इमरान ख़ान पिछले दिनों भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों की तारीफ़ें करते दिखाई दिये। मगर वह यह भूल गया कि भारत ने पहले अपनी आर्थिक स्थिति मज़बूत की, उसके बाद ही वह अमरीका और चीन की आँखों में आँखें डाल कर देख पाता है। जिस देश से आप भीख में डॉलर और अन्य सहायता मांगेंगे उसके सामने सिर उठा कर खड़े कैसे हो पाएंगे… आज इमरान देश भर में सभाएं कर रहा है… अमरीका के प्रति नफ़रत का संदेश दे रहा है… देश में अस्थिरता पैदा कर रहा है। उसका मंत्री शेख़ रशीद दावे कर रहा है कि 15 मई तक शहबाज़ शरीफ़ की चोर, लुटेरे डाकुओं की सरकार गिर जाएगी।… याद रहे लोकतंत्र ऐसे नहीं चलता।

इमरान ख़ान ने तीन बार क़ानूनी निकाह किया है। पहली पत्नी थी ब्रिटेन की यहूदी लड़की जेमिमा गोल्डस्मिथ से हुआ था। इस विवाह के बाद जेमिमा ने इस्लाम कुबूल कर लिया था। यह निकाह 9 वर्ष तक चला जिससे इमरान को दो पुत्र हैं।
इमरान का दूसरा निकाह हुआ ब्रिटेन की ही टीवी हस्ती रेहम खान से। रेहम बी.बी.सी. टीवी की पूर्व एंकर थी। निकाह के ठीक 10 महीने बाद दोनों का तलाक हो गया। इनके दस महीने साथ रहने के बाद जन्म लिया रेहम की एक किताब ने जिसमें उसने इमरान ख़ान की ख़ासी छीछालेदार की।
पहले विवाह से पूर्व भी और विवाहों के बाद भी इमरान का नाम बहुत सी महिलाओं के साथ जुड़ता रहा। मगर इस सब के चलते इमरान ने एक तीसरा निकाह भी कर डाला। इसके बारे में कहा जाता है कि यह निकाह पाकिस्तानी सेना के इशारे पर हुआ। 2017 में इमरान ने एक टोने टोटके और भूत-प्रेतों की मित्र बुशरा बीबी के साथ निकाह कर लिया। कहा जाता है कि इमरान ख़ान बुशरा बीबी से पूछे बिना कोई काम नहीं करते थे। बुशरा बेग़म के पहले निकाह से पाँच बच्चे हैं। मगर कुछ अरसा पहले बुशरा बेग़म भी इमरान ख़ान को धत्ता बता कर चलती बनीं।
इमरान ख़ान की दूसरी बीवी यानी कि रेहम ख़ान का कहना है कि इमरान ख़ान एक विदूषक है। उसे दि कपिल शर्मा शो में नवजोत सिंह सिद्धु की जगह लेनी चाहिये। रेहम को इमरान में कॉमेडी कलाकार के तमाम गुण दिखाई देते हैं।
यदि इमरान ख़ान के बारे में उनके परिवार की यह राय है तो भला जनता उनके बारे में क्या सोचेगी। इमरान ख़ान ने पाकिस्तान को ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है जहां पूरी दुनिया में तन्हा हो गया है भारत का पड़ोसी देश।
इमरान ख़ान ने अपने जीवन में कभी कोई नौकरी नहीं की। क्रिकेट खेला, प्लेबॉय बना रहा, माँ के नाम पर कैंसर हस्पताल खोलने के लिये दुनिया भर से चंदे इकट्ठे किये। सांसद चुने जाने के बावजूद कभी संसद में गये नहीं। पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद ही संसद को गंभीरता से लिया। यानी कि इमरान ख़ान के लिये लोकतंत्र का एक ही अर्थ है कि यदि वे सत्ता में हैं तो लोकतंत्र सही चल रहा है। यदि कोई और दल सत्ता में है तो लोकतंत्र चोरों, डकैतों और लुटेरों का अड्डा है।
