Saturday, July 27, 2024
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सरोज बिहारी की लघुकथा – आज का एकलव्य

आज उनके घर जाने पहचाने और अनजाने लोगों का ताँता लगा हुआ था। सफ़ेद कपड़ों में सजे और काला चश्मा लगाए हुए ,सभ्य समाज के स्त्री पुरुष उनकी हार चढ़ी तस्वीर के आगे सर झुका रहे थे। पुष्पांजलि अर्पित कर रहे थे। 
अखबारों में उनके चित्र छपे थे और उनकी उपलब्धियों कि प्रशंसा में लेख छपे थे। पत्रकार और टीवी चेनलों के रिपोर्टर ,बाहर खड़े हो करअ पनी बारी का इंतजार कर रहे थे। वे एक नामी लेखक ,रंगमंच के कलाकार और समाज सुधारक भी थे। दलित समाज में जन्म होने के बावजूद वे बड़े जीवट थे। कठिन परिस्थितियों में  न जाने कितने द्रोणाचार्य जैसे गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की। अपनी योग्यता और बुद्धि बल से उनका आशीर्वाद पाना चाहा, लेकिन उन्हें उच्च कुल और नीचे कुल में जन्मे शिष्यों को समान दृष्टि से देखने वाले गुरु नहीं मिले। उन्हें हमेशा एकलव्य बन कर जीना पड़ा। फिर  भी  वे हारे नहीं। 
उनके दलित माता पिता ही उनके अटूट साहस के प्रेरणा स्तोत्र बने। वे अपनी योग्यता और लक्ष्य की ओर बढ़ते जाने की अपूर्व मनःशक्ति से आगे बढ़ते गए। जीवन में मान सम्मान ,धन दौलत सब कुछ पा लिया था। 
जीवन में हमेशा सच्चाई का साथ देने और कर्म को ही अपना ईश्वर मानने के कारण मृत्यु के बाद बाद उन्हें स्वर्ग में स्थान मिला।  स्वर्ग का सुख भोगने के बाद, उनके सुकर्मों के कारण उन्हें पुनः मनुष्य जन्म देने के लिए भगवान ने उनसे पूछा –   पिछले जन्म में तो तुमने दलित परिवार में जन्म पाया, बहुत कष्ट भी उठाये, फिर भी तुमने हिम्मत नहीं हारी और कर्मठ बन कर सब सुख पाये। 
अब अगले जन्म में तुम्हे उच्च कुल में जन्म मिल सकता है ,जिससे तुम उन यातनाओं और प्रतारणाओं से बच जाओगे, योग्यता, प्रसिद्धि, प्रशस्ति का मार्ग आसान होगा ,,,,,,बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है ?
उन्होंने हाथ जोड़ कर भगवान से कहा – हे ईश्वर! मै उन्हीं माता -पिता का पुत्र बन कर पुनः जन्म लेना चाहता हूँ, जिन्होंने उस नरक समान जीवन में भी मुझे अपने प्रेमामृत से संजोये रखा। माँ के वात्सल्य ने मुझे जीवित रखा और पिता ने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाने का मंत्र मेरे कानों में फूँका ,जो अंत तक मेरी शक्ति बना रहा। 
भगवान ने प्रसन्न हो कर कहा – तुम सचमुच मेरे पुत्र हो, मैं ही तो माता पिता के रूप में हर मनुष्य के साथ रहता हूँ। तथास्तु..!
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