सोच तो शायद ‘पुरवाई’ के पाठक भी रहे होंगे कि ईडी को वर्तमान सरकार ने ही विपक्षी दलों को डराने-धमकाने के लिये बनाया है। इसी लिये हमने तय किया कि हम अपने पाठकों को ईडी के बारे में कुछ सच्ची जानकारी अवश्य उपलब्ध करवाएं कि यह संस्था कब बनाई गयी, क्यों बनाई गयी और इसके कार्यक्षेत्र में क्या-क्या आता है।
आजकल व्हट्सएप पर एक मैसेज बहुत वायरल हो रहा है – “स्कूल में पढ़ाया जाता था कि क्रिया के पीछे ed लगा देने से उसका काल बदल जाता है। आज जब नेताओं के पीछे ED लगा है तो यह प्रक्रिया समझ में आ रही है।”
आज पूरे देश में ई. डी. की ही चर्चा है। दिल्ली, बंगाल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ हर जगह ईडी की छापामारी हो रही है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, पार्थ चटर्जी, संजय राऊत, सतेन्द्र जैन, नवाब मलिक, अनिल देशमुख सभी को ईडी के सपने आते हैं। यहां तक कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाडरा और पूरी कांग्रेस पार्टी ने ED की वक्रदृष्टि से बचने के लिये काले कपड़े पहन कर प्रदर्शन शुरू कर दिये हैं।
सोच तो शायद ‘पुरवाई’ के पाठक भी रहे होंगे कि ईडी को वर्तमान सरकार ने ही विपक्षी दलों को डराने-धमकाने के लिये बनाया है। इसी लिये हमने तय किया कि हम अपने पाठकों को ईडी के बारे में कुछ सच्ची जानकारी अवश्य उपलब्ध करवाएं कि यह संस्था कब बनाई गयी, क्यों बनाई गयी और इसके कार्यक्षेत्र में क्या-क्या आता है।
एक मज़ेदार स्थिति यह है कि प्रवर्तन निदेशालय को करोड़ों रुपये (कैश) मिल रहे हैं जो कि ग़ैरकानूनी ढंग से इकट्ठे किये गये हैं। विपक्ष एक बार भी यह नहीं पूछ रहा कि राजनेता वित्तीय धांधली के माध्यम से इतने करोड़ों रुपये लाए कहां से हैं। विपक्ष केवल ईडी और वर्तमान केन्द्रीय सरकार पर आरोप लगा रहा है कि उन पर राजनीतिक कारणों से ईडी द्वारा जांच करवाई जा रही है।
दूसरी समस्या यह है कि जांच भाजपा लीडरों की क्यों नहीं हो रही? जो नेता विपक्षी पार्टियों को छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गये हैं, भला वो दूध के धुले कैसे हो गये… क्या भाजपा कोई ऐसी गंगा है जो पापों की सफ़ाई कर देती है?
विपक्ष की आधी बात तो ठीक है कि उन नेताओं की भी जांच होनी चाहिये। मगर जिन नेताओं की जांच हो रही है – भाई उनको तो भ्रष्ट मानो!
