भारत के लिये स्थिति पर ध्यान रखने के अलावा कोई विकल्प फिलहाल तो नहीं है। याद रहे कि 1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान ईरान ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया था। मगर आज हालात कुछ अलग किस्म के हैं। ईरान पाकिस्तान पर हमला करता है और पाकिस्तान मुंहतोड़ जवाब देता है और ईरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का अपने देश में स्वागत करता है।

इन दिनों एक अजीब सा वाकया देखने को मिला है। दो ऐसे देश आपस में भिड़ गये जो एक ही विशेष गुण के कारण पूरे विश्व में जाने जाते हैं – आतंकवाद! पूरा पश्चिमी जगत ईरान पर आतंकवाद का आरोप लगाता है। वहीं दुनिया में शायद ही कोई ऐसी आतंकवादी गतिविधि होगी जिसके तार जाकर पाकिस्तान से न जुड़ते हों। अचानक ईरान ने पाकिस्तान के कुछ इलाकों में हमला बोल दिया कि उन क्षेत्रों से पाकिस्तान ईरान पर आतंकवादी हमले करता है। उसके एक दिन बाद ही पाकिस्तान ने भी दावा किया कि उसके सैनिकों ने पलट कर उन ईरानी क्षेत्रों पर हमला बोला जहां ईरानी आतंकवादियों के अड्डे बताए जाते हैं।
इस घटना से एक बात तो तय हो गई कि शिया ईरान के लिये पाकिस्तान अपने यहां आतंकवादियों को पाल रहा है और सुन्नी पाकिस्तान का दावा है कि ईरान बलोचिस्तान में हिंसा करवा रहा है। ईरान द्वारा पाकिस्तान पर किये गये हमले के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने इसे दो देशों के बीच का मामला बताते हुए किसी भी प्रकार का दख़ल देने से इन्कार कर दिया।
हुआ कुछ यूं कि मंगलवार सोलह जनवरी को ईरान ने पाकिस्तान में जैश अल-अदल गुट के मुख्यालय पर मिसाइल और ड्रोन से हमला किया था। ईरान ने अपने इस कदम को अपने देश की सुरक्षा के ख़िलाफ़ आक्रामकता के जवाब में उठाया गया एक निर्णायक कदम बताया था।
इस हमले से पाकिस्तान को गहरा सदमा इस लिए भी लगा है यह हमला उस समय हुआ जब स्विट्जरलैंड के शहर दावोस में विश्व आर्थिक मंच के दौरान ईरानी विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन और पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवर उल हक काकड़ के बीच एक बैठक चल रही थी।
तेहरान ने कथित तौर पर इराक और सीरिया में “ईरानी विरोधी आतंकवादी समूहों” के ख़िलाफ हमले शुरू किए थे। इसके बाद उसने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में “उग्रवादी” ठिकानों को निशाना बनाया। ईरान के विदेश मंत्री ने दावोस में ही बताया, “तथाकथित जैश अल-अदल समूह पाकिस्तान की धरती से काम कर रहा ईरानी आतंकवादी समूह है, जिसको निशाना बनाया गया।” ईरान लंबे समय से कहता रहा है कि सीमावर्ती इलाकों में पड़ोसी देश आतंकवादियों को पनाह दे रहे हैं।
ईरान का आरोप है कि जैश अल-अदल आतंकवादी समूह को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के कुछ हिस्सों में शरण दे रखी है और उनका इस्तेमाल ईरान के खिलाफ़ कर रहा है।
हमले के एक दिन बाद यानी बुधवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने ईरान-पाकिस्तान तनाव पर एक बयान जारी करते हुए कहा, ‘ये मामला ईरान और पाकिस्तान के बीच का है. लेकिन जहां तक भारत का सवाल है, आतंकवाद को लेकर हमारे देश की नीति ज़ीरो टॉलरेंस की है. हम इस बात को समझते हैं कि कई देश आत्मरक्षा में कार्रवाई करते हैं।”