किसी भी लोकतंत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाना विपक्ष का हक़ है। भारत में अब तक 27 से अधिक बार इस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया गया है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार तो एक वोट से गिर गयी थी। मगर भारत में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं। जबकि पाकिस्तान में अभी लोकतंत्र अपने शैशव काल में है।
इमरान ख़ान की कमियों की वैसे तो एक लंबी फ़ेहरिस्त है। मगर मोटे तौर पर कहा जाए तो –
  1. इमरान ख़ान को सत्ता चलाने का कोई अनुभव नहीं था। मगर बोलने का बहुत शौक है। अपनी आवाज़ से बहुत प्यार है। चुप होना उसे स्वयं को चुभता है।
  2. इमरान ख़ान ख़ुद तो शायद ईमानदार होगा, मगर उसने अपने इर्द-गिर्द भ्रष्ट नेताओं का जमावड़ा खड़ा कर लिया था। जिस भ्रष्टाचार के लिये वह विपक्षी नेताओं पर मुकद्दमे चला रहा था, उसी में उसके अपने मंत्री लिप्त थे।
  3. इमरान ख़ान ने पत्रकारों पर ऐसी सख़्त पाबंदियां लगाईं कि उनके लिये सच्चाई लिख या बोल पाना असंभव हो गया था। स्थिति लगभग वही थी जो भारत में आपात काल में इंदिरा गान्धी के ज़माने में थी।
  4. इमरान ख़ान की कोई विदेश नीति नहीं थी। उसके काल में पाकिस्तान के संबंध अमरीका, सऊदी अरब, चीन, अमीरात, बांग्लादेश और भारत के साथ ख़राब होते चले गये।
  5. इमरान ख़ान को अमरीका का राष्ट्रपति फ़ोन करता नहीं था, और भारत का प्रधानमंत्री उसका फ़ोन उठाता नहीं था।
  6. उसके कार्यकाल में डॉलर महंगा होता चला गया। बिजली, पेट्रोल, आटा, दाल, मीट, चीनी, सब्ज़ियां सभी महंगी होती चली गयीं। ग़रीब इन्सान के पास पिसने के अलावा कोई चारा नहीं था।
  7. इमरान ख़ान को मालूम था कि उसकी पार्टी के पास बहुमत नहीं था और वह बैसाखियों के सहारे चल रहा था मगर उसकी अकड़ और रवैय्या बरकरार रहे। उसमें अहम इतना भरा है कि वह हमेशा मैं… मैं… करता दिखाई देता है। वह कभी भी सबको साथ लेकर चलता नहीं दिखाई देता।
देखना होगा कि जब इमरान ख़ान ने देश का कार्यभार संभाला तो पाकिस्तान पर कितना बाहरी कर्ज़ा था और आज कितना है। इमरान ख़ान का उपनाम बन गया ‘यू-टर्न प्रधानमंत्री’। उसने विपक्ष में रहते हुए जो जो दावे और वादे किये उन सब से मुकरता गया। देश को आइ.एम.एफ. और वर्ल्ड बैंक के सामने गिरवी रख दिया। FATF में ग्रे-लिस्ट की तलवार अभी भी लटकी हुई है। इमरान ख़ान क्रिकेटर के तौर पर जितना मॉडर्न था, प्रधानमंत्री के तौर पर उतना ही मौलवी-परस्त हो गया है।
पाकिस्तानी मीडिया में एक थप्पड़ का ज़िक्र खासा हो रहा है। कहा जाता है कि इमरान ख़ान त्यागपत्र देने को तैयार नहीं थे। अविश्वास प्रस्ताव से एक रात पहले एक हैलिकॉप्टर आकर इमरान के घर के बागीचे में उतरा। उसमें से दो फ़ौजी अफ़सर निकल कर इमरान के घर पहुंचे। इमरान के ना-नुकर करने पर उनमें से एक ने इमरान के मुंह पर ज़न्नाटेदार थप्पड़ मारा। इमरान दो दिनों तक काला चश्मा पहने दिखाई देते रहे। उनकी आँख के नीचे एक ज़ख़्म भी दिखाई देता रहा। इस थप्पड़ ने पूरा सीन बदल दिया।
