जलवायु परिवर्तन का खेल कुछ ऐसा है कि दिल्ली में यमुना ख़तरे के जलस्तर तक पहुंच गयी है और पूरा यूरोप धीरे-धीरे रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहा है। यहां की धरती ने दशकों बाद ऐसी गंभीर हालत महसूस की होगी। जहां दिन में तीन बार बारिश होती हो भला वहां महीनों के सूखे से लोग कैसे निपटेंगे।
इंग्लैंड में जलवायु परिवर्तन का असर साफ़ दिखाई दे रहा है। गर्मी और लू के थपेड़ों से जन-जीवन बेहाल है। सरकार ने देश के कई हिस्सों में सूखे की आधिकारिक घोषणा कर दी है।
डेवॉन और कॉर्नवाल, सॉलेंट और साऊथ डाउन्स, केन्ट और दक्षिण लंदन, हर्टफ़र्डशायर और उत्तरी लंदन, ईस्ट एंगलिया, लिंकनशायर, नॉर्थम्पटनशायर और पूर्वी मिडलैण्ड्स को सूखे से पीड़ित श्रेणी में डाल दिया गया है। डर है कि शीघ्र ही यॉर्कशायर एवं पूर्वी मिडलैंड्स भी इस सूची में शामिल हो जाएंगे।
1976 के बाद यह पहली बार हुआ है कि जनवरी से जुलाई तक बारिश का नामो निशान न दिखाई दे। ज़मीन प्यासी हो गयी है। घास सूख चुकी है। घर से बाहर निकलना मुहाल है।
मेरी पुत्री आर्या आजकल मुंबई से लंदन आई हुई है। उसकी पहली बड़े पर्दे की पिक्चर ‘लाल सिंह चड्ढा’ 11 अगस्त को लंदन में रिलीज़ हुई है। उसे बहुत से मित्रों के शुभकामना संदेश मिले हैं तो भारत में फ़िल्म के प्रति नकारात्मक प्रचार से चिंतित भी है। बिटिया का कहना था, “पापा, मुंबई में तो मेरे हर कमरे में ए.सी. लगा हुआ है। यहां तो घरों में एसी भी नहीं होता। इतनी भयंकर गर्मी का कैसे मुकाबला किया जाए।” बिटिया को हैरानी थी कि लंदन में मौसम की गर्मी और भारत में नकारात्मक प्रचार की गर्मी… कहीं कोई ठंडी हवा का झोंका नहीं है।
ब्रिटेन की चार जल कंपनियों – वेल्श वाटर, सदर्न वाटरस टेम्स वाटर, साउथ ईस्ट वाटर ने होज़पाइप पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है। यानी कि इनके सप्लाई क्षेत्र में पौधों को पानी नहीं दिया जा सकेगा। पांचवीं जल कंपनी यॉर्कशायर वाटर ने शुक्रवार को घोषणा की है कि उनका प्रतिबंध 26 अगस्त से शुरू होगा।
ज़ाहिर सी बात है कि जब मामला इन्सान के अस्तित्व पर आ जाए तो पहले पौधों और फिर जानवरों के लिये पानी बंद करने के आदेश निकलते हैं।
सैटेलाइट से ली गयी तस्वीरों से पता चलता है कि केंब्रिज के आस-पास का क्षेत्र भी हरे से भूरा होता जा रहा है। बहुत से इलाक़ों में फ़ॉरेस्ट फ़ॉयर का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। याद रहे कि यह केवल ब्रिटेन तक सीमित नहीं है। फ़्रांस के बोरदो क्षेत्र के जंगलों में भी गर्मी के कारण भयंकर आग लगी हुई है।
शुक्रवार को बोरदो के आसपास के क्षेत्र में गर्म कोहरा छा गया क्योंकि देश के दक्षिण-पश्चिम में भीषण आग के कारण पूरे यूरोप के सैकड़ों अग्निशामक अपने फ्रांसीसी समकक्षों में शामिल हो गए।
जुलाई में पहली बार यहां आग लगने के बाद मंगलवार को लगी गिरोंडे में लगी आग इस सीजन की भीषण आग में से एक है। इसने 19,000 एकड़ जंगल को नष्ट कर दिया… 10,000 से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया। इस स्थिति से आसपास के शहरों में भय और अनिश्चितता फैला दी।
फ्रांस के अधिकारियों ने बताया कि शराब उत्पादन के केंद्र के दक्षिण-पूर्व में लगभग 30 किलो मीटर लगी आग ने कुछ घरों को तबाह कर दिया और 10,000 निवासियों को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है। दक्षिण-पश्चिमी फ़्रांस में गारोन नदी पर बंदरगाह शहर अपने गॉथिक कैथेड्रेल सेंट-आंद्रे के लिए जाना जाता है।
