Monday, May 20, 2024
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संपादकीय – यह रेडियो कैनेडिस्तान है…!

18 जून को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हुई और 18 सितंबर को जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में अपने ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान का बम फोड़ा। इसके ठीक बारह दिनों बाद ही ट्रूडो को समझ आ गया कि अपनी राजनीतिक गद्दी बचाने के लिये उन्होंने जो ग़लती भारत पर आरोप लगा कर की है, वो उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी ग़लती है। सरकारें आती हैं चली जाती हैं… मगर देश वहीं रहता है। किसी भी राजनेता को यह हक़ नहीं है कि वह अपने राजनीतिक अस्तित्व की भेंट अपने देश को चढ़ा दे।

पुरवाई के पाठकों को एक राज़ की बात बताता हूं। यदि आप गूगल सर्च में दो शब्द लिखें – ‘रेडियो झूठिस्तान’ – और चित्र ढूंढने का प्रयास करें तो पाकिस्तान रेडियो का पूरा इतिहास सामने आ जाता है। 1965 की पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई के दौरान एक महान रेडियो प्रसारक दीनानाथ जी ने रेडियो झूठिस्तान की शुरूआत की थी जिसमें वे ‘मियां ढिंढोरची’ बन कर पाकिस्तान के एक समाचार वाचक की आवाज़ की नक़ल करते हुए पाकिस्तान के जीत के दावों की खिल्ली उड़ाया करते थे। हमारे बीबीसी हिन्दी के प्रसारकों को अवश्य उनकी याद होगी। मुझे उनके निर्देशन में एक रेडियो नाटक में भी काम करने का अवसर मिला था।
जिस तरह कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में बिना कोई सुबूत पेश किये भारत सरकार पर अलगाववादी और आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया तो मुझे ‘रेडियो झूठिस्तान’ की याद आ गई।
ध्यान देने लायक बात यह है कि केवल बारह दिनों के भीतर जस्टिन ट्रूडो के राजनीति के सबसे अनाड़ी प्रधानमंत्री के रूप में सारे भेद खुल गये। 18 सितम्बर 2023 को जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में आरोप लगाया, “जैसा कि मैंने सोमवार को कहा था, हमारे पास यह मानने के विश्वसनीय कारण हैं कि भारत सरकार के एजेंट कनाडा की धरती पर एक कनाडाई की हत्या में शामिल थे। ऐसा करके हमारा देश नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के पक्ष में खड़ा हो रहा है जिसमें हम विश्वास रखते हैं।”
यह बयान जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर के मामले में दिया था जिसकी एक गुरुद्वारे के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। विडम्बना यह थी कि अभी पुलिस की तफ़तीश पूरी नहीं हुई थी और कनाडा के प्रधानमंत्री के पास ‘विश्वसनीय कारण’ भी पैदा हो गये थे। जस्टिन ट्रूडो के चेहरे के भाव साफ़ बता रहे थे कि वे कितने दबाव और तनाव में थे। दरअसल उन्हें पूरी उम्मीद थी कि अमरीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड उनके समर्थन में आ खड़े होंगे।
एक राजनीतिज्ञ के रूप में उनकी अपरिपक्वता यहीं से साबित हो जाती है कि उन्होंने बिना किसी ठोस सुबूत के अपने ही एक मित्र देश पर इतना बड़ा आरोप लगा दिया जिसे संभालना उनके बस की बात नहीं थी। उनकी विदेश मंत्री 44 वर्षीय मेलेनी जोली ने एक कठोर कदम उठाते हुए घोषणा कर दी कि कनाडा ने भारतीय उच्चायोग के वरिष्ठ अधिकारी को कनाडा छोड़ देने का आदेश दिया है।
दरअसल चीन, पाकिस्तान और पश्चिमी देश अभी तक उस माहौल से बाहर नहीं निकल पाए हैं जब भारत को दबाया जाता था और भारत केवल कसमसा कर हल्का सा विरोध प्रकट करके रह जाता था। आज का भारत अलग है। अभी कनाडा द्वारा भारतीय उच्चायोग के वरिष्ठ अधिकारी को भारत वापिस जाने के आदेश की स्याही सूखी भी नहीं होगी कि भारत ने कनाडा के एक उसी स्तर के अधिकारी को पाँच दिन के भीतर भारत छोड़ने का आदेश दे दिया। यही नहीं भारत ने कनाडा के नागरिकों के लिये वीज़ा सुविधा पर भी अस्थाई समय के लिये रोक लगा दी। ज़ाहिर है यदि भारत के उच्चायोग अधिकारियों को धमकियां मिल रही हों तो वे अपने काम पर पहुंच कैसे सकते हैं और वीज़ा जैसी प्रक्रिया पर ध्यान लगा कर काम कैसे कर सकते हैं।