मगर उस थप्पड़ की गूंज पंजाब एसेम्बली में सुनाई दी जब तहरीक-ए-इन्साफ़ पाकिस्तान के विधायकों ने डिप्टी स्पीकर दोस्त मुहम्मद मज़ारी को एसेम्बली में बालों से घसीटा और थप्पड़ जड़े। दोस्त मुहम्मद मज़ारी ने अभी कार्यवाही शुरू भी नहीं की थी कि तहरीक-ए-इन्साफ़ के सदस्यों ने उस पर प्लास्टिक के लोटे बरसाने शुरू कर दिये।
राजनीतिक परिदृश्य इस तेज़ी से बदला कि पँजाब एसेम्बली में शहबाज़ शरीफ़ का बेटा हमज़ा शहबाज़ वहां का मुख्यमंत्री घोषित हो गया। यानी कि अब तो परिवार सबसे ताकतवर सूबे पँजाब और राष्ट्रीय सरकार पर काबिज़ हो चुका है।
इमरान ख़ान का दावा है कि उसने विश्व भर के तमाम देशों की यात्रा की है और ऑक्सफ़र्ड में पढ़ाई की है इसलिये उसे लोकतंत्र की जानकारी है। मगर सच तो यह है कि वह अपने व्यवहार में पूरा तानाशाह रहा है। अंग्रेज़ी की कहावत – ‘आइदर माई वे और हाईवे’ – उस पर सही बैठती है। उसका मानना है कि जो उसके साथ है, वो ईमानदार है बाकी तमाम लोग भ्रष्ट हैं। हालांकि अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल में वह एक भी विपक्षी नेता के गुनाह साबित नहीं करवा पाया। किसी एक को भी सज़ा नहीं हो पाई।
इमरान ख़ान के दावों की हवा पाकिस्तानी सेना की मीडिया शाखा- इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर)- के महानिदेशक (डीजी) मेजर जनरल बाबर इफ़्तिख़ार ने अपनी प्रेस काँफ़्रेंस में निकाल दी। उन्होंने इमरान ख़ान के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव के सिलसिले में किसी भी प्रकार के अमरीकी षड़यंत्र से साफ़ इन्कार कर दिया।
मेजर जनरल इफ़्तिख़ार ने यह भी साफ़ कर दिया कि अमरीका ने किसी भी प्रकार के अड्डे नहीं मांगे थे। मगर साथ ही यह भी कहा कि यदि अमरीका अड्डे मांगता तो पाकिस्तानी फ़ौज भी मना कर देती। यानी कि इमरान ख़ान का ‘एब्सोल्यूटली नॉट’ वाला ड्रामा भी सफ़ेद झूठ था।
उन्होंने आगे यह भी कहा कि सेना इस राजनीतिक उठापटक से अपने आप को अलग रखे हुए है। हम किसी एक राजनीतिक दल का समर्थन नहीं कर रहे। याद रहे कि उनका यह बयान, शहबाज़ शरीफ़ के पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेने के बाद आया है। देश में लंबे समय से चल रहे राजनीतिक उथल-पुथल के बाद ही शरीफ़ प्रधानमंत्री बने हैं।
इमरान ख़ान पिछले दिनों भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों की तारीफ़ें करते दिखाई दिये। मगर वह यह भूल गया कि भारत ने पहले अपनी आर्थिक स्थिति मज़बूत की, उसके बाद ही वह अमरीका और चीन की आँखों में आँखें डाल कर देख पाता है। जिस देश से आप भीख में डॉलर और अन्य सहायता मांगेंगे उसके सामने सिर उठा कर खड़े कैसे हो पाएंगे… आज इमरान देश भर में सभाएं कर रहा है… अमरीका के प्रति नफ़रत का संदेश दे रहा है… देश में अस्थिरता पैदा कर रहा है। उसका मंत्री शेख़ रशीद दावे कर रहा है कि 15 मई तक शहबाज़ शरीफ़ की चोर, लुटेरे डाकुओं की सरकार गिर जाएगी।… याद रहे लोकतंत्र ऐसे नहीं चलता।
तेजेन्द्र शर्मा एम.बी.ई.
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