अपने पाठकों को बताना चाहेंगे कि प्रवर्तन निदेशालय का गठन 1 मई 1956 को किया गया था। इसका पूरा नाम रखा गया था Enforcement Directorate – हिन्दी में प्रवर्तन निदेशालय। वर्तमान समय में ईडी के पांच मुख्य कार्यालय है जो कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़ और कोलकाता में स्थित हैं। यह विभाग केंद्र सरकार के आधीन एक सरकारी संस्था है जिसके द्वारा देश में भ्रष्टाचार को मिटाने पर कार्य किया जाता है।
यह संस्था भारतीय संविधान की किसी धारा के तहत गठित नहीं की गयी है। यानी कि इसका ज़िक्र संविधान में कहीं नहीं किया गया है। पहले इसे FERA (The Foreign Exchange Regulation Act) 1973 के तहत काम करना होता था। यानी कि मुख्य रूप से भारत में विदेश से जुड़ी संपत्ति मामले और अन्य ग़ैर-कानूनी संपत्ति की जांच करना। यह एक ऐसी ख़ुफ़िया एजेंसी है जो भारत में वित्तीय घोटालों पर पैनी नज़र बनाए रखती है। ‘मनी लाँड्रिंग’ का मुद्दा इसके विशेष दायरे में आता है। एक बात और, आर्थिक रूप से कानून लागू करने का अधिकार भी ईडी को ही सौंपा जाता है।
इस संस्था में काम करने वाले अधिकारी आई.ए.एस एवं आई.पी.एस. काडर से आते हैं। वर्ष 1999 से सरकार ने FEMA Foreign Exchange Management Act लागू किया। वर्तमान में प्रवर्तन निदेशालय ‘फ़ेमा’ एवं ‘फ़ेरा’ – दोनों एक्ट के तहत काम करता है। शुरुआत में ईडी वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के अधीन था लेकिन साल 1960 से ये भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के नियंत्रण में काम करता है।
वर्ष 2018 में भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (एफ.ई.ओ.ए) बनाया गया। यह क़ानून उन आर्थिक अपराधियों को ध्यान में रखकर बनाया गया था जो आर्थिक अपराध करने बाद भारत से भाग जाते हैं। ईडी इसी क़ानून के तहत ऐसे अपराधियों को वापस भारतीय क़ानून की प्रक्रिया में लाने का काम करता है। विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी आदि पर इसी नियम के तहत कार्यवाही चल रही है।
अब यदि प्रश्न पूछा जाए कि आख़िर प्रवर्तन निदेशालय के अधिकार क्षेत्र में क्या आता है और वह किस तरह से काम करता है तो मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि –
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प्रवर्तन निदेशालय को फेरा 1973 और फेमा 1999 यह दो अधिनियम के तहत भारत सरकार की सभी तरह की वित्तीय जांच करने का अधिकार प्राप्त है |
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इसके अलावा सरकार ने ईडी को विदेशी मुद्रा अधिनियम के तहत उल्लंघन से निपटने की भी पूरी छूट प्रदान कर रखी है।
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ईडी को विदेश में किसी भी संपत्ति पर कार्यवाही करके रोकथाम करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
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मनी लांड्रिंग के आरोप में पाए गए लोगों के ख़िलाफ ज़ब्ती, गिरफ़्तारी और खोज करने का अधिकार भी ईडी के पास है |
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ईडी वित्तीय रूप से देश में ग़ैर कानूनी हो रहे कार्य को लेकर उस पर कार्रवाई कर सकता है |
बहुत ही बढ़िया विश्लेषण आदरणीय
धन्यवाद सरिता जी।
Your Editorial of today not only presents a detailed account of the purpose and functions of ED but also sums it all up with a valuable suggestion to this body for being totally impartial to all the culprits,be they from the ruling party or otherwise in addition to a quotable quote
Caesar’s wife must be above suspicion.
Regards
Deepak Sharma
Thanks so much Deepak ji. Most of the people have no idea about the organization. I thought through this article The Purvai could play it’s social role as well.
आपके द्वारा लिखे खोजपरक, रोचक संपादकीय की एक और कड़ी, ED के विषय में विस्तृत जानकारी देने के लिए धन्यवाद। भ्रष्टाचार और मनुष्य सम्भवतः पर्यायवाची हैं, अतः सिर्फ़ भारत के लिए नहीं मनुष्य मात्र के लिए ED जैसी संस्थाओं का होना आवश्यक है। इसका पक्षपात रहित होना परमावश्यक है। सीज़र की पत्नी हों या राजीव गांधी की शक़ दायरे से बाहर किसी को भी नहीं होना चाहिए। यदि ED पक्ष-विपक्ष सभी की गैरकानूनी सम्पत्ति ज़ब्त कर लेती है, तो भारत का कुछ उद्धार होगा… अमीना
आपकी टिप्पणी सारगर्भित भी है और गंभीर भी। शैली जी आपके सुझाव उल्लेखनीय हैं।
नमस्ते तेजेंद्र जी, एक और संतुलित एवं जानकारीपूर्ण सम्पादकीय। बस सवाल वहीं पहुँच कर फिर खड़ा हो जाता है कि इस विभाग को दिए गए निर्देश क्या पूरी तरह से निष्पक्ष और तटस्थ होते हैं?
