकुमार देखें।आज कल अच्छा रिश्ता मिले वही सबसे बड़ी बात है। चाहे लड़का जैसा भी हो हर लड़की को सब कुछ संभालकर घर चलाना पड़ता है।तभी झलकारी बोली पर बापू शादी ब्याह के लिऐ पैसा तो चहिए ही। चाहे मेरी शादी हो या भाई की। फिर आप ऐसा क्यों कह रहे है। तब बापू ने बोला भाई की बात अलग है और तुम्हारी अलग। तुम छोरी हो और वह लड़का। लड़का कमाएगा घर संभालेगा और लडकी ब्याह कर के दूसरों का घर संभालती है। सदियों से यही तो चला आ रहा है।
झलकारी ने फिर से बापू से पूछा,पर बापू आखिर मैं क्यों नही कर सकती अपनी पसन्द के छोरे से ब्याह। जबकि भाई ने भी अपनी पसन्द की लडकी चुनी है ब्याह के लिये।तब बापू बोला अरे कहा न तु छोरी है और वो छोरा। अपनी और उसकी बराबरी मत कर और अपने ये सवाल पूछना बंद कर दे। तभी झलकारी ने बापू से फिर एक सवाल पूछा,पर बापू मैं और भाई मां की कोख से ही पैदा हुए है न। फिर हम दोनों के बीच अंतर क्यों…? इस सवाल का जवाब अब बापू के पास नही था तो उसने गुस्से में झलकारी को मुंह बंद करने की हिदायत दी और अंदर जाने को कहा।झलकारी रोते हुए भीतर चली गई।झलकारी को रोता देख मां ने झलकारी के बापू से पूछा क्या हुआ झलकारी के बापू..? झलकारी क्यों रो रही है।तब झलकारी के बापु ने कहा कुछ नही झलकारी की मां बस इतना समझ लो अब बेटी के हाथ जल्द ही पीले करने पड़ेंगे और तुम बस ब्याह की तयारी में लग जाओ।इतना कहते हुए झलकारी के बापू भीतर चले गए।
झलकारी के बापू की बात से वह बहुत खुश हो गई और ब्याह की तयारी में जुट गई।पर इधर झलकारी अनगिनत सवालों के भंवर में फंस कर उनके जवाब ढूंढने की कोशिश कर रही थी।उसे इस बात का दु:ख बिलकुल नही था कि उसकी शादी कहीं भी कराई जा रही है।बल्कि उसे तो इस बात की पीड़ा हो रही थीं कि, आखिर क्यों उसके साथ ऐसा किया जा रहा है…?
झलकारी की कहानी यहां खत्म नही होती है।बल्कि इसके जीवन की असल कहानी की शुरूआत यहां से होती है।न जाने आज भी कितनी झलकारियां इन सवालों के भंवर में फसी हुई है। एक ही आस लगाए कि,कभी तो, कोई तो उन्हे इस भंवर से बाहर आने में मदद करेगा…? पर वह नादान यह नही समझती कि, खुद की जंग खुद ही लड़नी है।कोई साथ नही देता। जहा मां बापू ने साथ छोड़ा वहा कोई और क्या साथ देगा…?

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