जलवायु परिवर्तन असामान्य या अनियंत्रित मौसम का एकमात्र सबसे बड़ा कारक है। नासा के एक विश्लेषण के अनुसार, 1880 के बाद से पिछले आठ साल प्रत्यक्ष माप के माध्यम से अब तक के सबसे गर्म मौसम रिकॉर्ड किए गए हैं। जलवायु परिवर्तन के अलावा, यूरोपीय क्षेत्र पर एक निम्न दबाव प्रणाली उत्तरी अफ्रीका से गर्म हवा को आकर्षित कर रही है। आर्कटिक महासागर में एक असामान्य वार्मिंग भी गर्म तापमान के पीछे है। इसी तरह की एअर सर्कुलेशन की घटना जून में भी देखी गई थी, जब न केवल फ्रांस बल्कि नॉर्वे और कई अन्य देशों में रिकॉर्ड गर्मी देखी गयी थी।
युरोपीय आयोग के संयुक्त अनुसंधान केंद्र ने “युरोप में सूखा – जुलाई 2022” की रिपोर्ट में युरोप में सूखे की स्थिति का आकलन किया है। फ़्रांस, रोमानिया, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, जर्मनी, पोलैंड, हंगरी, स्लोवेनिया और क्रोएशियामें सूखे के हालात पैदा हो चुके हैं। वहां फ़सलों पर भी असर पड़ा है।
जलवायु परिवर्तन का खेल कुछ ऐसा है कि दिल्ली में यमुना ख़तरे के जलस्तर तक पहुंच गयी है और पूरा यूरोप धीरे-धीरे रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहा है। यहां की धरती ने दशकों बाद ऐसी गंभीर हालत महसूस की होगी। जहां दिन में तीन बार बारिश होती हो भला वहां महीनों के सूखे से लोग कैसे निपटेंगे।
ब्रिटेन में तो राजनीतिक गर्मी भी ख़ासी है। ऋषि सुनक और ट्रस के बीच सत्तारूड़ टोरी पार्टी में निरंतर होड़ लगी है कि कौन ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री बनेगा।
ब्रिटेन में एम्बर वार्निंग जारी कर दी गयी है। अगले सप्ताह भी तापमान 34 से 35 डिग्री तक रहने की संभावना है। मगर अच्छी ख़बर यह है कि अगले सप्ताह वर्षा होने का अनुमान है जिससे तापमान इस समय के औसत तापमान के बराबर होने कि संभावना है। मगर एक डर यह भी है कि महीने के अंत तक कहीं ये दोबारा भी बढ़ सकता है।
हमने बचपन से पढ़ा है कि इन्सान किसी भी दुश्मन से लड़ाई जीत सकता है मगर प्रकृति के सामने इन्सान बेबस हो जाता है। इन्सान समुद्र से ज़मीन उधार लेता रहता है मगर एक दिन जब समुद्र अपनी ज़मीन वापिस मांगता है तो बहुत से भवन और इन्सान उसमें बह जाते हैं।
युरोप की एक समस्या और भी है कि रूस और युक्रेन युद्ध के चलते रूस ने युरोप को गैस सप्लाई पर रोक लगा दी है। इसके कारण गैस, पेट्रोल और बिजली के दाम ब्रिटेन में दुगने और तिगुने स्तर पर पहुंच गये हैं। यहां इन्सान झुलस रहे हैं और महंगाई की मार उनकी कमर तोड़ रही है।
रेलवे के कर्मचारी और हस्पताल की नर्सें हड़ताल पर जा रहे हैं। जीवन अस्त-व्यस्त है और राजनीतिज्ञ अपने आप में मस्त हैं। मेंरा अपना फ़्लैट कुछ इस तरह है कि घर के एक हिस्से में सुबह का चढ़ता सूरज दर्शन देता है तो दूसरे हिस्से में ढलता सूरज। यानी कि पूरा दिन घर में सूर्य देवता का वास रहता है। मेरे पंखे बस आवाज़ करते हैं… ठंडी हवा दे पाना उनके बस की बात नहीं है।
मेक्सिको के राष्ट्रपति ने जिन तीन विभूतियों के नाम गिनवाये हैं जो विश्व में शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, उनमें एक नाम है भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का। कहीं ऐसा समय तो नहीं आने वाला कि सूखे और अकाल से पीड़ित युरोप और ब्रिटेन सहायता के लिये भी इसी नाम और भारत की ओर देखना शुरू कर दें ?