भारत ने एक तीखा बयान जारी करते हुए कहा कि “उसे कनाडा में चरमपंथी तत्वों की भारत-विरोधी गतिविधियों को जारी रखने के बारे में गहरी चिन्ता है।” भारत ने कनाडा पर “अलगाववाद को बढ़ावा देने और भारतीय राजनायिकों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने” का भी आरोप लगाया।
कनाडा को पूरी उम्मीद थी कि उनके जी-7 के देश उनका साथ देंगे और भारत दबाव में आ जाएगा। मगर हुआ कुछ उल्टा। कनाडा भूल गया था कि वर्तमान भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। आज हर विकसित देश चीन से तंग आकर भारत के साथ रिश्ते बना रहा है। कनाडा स्वयं भारत के साथ कितनी संधियां कर चुका है।
सोचने की बात यह है कि जस्टिन ट्रूडो पर किस प्रकार का दबाव है कि वह खालिस्तानी चरमपंथियों के साथ खड़ा होने के लिये मजबूर हैं। ज़ाहिर सी बात है कि उनकी सरकार अल्पमत में है और उनकी नकेल है न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के मुखिया जगमीत सिंह के हाथ में हैं जिसके पास 25 संसद सदस्य हैं। यदि जगमीत सिंह अपना समर्थन वापिस ले लेता है तो ट्रूडो की सरकार गिर जाएगी।
ट्रूडो परिवार की चरमपंथियों और आतंकवादियों के साथ रिश्ते कोई नये नहीं हैं। 1985 में एअर इंडिया के विमान कनिष्क को हवा में बम से उड़ाने वाले आतंकवादियों पर जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो ने भी कोई कार्यवाही नहीं की थी और उन्हें भारत को नहीं सौंपा था। रिपुदमन सिंह मलिक पर कनाडा सरकार ने बेदिली से मुकद्दमा अवश्य चलाया मगर अधकचरे सुबूतों के चक्कर में अदालतों ने उसे छोड़ दिया। याद रहे कि एअर इंडिया उड़ान एआई-182 में बम धमाके से 329 यात्रियों एवं कर्मीदल की मृत्यु हो गई थी जिसमें से 268 नागरिक कनाडा के थे।
चरमपंथियों और आतंकवादियों के प्रति संवेदनाएं जस्टिन ट्रूडो को अपने पिता से विरासत में मिली हैं। सोशल मीडिया पर जस्टिन ट्रूडो की एक फ़ोटो भी वायरल हुई जिसमें उन्हें एक पगड़ी-धारक सिख के रूप में दिखाया गया है और उन्हें खालिस्तान का पहला प्रधानमंत्री कहा गया है। जस्टिन ट्रूडो का नया नामकरण भी किया गया है – जसटिंदर सिंह ट्रूडोवाल!
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं जस्टिन ट्रूडो या कनाडा के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोला। इसकी ज़िम्मेदारी उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को दे रखी थी। यदि इस समय यदि कोई ऑनलाइन प्रतियोगिता हो तो भारत के विदेश मंत्री इस प्रतियोगिता में संसार के तमाम विदेश मंत्रियों को आसानी से हरा देंगे।
श्री एस. जयशंकर ने विश्व के हर मंच पर बिना कनाडा का नाम लिये उसकी इतनी खिंचाई की कि कनाडा लगभग बिलबिलाने लगा। घरेलू स्तर पर भारत ने सबसे पहले तमाम खालिस्तानी आतंकवादियों की सूची बना कर विश्व भर में जारी कर दी और कनाडा की इज्ज़त का पूरी तरह से कचरा कर दिया। हरदीप सिंह निज्जर के एक फ़ोटो जिसमें वह एके-47 राइफ़ल लेकर खड़ा था, पूरे सोशल मीडिया में वायरल कर दी।
कहा गया कि निज्जर एक प्लंबर था। यह शायद दुनिया का पहला प्लंबर होगा जिसकी वायु यात्रा पर बैन लगा हुआ था। वैसे वह प्रतिबंधित खालिस्तान टाइगर फ़ोर्स का मुखिया था। ऐसे ‘सीधे-सादे’ कनाडा के नागरिक की हत्या पर देश का प्रधानमंत्री सभी प्रोटोकॉल छोड़ कर अपने देश की संसद में अपने एक मित्र देश पर खुले आम आरोप जड़ देता है। यह राजनीतिक अपरिपक्वता का ज्वलंत उदाहरण कहा जा सकता है।
खालिस्तानी संगठन सिख फॉर जस्टिस ने कनाडा में रह रहे भारतीय मूल के हिंदुओं को देश छोड़ने की धमकी दी। साथ ही एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ जिसमें देखा जा सकता था कि खालिस्तानी उग्रवादी गुरवंत सिंह पन्नू कह रहा है कि “भारतीय हिंदुओ कनाडा छोड़ दो। भारत वापस चले जाओ।” ज़ाहिर है कि अमरीका और अन्य देशों पर भारत के पक्ष में भावनाएं जुड़ गई होंगी।
