Monday, May 20, 2024
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संपादकीय – भारतीय वैज्ञानिकों की अभूतपूर्व उपलब्धि

ठोस सच्चाई यह है कि चंद्रयान 3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर विराजमान है। वहां लैंडर विक्रम मौजूद है और प्रज्ञान रोवर चांद पर चहलकदमी कर रहा है। दो सप्ताह यानी कि पूरे चौदह दिन विक्रम और प्रज्ञान आपस में भी बातें करते रहेंगे और ‘इसरो’ के वैज्ञानिकों के पास चित्र और डाटा भी भेजते रहेंगे। एक तसल्ली देने लायक बात यह है कि हर योजना की तरह इस योजना का नाम किसी राजनेता के नाम पर नहीं रखा गया… हमारे चंद्रयान 3 के लैंडर का नाम विक्रम है… विक्रम साराभाई की आत्मा आज भी ‘इसरो’ को सही राह पर चलने की प्रेरणा दे रही है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ‘इसरो’ की जो यात्रा बैलगाड़ी और साइकिल से शुरू हुई थी अंततः चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ़्ट लैंडिंग पर जाकर संपूर्ण हुई। एक तरह से यह किसी भी ऐसे वंचित की यात्रा से कम नहीं जो जीवन में ग़रीबी के अभिशाप से लड़ते हुए केवल अपने जीवट के बल पर आसमान की बुलंदियां छू लेता है।
1962 में डॉ. विक्रम ए. साराभाई की दूरदर्शिता पर भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्कोस्पार) के नाम से भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया। फिर 15 अगस्त 1969 को वर्तमान ‘इसरो’ का गठन किया गया। इसने ‘इन्कोस्पार’ की जगह ली और 1972 में ‘इसरो’ को अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के तहत लाया गया।
साराभाई के पास गिने-चुने वैज्ञानिकों की टीम थी और पैसों की तंगी। साल भर बाद ही भारत ने पहला रॉकेट लॉन्‍च किया। उस रॉकेट के हिस्सों को साइकिल पर लादकर लॉन्‍च सेंटर तक पहुंचाया गया था। वह तस्‍वीर ऐतिहासिक थी। आज 2023 में हम चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपने देश का झंडा लगाने वाला पहला देश बन गये हैं। यह ‘इसरो’ की आज तक की महानतम सफलता है, उसके वैज्ञानिकों की मेहनत का नतीजा है। ‘इसरो’ की कहानी भारत की कहानी है, अंतरिक्ष में उसकी महत्‍वाकांक्षाओं के विस्‍तार की कहानी है। इसरो का इतिहास भारत की अनंत जिज्ञासा का इतिहास है।
अंग्रेज़ी में एक कहावत है, “Today’s poetic imagination is tomorrow’s scientific truth!” यानी कि जो आज कवि की कल्पना है वो कल की वैज्ञानिक सच्चाई या उपलब्धि हो सकता है। कवि सदियों से चांद की बातें करता है; चंद्रलोक की यात्रा करता है। मगर हमारे वैज्ञानिकों ने आज हमें वहां ले जाकर खड़ा कर दिया है।
मगर सवाल यह खड़ा होता है कि आख़िर भारतीय चंद्रयान ने चांद तक पहुंचने में 42 दिन का लंबा समय क्यों लिया? जब अमरीका, चीन और रूस के स्पेसक्राफ़्ट इसके मुकाबले बहुत जल्दी वहां पहुंच जाते हैं। तो सरल भाषा में आप समझ लीजिये कि भारतीय रॉकेट हाई-स्पीड रॉकेट नहीं हैं। यदि बाक़ी तीनों देशों के रॉकेट बुलेट ट्रेन हैं तो हमारे रॉकेट पैसेंजर ट्रेन जैसे हैं।

