संपादकीय – भारतीय राजनीति का हमाम
आज के भारत का राजनीतिक परिदृश्य कुछ अजीब सा है। कहीं कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई देता जिसके दिल में देश और देश के नागरिकों की भलाई बसती हो। सभी विपक्षी नेताओं के पास केवल एक ही मुद्दा है कि किस तरह नरेन्द्र मोदी...
संपादकीय – ब्रिटेन के स्कूल नफ़रत का अड्डा
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने बहुत से मुद्दे एक साथ उभर कर आ रहे हैं। उनकी गृह सचिव सुएला ब्रेवरमैन ने पाकिस्तानी मूल के युवाओं पर ब्रिटिश बच्चियों के यौन शोषण का आरोप लगाया है। भारतीय उच्चायोग पर खालिस्तान समर्थक तत्व हिंसात्मक...
संपादकीय – पढ़ाएं तो मुश्किल… न पढ़ाएं तो मुश्किल!
वैसे आजकल सोशल मीडिया तो लोकप्रियतावाद का सबसे ज्वलंत उदाहरण है। हम किसी न किसी वरिष्ठ साहित्यकार, मीडिया कर्मी या सिनेमा कलाकार के हाथ में अपनी कृति पकड़ा कर एक फ़ोटो खिंचवा लेते हैं और फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम पर साझा कर देते हैं। इसके माध्यम...
संपादकीय – हम दर्द के मारों का इतना ही फ़साना है…!
मगर भ्रष्टाचार के केसों से लड़ाई करती चौदह राजनीतिक पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट से राहत एक मुश्त तमाम राजनीतिक दलों के लिये मांगी। ज़ाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसी किसी याचना की सुनवाई कैसे कर सकती है। अभिषेक मनु सिंघवी ने स्थिति को समझते...
संपादकीय – राहुल गांधी, भारतीय लोकतंत्र और विदेशी सरकारें…
कुछ लोगों की सोच है कि राहुल गांधी के विरुद्ध कांग्रेस पार्टी में ही षड़यंत्र रचा जा रहा है। तो कुछ का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि राहुल ही विपक्ष का चेहरा बना रहे क्योंकि चुनावों में उसे हराना आसान...
संपादकीय – क्या भारत को राष्ट्रमण्डल देशों में बना रहना चाहिये ?
सवाल यह उठता है कि जब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया खालिस्तानी उग्रवादियों से निपटने को तैयार नहीं हैं तो भला भारत राष्ट्र मण्डल देशों के समूह में कर क्या रहा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो तो अपनी पार्टी के वोटों के लिये खालिस्तानियों...