धन्यवाद प्रगति। आपका प्रश्न वाजिब है।
एक संक्षिप्त लेकिन सटीकता से ई डी के बारे में जानकारी देता ये सामयिक संपादकीय सहज ही सुंदर बना है। इस मुद्दें पर जुड़े प्रश्नों के उत्तर भी आपने बखूबी दिए हैं। सबसे ग़ौरतलब बात तो यही है सरकार चाहे वर्तमान हो या कोई और, उसे इस बात का पूरा प्रयास करना चाहिये कि वह इस सारी प्रक्रिया में निष्पक्ष और स्पष्टवादी रहे। तभी ई डी का पूर्ण कार्य सार्थक माना जायेगा। सम्पादकीय के लिए बधाई के साथ साधुवाद तेजेन्द्र सर।
विरेन्द्र भाई आपका समर्थन हमें हर सप्ताह नये विषय ढूंढने में सहायक होता है। हार्दिक धन्यवाद।
ED की एडिटेड but detailed जानकारी देता साथ ही कई गम्भीर प्रश्न उठाता और शंका निवारण करता सारगर्भित सटीक आलेख।।
हार्दिक धन्यवाद उषा जी।
वर्तमान समय के भारत में ज्वलंत मुद्दे पर सराहनीय जानकारी,
इस जानकारी से ज्ञान प्राप्त हुआ की ed एक चाबुक है जो सत्तापक्ष सुविधानुसार विरोधियों पर चलाता है, और अगर विरोधी सत्तापक्ष का समर्थन करने लगे तो चाबुक को खूंटी पर लटका दिया जाता है। बाकी तो सब मोह माया है
हमें दरअसल हर पांच साल बाद सरकार बदल देनी चाहिए ताकि सफ़ाई का काम चलता रहे।
‘ED’ काल बदल देती है ,सही विश्लेषण किया है।आज की सम्पादकीय ने मुझे Monetary economics की class में खड़ा कर दिया । आप समय के साथ निरंतर सोच रहे हैं, साधुवाद
Dr Prabha mishra
यानी कि हर पांच साल बाद सरकार बदल देनी चाहिए ताकि सफ़ाई का काम चलता रहे।
बहुत अच्छी और सटीक जानकारी दी आपने इडी के विषय में, हमें तो बस इतना ही पता था कि यह प्रवर्तन निदेशालय है और ग़लत ढंग से एकत्रित धन और संपत्तियों की जांच करता है,, कभी कभी मन में सवाल जरूर उठते थे कि क्यों केवल विपक्ष को ही निशाना बनाया गया,शासक दल के नेताओं को क्यों नहीं, अथवा इस धन का उपयोग क्या होगा,जो सजा दी जाती है,वह कितनी विश्वसनीय होगी,, बहुत अच्छा लगा, बहुत कुछ समझ में आया और हम भी विशेषज्ञता हासिल कर सकें,, हार्दिक धन्यवाद,आपका संपादकीय बहुत सुंदर, सामयिक सारगर्भित विवेचना करता है,यह हम सबके लिए एक धरोहर है, आभार भाई
पद्मा आपको संपादकीय से नयी जानकारी हासिल हुई, यह पुरवाई के लिए एक उपलब्धि है। प्रयास हर सप्ताह जारी रहेगा।
आदरणीय तेजेन्द्र जी,
प्रभावशाली भूमिका के साथ ईडी शब्द का अर्थ काल निर्धारण,ई डी की चर्चा भारतीय राजनीति के संदर्भ में, साथ ही प्रदेशों का विवरण, संस्था के गठन से संबंधित पक्ष-विपक्ष की विचारधारा, सबसे महत्वपूर्ण इसका उद्देश्य व कार्य, संस्था के गठन का महत्वपूर्ण पक्ष, FERA से पूर्व संबंध, मुद्दों के विशेष दायरे, संस्था में कार्यरत अधिकारियों का संदर्भ,प्रवर्तन