‘इसरो’ ने चंद्रयान और मंगल-यान मिशनों में मल्‍टी-स्‍टेप अप्रोच को अपनाया है। इससे वक्त ज़रूर अधिक लगता है लेकिन कम ताकतवर लॉन्च व्हिकल से भी काम चल जाता है। मिशन को अंजाम देने के लिए ‘इसरो’ के वैज्ञानिक धरती और चांद के गुरुत्वाकर्षण बल का इस्तेमाल करेंगे।
यहां ध्यान देने लायक बात यह भी है कि चंद्रयान-3 का 615 करोड रुपए का बजट हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘आदि पुरुष’ से भी कम है। ‘आदि पुरुष’ का बजट लगभग 700 करोड रुपए का था। इसके अलावा अन्य अंतरिक्ष आधारित फ़िल्मों का बजट भी काफ़ी ज्यादा होता है। अगर ध्यान से देखें तो ‘इंटरस्टेलर’ 1368 करोड रुपए बनी और ‘दि मार्शियन्स’ 885 करोड रुपए में। इस हिसाब से इसरो द्वारा जब कभी कोई अभियान अंतरिक्ष में भेजा जाता है वह अन्य देशों की एजेंसियों के मुकाबले बहुत कब होता है। यही नहीं अमरीका, रूस और चीन की अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थाओं का बजट भारत की इसरो के मुकाबले कई गुना अधिक है।
हमें याद है जब चंद्रयान-2 का अभियान अंतिम क्षणों में असफल हो गया था। चंद्रयान-2 के सफ़र के आखिरी पड़ाव में ‘इसरो’ सेंटर से संपर्क टूट गया था। चंद्रयान का लैंडर ‘विक्रम’ ब्रेक संबंधी प्रणाली में गड़बड़ी होने के कारण चंद्रमा की सतह से टकरा गया था। यह देखकर वैज्ञानिकों ही नहीं पूरे देश में भारी निराशा छा गई। ‘इसरो’ के तत्कालीन प्रमुख के. सिवन फूट-फूट कर रो पड़े थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें गले लगाकर पीठ सहलाते हुए सांत्वना दी थी। 7 सितंबर 2019 को सुबह-सुबह ही प्रधानमंत्री मोदी ने ‘इसरो’ में ही वैज्ञानिकों की हौसला अफज़ाई की थी।
इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने के लिये दक्षिण अफ़्रीका के दौरे पर थे जिस समय चंद्रयान 3 चांद पर अपने कदम रखने जा रहा था। वहां से उन्होंने इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए भारतीयों और ‘इसरो’ को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने कहा, ”मेरे प्यारे परिवारजनों! जब हम अपनी आंखों के सामने ऐसा इतिहास बनते हुए देखते हैं तो गर्व होता है। ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं राष्ट्र जीवन की चेतना बन जाती हैं। यह पल अविस्मरणीय है। यह क्षण अभूतपूर्व है। यह क्षण विकसित भारत के शंखनाद का है। यह क्षण नए भारत के जयघोष का है। यह क्षण मुश्किलों के महासागर को पार करने का है। यह क्षण जीत के चंद्रपथ पर चलने का है। यह क्षण 140 करोड़ धड़कनों के सामर्थ्य का है। यह क्षण भारत की नई ऊर्जा, नई चेतना का है। यह क्षण भारत के उदीयमान भाग्य के आह्वान का है। अमृत-काल की प्रथम प्रभा में सफलता की अमृत वर्षा हुई है। हमने धरती पर संकल्प लिया और चांद पर उसे साकार किया।”
उन्होंने आगे कहा, “आज के बाद से चांद से जुड़े मिथक बदल जाएंगे, कथानक भी बदल जाएंगे और नई पीढ़ी के लिए कहावतें भी बदल जाएंगी। भारत में तो हम सभी लोग धरती को मां कहते हैं और चांद को मामा बुलाते हैं। कभी कहा जाता था कि चंदा मामा बहुत दूर के हैं, अब एक दिन वो भी आएगा, जब बच्चे कहा करेंगे कि चंदा मामा बस एक टूर के हैं।”
भारत की इस महान उपलब्धि पर विश्व भर के समाचार पत्रों और समाचार चैनलों ने प्रसन्नता जताई और बधाइयां दीं। न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, “चांद पर पहुंचने की रेस में भारत, दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में उतरने वाला पहला देश बन गया है।  भारत के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान बुधवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में उतरे हैं। भारत चंद्रमा के इस हिस्से में उतरने वाला पहला देश बन गया है और चांद पर उतरने वाला चौथा देश।”
अल जज़ीरा ने भी अपने समाचार पत्र में प्रमुखता से लिखा है कि भारत चांद पर पहुंच गया है। तुर्की के आधिकारिक न्यूज़ टीआरटी वर्ल्ड ने लिखा,  “हिस्टॉरिक फ़ीट यानी कि ऐतिहासिक उपलब्धि!”
सीएनएन के अनुसार, भारत चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान उतारने वाला चौथा देश बन गया है।
बीबीसी ने भी चंद्रयान तीन इवेंट का लाइव कवरेज किया। बीबीसी ने लिखा, “भारत ने इतिहास रच दिया। दक्षिणी ध्रुव के करीब चंद्रयान 3 की लैंडिंग कामयाब।“ पाकिस्तानी मीडिया ने भी भारत की इस कामयाबी को अखबारों की सुर्खियों का हिस्सा बनाया है।
पाकिस्तान के अखबार दि डॉन ने भी भारत की इस कामयाबी पर लिखा है, “हमारे पड़ोसी देश से बहुत बड़ी खबर आई है। भारत ने स्पेस सेक्टर में दुनिया के सामने ऐसी मिसाल कायम की है जिसको अब हर देश फॉलो करना चाहेगा। हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।”
‘चंद्रयान-3’ का सफर दरअसल ‘चंद्रयान-1’ की सफलता के बाद शुरू हुआ। पहले चंद्र जांच से चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चला। इसका और अध्ययन करने के लिए चंद्रमा की सतह पर जाना जरूरी था, इसलिए चंद्रयान-2 मिशन की योजना बनाई गई। दुर्भाग्य से, चंद्रयान-2 चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में विफल रहा; लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों के हौसले पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।
हालांकि ‘चंद्रयान-2’ चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन यह सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया। इस बात से ‘इसरो’ के वैज्ञानिक हैरान रह गए। इसलिए तीसरे चंद्रयान मिशन की तैयारी तुरंत शुरू कर दी गई। चंद्रयान को सॉफ्ट लैंडिंग और चंद्रमा की मिट्टी के अध्ययन के लक्ष्य के साथ लॉन्च किया गया था।
चंद्रयान-2 मिशन की विफलता से इसरो के वैज्ञानिकों ने सीख ली। यही कारण है कि चंद्रयान-3 मॉडल सफलता आधारित नहीं बल्कि विफलता आधारित है। पिछला चंद्रयान आखिरी कुछ मिनटों में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, इसलिए लैंडिंग के इस चरण के लिए चंद्रयान-3 में अतिरिक्त सावधानी बरती गई थी।
भारत की सफलता का श्रेय निश्चित रूप से पूरी तरह से इसरो के वैज्ञानिकों को जाता है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष एस. सोमनाथ के साथ चंद्रयान-3 मिशन निदेशक मोहन कुमार, रॉकेट निदेशक बीजू सी. थॉमस की बड़ी हिस्सेदारी है।
इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन में 54 महिला इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया था। वह ‘इसरो’ के विभिन्न विभागों में अलग-अलग स्थानों पर एक अधिकारी के रूप में काम कर रही हैं।
इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए दुनिया भर से भारत की सराहना हुई। नासा प्रशासक बिल नेस्लान, ब्रिटिश अंतरिक्ष एजेंसी, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और कई अन्य देशों ने इसरो और देश को बधाई दी।
मगर भारत के राजनीतिक नेताओं की चन्द्रायन 3 पर दी गई टिप्पणियां ख़ासा मनोरंजन करने वाली रहीं…
आर.जे.डी. प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा कि “चन्द्रयान की जो चन्द्रमा पर लैंडिंग हुई उसके लिये मैं नासा के वैज्ञानिकों को बधाई देता हूं…”
राजस्थान के खेल मंत्री अशोक चांदना के अनुसार “हम कामयाब हुए और सेफ लैंडिंग हुई, जो यात्री गए हैं हमारे, उनको सलाम करता हूं। हमारा देश साइंस और स्पेस रिसर्च में एक कदम और आगे बढ़ा। उसकी सभी देशवासियों को बधाई देता हूं।”
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तो किसी और ही वेवलेंथ पर बात कर रहे थे, “इसरो के वैज्ञानिक चंद्रयान को सफल बनाने में वर्षों से जुटे हैं लेकिन खबरें ये आ रही हैं कि उन्हें 17 महीने से सैलेरी नहीं दी गई है।”
कांग्रेस पार्टी के तमाम बड़े नेता इस बात पर बल दे रहे हैं कि ‘इसरो’ की शुरूआत जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने की इसलिये चंद्रयान 3 की सफलता का पूरा श्रेय उनको जाता है। वहीं भारतीय जनता पार्टी इस सफलता का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देना चाहती है।
सबसे अधिक हैरान कर देनी वाली प्रतिक्रिया तो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की रही… उनके चेहरे के भाव साफ़ बता रहे थे कि उन्हें चंद्रयान 3 के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। पत्रकार को इस बारे में जवाब देने से पहले उन्होंने अपने सहायक की ओर मुंह करके कुछ पूछा और सहायक ने उनके कान में कुछ जानकारी दी। अंततः वह केवल इतना ही कह पाए, बढ़िया है अच्छी बात है…
ठोस सच्चाई यह है कि चंद्रयान 3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर विराजमान है। वहां लैंडर विक्रम मौजूद है और प्रज्ञान रोवर चांद पर चहलकदमी कर रहा है। दो सप्ताह यानी कि पूरे चौदह दिन विक्रम और प्रज्ञान आपस में भी बातें करते रहेंगे और ‘इसरो’ के वैज्ञानिकों के पास चित्र और डाटा भी भेजते रहेंगे। एक तसल्ली देने लायक बात यह है कि हर योजना की तरह इस योजना का नाम किसी राजनेता के नाम पर नहीं रखा गया… हमारे चंद्रयान 3 के लैंडर का नाम विक्रम है… विक्रम साराभाई की आत्मा आज भी ‘इसरो’ को सही राह पर चलने की प्रेरणा दे रही है।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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54 टिप्पणी

