“चल न क्या किताबों में मुंह गड़ाए बैठी रहती है.” नीरू ने चारु के कंधे हिलाते हुए कहा.
“अरे अरे रुक तो.. बहुत ही बढ़िया कहानी है,बस इसे खत्म कर लेने दे फिर चलते हैं.” चारु ने किताब में नजरें गड़ाए ही कहा.
“अरे चल छोड़ भी न,” नीरू ने उसके हाथ से किताब झपटी, “जब देखो तब किताबें किताबें. जरा बाहर चल कर देख क्या मजेदार बातें हो रही हैं.”
चारु ने उसके हाथ से किताब लेने की कोशिश की, “अरे जाने दे न वही इसकी उसकी बातें,तू तो मेरी किताब दे दे मुझे तो इसकी बातें पढ़ना ही अच्छा लगता है, मेरी माने तो तू भी पढ़ा कर कुछ अच्छी बुक्स मनोरंजन तो होता ही है ज्ञान भी कुछ न कुछ तो बढ़ ही जाता है.”
” न बाबा न..मेरे बस की बात नहीं है ये किताबों से सिर फोड़ना. ये काले काले अक्षर मुझे काले काले कीड़ों जैसे दिखते हैं देखते ही झुरझुरी छुटने लगती है. फिर जब बिना पढ़े ही ज्ञान बढ़ रहा हो तो फालतू किताबों में सिर कौन खपाए.” नीरू ने हाथ मटकाते हुए कहा.
“अच्छा! बता तो ऐसा कौन सा ज्ञान मिल गया तुझे बिना किताबों में सिर खपाए!” चारु ने हार मानते हुए कहा
” हां ,सुन..” नीरू ने हुलसते पर आवाज जरा धीरे कर के कहा,  “तुझे पता है शिखा का तलाक हो गया.”
“हैं ! क्या बात कर रही है!” चारु की आंखे फैल गई.
” हां, देख है कि नहीं मजेदार और नोलेजेबल बात ! बिना किताब के!.” नीरू ने आंखें मटकाई.
“अरे, पर !” चारु को यकीन नहीं हुआ, ” अभी साल भर तो नहीं हुआ उसकी शादी को!”
“हां वही तो.. पर अभी अभी सुमन बता रही थी कि तीन चार दिन पहले जब वो यहां आई थी तब उसी ने बताया कि उसका डाइवोर्स हो गया है और वो अभी अपनी मम्मी के यहां रहती है.” नीरू ने कहा
“हां..” चारु को याद आया, “अभी कुछ दिन पहले तो मिली थी उससे तब तो ऐसी कोई बात नहीं थी. उसने भी कुछ नहीं बताया, न ही उसके चेहरे या उसकी बातचीत से कुछ लगा फिर ये अचानक .!”
“अचानक क्या ? मुझे तो पहले से ही पता था कि एक न एक दिन ऐसा जरूर कुछ होगा..उसका नेचर नहीं देखा कितना खडूस है..घर में भी ऐसे ही रहती होगी तो कौन सहन करें? मुझे तो आश्चर्य है इतने दिन भी टिक गई इसकी शादी वरना जैसा इसका नेचर है दो महीने भी नहीं चल सकती.निभाने वाली लड़की नहीं है वो.. ना..” नीरू ने हाथ नचाते मुंह बनाते कहा.
” खडूस?” मुझे तो कभी नहीं लगी ऐसी..कितनी तो प्यारी लगती है..नेचर भी अच्छा ही है उसका..” चारु के चेहरे पर आश्चर्य पुता हुआ था.
” हुं, तुझे तो सभी अच्छे लगते हैं पर सब होते नहीं हैं, और ऊपर से भोले दिखने वाले लोग तो अंदर से और भी ज्यादा चालाक होते हैं” नीरू ने मुंह बनाते हुए कहा और चारु को खींचा, ” चल उधर देखते हैं शायद कुछ और बात पता चले.”
स्टाफ रूम में नेहा भी कुछ पढ़ रही थी.. दोनों कुछ देर चुपचाप बैठी रही.चुप्पी से बोर होकर नीरू बोली, ” क्या पढ़ रही है नेहा कोई एक्जाम की तैयारी कर रही है क्या?”
नेहा ने सिर ऊपर उठाया, ” नहीं रे, यूं ही खाली समय था तो पढ़ रही थी. मेरे लिए किताबें समय काटने का सबसे अच्छा जरिया है.”
” हुं, हां अच्छी किताबें तो दिमाग की खिड़कियां खोल देती हैं..मैं खुद भी किताबें पढ़ना ही ज्यादा पसंद करती हूं और सबको बोलती भी रहती हूं कि किताबें पढ़ा करो किताबों से अच्छा कोई साथी नहीं.”
चारु ने हैरानी से उसकी तरफ देखा..उनकी पिछली बात से अनजान नेहा बोली,” हां इधर उधर बैठ कर फालतू समय बर्बाद करने या इधर उधर की बातें करने से अच्छा है कुछ अच्छी मनोरंजक शिक्षाप्रद किताबें पढ़ लीं जाएं.
