Friday, October 4, 2024
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7 मार्च और 23 मार्च को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय पर उषा साहू की प्रतिक्रिया

7 मार्च और 23 मार्च को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय पर उषा साहू की प्रतिक्रिया।

उषा साहू

संपादक साहब नमस्कार ।
7 मार्च की “पुरवाई” के संपादकीय में आपने साहिर लुधियानवी के बारे में जो जानकारी दी है, वह बेजोड़ है।बहुत ही सूक्ष्मता के साथ आपने साहिर साहब से परिचय कराया है। उनके गीत तो अजर अमर हैं ही, पर जो महिलाओं के संदर्भ में गीत लिखे हैं बहुत प्रभावशाली है ।
मैं आपकी बातों से पूर्णतया सहमत हूं नारी की भावनाओं के बारे में लिखने का आरंभ साहिर साहिब से ही शुरू हुआ है । इत्तफ़ाक ही है कि उनका जन्मदिन भी 8 मार्च है, इसी दिन विश्व में विश्व महिला दिवस मनाया जाता है।
उनके कुछ गीत, जैसे :
तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती…….
मैं पल दो पल का शायर हूं ….
जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा  …
मांग के साथ तुम्हारा मैंने मांग लिया संसार…..
उड़ें जब जब जुल्फें तेरी…
फिल्म  जगत में  ये गीत मील का पत्थर हैं। इनका कोई सानी नहीं । ऐसा नहीं है कि  महिला विमर्श ही उनका विषय रहा हो । उनके गीतों ने, गजलों ने, शायरियों ने जीवन के हर पहलू को छुआ है । इनमें  गम है, खुशी है, मोहब्बत है, जुदाई है ।
इन्ही उपलब्धियों के लिए, साहिर साहब को उन्हें वर्ष 1964 में फिल्म फेयर अवार्ड से और वर्ष 1971 में पद्मश्री  से नवाजा गया ।
कुछ बातें मैं  संपादक साहब के बारे में कहना चाहती हूं । आपकी भाषा या कहा जाए भाषाओं की शैली तो उत्कृष्ट है ही, सबसे प्रमुख है आपकी विषय से संबंधित विस्तृत जानकारी । जानकारी  एकत्रित करना, फिर अपने शब्दों में पिरोना और रोचक आलेख तैयार करना, विशुद्ध परिश्रम भरा कार्य है।
इस विषय में जितनी आपकी प्रशंसा की जाए कम है।  यह नितांत ही समर्पण की भावना से किए गए कार्य का ही प्रतिफल है।
आप स्वयं शब्दों के जादूगर हैं ।  किस समय, किस प्रसंग के लिए, किस भाषा का कौन से शब्द का इस्तेमाल करना है, आप से सीखा जा सकता है । नमन है असली इस गुणवत्ता को। आशा है, आप इसी तरह से ज्ञान की बरसात करके हमें अनुगृहित करते रहेंगे । नमन है आपको और आपकी कलम को।

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संपादक जी नमस्कार ।
उत्कृष्ट संपादकीय के लिए धन्यवाद । आप ज्वलंत समस्याओं को उद्घृत करते हैं वह भी विस्तृत जानकारी के साथ । साधुवाद।
एक टाइम था मुंबई की पुलिस सबसे अच्छी पुलिस मानी जाती थी। मैंने स्वयं इसका अनुभव लिया है। मेरी तो पुलिस वालों ने बहुत मदद की है । एक बार मैं पुलिस वेरिफिकेशन के काम के  लिए पुलिस स्टेशन गई तो वहां के अधिकारी ने कहा “मैडम इस पेज की 2 कॉपी चाहिए” मैंने कहा मेरे पास फोटो कॉपी करने के लिए मेरे पास छुट्टे पैसे नहीं हैं  ₹100 का नोट है । सुबह सुबह कौन छुट्टा पैसा देगा । उस अधिकारी ने ₹10 का नोट मुझे दिया और कहा यह लो और फोटो कॉपी ले आओ । मैं तो हैरान रह गई यह देख कर। कोई विश्वास ही नहीं करता था कि एक पुलिस वालों ने इस तरह मेरी इस तरह मदद की। सवाल दस रुपया का नहीं है, समय पर मदद करने की बात है। इस तरह के कई उदाहरण मेरे पास हैं ।
अब हम बात करते हैं आज के महाराष्ट्र की। करोना की  हालत है जो है वह तो है ही । एक और रोग आ  गया सचिन वझे और परमवीर सिंह, जिसके कारनामों से हम सभी वाकिफ हैं। अंबानी के घर के सामने कार में जिलेटिन छड़ों को लेकर केंद्र सरकार के लिए क्या मंशा है ? क्या यह भी कोई राजनीति दाव पेंच है ?
संपादक जी, आपने उद्धव ठाकरे और इमरान खान की समानता दिखाकर दोनों की राजनीति प्रणाली दिखा दी।  राम मिलाई जोड़ी। इमरान खान को सिवाय  क्रिकेट के कुछ पता ही नहीं है और उद्धव ठाकरे ने अपने पिता  के कार्यों को दूर से ही देखा है । आग को दूर से देखना और उसमें घुस कर  कार्य करना, दो अलग-अलग बातें हैं। वैसे भी  महाराष्ट्र में तिकड़ी सरकार चल रही है ।
हत्या के मामले में, सचिन वझे  को पुलिस विभाग से निकाला जाना और  फिर तात्कालिक सरकार पर उसे बहाल करने के लिए दबाव डालना । ऐसी क्या खास बात है सचिन वझे में ।
सहायक इंस्पेक्टर वझे और परमवीर सिंह के मामले को लेकर लगता है कहीं कुछ ठीक नहीं है । सुशांत सिंह के मामले में भी, बगैर किसी रिजल्ट के  फाइल बंद हो जाना मुंबई पुलिस की ही मेहरबानी है, किसके इशारों पर ये मेहरबानी गई, यह भी पता  होना बाकी है । खैर ! भगवान के यहां देर है अन्धेर नहीं है ।
5 लग्जरी कारें होना बताता है कि वझे हर एक कानून से ऊपर है और प्रशासन की आंखों पर पट्टी बंधी है ।इसी बीच, इस मामले को लेकर परमवीर सिंह ने अनिल देशमुख की 100 करोड़ की  हफ्ता वसूली की बात भी उजागर कर दी । बड़ा ही उलझा हुआ मामला है । अरे ! ये तो छोटी छोटी कठपुतलियां है, इनको नचाने वाला तो अभी प्रकाश में आना बाकी है ।
कौन किस को बचा रहा है, कौन किसको फंसा रहा है और क्यों ? अनुत्तरित है फिलहाल। पोलिस और राजनेताओं के बीच महाराष्ट्र की राजनीति  बिना किसी वजूद के, रक्काशा की तरह नाच रही है और सभी तथा कथित नेता सिर्फ तमाशबीन बने हुए हैं।
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