  1. चन्द्रयान-3 का चन्द्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरना साबित करता है कि भारतवर्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी में विश्वगुरु बनने का माद्दा रखता है । ISRO के वैज्ञानिकों ने मात्र 615करोड़ में चन्द्रमा तक की यात्रा तय कर ली। बिना किसी शोर-शराबे के शालीनता से दिन-रात अपने मिशन पर लगे रहे और मिशन पूरा होने पर भी उसी शालीनता को बनाये रखा। तो क्यों नहीं कोई भी देशवासी अपनी समृद्ध संस्कृति और उन्नत ज्ञान पर गर्व करे! आज पूरा देश एक स्वर में इन वैज्ञानिकों की जय-जयकार कर रहा है ; ईश्वर से भविष्य की सफलताओं के लिए प्रार्थना कर रहा है। आज चन्द्र विजय की है ,कल सूर्य और शुक्र पर करनी है ।
    अफ़सोस इस बात का होता है कि कुछ राजनैतिक दल इस अवसर पर भी अपनी संकीर्ण टिप्पणियां देने से बाज नहीं आये । प्रधानमंत्री का रोते हुए वैज्ञानिकों को ढ़ाढस बंधाने या जोहानिसबर्ग से तिरंगा लहराने में भी “ख़ुद पॉपुलैरिटी”बटोरना या आम चुनावों के लिए वोट मांगना” नज़र आया । वे एक कुशल , उत्साहवर्धक और संवेदनशील नेतृत्व नहीं देख पाये ।
    आपने बहुत अच्छी बात कही कि किसी राजनेता के नाम पर इस योजना का नाम नहीं रखा गया जैसाकि शतकों से होता रहा है । लेकिन विवाद इस बात पर भी खड़ा करने की कोशिश हो रही है कि “लैंडिंग ग्राउंड”का नाम “शिवशक्ति” रखा गया है । यहां भी साम्प्रदायिक रंग कुरेदा जा रहा है । काश कि चंद्रयान मिशन की तरह लोगों की सोच को भी उठाया जा सकता तो शायद देश का माहौल सुखद और सकारात्मक होता !