भारत में एन.आई.ए. ने एकदम एक्शन लेते हुए पन्नू की तमाम संपत्ति कुर्क कर ली। अब वह न तो भारत में आ सकेगा और न ही अपनी किसी संपत्ति का इस्तेमाल कर सकेगा। भारत के इस सख़्त रवैय्ये ने खालिस्तानियों के हौसले पस्त कर दिये। जब 25 सितम्बर को खालिस्तान समर्थकों ने जुलूस निकालने के लिये आवाज़ लगाई तो लोग घरों से बाहर नहीं निकले। फिर भी जो साठ सत्तर लोग इकट्ठे हुए उन्होंने भारतीय तिरंगे को फ़ुटबॉल की तरह उछाला और प्रधानमंत्री मोदी के चित्रों पर जूते बरसाए। वे इस बात को नहीं समझ पा रहे थे कि उनकी ये हरकतें उन्हें पूरी दुनिया में बदनाम कर रही हैं।
ट्रूडो को हैरानी तो तब हुई जब श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ-साथ कुछ अफ़्रीकी देशों ने भी इस मामले में कनाडा पर आरोप मढ़ दिये। वे खुले आम भारत के साथ आ खड़े हुए। न्यूज़ीलैंड ने तो चुप्पी साधे रखी मगर 5-आई के अन्य देशों ने भी कनाडा के समर्थन में खुल कर दो शब्द भी नहीं कहे।
भारत में एक सकारात्मक स्थिति देखने को मिली कि इस मामले में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल सरकार के साथ खड़े दिखाई दिये। एक आम भारतीय ने महसूस किया कि जब किसी मामले में पक्ष और विपक्ष एक साथ खड़े दिखाई देते हैं तो वे विश्व की बड़ी से बड़ी ताकत को अपने सामने झुका सकते हैं। इससे नरेन्द्र मोदी सरकार को मामले को निपटाने में किसी प्रकार की घरेलू दुविधा का सामना नहीं करना पड़ा।
जस्टिन ट्रूडो को बहुत उम्मीद थी कि एस. जयशंकर जब अमरीकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से मिलेंगे तो अमरीका अवश्य हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का मामला उठाएगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। ब्लिंकन ने भारतीय विदेश मंत्री के साथ दुनिया जहान की बातें कीं, मगर कनाडा का ज़िक्र भी नहीं किया।
इसके तुरंत बाद राजधानी दिल्ली के एक ग़ैर-राजनीतिक संगठन ‘सिख फ़ोरम’ ने खालिस्तान के मुद्दे पर भारत और कनाडा के बीच बिगड़ते संबंधों पर चिन्ता व्यक्त की है। उनके एक बयान में कहा गया है, “हम यह बात ज़ोर दे कर कहना चाहेंगे कि भारत के सिखों या भारत के बाहर सिख समुदाय के एक बड़े हिस्से में खालिस्तान की सोच के समर्थन में कोई नहीं खड़ा है।”
कनाडा की आग कुछ हद तक ब्रिटेन में भी पहुंचती दिखाई दे रही है। खालिस्तान के खिलाफ भारत द्वारा वैश्विक स्तर पर लिए स्टैंड से इसके आतंकी बौखला गए हैं। स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में खालिस्तान समर्थक सिखों ने भारतीय उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी को गुरुद्वारे में प्रवेश करने से रोक दिया। खालिस्तान समर्थकों द्वारा शुक्रवार (29 सितंबर 2023) को अंजाम दी गई इस घटना में उच्चायुक्त को कार से नीचे उतरने ही नहीं दिया।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दोरईस्वामी जब अल्बर्ट ड्राइव पर स्थित ग्लासगो गुरुद्वारे के पास पहुँचे कट्टरपंथी ब्रिटिश सिख कार्यकर्ताओं के एक समूह ने उनकी कार को घेर लिया कहा। इस दौरान उन्होंने ‘आपका स्वागत नहीं है (You are not welcome)’ के नारे लगाए। कुछ देर रुकने के बाद भारतीय उच्चायुक्त वहाँ से चले गए।
18 जून को हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हुई और 18 सितंबर को जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा की संसद में अपने ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान का बम फोड़ा। इसके ठीक बारह दिनों बाद ही ट्रूडो को समझ आ गया कि अपनी राजनीतिक गद्दी बचाने के लिये उन्होंने जो ग़लती भारत पर आरोप लगा कर की है, वो उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी ग़लती है। सरकारें आती हैं चली जाती हैं… मगर देश वहीं रहता है। किसी भी राजनेता को यह हक़ नहीं है कि वह अपने राजनीतिक अस्तित्व की भेंट अपने देश को चढ़ा दे।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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4 टिप्पणी