“हां सही है,ये महिलाओं के साथ फालतू की बातें, इसकी उसकी करने से अच्छा है एक अच्छी किताब पढ़ना.मैं तो भई फालतू बातें करने के बजाय किताबें पढ़ना पसंद करती हूं नहीं तो तुझे तो पता ही है जहां दो महिलाएं मिली नहीं कि या तो बुराइयां शुरू या लगाई बुझाई, पर सोचो क्या फायदा है ऐसी बातों का..” नीरू बोल रही थी चारु हैरानी से ताक रही थी,इतनी जल्दी तो गिरगिट भी रंग नहीं बदलता जितनी जल्दी ये बदलती है
” अच्छा नेहा तुझे पता है कि शिखा का तलाक हो गया है..मुझे तो भई सचमुच सुनकर शॉक ही लग गया ,साल भर भी शादी को नहीं हुआ और तलाक हो गया. ये आजकल की लड़कियां जरा भी सहन नहीं करती और हमें देखो सोलह साल हो गए सहन करते करते और आगे भी करेंगे पर तलाक…तौबा.” नीरू ने कानों पर हाथ लगाया
नेहा के चेहरे पर हैरानी और जिज्ञासा दोनों उभर आईं,”अरे! क्यों? कब? कैसे? सब कुछ तो अच्छा ही लग रहा था अचानक तलाक! नहीं नहीं यूं ही किसी ने अफवाह फैलाई होगी..”
“अफवाह ! कौन फैलाएगा अफवाह..वो खुद ही कंचन को बताई कि उसका तो डाइवोर्स हो गया अब वो ससुराल में नहीं मम्मी के यहां रहती है” नीरू ने हाथ नचाए.
“नहीं नहीं जरूर कुछ गलत सुनने में आया है. उसने कुछ और कहा होगा जो ऐसा लगा होगा.” नेहा बोली नीरू ने हथेली पर हथेली मारी, “ऐसी कोई बात गलत सुनने में नहीं आती. कुछ ऐसा ही बोली होगी तभी तो बातें हुई ना.”
“पर अभी परसों ही तो मैं उससे मिली हूं इतनी बढ़िया तैयार होकर आई थी बहुत सुंदर लग रही थी, खुश भी थी कहीं से ऐसा नहीं लगा कि उसकी शादी टूटी है. न चेहरे से न बातों से फिर!”
” अरे,घुन्नी है वो..तुम नहीं जानती उसके बारे में, मैं जानती हूं.. अकडू और घमंडी. भगवान ने जरा रूप क्या दे दिया ऐसा जताती है जैसे उससे सुंदर और कोई है ही नहीं.”नीरू मुंह बनाते बोली.
 नेहा बोली,” खैर जाने दे,जो बात होगी सामने आ ही जाएगी हम क्यों व्यर्थ चर्चा कर तीन पांच करें”
नीरू के मन की खलबली साफ नजर आ रही थी, ” हां पर मैं यही सोच रही हूं कि अचानक तलाक कैसे हो गया? इतना अच्छा पति मिला इतना अच्छा घर मिला इतनी बढ़िया जॉब है उसके पति की पैसा भी भरपूर फिर भी निभा नहीं पाई और हमें देखो रोज बातें सुनते हैं,रात दिन खटते हैं ,बैल की तरह जुते रहते हैं फिर भी तलाक के बाद नहीं सोचते बस खटते जा रहे हैं खटते जा रहे हैं.. फिर यह भी तो पता नहीं ना कि तलाक दिया क्यों सच में जरा सा भी एडजस्टमेंट नहीं करती आज की लड़कियां.”
चारु बोली,” तू ही फोन करके पूछ ले उससे तो.. क्या हुआ? क्यों अचानक बात यहां तक आ पहुंची. पता कर ले उसी से पूछ कर.”
“ना बाबा.. मैं नहीं पूछती..क्यों किसी के दुख को उधेड़ना, किसी को दुख देना अच्छी बात है क्या? मुझसे तो भई न ऐसी बातें होती हैं न मैं किसी को दुखी कर सकती हूं, हां तू पूछ उससे, फिर मुझे भी बताना..”
इस बार तो चारु की हैरानी ने भी आने से मना कर दिया..
क्या करे, जब से घर से बाहर निकल दुनिया देखी है ऐसे ही लोगों से वास्ता पड़ा है..रंग बदलने में गिरगिट को मात करने वाले,अवसरानुकूल पलटने वाले.जो गुण है ही नहीं उन्हें भी बढ़चढ़ कर बताने वाले. सुनने वाले वही सुनते हैं जो सुनाया जा रहा है,देखने वाले वही देखते हैं जो दिखाया जा रहा है. और उस जैसे लोग जो चुप रह कर अपने गुणों को उभारते हैं पर प्रदर्शित नहीं कर पाते, ऐसे ही रह जाते हैं और इधर से भी उधर से भी मीठी मीठी बातें बोल कर नीरू जैसे लोग वाही वाही लूट ले जाते हैं..आपका वास्ता भी पड़ता ही होगा ऐसे लोगों से..नहीं !

डॉ ममता मेहता
7, प्रभा रेजीडेंसी
पुराना बियानी चौक
लड्ढा प्लॉट,कैंप
अमरावती (महा.)444602
संपर्क – 9404517240

1 टिप्पणी

  1. बहुरंगी दुनिया में एक रंग ऐसा भी! इन जैसों के लिये किसी के दुख -सुख से कोई मतलब नहीं होता! बात करने के लिये कुछ न कुछ मसाला चाहिये रहता है।

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