11 टिप्पणी

  1. Thank you,Tejendra ji,for throwing light on the circumstances that led to the ouster of
    Imran Khan’s govt in Pakistan.
    One learns so much more about Imran’s personal life n failings from your Editorial.
    It is unfortunate indeed that a crickter of his stature could not commit himself to a life of dignity n grace.
    Regards
    Deepak Sharma

  2. सम्पादकीय इमरान खान पर केंद्रित है,उनके निजी जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से लेख है
    अपनी किसी एक अच्छाई से मिलने वाली ख्याति से इंसान उसी क्षेत्र के लिए लोकप्रिय हो सकता है ,चुनाव जीतकर संसद तक भी पहुँच सकता है लेकिन प्रधानमंत्री पद की गरिमा का निर्वहन नहीं किया तो वह
    इमरान खान ही बनेगा ।इमरान खान भी इसी मुगालते में रहे कि उनकी क्रिकेट इमेज देश और दुनिया को प्रभावित कर देगी। रेहम खान ने उन्हें विदूषक ठीक ही कहा क्योंकि उन्होंने पद की गरिमा के अनुरूप अपना बौद्धिक विकास नहीं किया और देश को भी नुकसान पहुचाया ।
    सम्पादकीय में इमरान खान एक परिकल्पना है, शोध है व्यक्तित्व का विकास जो निजी हित और देश हित में अनिवार्य है ।
    साधुवाद
    डॉ प्रभा मिश्रा

    Dr Prabha mishra

    • प्रभा जी आपने संपादकीय का गहन अध्ययन करते हुए व्यक्ति की निजी उपलब्धियों एवं पद की गरिमा के बारे में सही तुलना करते हुए सार्थक टिप्पणी की है। धन्यवाद और शुभकामनाएं।

  3. आपने सविस्तार पाकिस्तान में हुई राजनीतिक उठा-पटक का वर्णन किया, जिसकी आवाज़ भी सुनायी दे रही थी । वैसे सच कहूँ तो सारा नाटक देख मज़ा आया, पाकिस्तान की कोई भी दुर्दशा हो, मन को सुकून मिलता है। पाकिस्तान में प्रजातंत्र का ढोंग चलता है, मुझे लगता है कि उसका शैशव नहीं, अभी जन्मा ही नहीं है। सेना ही सब चलाती है, प्रजातांत्रिक ढंग से चुना हर प्रधानमंत्री कठपुतली रहता है, जबतक सेना के इशारे पर नाचता है, चलता है, नहीं तो हटा दिया जाता है, जिंदा या मुर्दा। कोई देश निकाला पता है…
    अच्छा है अर्थिक स्थिति ख़राब हो, जब संसाधन नहीं रहेंगे तो युध्द नहीं होगा, किसी भाग्यशाली दिन भारतीय सेना पाकिस्तान को नक्शे से मिटा कर, गाँधी के पापों का प्रायश्चित कर देगी… अमीन

  4. शैली जी आपकी (थोड़ी शैतानी भरी) टिप्पणी बहुत कुछ कहती है। बहुत बहुत शुक्रिया।

  5. पाकिस्तान और उनका इमरान खान दोनों ही अक्ल से पैदल नज़र आते हैं। कभी कभी यह स्थिति खौफजदा भी दिखती है क्यूंकि अस्थिर पड़ोस किसी भी पड़ोसी राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं होता ।
    वैसे सच कहूं तो पाकिस्तान पूरा ही नौटंकी की तरह दिखाई देता है । वहां पर लोकतंत्र कभी पैदा भी नहीं होगा। क्यूंकि शरिया लोकतंत्र की मृत्यु का जन्म से पूर्व ही फरमान है ।
    इमरान खान पाकिस्तान नाम की पिक्चर का जोकर ही है । जिसे अपने अलावा कोई सही नहीं लगता । स्थिति देखकर कोई भी नेता ऐसा नहीं लगता जो देश को संभाल सके । संसाधन का दुरुपयोग राष्ट्र को खोखला कर रहे हैं। भारतीय सेना किसी भी अनुकूल मौके को देखकर चौका जड़ देना चाहिए। पाकिस्तान की सेना भी उसे संभालने के काबिल नहीं लगती ।
    आपकी बेबाक संपादकीय पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।

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