    फिर भी, हम देशवासियों के लिए तो गर्व की बात है , सबको बधाई और इस शानदार संपादकीय के लिए आपको साधुवाद!

    — रचना सरन

    • रचना, इस विस्तृत, गंभीर और सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभार कहना काफ़ी नहीं होगा। टिप्पणी ही दो बार पढ़ गया।

  2. संपादकीय – भारतीय वैज्ञानिकों की अभूतपूर्व उपलब्धि
    अत्यंत सराहनीय संपादकीय। हार्दिक बधाई।

  3. एक और उपयोगी और गौरांवित करने वाली उपलब्धि की जानकारी देता आलेख ! वैज्ञानिक साहित्यिक और राजनैतिक परिपेक्ष्य को भी बताता हुआ बेहतरीन अंदाज़ ए बंया।
    आदरणीय महान वैज्ञानिक स्वर्गीय विक्रम सारा भाई की प्रेरणा को समेट कर साइकिल बैलगाड़ी से अंतरिक्ष तक की गाथा को ,आदरणीय श्री तेजेंद्र शर्मा जी ने, एक ही आलेख में समाना और संजोना बहुत ही कठिन कार्य होता है। तिस पर भी यह सुंदर सरल और सहज
    संपादकीय हमारी युवा शक्ति के समाने है।
    हृदय तल की गहराइयों से आभार,इस
    संपादकीय हेतु।

    • इस सकारात्मक एवं सार्गर्भित टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार भाई सूर्य कांत जी।

  4. सबसे पहले तो हम आपके बहुत सटीक और सुंदर कथन के लिए हार्दिक बधाई देते हैं
    अब रहा श्रेय किसको जाता है तो ज़ाहिर सी बात है, देश के वैज्ञानिकों को ही इसका श्रेय जाता है बाक़ी “दंत किटाकिट
    किं कर्तव्यम” वाली मसल चरितार्थ होती है..
    आप बड़ी ख़ूबी से अपनी बात को रखते हैं ये आपकी विशेषता है श्री शर्मा जी..
    उर्मिला माधव।

  5. आदरणीय तेजेन्द्र जी,आपकी लेखनी ओर उसे प्रेरित करने वाली आपकी भावनाओं को नमन, संपादकीय पढ़कर सुबह सुबह ही हृदय प्रफुल्लित होगया,आपके लेखन की निर्बाध धारा ऐसी ही गतिमान और ऊर्जित रहे,ईश्वर से यही प्रार्थना है।
    इसरो की प्रगति से मेरे मन में तो अपने बालपन में पढ़ी गई कविता ही बार-बार ध्यान में आती है-
    सामने पहाड़ हो
    सिंह की दहाड़ हो,
    तुमने निडर डरो नहीं
    तुम निडर डटो वहीं।।
    निष्ठावान ,निडर, समर्पित वैज्ञानिकों को शत-शत नमन।।
    इन सब के बावजूद भारत में व्हाट्सएप पर करवा चौथ और भारतवंशियों की चंद्रमा को लेकर अनेक सुंदर परिकल्पनाओं और आस्थाओं पर चुटकुले भी खूब चल रहे हैं। उनका विरोध भी हो रहा है।सचमुच ,दुनिया रंग -बिरंगी ,हर रंग का आनंद लेने में ही सुख है!!
    एक बार फिर सुंदर संपादकीय के लिए बधाइयां बधाइयां।

  6. बहुत अच्छा सम्पादकीय। बधाई आपको भी। सचमुच यह गौरव का क्षण है। ‘श्री राम’ भी मिले और ‘चन्द्र’ भी!

  7. भारत के चंद्र विजय की अद्योपान्त कहानी सुनाते रोचक संपादकीय के लिए धन्यवाद। सायकिल से स्पेस शिप तक की यात्रा जिन सीमित संसाधनों से भारतीय वैज्ञानिकों ने की उसके लिये वह बधाई के पात्र हैं। किसी राजनीतिक दल की नहीं वास्तव में यह भारत देश की उपलब्धि है।
    लेकिन विपक्ष ने जिस तरह से इस उपलब्धि को हेय दिखाने का प्रयत्न किया वह शर्मनाक है। अपनी ओछी प्रतिक्रियाओं से उन्होंने अपने विज्ञान और सामान्य ज्ञान की कमी को भी उजागर कर दिया। दुःख होता है कि ऐसे अल्पज्ञ व्यक्ति भारत के नेता और देश-प्रदेश के भाग्यविधाता हैं। सबसे हास्यास्पद टिप्पणी ममता बनर्जी ने की जिन्होंने “राकेश रौशन को चांँद पर पहुंँचा दिया और वहांँ से धरती भी दिखा दी (1984 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और सोवियत संघ के इंटरकस्मिक कार्यक्रम के एक संयुक्त अंतरिक्ष अभियान के अंतर्गत ‘राकेश शर्मा’ आठ दिन तक अंतरिक्ष में रहे।उनकी अन्तरिक्ष उड़ान के दौरान भारत की तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा कि अन्तरिक्ष से भारत कैसा दिखता है ? राकेश शर्मा ने उत्तर दिया- “सारे जहाँ से अच्छा”।) इसी घटना का गलत रूप ममता बनर्जी ने प्रस्तुत किया और राकेश शर्मा को, फिल्म एक्टर्स, राकेश रौशन बना दिया। भाग्यशाली रहीं बांग्ला में भाषण दिया। इसी लिये सोशल मीडिया बहुत अधिक ट्रोल नहीं हुईं।

