सीमा की ओर प्रस्थान करने को आतुर फौजी पिता की गोद में चढ़ते हुए बेटे ने कहा, ‘पापा, मैं भी आपके साथ जाऊंगा।’
‘नहीं बेटे नहीं। अभी तुम्हारे खेलने-खाने के दिन हैं।’
‘पापा, मम्मी अपनी सहेलियों को बता रही थी, ‘आप दुश्मनों के खून की होली खेलते हैं।’
‘नहीं बेटे तुम यहीं रंगों की होली खेलो। तुम वहां जाकर ऐसा नहीं कर सकते।’
‘कुछ तो कर सकता हूँ।’
‘क्या, कुछ कर सकते हो?’
‘दुश्मन की एक गोली बर्बाद।’
बेटे की बात सुन फौजी दंग रह गया। समझाया, ‘बेटा, मेरे रहते दुश्मन वह गोली नहीं बना सकता जो तुम पर चला सके, इसलिए तुम अभी मत जाओ।’
2 – रुक-रुककर
जबसे गए हो तुम्हारी बहुत याद आ रही है, कहना चाहा पर सिर को झटक दिया, मैं एक फौजी की अर्धांगिनी हूँ, कहा, ‘हमारी गाय पेट में है, कुछ दिनों में बच्चे जनेगी।’
अम्मा, अपने घुटने के दर्द को दवाइयों से दबा, रजाई में दुबकने का असफल प्रयास करती है, बताना चाहा पर कहा, ‘अम्मा, सुबह की गुनगुनी धूप का मजा लेती है और दिनभर रजाई में दुबकी रहती है।’
नर्सरी में पढ़ने वाला बेटा अपने क्लास के दोस्तों के साथ पिकनिक में जाना चाहता था। सियाचिन में ड्यूटी पर डटे हो तुम, तुम्हारे बेटे को मुश्किल से समझा पाई कि ठंड में ज्यादा घूमोगे तो बीमार हो जाओगे। मजबूरी बखान करने के स्थान पर कहा, ‘पास के बगीचे में गुनगुनी धूप में सुबह-शाम घूमकर छोटू दिनभर खुश रहता है।’
छोटे से खेत में बड़े-बड़े ओले गिरने से गेहूं की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है, बताना था, बताया, ‘ठंड अच्छी पड़ रही है इसलिए गेहूं की अच्छी फसल होने की उम्मीद है।’
जून की पचास डिग्री ताप में ड्यूटी की बात सुन अम्मा बहुत चिंतित थी। सियाचिन की ड्यूटी की बात उसे नहीं बताई है, बताना चाहा, बताया, ‘अम्मा सोचती है कि सीमा पर तैनात सैनिक को भरपूर पौष्टिक भोजन मिलता है, तुम और मजबूत और बलिष्ठ हो रहे होगे, समझकर खुश होती है।’
इतना कहते-कहते वह अपने आंसुओं पर काबू नहीं पा सकी। जल्दी से बताना चाहा, ‘बहुत दिनों बाद बात हो पा रही है पर बीच-बीच में सम्बन्ध विच्छेद हो रहा है।’ उसने सायरन की आवाज सुनी और सम्बन्ध पूरी तरह विच्छेद हो गया।
3 – पूछोगे नहीं, बताऊंगा नहीं
परिवार के सदस्यों से वह अक्सर कहता था, ‘है, होगा, था। है, होगी, थी। उसके है, था, थी से परेशान होकर परिवार ने एकमत होकर कहा, ‘तुम इस परिवार के हिस्से थे, हो नहीं, तुरंत भाग जाओ।’
परिवार उसे जैसा भी समझाता था, लोगों ने मौके का फायदा उठाते हुए उसे लपक लिया। उसके है, था, थी पर बिना ध्यान दिए, हमदर्दी जताते हुए उसे रुखा-सूखा, बचत देते हुए संस्कृति का निर्वाह करने लगे। वह अब लोगों से पूछने लगा था, ‘नहीं पूछोगे, क्या है, कैसे होगा, था, थी।’ लोग मन ही मन मुस्कुराते, सोचते, ‘हाफ माइंड से कोई पूछता है?’
उम्मीद से इतर, बाहर से आए युवक ने पूछा, ‘मुझे बताओ, है, था, थी के बारे में।’
‘दुनिया में संस्कृतियां हैं, संस्कृतियां थीं। नई-पुरानी सभ्यताएं बदलती है, बदलेंगी, मतलब है, थी हो जाएंगी।’
‘इसमें कौन सी नई बात है। दुनिया जबसे अस्तित्व में आई है, संस्कृतियां, सभ्यताएं आ-जा रही हैं। कुछ नयी बात बताओ।’
‘तुम भी और लोगों की तरह बुद्धू हो।’ वह खिलखिलाने लगा।
‘बुद्धू हूँ इसलिए तो तुमसे पूछ रहा हूँ। मुझे ज्ञान की बात बताकर अपने जैसा बुद्धिमान नहीं बनाओगे?’
उसने सीना फुलाते हुए कहा, ‘अब हुई न बात। खुशी हुई, जानना चाहते हो, बुद्धिमान बनने के लिए। लोग तो अपने को बुद्धिमान समझने लगे हैं, यहां तक तो चलेगा पर दूसरों को हाफ माइंड समझने लगे हैं।’ उसने पूरी गंभीरता से कहा।
‘तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?’
‘कह सकता नही, कह रहा हूँ, शत-प्रतिशत सही कह रहा हूँ। अभी तो संभावना है, तृतीय विश्व युद्ध होने की, जो बढ़ती जा रही है, सब मचल रहे हैं। हुआ तो मनुष्य है, था हो जाएगा, अपनी गलती से बुद्धिमान-मूर्ख’ और उसने पच्च से थूक दिया।
फिर कुछ रुककर गंभीरता से कहा, तुम्हें समझाता हूँ, ‘सभी संस्कृतियां, सभ्यताएं है, थी हो जाएंगी। बची रहेगी तो सिर्फ पृथ्वी, अपनी कील पर घूमती, सूर्य का चक्कर लगाती। अपने को बुद्धिमान समझने वाले, जंगल उजाड़कर गमलों में बोनसाई लगा रहे हैं, नागफनी उगा रहे हैं। नदियां सोखकर, वाटर हार्वेस्टिंग चिल्ला रहे हैं। समुद्र पाटने का इंतजाम कर रहे हैं, तो पहाड़ काटकर प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं। कितने अक्लमंद हैं कि तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्र बनाने की होड़ में अपने को सुरक्षित समझ रहे हैं। क्या जहर से जिन्दगी मिलती है, तुम्ही बताओ।’
बताते-बताते वह हंसने लगा फिर अचानक होठों पर ऊँगली रख ली।