  1. आदरणीय तेजेंद्र जी
    आज पुनः कुछ भी लिखने के पहले आपके जज़्बे को सलाम करते हैं।
    आपका संपादकीय देश दुनिया की कई अचंभित कर देनेवाली खबरों से तो रूबरू करवाता है जो इस बात का प्रमाण है कि दुनिया के किसी भी देश में, किसी भी क्षेत्र में, किसी भी विषय पर, कुछ भी घटित लिखना हो, आप की कलम निर्भीकता से चलती है ।।संपादकीय दृष्टि से यह सभी संपादकों के लिए प्रेरणास्पद भी है।

    सच पूछा जाए तो आज का विषय इतना अधिक गंभीर है जिसमें कलम चलाने से पहले ही सौ बार सोचने की जरूरत थी,भाषा व शैली की दृष्टि से अपने हित के मद्देनजर लेखनी थोड़ी सॉफ्ट हो भी सकती थी पर आपने यह साबित किया कि वास्तव में संपादक की दृष्टि शिव के तीसरे नेत्र की तरह सर्वत्र प्रहार करने की क्षमता रखती है, वह भी बिल्कुल निर्भीकता से।
    यह भी साबित होता है कि आपकी छठी इंद्री मुश्किल के समय में भी कितनी अधिक सजग और सक्रिय रहती है।यह बटर बिल्कुल भी नहीं ,क्योंकि प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
    आज के संपादकीय ने अतीत की ऐसी यादों में ले जा पटका जो आज भी भुलाये नहीं भूलता। हमारे मौसेरे भाई कर्नल महेंद्र प्रताप चौधरी भी ऑपरेशन ब्लू स्टार में थे और वहांँ उन्हें कंधे पर तीन गोलियांँ लगीं थीं। कई मेजर और तकलीफदेह ऑपरेशन के बाद भी भैया आज तक स्वस्थ नहीं हो पाए हैं और अब तो खैर बिस्तर पर ही हैं। किंतु हमारा भय आपके लिए भी कम नहीं। अच्छे इंसानों की इस धरती को बहुत जरूरत है।
    आज ही सुबह हमने एक वीडियो देखा जिससे पता चला की मणिपुर में जो हंगामे हुए अब उसके पीछे भी अलगाववादी सोच है।बल्कि वहाँ के कुकी नेता को कनाडा में खालिस्तानियों के बीच गुरुद्वारे में भाषण देते हुए भी बताया गया था। वे वहाँ आश्रय माँग रहे थे खालिस्तानियों की तरह।

