होम ग़ज़ल एवं गीत देवमणि पाण्डेय की दो ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत देवमणि पाण्डेय की दो ग़ज़लें द्वारा देवमणि पाण्डेय - January 26, 2020 44 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 बदली निगाहें वक़्त की क्या क्या चला गया चेहरे के साथ साथ ही रुतबा चला गया बचपन को साथ ले गईं घर की ज़रूरतें सारी किताबें छोड़कर बच्चा चला गया मेरी तलब को जिसने समंदर अता किया अफ़सोस मेरे दर से वो प्यासा चला गया वो बूढ़ी आंखें आज भी रहती हैं मुंतज़िर जिनको अकेला छोड़कर बेटा चला गया रिश्ता भी ख़ुद में होता है स्वेटर की ही तरह उधड़ा जो एक बार, उधड़ता चला गया अपनी अना को छोड़के पछताए हम बहुत जैसे किसी दरख़्त का साया चला गया 2 वक़्त के सांचे में ढल कर हम लचीले हो गए रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी के पेंच ढीले हो गए इस तरक़्क़ी से भला क्या फ़ायदा हमको हुआ प्यास तो कुछ बुझ न पाई, होंठ गीले हो गए क्या हुआ क्यूं घर किसी का आ गया फुटपाथ पर शायद उनकी लाडली के हाथ पीले हो गए आपके बर्ताव में थी सादगी पहले बहुत जब ज़रा शोहरत मिली तेवर नुकीले हो गए हक़ बयानी की हमें क़ीमत अदा करनी पड़ी हमने जब सच कह दिया वो लाल-पीले हो गए हो मुख़ालिफ़ वक़्त तो मिट जाता है नामो-निशां इक महाभारत में गुम कितने क़बीले हो गए संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं होली पर निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल फ़िरदौस ख़ान की ग़ज़ल डॉ. यासमीन मूमल की ग़ज़ल – दर्द मेरे थे जितने सभी मेरे दिल में निहाँ हो गए Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.