‘धर्मयुग से मिला हिंदी का ज्ञान’ : डॉ उषा ठक्कर
‘भारती जी से सीखा पत्रकारिता का अक्षर ज्ञान’ : विश्वनाथ सचदेव
“धर्मवीर भारती हिंदी साहित्य और पत्रकारिता का वह इतिहास हैं जिनके बगैर बहुत कुछ आधा,अधूरा रहेगा। मुझ जैसे तमाम अहिंदी भाषियों ने ‘धर्मयुग’ पढ़ कर ही हिंदी का ज्ञान अर्जित किया। उससे मैं तो कभी उऋण हो ही नहीं हो सकती। उस महान व्यक्तित्व को उनके जन्मदिन पर समारोह पूर्वक याद करना हमारे लिए गर्व की बात है।’ यह विचार मणि भवन की अध्यक्ष व प्रख्यात गांधीवादी डॉ उषा ठक्कर ने हिंदुस्तानी प्रचार सभा के सभागार में ‘व्यंग्य यात्रा धर्मवीर भारती स्मृति सम्मान 2022’ के सम्मान समारोह में व्यक्त किये।वे समारोह की मुख्य अतिथि थीं।
राजस्थान से अपनी पत्रकारिता का आरम्भ करने वाले श्री विश्वनाथ सचदेव ने ‘व्यंग्य यात्रा धर्मवीर भारती स्मृति धर्मयुग सम्मान 2022’ ग्रहण करते हुए कहा, “मैंने पत्रकारिता का अक्षर ज्ञान धर्मयुग से सीखा है। ‘धर्मयुग अनेक के लिए कार्यशाला की तरह था। आज यह सम्मान’ प्राप्त कर मैं निश्चित ही सम्मानित हुआ।” 
‘व्यंग्ययात्रा धर्मवीर भारती बैठे ठाले सम्मान’ से सम्मनित आबिद सुरती ने कहा, ”ढब्बू जी’ गुजराती में रिजैक्ट होने के बाद ‘धर्मयुग’ में हिट होने से लगा कि जैकपॉट लग गया।… भारती जी ने अटल जी से कहा कि आपका परिचय मैं ढब्बू जी से करवाता हूं। मुझे बुलाया और बोले कि मिलिये ढब्बू जी से तो अटल जी बोले कि आप ही हैं जिनके कारण लोग ‘धर्मयुग’ को उर्दू की तरह पढ़ते हैं। ओशो भी अपने प्रवचनों में ढब्बू जी को उद्धृत करते थे।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं पुष्पा भारती ने कहा, “आप सबका इतना प्यार देखकर मैं अभिभूत हूँ।भारती जी सुख में,दुख में बच्चन जी को खूब गुनगुनाते थे।बच्चन उनके प्रिय कवि थे ।वे सहगल का गाया ‘दुख के दिन बीतत नाही’ को तो हर दौर में याद करते थे।उनकी पत्रकारिता को पद्मकान्त मालवीय (अभ्युदय) व इलाचंद्र जोशी (संगम) ने मजबूत आधार दिया।”  
इस मौके विश्वनाथ सचदेव को ‘व्यंग्य यात्रा धर्मवीर भारती स्मृति सम्मान’ व आबिद सूरती को ‘व्यंग्ययात्रा धर्मवीर भारती बैठे ठाले सम्मान’ प्रदान किये गए। इस सम्मान में 31 हजार की राशि, शील्ड, शॉल, मोतियों की माला व श्रीफल प्रदान किया गया।

प्रेम जनमेजय ने सम्मान की परिकल्पना और ‘धर्मवीर भारती: धर्मयुग के झरोखे ‘ के सम्पादन को लेकर कहा, “आज भारती जी के जन्मदिन पर हम धर्मयुगीन इतिहास को याद कर रहे हैं। धर्मवीर भारती के  धर्मयुगीन  समय ने एक इतिहास रचा है इस कालखंड को जितना रेखांकित कियाजाए कम ही है। उनके धर्मयुगीन समय को देखते हुए, पुष्पा भारती के मार्गदर्शन में साहित्यिक पत्रकारिता पर और ‘बैठे ठाले’ के माध्यम से हिंदी व्यंग्य को साहित्य की पंगत में बैठाने वाले रूप को देखकर दो सम्मान देने का मन बना।”
हरीश पाठक ने कहा, “भारती जी का लिखा अक्षर अक्षर इतिहास में दर्ज है। उन्होंने जो लिखा वह सब इतिहास में दर्ज है। उनके साथ सह-संपादक के रूप में काम करने का मुझे गौरव प्राप्त है।”
आरम्भ में अपनेस्वागत भाषण में संजीव निगम ने कहा कि जैसे ही उन्हें इस आयोजन को ‘हिंदुस्तानी प्रचार सभा के सहयोग से आयोजन करने का प्रस्ताव मिला, हाँ कर दी।
इस मौके पर प्रलेक प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘धर्मवीर भारती: धर्मयुग के झरोखे से’ का लोकार्पण किया गया और प्रलेक के जितेंद्र पात्रो ने इस पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर अपने विचार व्यक्त किये। ‘व्यंग्य यात्रा’ के ताज़े अंक का लोकार्पण भी किया गया।
कार्यक्रम का संचालन सुभाष काबरा, आभार आशा कुंद्रा ने व्यक्त किया। सभागार में कथाकार सूर्यबाला, सुधा अरोड़ा, कमलेश बक्शी, मनमोहन सरल, रश्मि रवीजा, ओमा शर्मा, रमेश यादव, प्रताप संसारी, विनोद खत्री, सविता मनचन्दा, राज हीरामन, निर्मला दोषी, अशोक बिंदल, विमल मिश्र, असीमा भट्ट, शैलेन्द्र गौड़, गंगाशरण सिंह, चित्रा देसाई, वंदना शर्मा, देवमणि पांडेय, भारती सिंह, मधु शुक्ला आदि तमाम रचनाकार मौजूद थे। — हरीश पाठक

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