गांधी जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन :
- संदीप तोमर

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो अवनीश कुमार, अध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, मुख्य अतिथि भाषाविद् और केंद्रीय हिंदी समिति के सदस्य प्रो. कृष्णकुमार गोस्वामी थे। कार्यक्रम का संयोजन एवम् संचालन हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष श्री सुधाकर पाठक किया गया । स्रोत वक्ताओं में प्रो. डॉ रमेश तिवारी, डॉ धनेश द्विवेदी, डॉ हरीश अरोड़ा, डॉ राकेश पांडेय, डॉ बी. एल. गौड़ थे। इस अवसर पर सरोज शर्मा, सविता चड्ढा, मुक्ता, हामिद खान, मंजीत कौर, विजय कुमार, विजय शर्मा, राजकुमार श्रेष्ठ, नरेंद्र सिंह निहार, डॉ. भावना शुक्ल, सरिता गुप्ता आदि साहित्यकार के साथ ही कथाकार सन्दीप तोमर भी उपस्थित थे।
इस कार्यक्रम को दो सत्रों में विभक्त किया गया था। प्रथम सत्र में विचार संगोष्ठी में वक्ताओं ने गाँधी चिंतन में हिंदी भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला। दूसरे सत्र में रचनाशील शिक्षकों ने अपनी रचनाएँ सुनाईं जो हिंदी, गाँधी, देशभक्ति पर आधारित, सामाजिक तथा नारी विषयक थीं।
राजभाषा समिति के सदस्य श्री धनेश द्विवेदी जी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि अपनी भाषा को लागू करने की दृढ़तापूर्वक मानसिकता और इच्छा शक्ति की आवश्यकता है। इसीलिए गाँधीजी ने कहा था-” हम सारा काम अपनी भाषा में कर सकते हैं, आवश्यकता केवल हिंदी के प्रयोग करने की है।विदेशी भाषा से बच्चों पर बेज़ा जोर पड़ता है। किसी और भाषा में अपने बच्चे को पढ़ाना मैं इसे देश का दुर्भाग्य समझता हूँ। सही मायने में कोई भी देश तब तक स्वतंत्र नहीं कहा जाएगा, जबतक वह अपनी भाषा में काम नहीं करता है।
प्रसिद्ध व्यंग्यकार रमेश तिवारी जी ने कहा कि गाँधी जी देशवासियों से कहा करते थे -“हम तो अपनी भाषा में ही काम करेंगे, नहीं आती तो सीखना होगा।” भाषा भावाभिव्यक्ति का नाम है। गाँधी मूलतः गुजराती होते हुए भी राष्ट्रीय एकता को मद्देनज़र रखते हुए हिंदी को महत्व देते थे।
केंद्रीय हिंदी निदेशालय, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के निदेशक प्रो. अविनाश जी ने कहा कि गाँधी जी सबको एक सूत्र में बाँधने के लिए एक राष्ट्रभाषा का होना आवश्यक मानते थे। हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा हिंदी ही हो सकती है।