ब्रिटेन में प्रत्याशियों की एक विशेष प्रजाति पाई जाती है जिसका नाम है – पेपर कैंडिडेट। यानी कि काग़ज़ी प्रत्याशी। उन्हें उन क्षेत्रों में नाममात्र के लिये खड़ा किया जाता है जहां पार्टी को कतई जीतने की कोई उम्मीद नहीं होती। ऐसे प्रत्याशी सभी राजनीति दलों में होते हैं। ऐसे प्रत्याशियों को दूसरे चुनाव क्षेत्रों में प्रचार प्रसार के लिये इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि वे पहले से ही इस तथ्य से परिचित होते हैं के वे नाममात्र के ही प्रत्याशी हैं, वे स्वयं भी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं।
गुरूवार 5 मई 2022 यू.के. भर में काउंसिल चुनावों का दिन था। यहां चुनाव मई के पहले गुरुवार को ही होते हैं चाहे तारीख़ कोई भी हो। इसका कुछ नुक़सान भी होता है। सोमवार से शुक्रवार लोग काम पर जाते हैं, इसलिये बहुत से लोग मतदान कर ही नहीं पाते। इस बार भी अलग-अलग क्षेत्रों में 30 से 67 प्रतिशत तक मतदान हुआ। मगर इंग्लैण्ड की काउंसिलों का औसत मतदान 35 % ही रहा।
ब्रिटेन में 200 काउंसिल हैं और 196 के नतीजे कल रात तक आ चुके थे। दलगत स्थिति कुछ इस प्रकार रही है – लेबर (74), कंज़रवेटिव (35), लिबरल डेमोक्रेट (16), स्वतंत्र (3), त्रिशंकु (65), एस.एन.पी. (स्कॉटलैण्ड) 1…
लेबर पार्टी को पिछले चुनाव के मुकाबले 7 काउंसिल अधिक मिले तो लिबरल डेमोक्रैट्स को 3 अधिक मिले। वहीं बॉरिस जॉनसन के कंज़रवेटिव दल को 11 काउंसिल का नुक्सान हुआ।
मतदान का प्रतिशत लंदन में करीब 35% ही रहा। यह देखा गया है कि स्थानीय निकायों के लिये मतदाताओं के मन में वोट डालने के प्रति इतना अधिक उत्साह नहीं रहता जितना कि राष्ट्रीय स्तर पर मतदान में।
ब्रिटेन में काउंसिल चुनाव कुछ वैसे ही होते हैं जैसे कि दिल्ली या मुंबई में म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के। मगर एक मूलभूत अंतर होता है। लंदन में काउंसलर के पास भ्रष्टाचार करने का कोई अवसर नहीं होता। यहां काउंसलर एक स्वयंसेवी है और उसे हर महीने बहुत मामूली सा भत्ता मिलता है। इसे एक तरह की समाज सेवा माना जाता है और हम समाज से जो पाते हैं उसे वापिस करने का प्रयास करते हैं। काउंसलर का सम्मान होता है उसकी ज़िम्मेदारियां होती हैं… मगर पैसा नहीं होता।
इस बार हुए चुनावों में शायद पहली बार राष्ट्रीय मुद्दों को स्थानीय मुद्दों के स्थान पर अधिक महत्व दिया गया। प्रधान मंत्री बॉरिस जॉनसन द्वारा नंबर 10 डाउनिंग स्ट्रीट यानी कि अपने कार्यालय में कोरोना काल के दौरान पार्टियां करना और अपने बनाए हुए कानूनों को तोड़ना और फिर उसके बाद लगातार झूठ बोलते चले जाना।
मैं स्वयं पिछले 15 वर्षों से लेबर पार्टी का सदस्य हूं। मैं इस पार्टी का सदस्य बारनेट बरॉ में बना जहां से इस बार ज़किया ज़ुबैरी जी ने छठी बार चुनाव जीता है। वे पहली मुस्लिम महिला हैं जिन्होंने बारनेट में काउंसिल का चुनाव जीता। इसलिये मुझे बारनेट और हैरो – दोनों क्षेत्रों की जानकारी है और दोनों की राजनीति को कुछ हद तक समझता भी हूं।
