ओ टी टी ने अपनी शुरुआत से ही भारतीय दर्शकों की नब्ज को पहचान कर कितने ही अच्छे सीरियल दिए हैं, जिसमें नामी गिरामी फिल्मी कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाएं निभाई हैं। हाल ही में नेट फ्लिक्स पर रिलीज ‘मामला लीगल है’ बहुत चर्चा में है।इसे समाज के विभिन्न वर्गों तथा विभिन्न आयु वर्ग के लोगों द्वारा देखा और सराहा जा रहा है।
इसका सीजन 1,जो कि कुल 8 एपिसोड में है,यह एक कोर्ट रूम कॉमेडी है।अक्सर लीगल मामलों या फिर कोर्ट कचहरी के क्रियाकलापों पर बहुत ही कम सीरियल बने हैं,परंतु राहुल पांडे द्वारा लिखित व निर्देशित यह सीरीज कुछ अलग ही है।सटीक व्यंग्य और स्वस्थ हास्य का तड़का लगे सारे के सारे एपिसोड दर्शकों को बांधे रखते है।
कोर्ट रूम कॉमेडी में यह बात बेहद अहम तरीके से ध्यान में रखनी पड़ती है कि कोर्ट और कानून की मर्यादा पर कोई आंच न आए वरना कोर्ट की अवमानना यानी कोर्ट ऑफ कंटेंप्ट भारी पड़ सकती है।तिस पर भी यह सीरीज शरद जोशी और हरिशंकर परसाई जी के व्यंग्य बाणों और प्रसिद्ध कृतियों की याद दिलाती है।देखा जाए तो व्यंग्य आज के डिजिटल संसार में प्राणवायु की तरह है बशर्ते कि व्यंग्यकार कुशलता से कहानी के तानेबाने को बुने।यूं भी आज का युवा श्रोता कुछ नया देखने को सदैव तैयार रहता है और व्यंग्य इस का सटीक समाधान है।
पहले एपिसोड में ही वकीलों और कचहरी के सत्यों का खुलासा बड़े ही मनोरंजक अंदाज़ में होता है जैसे किसी मुवक्किल यानी वादी या पीड़ित का अपने केस हेतु वकील ढूंढना और वकील से वकील को उस मुवक्किल को बेच दिया जाना।समूची सीरीज में सुजाता वकील का किरदार जिसे निधि बिष्ट ने बड़ी ही शिद्दत से परदे पर उतारा है।साथ ही साथ एक विदेश में पढ़े लिखे नए वकील के रूप में नैला ग्रेवाल भी अपनी भूमिका में ठीक ठाक नजर आई।उनसे बेहतर अभिनय की अपेक्षा थी। क्योंकि विधिक सहायता देने और वह भी गरीब लोगों के लिए,,,जिसका मंचन या प्रदर्शन और बेहतर अंदाज़ में हो सकता है।परंतु अभी इस कलाकार को अभी और अनुभव की दरकार है।
बार काउंसिल प्रेसिडेंट  के इलेक्शन का प्रेसिडेंट बनना और उस से जुड़ी इच्छाएं समूची  सीरीज का मुख्य कथानक हैं।मशहूर अभिनेता रवि किशन केंद्रीय पात्रों में से एक हैं और कहानी के हर मोड़ पर दर्शकों के सामने हैं।बेहतरीन अभिनय और किरदार में उतरा यह कलाकार एक बड़े जज के बेटे ,वकील और  बाद में कॉलेजियम द्वारा जज बननें को स्वीकारने  की यात्रा को बखूबी निभाया है।विवेक मुशरान एक बड़े और नामी वकील की भूमिका में जंचे हैं चूंकि भूमिका बेहद छोटी थी तो इस से ज्यादा उनके पास करने कुछ था भी नहीं।
सुजाता का किरदार भी एक केंद्रीय भूमिका वाला रोल है।जिसमें आम वकील,उसकी चाहतों, मजबूरियों, साफ और संवेदनशील स्वभाव के साथ नीयत को बखूबी अभिनीत किया है।कुछ कड़वे सत्योंं और रूखे कानूनी मुद्दों को हास्य के पुट के साथ पेश किया गया है! उदाहरण के तौर पर तोते वाला प्रकरण।
वकीलों की कार्य स्थितियों,मुश्किलों, भविष्य सुरक्षा का चित्रण बखूबी किया है।पुलिस- वकील -न्याय/ कानून के त्रिकोणीय समीकरण की अहमियत और टकराव को नैतिकता का पुट देकर एक गंभीर संदेश देने का कार्य बेहद संजीदगी से दर्शाया गया है। मुंशी जी का कैरेक्टर भी बेहद अहम है जो पूरी गंभीरता से बीच बीच में कानूनी ,नैतिक और व्यवहारिक बात कहता है यथा वकील हर स्थिति को ठीक  बजा कर देखता है कि जैसा कहा और देखा जा रहा है कि नहीं,अच्छा और सच्चा वकील सवाल पर सवाल उत्तर और समाधान पर पहुंचता है।सुजाता वकील के माध्यम से वकालत के बेसिक बातें कही गई है।कैदियों के हालात और उनकी निहायत जरूरीआवश्यकताओं को बेहद चुटीले मसाले से परोसा गया है।
     बड़े बड़े वकीलों और न्यायाधीशों की अपनी दुनिया है,राजेंद्र गुप्ता रिटायर्ड जज की छोटी सी भूमिका में जज और वकील के कर्तव्यों का अहसास बेहद खूबसूरत अंदाज़ में बताते हैं।
एक और कलाकार यशपाल शर्मा प्रतिद्वंद्वी  की छोटी भूमिका में खूब जमे हैं और कहीं कहीं तो वीडी त्यागी यानी रविकिशन पर भारी भी पड़े हैं।चुनावी हथकंडों को भी स्वस्थ हास्य परंतु सजगता से प्रदर्शित किया है।पूरी सीरीज में बार काउंसिल के प्रेसिडेंट चुने जाने की कवायद चलती रहती है। परंतु यहां पर आखिरी में निर्देशक कहीं अति यथार्थ का शिकार हो गया है।
आठवें और अंतिम एपिसोड में सीरीज का मुख्य पात्र वीडी त्यागी जब बार काउंसिल के प्रेसिडेंट का चुनाव हार चुका है और प्रतिद्वंद्वी पिटाई के बाद भी शिकायत नहीं करता है जो सत्यता से परे है।सीरीज में एक और मुद्दा  वकील और जज?और फिर  वकील से जज  बनने और फिर कमाई को भी प्रभावी अंदाज़ में प्रस्तुत किया है।वीडी त्यागी के किरदार में रवि किशन  यहां खूब जमें हैं। महिला जज द्वारा त्यागी को कोर्ट रूम में ले जा कर न्याय की महत्ता को भाव पूर्ण ढंग से दिखाया है जिसमें पैसे कमाने के मुद्दे पर आत्म संतुष्टि को दिखाया गया है।
                क्या ही बेहतर होता कि कोर्ट में लंबित मामलों ,वकीलों,जज,कचहरियों और संबद्धकर्मियों सुविधाओं को और बेहतर तरीके से बताया या पेश किया जा सकता है। सम्भवतः इसके सीक्वल दो में कुछ और मुद्दे मनोरंजन के तड़के के साथ देखने को मिलें।

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