वहीं दूसरी तरफ अमरीका ने ईरान के तरफ से किए गए इस हमले को ग़लत बताया है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने बुधवार को अपने एक बयान में कहा कि ईरान ने हाल के दिनों में अपने तीन पड़ोसी मुल्कों की संप्रभुता का उल्लंघन किया है।
ध्यान देने लायक बात यह है कि इन दिनों इज़राइल और हमास के बीच भीषण युद्ध चल रहा है। ऐसे में दो मुस्लिम देशों का आपस में गुत्थम-गुत्था होना सवाल तो उठाता ही है।
साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के इंटरनेशनल सेंटर फॉर पुलिसिंग एंड सिक्योरिटी में विजिटिंग फ़ेलो अनंत मिश्रा ने स्पुतनिक इंडिया की एक रिपोर्ट में इसी सवाल का जवाब देते हुए कहा कि, ‘मुझे लगता है कि ईरान ने ये हमला पाकिस्तान के सुन्नी सलाफिस्ट आतंकवादी समूह के इजरायल की जासूसी एजेंसी मोसाद के साथ घनिष्ठ संबंध के कारण किया है।’
अनंत मिश्रा का मानना है कि जैश अल-अदल पर हमले के पीछे ईरान का मकसद पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ना नहीं था। बल्कि ईरान बस तेहरान मोसाद के ठिकानों और अमेरिकी ठिकानों को खत्म करना चाहता है। इतना ही नहीं ईरान ने इराक और सीरिया में भी इसी तर्ज़ पर हमले किए गए हैं।
पाकिस्तान का राजनीतिक नेता हर दूसरे दिन भारत के मामले में शेख़ी बघारते दिखाई देते हैं और सवाल पूछते हैं – हमने एटम बम क्या फुलझ़ड़ियां चलाने के लिये बनाए हैं! शायद ईरान से भी यह ग़लती हो गई है कि उसने पहली बार एक एटमी शक्ति पर हमला बोला है।
ईरान के हमले के बाद पाकिस्तान ज़ाहिर है कि बौखला गया। पाकिस्तान ने बयान में कहा, ईरान द्वारा हमारे हवाई क्षेत्र में अकारण उल्लंघन किया गया और पाकिस्तानी क्षेत्र के अंदर हमला किया गया है। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। यह पूरी तरह से पाकिस्तानी संप्रभुता का उल्लंघन है। यह घटना पूरी तरह से अस्वीकार्य है… इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ईरान के इस हमले में दो बच्चों की जान चली गई और तीन लड़कियां घायल हो गईं।
ईरान और पाकिस्तान दोनों की ही अफ़ग़ानिस्तान के साथ एक लंबी सीमा है। जब से तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में लौटा है ईरान और पाकिस्तान के समस्याओं में ख़ासी बढ़ोतरी हुई है। वहीं दूसरी ओर ईरान की मुश्किलें अपनी पश्चिमी सीमा पर इराक़ के साथ मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं तो पाकिस्तान अपनी पूर्वी सीमा पर भारत के साथ चुनौतियों का सामना कर रहा है।
पाकिस्तान के लिये एक समस्या और है – ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन परियोजना। 4 सितम्बर 2012 को दोनों देशों ने एक घोषणा की थी जिसके अनुसार गैस पाइपलाइन का काम अक्तूबर 2012 से शुरू हो जाएगा और इसे दिसंबर 2014 तक पूरा कर लिया जाएगा। मगर काम है कि लटकता ही जा रहा है। ईरान ने इस बीच पाकिस्तान को कई बार परियोजना को पूरा करने के लिये नोटिस भी जारी किये हैं। 18 अरब डॉलर के जुर्माने की चेतावनी भी जारी की गई। ईरान ने इस मामले में कानूनी कार्यवाही की धमकी भी दी है।
