उस दिन नीलम के घर का माहौल सुबह से ही कुछ रोमांटिक सा हो चला था । बात ही कुछ ऐसी थी । नीलम की आँख खुली ही थी कि हरेन्द्र ने उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी थी और फिर गोद में उठाकर उसे कुछ इस तरह घुमा डाला था कि बस पूछो ही मत । उस दिन उसकी शादी की पहली सालगिरह जो थी । हरेन्द्र ने इस अवसर को कहीं बाहर जाकर मनाने के बजाय अपने ही शहर में रहकर खूबसूरत अंदाज में मनाने का मन बनाया था । पूरा साल खुशी खुशी बीता था इसलिए मन में वही उमंग-तरंग अभी भी कायम थी ।
शाम होते होते घर को खूबसूरती से सजा देने का काम पूरा हो चुका था । अपने गिने-चुने दोस्तों के साथ केक काटकर खुशियाँ मनाने के साथ ही खाने पीने का कार्यक्रम पूरा हुआ तो हरेन्द्र को न जाने क्या सूझा था कि वह अपनी गाड़ी उठा लौंग ड्राइव पर निकल पड़ा था ।
जिंदगी का पहिया कब किधर घूम जाएगा, कोई नहीं जानता । हरेन्द के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था । शहर से बाहर निकलते ही हरेन्द्र ने गाड़ी दौड़ा दी थी । उस समय गाड़ी की रफ्तार क्या रही होगी, यह तो उसे पता नहीं था पर इतना जरूर याद था कि वह सामने से आती हुई गाड़ी से बुरी तरह धोखा खा गया था । दुर्घटना इतनी भीषण हुई थी कि उसकी गाड़ी सड़क से उतरकर नीचे गहराई में जा गिरी थी । उसे कंधे मे भीषण चोट आई थी लेकिन नीलम, नीलम तो बेहोश हो चुकी थी । उसके पास आकर देखने पर पता चला था कि उसके तो दोनों पैर झूल चुके हैंं । सहायता का प्रबन्ध करके वे गाड़ी को वहीं छोड़ अपने शहर के अस्पताल तक आ गए थे लेकिन स्थिति ऐसी बन गई थी कि नीलम का अस्पताल में ही एडमिट रहना आवश्यक हो गया था ।
नीलम जब घर लौटी तो वह बिस्तर की ही होकर रह गई थी । अजीब सी स्थिति थी । जिंदगी एकदम बेसुरी सी लगने लगी थी । हरेन्द्र अपनी ओर से नीलम की सेवा में कोई कमी न छोड़ता था लेकिन नियति ………….।
वैसाखियाँ नीलम की संगिनी बनकर उसका साथ निभा रहींं थींं । नीलम इतनी हतोत्साहित हो चुकी थी कि वह यदा-कदा रो पड़ती और हरेन्द्र के सामने गिड़गिड़ाने लगती- हरेन्द्र, तुम कुछ भी करो, पर करो न् । मैं जीना चाहती हूंँ हरेन्द्र, मैं अभी और जीना चाहती हूंँ और फिर, हरेन्द्र एक नये सिरे से कोशिशों में लग जाता ।