डॉ. शिवनारायण की 4 ग़ज़लें

ग़ज़ल ()

 

तुम्हारी याद में जो जिन्दगी है

जिधर देखो उधर ही बेबसी है

अंधेरा क्या डराएगा हमें अब

ख्यालों में हमारे रोशनी है

दुखाया है किसी ने दिल तुम्हारा

तुम्हारी आंख में कैसी नमी है

वफादारी भी हमने सीख ली है

नहीं कोई शरीफों की कमी है

तुम्हें ही ‘शिव’ किसी दिन मार देगी

तुम्हारे दिल में यह जो दिल्लगी है !

************

 

ग़ज़ल ()

बाजारों की रौनक में जनवाद कहां है

लोगों की उस महफ़िल में संवाद कहां है

तुम भी खुश हो मैं भी खुश हूं इस मौसम में

किस के दिल में अब कोई अवसाद कहां है

आज बयानों में कहती यह रोज सियासत

इस मौसम में अब कोई उन्माद कहां है

दुनिया के लोगों में इतनी दहशत फैली

हर कोई अब खुद में भी आजाद कहां है

भाई, तो इतना बतला दो ‘शिव’ को भी यह

जुल्मों के हिस्से में अब प्रतिवाद कहां है !

************

ग़ज़ल ()

 

मुसीबत के लिए दीवार हूं मैं

अभी उतना नहीं लाचार हूं मैं

जरूरत है नहीं तेरी दवा की

अकेला दर्द का उपचार हूं मैं

समय की नब्ज आएगी पकड़ में

अभी उस दौर का अखबार हूं मैं

मैं अपने घर में ही खुश हूं बहुत ही

सभी रिश्तों का ऐसा प्यार हूं मैं

चलो ‘शिव’ देख लो आगे बढ़ो तुम

ये दुनिया कह रही उस पार हूं मैं !

************

ग़ज़ल ()

बेवजह प्यास प्यास करता हूं

अपनी दुनिया उदास करता हूं

मैं भरोसे की धुंध में जाकर

जिन्दगी की तलाश करता हूं

दर्द की बात जब निकलती है

जख्म अपना मैं खास करता हूं

इस सियासत के दाग़ से हर दिन

मैल अपना लिबास करता हूं

कौन कहता है ये बता ‘शिव’ को

मैं जमाने की आस करता हूं !

 

डॉ. शिवनारायण, संपादकः नई धारा, पटना

मोबाइलः +91 93343 33509

 

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.