पहले बात करते हैं बारनेट की। बारनेट में तीन सांसद होते हैं। वहां के संसदीय क्षेत्र हैं – हेण्डन, फ़िचली और एण्ड गोल्डर्स ग्रीन एवं चिपिंग बारनेट। और वर्तमान ये तीनों सांसद कंज़रवेटिव यानी कि टोरी पार्टी के हैं। और पिछले 20 वर्षों से बारनेट की काउंसिल पर भी उन्हीं का कब्ज़ा रहा है। ज़किया जी पाँच बार विपक्षी दल की काउंसलर के तौर पर चुनाव जीत चुकी हैं जबकि इस बार वे सत्तारूड़ दल की काउंसलर बनेंगी।
अब की बार उनके चुनाव क्षेत्र और हैरो के चुनाव क्षेत्रों की सीमाएं कुछ बदली गयीं। जबकि वहां काउंसलरों की संख्या 63 ही रही, हैरो में वो घट कर 55 हो गयी है। मैंने महसूस किया कि पिछले दो वर्षों से बार्नेट में लेबर पार्टी निरंतर चुनावी मूड में आ चुकी थी। स्थानीय नेता निरंतर अपने मतदाताओं से संपर्क में थे और उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास कर रहे थे। उनका मैनिफ़ेस्टो भी समय पर तैयार हो गया और उन्होंने अपना कैम्पेन पूरी तरह से स्थानीय मुद्दों पर केन्द्रित रखा। हालांकि बीच-बीच में प्रधान मंत्री बॉरिस जॉनसन पर कटाक्ष करने वाले पर्चे भी बांटे गये।
ज़किया जी हमेशा कॉलिंडेल की काउंसलर यानी कि पार्षद रही हैं मगर इस बार उनका कार्यक्षेत्र दो हिस्सों में बांट दिया गया – कॉलिंडेल उत्तर एवं कॉलिंडेल दक्षिण। ज़किया जी इस बार कॉलिंडेल उत्तर की प्रत्याशी थीं और उनके साथ खड़े थे आंद्रायस जो कि ग्रीस के मूल निवासी हैं और युवा पीढ़ी का नेतृत्व करते हैं।
टोरी पार्टी की हार पर टिप्पणी करते हुए काउंसिल के निवर्तमान टोरी नेता पार्षद डेनियल थॉमस ने कहा कि उनकी पार्टी एक तूफ़ान में फंस गयी है। उन्होंने आगे कहा कि, “हमें सरकार में रहते 12 साल हो चुके हैं। बढ़ती महंगाई, पार्टीगेट का मामला और अन्य तीन कारक ऐसे हैं जिनकी वजह से टोरी पार्टी की दुर्गत हो रही है।”
इस बार लेबर पार्टी ने 41 सीटें जीती हैं जबकि टोरी पार्टी 22 तक सिमट कर रह गयी है। यह एक अद्भुत करिश्मे से कम नहीं है कि बारनेट जैसे संसदीय क्षेत्र में लेबर पार्टी ने टोरी पार्टी से काउंसिल छीन ली है।
उधर हैरो में मामला एकदम उलटा ही था। हैरो में काउंसिल पर लेबर पार्टी का राज था। तमाम काउंसिल क्षेत्रों की तरह मसले यहां भी एक से ही थे – फ़्लाइ टिपिंग, सुरक्षा, सड़कों और पटरियों की हालत बढ़ते हुए आपराधिक मामले। मगर यहां जवाबदेह लेबर पार्टी थी कंज़रवेटिव नहीं।
हैरो लेबर पार्टी ने प्रत्याशियों के चयन में समय अधिक लिया और प्रत्याशियों को प्रचार करने का अधिक अवसर नहीं मिला। और पार्टी का मैनिफ़ेस्टो तो चुनाव से सप्ताह भर पहले ही छप कर आया। स्थानीय पार्टी के नेतृत्व और चुनावी प्रचार समिति के बीच कोई तालमेल नहीं था। सब अपनी-अपनी धुन में मस्त थे। प्रजत्याशियों के चुनाव के समय इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि हैरो में भारतीय मूल के गुजरातियों की संख्या ख़ासी है। वे चुनाव के नतीजों पर प्रभाव डालने की शक्ति रखते हैं।
