7 मार्च और 23 मार्च को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय पर उषा साहू की प्रतिक्रिया।
उषा साहू
संपादक साहब नमस्कार ।
7 मार्च की “पुरवाई” के संपादकीय में आपने साहिर लुधियानवी के बारे में जो जानकारी दी है, वह बेजोड़ है।बहुत ही सूक्ष्मता के साथ आपने साहिर साहब से परिचय कराया है। उनके गीत तो अजर अमर हैं ही, पर जो महिलाओं के संदर्भ में गीत लिखे हैं बहुत प्रभावशाली है ।
मैं आपकी बातों से पूर्णतया सहमत हूं नारी की भावनाओं के बारे में लिखने का आरंभ साहिर साहिब से ही शुरू हुआ है । इत्तफ़ाक ही है कि उनका जन्मदिन भी 8 मार्च है, इसी दिन विश्व में विश्व महिला दिवस मनाया जाता है।
उनके कुछ गीत, जैसे :
तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती…….
मैं पल दो पल का शायर हूं ….
जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा …
मांग के साथ तुम्हारा मैंने मांग लिया संसार…..
उड़ें जब जब जुल्फें तेरी…
फिल्म जगत में ये गीत मील का पत्थर हैं। इनका कोई सानी नहीं । ऐसा नहीं है कि महिला विमर्श ही उनका विषय रहा हो । उनके गीतों ने, गजलों ने, शायरियों ने जीवन के हर पहलू को छुआ है । इनमें गम है, खुशी है, मोहब्बत है, जुदाई है ।
इन्ही उपलब्धियों के लिए, साहिर साहब को उन्हें वर्ष 1964 में फिल्म फेयर अवार्ड से और वर्ष 1971 में पद्मश्री से नवाजा गया ।
कुछ बातें मैं संपादक साहब के बारे में कहना चाहती हूं । आपकी भाषा या कहा जाए भाषाओं की शैली तो उत्कृष्ट है ही, सबसे प्रमुख है आपकी विषय से संबंधित विस्तृत जानकारी । जानकारी एकत्रित करना, फिर अपने शब्दों में पिरोना और रोचक आलेख तैयार करना, विशुद्ध परिश्रम भरा कार्य है।
इस विषय में जितनी आपकी प्रशंसा की जाए कम है। यह नितांत ही समर्पण की भावना से किए गए कार्य का ही प्रतिफल है।
आप स्वयं शब्दों के जादूगर हैं । किस समय, किस प्रसंग के लिए, किस भाषा का कौन से शब्द का इस्तेमाल करना है, आप से सीखा जा सकता है । नमन है असली इस गुणवत्ता को। आशा है, आप इसी तरह से ज्ञान की बरसात करके हमें अनुगृहित करते रहेंगे । नमन है आपको और आपकी कलम को।
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