    • शैली जी आपकी टिप्पणी में विपक्ष के प्रति नाराज़गी साफ़ महसूस की जा सकती है। टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।

  8. बहुत बढ़िया लिखा आपने सर हालांकि जब कुछ लोग जब मोदी के बतौर पीएम इसमें शामिल होने पर या कुछ कहने या करने पर आपत्ति करते हैं तो हंसी आती जबकि वही लोग इसरो को स्थापना से जुड़े अपने पीएम का जिक्र करना नहीं भूलते तो वहीं राहुल गांधी लद्दाख चले जाना बेहतर समझते हैं बजाय बंगलुरू जबकि उनकी राज्य सरकार वैज्ञानिकों को सम्मानित कर रही थी जबकि मैं अचरज में हूं कि पीएम मोदी जब सीएम थे तब से इसरो की उपलब्धियों पर उसके वैज्ञानिकों से मिलते रहे हैं, पलक पावड़े बिछाते रहे हैं तो अब तो उनका हक़ बनता है बतौर पीएम क्योंकि जब चंद्रयान दो की असफलता पर पीएम मोदी दोषी ठहराए गए तो चंद्रयान तीन पर सफ़लता का एक तिलक उनके माथे ही लगेगा जो विपक्ष लगाए चाहे न लगाए देश की जनता अवश्य लगाएगी।

    • आलोक भाई कोई भी राजा, राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री देश के तमाम काम स्वयं नहीं करता। वह ऐसा प्रशासन खड़ा करता है जो कामयाब ढंग से कामों का निर्वहन करता है। असफलता और सफलता का सेहरा तो मुखिया के सिर पर ही सजाया जाता है।

  9. सादर प्रणाम..बहुत सुंदर. सार्थक और प्रेरक. तथ्यात्मक संपादकीय हमेशा की तरह..सच कहें तो ऐतिहासिक चंद्रविजय की तरह यह संपादकीय भी संग्रहणीय है..हमें गर्व है.कि सीमित संसाधनो में भी.केवल दृढ़संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति तथा आत्मविश्वास के बल पर हमारे वैज्ञानिकों ने यह.सफलता प्राप्त की है…हम कहते हैं कि असफलता ही.सफलता की जननी होती.है जिसे सिद्ध कर दिखाया है हमारे प्रतिभाशाली महानायकों ने..
    उल्लेखनीय यह भी है कि इसका नाम देश की आन और शान से जुडे वैज्ञानिकों को समर्पित किया गया किसी धार्मिक. राजनीतिक या दल विशेष को नहीं….ऐसे महत्वपूर्ण अवसर पर प्रधानमंत्री जी का देश के प्रतिनिधि के तौर पर उपस्थित रहकर प्रोत्साहित करना भी गरिमामय लगा जो उन की प्रेरणा और उत्साह का माध्यम बना..हम सचमुच गौरवान्वित हैंकि हम अपने समय की इस महत्वपूर्ण महान घटना के साक्षी बने…आपकी कलम .संवेदना और देशभक्ति की भावनाओ कौ शत-शत नमन…इस पर कोई राजनीति न हो..ईष्र्या. द्वेष की भावनायें न हीं ….*हम रहें न रहें .देश जिंदा रहे *.हार्दिक बधाई और शुभ कामनाए भाई.आपके संपादकीय के लिए..मैं हृदय से कामना करती हूं *ये चरण शिखर की ओर चलें..चाहे जितनी चलें आंधियां.बाधाए घनघोर पलें .ये चरण शिखर की ओर चलें **
    पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर. भारत

    • सभी राजनीतिक दलों के लिए आवश्यक है कि दलगत राजनीति और देश के सम्मान में अंतर करना सीखें। आपने अपनी टिप्पणी में बहुत से दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं पद्मा। आभार।

  10. Your Editorial of today reveals many lesser- known facts about the history of ISRO and how our country’s Chandrayaan 3 attained this great success in making world history.
    You also tell us that by naming it Vikram in the memory of Vikram Sarabhai is a great acknowledgement of his insight and scientific research.
    Also very interesting to learn various
    congratulatory comments n responses of various national n international leaders.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  11. करते रहें हैं यात्रा यूँ तो विमान से
    देखा है इस ज़मीन को भी आसमान से
    ललचा रहा था चाँद, दे रहा चुनौतियाँ
    उतरा है चंद्रयान अब तो स्वाभिमान से
    पूनम माटिया, दिल्ली, भारत
    आदरणीय तेजेन्द्र जी
    आप द्वारा लिखित संपादकीय सदैव ही पठनीय, रोचक व सार्थक होता है।
    इस बार आपने अपने उसी अंदाज़ में फिर एक ऐतिहासिक घटना के विविध पहलुओं को विस्तार से अभिव्यक्ति दी।