जबकि टोरी पार्टी ने इस चुनाव में दर्जन भर से अधिक गुजराती उम्मीदवारों को टिकट दी, लेबर पार्टी इस मामले में यह स्थिति समझने में असमर्थ रही। भारतीय गुजराती लेबर पार्टी से ख़ासे नाराज़ हैं। जबकी टोरी सांसद बॉब ब्लैकमैन हिंदुओं और भारत के प्रति सकारात्मक रवैया रखने के कारण इस समाज में ख़ासे लोकप्रिय हैं। उनके प्रचार प्रसार के कारण भी कंज़रवेटिव पार्टी को ख़ासा लाभ मिला। उनकी अपनी पत्नी भी हैरो के एजवेयर इलाके से जीतने में सफल रहीं।
ब्रिटेन में प्रत्याशियों की एक विशेष प्रजाति पाई जाती है जिसका नाम है – पेपर कैंडिडेट। यानी कि काग़ज़ी प्रत्याशी। उन्हें उन क्षेत्रों में नाममात्र के लिये खड़ा किया जाता है जहां पार्टी को कतई जीतने की कोई उम्मीद नहीं होती। ऐसे प्रत्याशी सभी राजनीति दलों में होते हैं। ऐसे प्रत्याशियों को दूसरे चुनाव क्षेत्रों में प्रचार प्रसार के लिये इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि वे पहले से ही इस तथ्य से परिचित होते हैं के वे नाममात्र के ही प्रत्याशी हैं, वे स्वयं भी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं।
पिछले चुनाव में लेबर पार्टी को 46.6 % वोट मिले थे जबकि कंज़रवेटिव पार्टी को 45.1%… यानी कि केवल 1.5 प्रतिशत के अंतर से लेबर पार्टी के पास 34 सीट थीं जबकि कंज़रवेटिव पार्टी के पास 28 सीटें। मगर 2022 में लेबर पार्टी को केवल 40 % वोट मिले और 24 सीटें जबकि कंज़रवेटिव पार्टी को 47 % वोट मिले और 31 सीटें।
मैं स्वयं जहां से प्रत्याशी था उस इलाके में भी बड़ी संख्या में गुजराती मतदाता रहते हैं। मैं बहुत धड़ल्ले से उनसे हिन्दी में बात करता था और वे भी बहुत प्यार से शर्मा जी कह कर अभिवादन करते। मगर मैं यह भूल गया था कि टोरी पार्टी का गुजराती प्रत्याशी इन्ही मतदाताओं से जब गुजराती में बोलकर हमारी लेबर काउंसिल की बुराइयां करेगा तो ये मतदाता अधिक ध्यान लगा कर उसकी बात सुनेंगे। और ऐसा हुआ भी।
इस अभियान में हिंदी साहित्य से जुड़े कुछ नामों ने भी मेरा साथ दिया… आदरणीय ज़किया जी मेरे चुनावी क्षेत्र में प्रचार के लिये कई बार पहुंचीं। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर प्रदीप गुप्ता, और दो युवा साहित्यकार आशीष मिश्रा एवं आशुतोष कुमार भी बाक़ायदा अपनी-अपनी कार लेकर पूरे जोश से मेरे समर्थन में उतर आए। भाई प्रदीप गुप्ता तो वोटों की गिनती के समय भी मेरे एजेंट के तौर पर शामिल हुए।