संसार के भिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न उभरती समस्याओं पर एक समग्रता से पूर्ण संपादकीय है आज का। हालांकि बहुत सी बातों को समेटने के कारण केंद्र बिंदु कहीं पर नहीं हो सका, फिर भी इंग्लैंड में सूखे की ऐतिहासिक चुनौती पर अपनी बात कहने और समझाने में सफल रहे हैं आप। हार्दिक साधुवाद सहित।
वैसे सर, मुझे लगता है। प्रकृति के अस्त व्यस्त होते सिस्टम की यह तो अभी शुरुआत है, जिस का चरम आना अभी बाकी है। यदि मानव सभ्यता नहीं संभलती।
मानव की कर्मों की कॉल लॉग हिस्ट्री का ब्यौरा है यह सूखा!अचानक से जलवायु परिवर्तन और विनाश के संभावित पहलू! हमें हमारी मनमानी यों की सजा तो मिलनी है ना प्रकृति के चक्र से निकले झंझावातों के द्वारा
Your Editorial of today is as topical as can be.
The local weather,the continental fires,the global warming and the drought of the day with a reference to the two candidates colluding over becoming the next PM of Britain.
We,as your readers,always gain to stand more informed.
Thanks n regards,Tejendra ji
Deepak Sharma
हमने बचपन से पढ़ा है कि इन्सान किसी भी दुश्मन से लड़ाई जीत सकता है मगर प्रकृति के सामने इन्सान बेबस हो जाता है। इन्सान समुद्र से ज़मीन उधार लेता रहता है मगर एक दिन जब समुद्र अपनी ज़मीन वापिस मांगता है तो बहुत से भवन और इन्सान उसमें बह जाते हैं।
सम्पादकीय मौसम की , राजनैतिक गर्मी ,पर्यावरण के परिवर्तन के प्रभाव की गर्मी यू के की गर्मी यानी गर्माहट से लबरेज़ है।हम भी जिस सुख की कल्पना कर घूमने आए यहाँ के मौसम ने मायूस कर दिया।
सही कहा दुश्मन सेलड़ सकते हैं पर क़ुदरत से नहीं ।
दुनिया कुदरत से छीनने के संघर्ष में लगी है ये तो होना ही है । साधुवाद
Dr Prabha mishra
Malthusian theory, सत्य होती हुई लगती है, पर चक्र चीन और भारत से शुरू होना चाहिए था…, यहां तो गर्मी हम लोगों को जला कर नर्म पड़ गयी, वहाँ भी अच्छे दिन आ जायें ईश्वर से प्रार्थना है।प्रकृति को बिगाड़ने में इन्सान लगा हुआ है, प्रकृति की नाराज़गी भी झेलनी है।
भाँति भाँति की गर्मियों का उल्लेख दिलचस्प है, भारत में तो रोज़ कुछ न कुछ जलता ही रहता है। कभी महाराष्ट्र, कभी बिहार, कभी सम्मिलित विपक्ष और कभी सिर, तन से जुदा आदि आदि… हम लोग तो अभ्यस्त हैं, तपने जलने के। यूरोपीय देशों के साथ सहानुभूति है। शुभकामनाएं हैं कि शीघ्र वर्षा हो।
प्रकृति के साथ खिलवाड़ मनुष्यों के लिए हमेशा से प्रलयंकारी रहा है लेकिन वह सब जानते हुए भी अपने स्वार्थ की पूर्ति में यही दुष्कर्म बारंबार किये जा रहा है ।
परिणाम तो हम सबको भुगतने ही होंगे ।
भारत देश विश्व की सहायता के योग्य और समर्थ हो , ऐसी कामना तो हम सब देशवासी करते हैं , बस इसके लिए विश्व विनाश के कगार पर ना पहुंचे।
चिता दर्शाता अच्छा सम्पादकीय।
धन्यवाद संदीप
संसार के भिन्न हिस्सों में भिन्न-भिन्न उभरती समस्याओं पर एक समग्रता से पूर्ण संपादकीय है आज का। हालांकि बहुत सी बातों को समेटने के कारण केंद्र बिंदु कहीं पर नहीं हो सका, फिर भी इंग्लैंड में सूखे की ऐतिहासिक चुनौती पर अपनी बात कहने और समझाने में सफल रहे हैं आप। हार्दिक साधुवाद सहित।
वैसे सर, मुझे लगता है। प्रकृति के अस्त व्यस्त होते सिस्टम की यह तो अभी शुरुआत है, जिस का चरम आना अभी बाकी है। यदि मानव सभ्यता नहीं संभलती।
विरेन्द्र आप स्थिति की भयावहता को समझ रहे हैं।
मानव की कर्मों की कॉल लॉग हिस्ट्री का ब्यौरा है यह सूखा!अचानक से जलवायु परिवर्तन और विनाश के संभावित पहलू! हमें हमारी मनमानी यों की सजा तो मिलनी है ना प्रकृति के चक्र से निकले झंझावातों के द्वारा
एकदम सही कहा दीपा।
Your Editorial of today is as topical as can be.