    चन्द्रयान 3 की इस अविवादित चन्द्रमा के दक्षिण ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग के कारण हर भारतीय चाहे वह विश्व के किसी भी कोने में हो गर्व महसूस करता है।
    विपक्ष की अनभिज्ञता और राजनीति अपनी जगह।
    आरंभ बेशक महत्त्वपूर्ण होता है पर बीज लगा कर उसकी रखवाली और सिंचाई न करने को वृक्षारोपण की संज्ञा नहीं दी जा सकती, केवल काग़ज़ी कारवाही ही कही जाएगी।
    मोदी जी का नेतृत्व, उनकी दूरदर्शिता, उनकी संवेदनाएं और शाना ब शाना हर विफलता में साथ खड़े होकर प्रयास के उत्साहवर्धन करना उन्हें किसी भी अन्य नेता या प्रधानमंत्री से अलग घोषित करता है।

    आपने जो फ़िल्मों विशेषकर स्पेसरिलेटेड फ़िल्मों के बजट से जो जोड़ा इस लेख में, वह पुनः प्रशंसनीय है और आपकी सिनेमा के प्रति रुचि को रेखांकित करते हुए भारत की सीमित संसाधनों में कार्य करने की क्षमता की सराहना है।
    लक्ष्य प्राप्ति ही अंतिम ध्येय है चाहे हमारी रफ्तार कितनी ही धीमी क्यों न हो।

    ख़ैर एक लेख की प्रतिक्रिया में एक और लेख न हो जाये
    पुनः बधाई के साथ
    एक गर्वान्वित भारतवासी पूनम माटिया

    • पूनम जी आपने संपादकीय के हर पहलू को छुआ है अपनी टिप्पणी में। हार्दिक आभार।

  12. हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरत ढंग से लिखा गया है।
    इसको कहते हैं छोटे पैक में बड़ा धमाका,
    आप अपनी बात कितने अच्छे ढंग से पाठकों तक पहुंचाते हैं और सरल भाषा में,

  13. सपा प्रमुख अखिलेश यादव का बयान भी साइकिल पर सवार होकर रास्ते में आ रहा होगा कि अगर सपा की साइकिल न होती तो इसरो पहले रॉकेट के हिस्सों को साइकिल पर लादकर लॉन्‍च सेंटर तक न पहुंचा पाता।

  14. बहुत अच्छा संपादकीय है। आपने इसरो से स्थापना से लेकर अब तक के संदर्भों का बहुत अच्छा उल्लेख किया है। देश के विज्ञानियों ने राष्ट्र का मस्तक ऊँचा किया है। उन सबको बधाई।

  15. तेजेन्द्र भाई, आपने अपने इस सम्पादकीय में जो चन्द्रयान-३ की साइकल से रॉकेट की यात्रा का बहुत रोचक वर्नण किया उसके लिय बहुत बहुत साधुवाद। आज सारी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है और सब जगह वाहवाह हो रही है। और दूसरे देशों के मुकाबले में केवल ७०० करोड़ के बजट में यह सब कर दिखाना अपने आप में एक अजूबा है। यह मोदी जी का बड़प्पन है जब २०१९ में चनद्रयान-२ की निराशा के समय उन्होंने कैसे उस समय के इसरो के प्रमुख कै सिवन को गले लगाकर पीठ सहलाते हुये सांत्वना दी थी। चन्द्रयान-३ की सफ़लता उसी का नतीजा है। सॉफ़्ट लैंडिंग साइट को “शिव शक्ति पॉइंट” नाम देना भी देश का गौरव बढ़ाना है। चन्द्रयान-१ से सम्बन्धित सथान को “जवाहर स्थल” नाम दिया गया था। इस प्रथा को तोड़ते हुये भारत की नई parliament building के तीने द्वारों के नामों को भी किसी नेता का नाम न देकर “ज्ञान द्वार”, “शक्ति द्वार” और “कर्म द्वार” दिया है। यह बड़े दुख का विषय है कि भारत के विपक्ष के नेता एक साथ मिलकर इस जशन को धूम धाम से मनाने की बजाये अपनी अपनी राजनीति की रोटियाँ सेकते हैं। जैसा आपने लिखा है, कुछ नेताओं ने तो बहुत बेवकूफ़ाना ब्यान भी दिये हैं। Political maturity कब आयेगी यह तो समय बतायेगा। बहुत गर्व हैं अपने देश भारत पर। जय हिन्द, जय भारत, भारत माता की जय।

  16. भारतीय वैज्ञानिकों की शानदार उपलब्धि पर जानदार संपादकीय हेतु साधुवाद आपको। चंद्रयान 3 की बैलगाड़ी और साइकिल से शुरू रोचक यात्रा… महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई का स्वप्न व उनका दिशा निर्देशन… वैज्ञानिकों की अभूतपूर्व सफलता थोड़ा राजनीतिक तड़का…। हमेशा की तरह बहुत रोचक एवं बढ़िया संपादकीय हेतु हार्दिक बधाई आपको।

  17. भारतीय वैज्ञानिकों की शानदार उपलब्धि पर जानदार संपादकीय हेतु साधुवाद आपको। चंद्रयान 3 की बैलगाड़ी और साइकिल से शुरू रोचक यात्रा… महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई का स्वप्न व उनका दिशा निर्देशन… वैज्ञानिकों की अभूतपूर्व सफलता थोड़ा राजनीतिक तड़का…। हमेशा की तरह बहुत रोचक एवं बढ़िया संपादकीय हेतु हार्दिक शुभकामनाएं आपको।