कंज़रवेटिव पार्टी के तीनों प्रत्याशियों ने लेबर पार्टी के तीनों प्रत्याशियों को 700 वोटों के अंतर से हरा दिया। हैरो की लेबर पार्टी को आत्ममंथन करना होगा। हैरो के मतदाताओं से एक बार फिर जुड़ना होगा। हम जीती हुई काउंसिल हार कैसे गये इस पर विचार करना होगा। हमें अपने मतदाताओं को समझाने का प्रयास करना होगा कि ग़रीब आदमी के मसलों को लेबर अधिक महसूस कर सकती है। अब तो इंतज़ार है अगले चुनावों का जो चार साल दूर हैं।
अगले चुनाव की तैयारी करने के लिए और गुजराती सीखने के लिए चार वर्ष का समय है। निस्संदेह अगली बार सफलता अवश्य मिलेगी। अपने आपको “पेपर कैंडीडेट” में मत गिनें।
ब्रिटेन के काउंसिल चुनाव पर एक विस्तृत संपादकीय। हालांकि ब्रिटेन की वास्तविक स्थिति से पूरी तरह जानकार न होने वाले हम जैसे लोगों इसका विश्लेषण नहीं कर सकते, लेकिन कुछ बातें आपके संपादकीय से अवश्य सामने आती है जो भारतीय सन्दर्भ में भी ग़ौरतलब है। काउंसिल मेंबर का समाज सेवा से जुड़ना का नज़रिया भारतीय व्यवस्था को सीखना चाहिए। बाकी ‘गुजराती’ संदर्भ स्पष्ट करता है कि वर्गीकरण चाहे किसी भी रूप में हो, सभी जगह कहीं न कहीं प्रभावी है। जहां तक पेपर कैंडिटेट (हमारे यहां के वोट कटवा कैंडिटेट का ही पर्याय है) की बात है, हमेशा हारने के संदर्भ में इसे अप्लाई नहीं कर सकते। आप अपने प्रयास जारी रखे, सफलता अवश्य मिलेगी। बरहाल काउंसिल चुनाव पर आपका विश्लेषण बहुत जानकारी देने वाला और संतुलित लगा। हार्दिक सादुवाद सर।
ब्रिटेन के स्थानीय निकायों की सूचना से समृद्ध संपादकीय के लिए आभार। बाकी हम भारतीयों के लिए – कोउ नृप होय हमें का हानी- आपको स्वयं जीत नहीं मिली इसका दुःख है, आपके समर्थन वाली पार्टी जीती, बधाई।
ब्रिटेन के काउंसिल चुनाव की विधि, चुनाव समीक्षा और मतदाताओं के मनोविज्ञान पर सम्पादकीय ज्ञानवर्धक है।भारत में किसी भी प्रकार के चुनाव के लिए एक दिन का अवकाश शासन द्वारा दिया जाता है किंतु वहाँ चुनाव को भी सामान्य प्रक्रिया माना जाता है ।
एक साहित्यकार पद के लिए नहीं समाज के लिए जीता है इसलिए उसकी विजय या पराजय उसकी अपनी नहीं समाज की है।आपकी सृजन धर्मिता को नमन ।
Dr Prabha mishra
It is highly regrettable the community card came in the way of your winning the election
The Gujraatis are a very close- knit community and did not choose the right candidate over a Gujaraati kinsman.
Heartening to learn Zakia ji won this 6th time too despite changing the party.
Anyway there is always a next time and that time you will win.
Regards n best wishes
Deepak Sharma
Deepak ji thanks for your comment. Zakia ji has not changed Party (there seems to be some misunderstanding.) She has won last five elections when her Labour Party was in opposition. It is for the first time in her career that she has won as also her Pp arty has won the Council.
Please accept my apologies,Tejendra ji.
By opposition you meant Labour only which is not in power these days.
Thanks for correcting me.