    अपने निहित स्वार्थ और उच्च महत्वाकांक्षाओं का लोभ इंसान को तो अंधा करता ही है पर विवेक को भी नष्ट कर देता है ।किसी राष्ट्र का नायक हवा के रुख को भी न पहचान सके इससे दुखद और अहितकारी उसके लिए अन्य कुछ हो ही नहीं सकता। ऐसे लोगों के लिए क्या किया जा सकता है !जहांँ तक भारत की बात है, अब स्थितियांँ मजबूत हैं समय उसके साथ है और विश्व के अन्य राष्ट्रों की तरह कनाडा को भी यह समझना ही होगा।
    आपके संपादकीय की ही कुछ बातें बहुत ही महत्वपूर्ण है-

    सर्वप्रथम आपके संपादकीय का शीर्षक “कैनेडिस्तान”।
    बस संकेत को समझने की जरूरत है। आगे जाकर तथ्यात्मक जानकारियों और कथ्य से आपने उस शीर्षक को सार्थक सिद्ध किया।

    जहां किसी एक सामान्य सी घटना में भी सबूत और प्रमाण अति आवश्यक होते हैं वहां कोई राष्ट्र नायक मित्र देश पर बिना किसी सबूत के कोई आरोप लगा दे,कितनी अधिक आश्चर्यजनक अकल्पनीय और हास्यास्पद बात है!

    कनिष्क विमान दुर्घटना वाकई दुखद थी। 84-85 का समय आंखों के सामने झूल गया अपने स्वार्थ के लिए अपने देश के लोगों के प्राणों की भी ना सोची।

    जहां बात देश की हो, वहाँ आपसी द्वेष भूलकर,पार्टीबाजी को भूलकर सभी दलों का एकमत होना प्रशंसनीय है। और एकमत होना भी चाहिए , यही राष्ट्र के हित में है।

    आपके संपादकीय का आखिरी पद बहुत महत्वपूर्ण लगा और यह सभी राष्ट्राध्यक्षों के लिए अनुकरणीय भी है-
    “सरकारें आती हैं, चली जाती हैं……… मगर देश वहीं रहता है। किसी भी राजनेता को यह हक नहीं है कि वह अपने राजनीतिक अस्तित्व की भेंट अपने देश को चढ़ा दे।”
    आज का विषय बहुत ही गंभीर और चिंतित करने वाला है।
    एक बार पुनः आपके साहस,सत्यनिष्ठ और ईमानदार लेखन को नमन।

  2. ज्वलंत मुद्दे पर विचारोत्तेजक संपादकीय। सच अब भारत पहले जैसा नहीं रहा, शठ के साथ शठ जैसा व्यवहार करना उसे खूब आता है।

  3. आम जनता रूप में राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के परिपेक्ष्य में बहुत कुछ अछूता रह जाता है, ऐसे में आपका संपादकीय मार्गदर्शन करता है।बहुत-बहुत आभार आदरणीय !

  4. अंतराष्ट्रीय मुद्दों पर अगर कोई निष्पक्ष विष्लेषणात्मक लेख या संपादकीय पढ़ना हो तो विडम्बना ही कहूँगी कि मैं अक्सर अंग्रेज़ी प्रिंट मीडिया पर ही भरोसा रख पाती हूँ। पहली बार मुझे एहसास हो रहा है कि उच्चस्तरीय हिन्दी पत्रकारिता अभी भी जीवित है। तेजेंद्र जी , आपकी कलम तो अद्भुत है, इतने ज्वलंत मुद्दें को आपने हास्य, तथ्य और विष्लेषण के जिन तारों से गूँथा हैं, माँ हिन्दी को आप जैसे हीरे पर गर्व होना चाहिये।

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