  18. 23 अगस्त हम भारतीयों के लिए गर्व का पल था। हर देशवासी की ऑंखें सुनहरे पलों की साक्षी बनने टी. वी. स्क्रीन पर चिपकी हुईं थीं आखिर चंद्रयान -3 की सफल लैंडिंग हो गई और हमारे वैज्ञानिकों ने इतिहास बना दिया।
    ख़ुशी के पलों में भी ज़ब विभिन्न लोगों की प्रतिक्रियायें आईं तो मन छुब्ध हो गया। कोई नेहरू जी को क्रेडिट देने लगा तो किसी को यह भी पता नहीं था कि चंद्रयान मिशन है क्या? सबसे अधिक बिहार के मुख्य मंत्री तथा प्रधान मंत्री के दावेदार नितिश कुमार के बयान को देखकर हुआ। क्या उन्हें सच में पता नहीं था या जानबूझकर उन्होंने ऐसा प्रदर्शित किया, यह तो वही जाने।

    वास्तव में भारत में अंतरिक्ष अभियान के जनक विक्रम सारा भाई थे। जिनके प्रयासों तथा तत्कालीन सरकार के मुखिया पंडित जवाहर लाल नेहरू के सहयोग से 1962 में ‘अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति’ (इनकोस्पार) की स्थापना की गई थी। 15 अगस्त 1969 को इसका पुनर्गठन कर इसे वर्तमान नाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) कहकर बुलाया जाने लगा।
    कांग्रेस द्वारा चंद्रयान -3 का क्रेडिट नेहरू जी को देना ठीक उसी प्रकार है जैसे अपने बगीचे के फल कोई अपने पडोसी को भेजे तथा वह कहे इनका क्या योगदान है, यह बगीचा तो उनके परदादा ने लगाया था। जबकि उस बगीचे को सींचने, खाद पानी देने का कार्य तो अन्य लोगों ने भी किया है।
    जो भी हो चंद्रयान -3 की दक्षिण ध्रुव पार सफल लैंडिंग भारत के अंतरिक्ष अभियान में मील का पत्थर साबित होगा। भारत के सभी वैज्ञानिकों को कोटि -कोटि बधाई।

    • सुधा जी आपकी टिप्पणी हमेशा ही हमें और कई मुद्दे प्रदान करती है। नेहरू जी के योगदान पर आपकी टिप्पणी विशेष रूप से नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

  19. “एक तरह से यह किसी भी ऐसे वंचित यात्रा से कम नहीं जो जीवन में गरीबी के अभियान से लड़ते हुए केवल अपने जीवट के बल पर आसमान की बुलंदी छू लेता है।
    चंद्र यान 3की आदि से अब तक की कहानी के सम्पूर्ण अर्थों को सम्पादकीय में इस तरह व्यक्त किया जाना अद्भुत लेख है ।
    वंदे मातरम
    Dr Prabha mishra

  20. गौरव के क्षणों को गहराई से समेटता और उसकी पृष्ठभूमि के साथ समसामयिक गहन प्रतिक्रियाओं , विपक्षी मनोरंजक प्रतिक्रियाओं को वर्णित करता उत्तम संपादकीय।…विडंबना है कि हमारे विपक्षी अनेक नेताओं की बौद्धिक क्षमता किस स्तर की है।

  21. किसी भी परिस्थिति, अवस्था में अपने कार्य के प्रति साहस पराक्रम और उत्कृष्ट विवेक बुद्धि ही सफलता के प्रतिमान निर्धारित करती है, जोकि विक्रम और प्रज्ञान के संयोजन से विश्व के समक्ष कीर्तिमान स्वरूप में सिद्ध हो चुका है।
    राष्ट्रोन्नति व राष्ट्र कल्याण का भाव किसी भी जाति, धर्म, प्रदेश से सर्वोपरि है, जिसका सशक्त प्रमाण हमारे इसरो चंद्रयान 3 के अनुसंधान के वैज्ञानिक व सहयोगी सदस्य हैं। ईश्वर करे हमारे राष्ट्र के प्रत्येक जन विशेषकर राजनेताओं राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी मनभेद को त्याग कर मात्र राष्ट्रहित का ही चिंतन करें। किसी भी राष्ट्र का उत्थान उस देश के नागरिकों पर तो निर्भर करता है किंतु उस देश का मुखिया ही अपने राष्ट्र का प्रबल उन्नायक होता है। तुलसीदास जी ने इस संदर्भ में उचित ही कहा है-
    मुखिया मुख सों चाहिए, खान पान को एक। पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक||
    भारत की इस अभूतपूर्व सफलता से संबंधित इतिहास,हमारे सम्माननीय वैज्ञानिकों का अथक परिश्रम, तुलनात्मक आर्थिक व्यय का विवरण,हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी का इस संदर्भ में ऊर्जान्वित अभिप्रेरण व प्रेरक उद्बोधन,हतप्रभ करने वाली राजनीतिज्ञ टिप्पणियाँ, इन समस्त संदर्भों से संपृक्त आपका यह संपादकीय निश्चय ही उत्कृष्ट है,जो हम पाठकों को मनन, चिंतन कर यथार्थ आत्मभिव्यक्ति को अभिव्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है।
    आपके सुचिंतनशील व्यक्तित्व व लेखन को साधुवाद

    • ऋतु जी आपने तो अपनी टिप्पणी से संपादकीय को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्रदान कर दी है। हार्दिक आभार।