Warm regards and best wishes
Deepak Sharma
ब्रिटेन के कांउंसिल चुनाव का बहुत ईमानदार विश्लेषण सराहनीय है। जीवन और राजनीति में जीत-हार तो लगी ही रहती है। आप अगला चुनाव अवश्य जीतेंगे, ऐसा मेरा दिल कह रहा है।
ब्रिटेन के पार्षदों की समाजसेवा की भावना से काश, भारतीय पार्षद भी सबक़ लें।
अगले चुनाव की तैयारी करने के लिए और गुजराती सीखने के लिए चार वर्ष का समय है। निस्संदेह अगली बार सफलता अवश्य मिलेगी। अपने आपको “पेपर कैंडीडेट” में मत गिनें।
धन्यवाद सुमन भाई… आप हमारा हौसला बनाए रखें।
सुमन जी, आपने बिल्कुल सही कहा, इसके लिए “तथास्तु” कहती हूॅं।
ब्रिटेन के काउंसिल चुनाव पर एक विस्तृत संपादकीय। हालांकि ब्रिटेन की वास्तविक स्थिति से पूरी तरह जानकार न होने वाले हम जैसे लोगों इसका विश्लेषण नहीं कर सकते, लेकिन कुछ बातें आपके संपादकीय से अवश्य सामने आती है जो भारतीय सन्दर्भ में भी ग़ौरतलब है। काउंसिल मेंबर का समाज सेवा से जुड़ना का नज़रिया भारतीय व्यवस्था को सीखना चाहिए। बाकी ‘गुजराती’ संदर्भ स्पष्ट करता है कि वर्गीकरण चाहे किसी भी रूप में हो, सभी जगह कहीं न कहीं प्रभावी है। जहां तक पेपर कैंडिटेट (हमारे यहां के वोट कटवा कैंडिटेट का ही पर्याय है) की बात है, हमेशा हारने के संदर्भ में इसे अप्लाई नहीं कर सकते। आप अपने प्रयास जारी रखे, सफलता अवश्य मिलेगी। बरहाल काउंसिल चुनाव पर आपका विश्लेषण बहुत जानकारी देने वाला और संतुलित लगा। हार्दिक सादुवाद सर।
धन्यवाद विरेन्द्र भाई। पुरवाई का प्रयास रहता है कि हमारे संपादकीय अपने पाठकों को हमेशा कुछ नई जानकारी देते रहें।
ब्रिटेन के स्थानीय निकायों की सूचना से समृद्ध संपादकीय के लिए आभार। बाकी हम भारतीयों के लिए – कोउ नृप होय हमें का हानी- आपको स्वयं जीत नहीं मिली इसका दुःख है, आपके समर्थन वाली पार्टी जीती, बधाई।
शैली जी आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद। पार्टी की जीत महत्वपूर्ण है।
ब्रिटेन के काउंसिल चुनाव की विधि, चुनाव समीक्षा और मतदाताओं के मनोविज्ञान पर सम्पादकीय ज्ञानवर्धक है।भारत में किसी भी प्रकार के चुनाव के लिए एक दिन का अवकाश शासन द्वारा दिया जाता है किंतु वहाँ चुनाव को भी सामान्य प्रक्रिया माना जाता है ।
एक साहित्यकार पद के लिए नहीं समाज के लिए जीता है इसलिए उसकी विजय या पराजय उसकी अपनी नहीं समाज की है।आपकी सृजन धर्मिता को नमन ।
Dr Prabha mishra
प्रभा जी इतनी सकारात्मक टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
It is highly regrettable the community card came in the way of your winning the election
The Gujraatis are a very close- knit community and did not choose the right candidate over a Gujaraati kinsman.
Heartening to learn Zakia ji won this 6th time too despite changing the party.
Anyway there is always a next time and that time you will win.
Regards n best wishes
Deepak Sharma
Deepak ji thanks for your comment. Zakia ji has not changed Party (there seems to be some misunderstanding.) She has won last five elections when her Labour Party was in opposition. It is for the first time in her career that she has won as also her Pp arty has won the Council.
Please accept my apologies,Tejendra ji.
By opposition you meant Labour only which is not in power these days.
Thanks for correcting me.
Warm regards and best wishes
Deepak Sharma
You are welcome Deepak ji.
I Fully agree with prabhaji.
And as deepak ji said there is always a second time.Not to forget You are top winner in your literally achievements.
Thanks so much Dr. Nihar Gite for your kind words.
ब्रिटेन के कांउंसिल चुनाव का बहुत ईमानदार विश्लेषण सराहनीय है। जीवन और राजनीति में जीत-हार तो लगी ही रहती है। आप अगला चुनाव अवश्य जीतेंगे, ऐसा मेरा दिल कह रहा है।
ब्रिटेन के पार्षदों की समाजसेवा की भावना से काश, भारतीय पार्षद भी सबक़ लें।