निदेशालय की FEMA-FERA से संबद्धता, प्रारंभिक व वर्तमान विभागों से अधीनस्थ कार्यबद्धता,FEOA का गठन, उद्देश्य व ई डी की FEOA कानून के तहत आर्थिक अपराधियों (भारत से भागे हुए)को वापस भारत लाने की प्रक्रिया का प्रकार्य,इसके अतिरिक्त प्रवर्तन निदेशालय के विभिन्न अधिकार क्षेत्र तथा वर्तमान सरकार से विपक्ष का इस तरह की जांच से छूट मांगने का प्रयास,साथ ही भ्रष्ट व्यक्तियों के संदर्भ में हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी के कथन(ना मैं खाऊंगा, ना ही खाने दूंगा)के प्रति वर्तमान सरकार की इस क्षेत्र में प्रतिबद्धता, ई डी मामले में कांग्रेस सरकार की मुश्किलें और अंत में आपका स्पष्ट निष्कर्ष,जो समस्त देशवासियों की आवाज को बुलंद करता है..” देश की सरकार को भी निष्पक्ष होना भी चाहिए और दिखना भी चाहिए।”
वास्तव में गागर में सागर रूपी इस संपादकीय में आपने प्रवर्तन निदेशालय संबंधी विभिन्न तथ्यों को सुनियोजित प्रकार से अपनी विशिष्ट उद्धरण रूपी विवरणात्मक शैली में प्रस्तुत किया है, जो विषय संबंधी सटीक जानकारी तो प्रस्तुत करता ही है, इसके वास्तविक उद्देश्य व कार्य के साथ ही वर्तमान सरकार व विपक्ष की छवि को भी स्पष्ट करता है। आपके संपादकीय के माध्यम से इस विषय से जुड़ी विभिन्न भ्रांतियों का भी निदान हुआ। आपका यह संपादकीय भी सदैव की भांति इस बार भी सभी पाठकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व उपयोगी संपादकीय सिद्ध होगा।
पुन:श्च साधुवाद
डॉ. ऋतु माथुर
ED के विषय में इतनी बेहतरीन जानकारी देना और हर बार तथ्यों के साथ विश्लेषण करना यह आपके संपादकीय की विशेषता है । हमारा भी सड़ें अब बेहतरीन हो जाता है कुछ नया सीखकर । साधुवाद
अंजु युवा पीढ़ी का समर्थन पुरवाई को बहुत ताकत देता है। हार्दिक धन्यवाद।
ED के कार्यकलापों के बारे में बातें तो आजकल ख़ूब हो रही हैं , लेकिन सच यह भी है कि अधिकांश लोग इसकी अधिक जानकारी नहीं रखते । यह संपादकीय ईडी की मूल जानकारी बहुत सरल शब्दों में समझा रहा है । ईडी के आघात से घायल राजनेता और उनके पक्षधर बौखलाहट में केन्द्र सरकार पर घनघोर आरोप लगा रहे हैं । अफसोस इस निर्लज्जता पर होता है कि अपने गुनाहों को दरकिनार कर देश को बरगला रहे हैं …जैसा कि इस संपादकीय में सटीकता से लिखा गया है __
“विपक्ष की आधी बात तो ठीक है कि उन नेताओं की भी जांच होनी चाहिये। मगर जिन नेताओं की जांच हो रही है – भाई उनको तो भ्रष्ट मानो! ”
केन्द्र सरकार से निष्पक्षता की उम्मीद की जाती है ; अपनी साख़ बनाये रखने के लिए सरकार का ख़ुद के गिरेबान में झांकना भी बहुत ज़रूरी है ।
तमाम पठनीय सामग्री के साथ एक बेहतरीन संपादकीय के लिए साधुवाद!