The local weather,the continental fires,the global warming and the drought of the day with a reference to the two candidates colluding over becoming the next PM of Britain.
We,as your readers,always gain to stand more informed.
Thanks n regards,Tejendra ji
Deepak Sharma
Thanks so much Deepak ji. It has always been my endeavour to present topical subjects to the readers of Purvai.
हमने बचपन से पढ़ा है कि इन्सान किसी भी दुश्मन से लड़ाई जीत सकता है मगर प्रकृति के सामने इन्सान बेबस हो जाता है। इन्सान समुद्र से ज़मीन उधार लेता रहता है मगर एक दिन जब समुद्र अपनी ज़मीन वापिस मांगता है तो बहुत से भवन और इन्सान उसमें बह जाते हैं।
धन्यवाद रमेश भाई। आप जिस तरह साहित्यिक समीक्षाएं पुरवाई के लिये भेज रहे हैं, आप पुरवाई परिवार का हिस्सा ही बन गये हैं।
सम्पादकीय मौसम की , राजनैतिक गर्मी ,पर्यावरण के परिवर्तन के प्रभाव की गर्मी यू के की गर्मी यानी गर्माहट से लबरेज़ है।हम भी जिस सुख की कल्पना कर घूमने आए यहाँ के मौसम ने मायूस कर दिया।
सही कहा दुश्मन सेलड़ सकते हैं पर क़ुदरत से नहीं ।
दुनिया कुदरत से छीनने के संघर्ष में लगी है ये तो होना ही है । साधुवाद
Dr Prabha mishra
प्रभा जी आप ही की तरह मेरी बेटी भी ख़ासी निराश है। वह तो गर्मियों के कपड़े लेकर ही नहीं आई… संघर्ष कर रही है। बिना ए.सी. के ख़ासी परेशान है।
Malthusian theory, सत्य होती हुई लगती है, पर चक्र चीन और भारत से शुरू होना चाहिए था…, यहां तो गर्मी हम लोगों को जला कर नर्म पड़ गयी, वहाँ भी अच्छे दिन आ जायें ईश्वर से प्रार्थना है।प्रकृति को बिगाड़ने में इन्सान लगा हुआ है, प्रकृति की नाराज़गी भी झेलनी है।
भाँति भाँति की गर्मियों का उल्लेख दिलचस्प है, भारत में तो रोज़ कुछ न कुछ जलता ही रहता है। कभी महाराष्ट्र, कभी बिहार, कभी सम्मिलित विपक्ष और कभी सिर, तन से जुदा आदि आदि… हम लोग तो अभ्यस्त हैं, तपने जलने के। यूरोपीय देशों के साथ सहानुभूति है। शुभकामनाएं हैं कि शीघ्र वर्षा हो।
शैली जी निरंतर समर्थन के लिए धन्यवाद। आपकी शुभकामनाएं जल्दी फलिभूत हों।
बहुत ही बड़ी समस्या आन खड़ी है
अपना देश ही ठीक है व सम्भालेगासब कुछ
धन्यवाद सुनीता जी।
प्रकृति के साथ खिलवाड़ मनुष्यों के लिए हमेशा से प्रलयंकारी रहा है लेकिन वह सब जानते हुए भी अपने स्वार्थ की पूर्ति में यही दुष्कर्म बारंबार किये जा रहा है ।
परिणाम तो हम सबको भुगतने ही होंगे ।
भारत देश विश्व की सहायता के योग्य और समर्थ हो , ऐसी कामना तो हम सब देशवासी करते हैं , बस इसके लिए विश्व विनाश के कगार पर ना पहुंचे।
जानकारी से भरपूर संपादकीय के लिए धन्यवाद!
रचना, इस सार्थक टिप्पणी के लिये हार्दिक धन्यवाद।