“जी रोटी लेके बैठी ही थी कि आप ने आवाज़ लगाई”। लेकिन वो कह नही पाई। गले में शब्द, थाली में पड़ी ठंडी सूखी रोटी की तरह अटक के रह गए।
“सुनो! तुम्हारे कपड़ों से बदबू आती है झूठे बर्तन और हल्दी मसालों की। कितनी गंदी रहती हो। दूसरी औरतों की तरह सजती सँवरती क्यों नही? माँ बाप ने कोई शऊर सिखाया नही क्या?”
“सिखाया तो सभी कुछ था, मगर ये भी सिखाया था कि पति और सास ससुर को पलट के जवाब न देना कभी”। शब्द फिर अटक गए उसके गले में, थाली में पड़े ठंडी सूखी रोटी की तरह।
माँ बाऊजी टीवी पर महिला दिवस के उपलक्ष में प्रधानमंत्री जी का बधाई संदेश सुन रहे हैं।
पुरवाई में जगह पाना, यानि अपने हिस्से के एक मुट्ठी आसमान को पाना है मेरे लिए। धन्यवाद आदरणीय तेजेन्द्र जी एवं पुरवाई टीम।