  22. चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 का सफल साॅफ्ट लैंडिंग हमारे देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम एवं वैज्ञानिकों के पीढ़ी की एक महान उपलब्धि है। इसरो प्रमुख वैज्ञानिक श्री सोमनाथ ने इस सफलता का श्रेय उन सभी वैज्ञानिकों को दिया जो चंद्रयान 1 की संकल्पना, प्रयास असफलता, असफलता से सीख तथा अनुभव से लेकर चंद्रयान-3 की सफलता तक से जुड़े हुए थे। चूँकि वास्तविक विकास क्रमिक तथा कदम-दर-कदम हीं होता है। मनुष्य यदि आज चाँद पर है तो यह चमत्कारिक तरीके से अचानक रातोंरात नहीं हुआ है। दशकों पूर्व से मनुष्यों की कई वैज्ञानिक पीढ़ी इसके लिए प्रयास रत थी। सैकड़ों वर्ष पूर्व मनुष्यों के मन में यह प्रश्न उठा होगा हम चाँद पर कैसे पहुँच सकते हैं। हजारों वर्ष पूर्व भी भी एक प्रश्न रहा होगा। क्या चाँद पर पहुँचना संभव है? लाखों वर्ष पूर्व भी एक कौतूहल अवश्य हीं रहा होगा। काश चाँद हमें मिल जाता तो हम अपने अंधेरे घर को हर रात रौशन करते। आज हमें इस बात पर हँसी आ सकती है कि चाँद को प्राप्त करने की भला कोई कैसे सोंच सकता है? परंतु सच्चाई यही है कि कल की हमारी उस नादान सोंच ने हीं पीढ़ी दर पीढ़ी उन्नत व वैज्ञानिक रास्ते तय करते हुए आज हमें चाँद तक पहुँचाया है और कल संभव है चाँद पर हमारे गाँव भी हों। बाजार भी हो।
    वास्तव में यह भारत की बौद्धिक व राष्ट्रीय उपलब्धि है। जिसमें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से देश के सभी नागरिकों का सहयोग है। कंप्यूटर के आविष्कार का श्रेय किसी भी व्यक्ति के नाम नहीं है। ठीक उसी प्रकार इस सफलता का श्रेय भी किसी व्यक्ति, पार्टी, समुदाय, सरकार अथवा मंत्री को नहीं बल्कि समुचे देश को है।
    दुर्भाग्यवश हमारे देश में इस सफलता के श्रेय के लिए पक्षी विपक्षियों के बीच जो कुकुरहाव हुआ उसने भारत की आत्मा को न सिर्फ दुख पहुँचाया बल्कि दग्ध भी किया। सबसे बड़ा हास्यास्पद व शर्मनाक नेताओं के बयान रहे। कसी ने नासा को बधाई दे दी। किसी ने चंद्रयान-3 के यात्रियों के सकुशल वापसी की कामना की। किसी ने अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की जगह फिल्म अभिनेता राकेश रौशन को याद किया। किसी को इस अभियान के सफलता की जानकारी हीं नही थी तो बगले झाँकते नजर आए तो किसी ने दुनिया में सबसे पहले चंद्रयान-3 की सफल साॅफ्ट लैंडिंग दक्षिण चीन में बता दिया। खैर ये सारे बयान नेताओं की तरफ से आए थे। जो निश्चित तौर पर हीं इस कान से सुनकर दुसरे कान से निकाले जा सकते हैं। यह सोंचकर कि हमारे देश के नेता देश एवं देश की छवि के प्रति गंभीर नहीं है।
    कुछ उच्च शिक्षित लेखकों संपादकों ने भी अपने लेखों मे श्रेय की छुद्रता पूर्ण छीना झपटी का समर्थन किया। एक लेखक ने अपनी छुद्रता व चाटुकारिता प्रदर्शित करते हुए यहाँ तक लिख दिया कि चंद्रयान 3 की सफलता से एक समूह विशेष को झटका लगा है और वे खुश नहीं है। उसनें क्या सोंचकर ऐसा लिखा होगा? क्या वह अकेला हीं इस देश का अधिकृत शुभचिंतक है? और दुसरे वे सभी जिसे वह पसंद नहीं करता, क्या देश का शत्रु है??
    वस्तुतः ऐसा नहीं है। देश का प्रत्येक नागरिक चाहे वह दक्षिण पंथी हो, उत्तर पंथी हो, पुरब पंथी हो अथवा पश्चिम पंथी। जब तक उसके उपर कोई देश विरोधी करवाई नहीं चल रही है अथवा दोष सिद्ध नहीं हुआ है। सभी देश प्रेमी है। अपने विचारों को उत्तम सिद्ध करने मात्र के लिए विपरीत विचारधारा वालों को दोषी कहना या दोषी प्रचारित करने का कुप्रयास एक प्रकार का जघन्य अपराध है। स्वच्छ लोकतंत्र में ऐसा अधिकार अथवा ऐसी अराजकता पूर्ण छूट किसी को भी नहीं मिलनी चाहिए।

  23. बड़े भैया आपका लेख पढ़ना गौरव की बात है और उससे भी बात है भारतीय पृष्ठभूमि से जुड़ी ख़बर । निश्चित रूप से यह एक दिव्य, अलौकिक अहसास से कम नहीं, समूचा भारत प्रफुल्लित है,झूम उठा है, किंतु आपकी प्रसन्नता, तन्मयता… आपकी रग-रग में बसी अपनी माटी की सौंधी महक को दर्शाती है । प्रणाम आपको
    वंदेमातरम्

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