14 नवंबर 2021 के संपादकीय ‘राजनीति के हमाम में सब…’ पर निजी संदेशों के माध्यम से प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाएं

– उषा साहू, मुंबई
 नमस्कार तेजेन्द्र जी। 14 नवम्वर 2021 अंक का संपादकीय पढ़ा। हमेशा की तरह सच्चाई और स्पष्टता से भरा हुआ। सादर अभिनंदन…
यह महाराष्ट्र की राजनीति है या कोई गंदा नाला, जिसमें हर (भ्रष्ट्र) नेता हाथ धोना चाहता है। मामला था आर्यन (शाहरुख खान के पुत्र) के ड्रग का और उलझ गया राजनेताओं के व्यक्तिगत मामले में… एक दूसरे की छीछालेदार करने में। इसमें बहन, दामाद, साली, पिता आदि को भी घसीट लिया गया। यहाँ तक कि पूर्व मुख्य मंत्री देवेन्द्र फणनवीस को ही नहीं बल्कि उनकी पत्नी अमृता फणनवीस को भी लपेटे में ले लिया गया। उनका तो राजनीति से कुछ लेना-देना भी नहीं है। क्या कहेंगे इसको ?
आर्यन तो घर पहुँच गया, और राजनेता उलझे रह गए व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने में। घटना का स्तर  इतना नीचे गिर गया कि पैसे का लेन-देन जैसी एकदम छुपी हुई बातें ड्राइवर तक को पता हैं। वह तसदीक भी कर रहा है कि किरण गोसावी ने, शाहरुख खान से पच्चीस करोड़ रुपए की मांग की थी। अब यह किरण गोसावी कहाँ से आन विराजे। ठहरो… ठहरो, अभी तो एक दाड़ी वाला भी आने वाला है, जिसके बारे में कहा जा रहा वह ड्रग माफिया है और उस दिन क्रूज पर था। कहा तो यह भी जा रहा है कि वह समीर वानखेडे का दोस्त है।
अब नबाव मालिक को एक मोहित कंबोज मिल गया, जिसके ऊपर 11 करोड़ के गबन का आरोप है।
वास्तव मे नबाव मालिक को, अपने पद की गरिमा को देखते हुए, इस तरह से लोगों की जन्मकुंडली खंगालने की बजाय, उचित माध्यम द्वारा कार्रवाई करना चाहिए थी ।  अगर उनके पास सबूत हैं तो उन्हें पुलिस का सहारा लेना चाहिए था । इस चीप पापुलरटी में कुछ नहीं रखा ।
क्या हो गया है महाराष्ट्र की राजनीति को? गृह मंत्री जेल में, पूर्व पुलिस कमिश्नर अदृश्य… एक और पुलिस अधिकारी जेल में।
इन राजनायिकों को, जिनको आवाम ने पूरे विश्वास के साथ निर्वाचित किया है, क्या उनके पास, इन ‘फालतू’ काम के अलावा कोई और काम नहीं है?
आवाम को भी यह सोचकर संतोष कर लेना चाहिए कि दोनों एक दूसरे के राज खोलने में लगे हैं, इससे सभी के काले कारनामे सामने आ रहे हैं। लगे रहो नेताओ… जय महाराष्ट्र…
शन्नो अग्रवाल, लंदन
तेजेन्द्र जी, आपके  संपादकीय में सारा नजारा साफ़ है।
यह सारा खेल ही शुरू हुआ आर्यन की गिरफ्तारी के बाद। लेकिन इस बात से कोई सरोकार न होने बावजूद भी नबाब मलिक ने अपनी पुरानी खुंदक निकालने की सोची। वानखेड़े और उनके पूरे परिवार पर उंगली उठाई। बिना वक़्त की बाँसुरी बजाने लगे।
वानखेड़े की जन्मकुंडली टटोल कर उनके धर्म व बर्थ-सर्टिफिकेट को लेकर बखेड़ा खड़ा किया। लेकिन समीर की एक बहन जो पेशे से वकील है वह नहीं झुकी। वह सब के सवालों का  मुँहतोड़ जवाब देती रही। और अपने भाई का पक्ष लेती रही। कहते हैं ना कि ‘ब्लड इज थिकर दैन वाटर।’
पर नबाब मलिक भी कहाँ हार मानने वाले थे। दुनिया ने इस सारे तमाशे को देखा और मजे लिये। लेकिन आखिर में नबाब मलिक के पल्ले क्या आया? जो चिंगारी लगाई थी वह शोला बनकर भड़की और फिर राख बन गयी। इतना नाच नाचने के बाद अब उल्टे उन्हें, जैसा आपने लिखा, बड़ा जुर्माना भुगतना पड़ेगा। अपने बिछाये जाल में खुद फंस गये। ऐसी फजीहत से तोबा!
अतुल्यकृति व्यास, मुंबई
तेजेन्द्र जी संपादकीय पढ़ गया हूं। इस तरह की राजनीति का उद्देश्य क्या? इस राजनीति के केन्द्र में राष्ट्र क्यों नहीं आता?
राष्ट्रीयता कुतर्कों की भेंट चढ़ा दी जा रही है …सारा खेल सत्ता हथियाने का है, अपने वोट बैंक को येन-केन-प्रकारेण, तुष्टिवाद की घुट्टी पिलाकर अपने पक्ष में बनाये रखना है…
अपने लक्ष्यों को पाने के लिये सभी मार्गों का अनुसरण किया जा रहा है सिवाय सत्य और नैतिकता को छोड़कर…
समाधान सिर्फ़ जनता ही है, और उम्मीद सोशल मीडिया से है जो सच्चाइयों को आम आदमी तक पहुँचाता है…
प्रगति टिपणिस, मॉस्को
सटीक कटाक्ष तेजेन्द्र जी… अत्यंत दुखद सूरते हाल है।  हर कोई अपना स्वार्थ साध रहा है और देश के हालात दिन ब दिन बिगड़ते जा रहे हैं। ख़बरों और उनको पेश करने वाले जमूरों से कोई सच्ची और सार्थक जानकारी नहीं मिलती। क़ानून के रचयिता और रक्षक भी एक दूसरे पर निशाना लगाए बैठे हैं।
न जाने क्यों मैं साईट पर कमेंट नहीं लिख पाती हूँ, उसका क्या कोई know how  है?
 
इंद्रजीत, मुंबई
भाई साहब आपकी संपादकीय में टिप्पणी अक्षरशः सत्य है और अपनी बात को कहने के लिए आपने जिस  कहावत का उपयोग किया है वह अपने आप में केवल इस घटना पर ही नहीं समूचे भारतीय समाज पर फिट बैठती है। चाहे धर्म के प्रवर्तक या धार्मिक चोला धारण किए मठाधीश, राजनीति के मालिक या समाज के सामाजिक सेवक, इनके किरया-क्लाप पर अगर ध्यान दें, तो पता चलता है कि विरोध तो ये एक दूसरे की जरूर करते हैं, उनके बुरे कामों की बुराई करते हैं लेकिन अवसर मिलने पर उन जैसा ही करते हैं। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं कि हमाम में सब नंगे हैं केवल जनता है जो उन पर परदा डालती है।
 

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