एक ठोस सच्चाई यह भी है कि पाकिस्तान के मुक़ाबले ईरान एक अमीर देश कहा जा सकता है। उनके पास कच्चे तेल और गैस के विशाल भण्डार हैं। वहीं पाकिस्तान महंगे तेल और गैस की समस्या से जूझ रहा है। वहां का आम आदमी अपने इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक संकट झेल रहे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लेकर कई जगहों से मदद मिली है. इसके बावजूद पाकिस्‍तान की हालत में सुधार नहीं हो पा रहा है. आलम ये हैं कि पाकिस्तान में महंगाई चरम पर पहुंच गई है. महंगाई इतनी ज्‍यादा हो गई है कि लाहौर में 12 अंडों की कीमत 400 रुपये तक पहुंच गई है। चिकन की कीमत 600 रुपये प्रति किलो से अधिक हो चुकी है। वहीं प्‍याज 275 रुपये से रुपये प्रति किलो बिक रहा है। इसके अलावा अन्‍य जरूरत की चीजों की कीमत भी आसमान छू रही हैं।
मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव के कारण कच्चे तेल के मूल्यों में वृद्धि देखी जा रही है।  अमेरिका ने यमन में हौथी ठिकानों पर हमले किए और ईरान की कार्रवाई के जवाब में पाकिस्तान ने अलगाववादी ठिकानों पर सैन्य हमले किए। क्षेत्र में इस भू-राजनीतिक अशांति ने तेल की कीमतों में तेजी लाने में योगदान दिया।
पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के अनुसार देश में मुद्रास्फीति दिसंबर 2023 में 29.7 प्रतिशत हो गई, जबकि दिसंबर 2021 में यह आंकड़ा मगज 12.3 प्रतिशत था। इसके अलावा देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी तेज़ी से कम हो रहा है।
अब अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां चुप बैठी तमाशा नहीं देख सकतीं। चीन, सऊदी अरब, तुर्की और अमरीका जैसे मित्र देशों ने तनाव कम करने के प्रयास शुरू कर दिये हैं। उम्मीद है कि दोनों देश समझदारी दिखाएंगे।
चीन पहले ही ईरान और पाकिस्तान को ऐसी किसी कार्यवाही से बचने की सलाह दे चुका है जिससे कि तनाव बढ़े। वहीं अमरीकी विदेश विभाग ने पाकिस्तान में ईरान के मिसाइल हमलों की निंदा की है। वहीं तुर्की ने शांति बनाए रखने की अपील की है। तुर्की के विदेश मंत्री दोनों पक्षों से बात कर रहे हैं।
भारत के लिये स्थिति पर ध्यान रखने के अलावा कोई विकल्प फिलहाल तो नहीं है। याद रहे कि 1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान ईरान ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया था। मगर आज हालात कुछ अलग किस्म के हैं। ईरान पाकिस्तान पर हमला करता है और पाकिस्तान मुंहतोड़ जवाब देता है और ईरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का अपने देश में स्वागत करता है।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

20 टिप्पणी

  1. प्रथमतः यह कहूँगी सर कि आपकी लेखनी सत्यवादिता पर मुखर है। यह तो होना ही था। बस फंडिंग बंद होते ही इन सबका अंत भी हो जाएगा। हमारे देश का संस्कार जीवित हो रहा है… तो इन सबसे लड़ने हेतु शक्तिशाली भी है। यह प्रमाणित हो चुका है। जिस °राजनीति देश की आत्मा को प्रताड़ित कर रही है… वह भी निश्चिह्न हो जाएगी…

    इस संपादकीय को अधिक पाठक पढ़ें एवं गहराई को समझे… यही काम्य है

  2. आज का संपादकीय,,,भारतीय संस्कृति के कई ग्रंथ और महान व्यक्तियों के कालजयी सत्य और नीति में पगे स्वर्णिम वाक्यों को
    पुनः बता रहा है।दुष्टों का संग आरंभ में सुख कर और अंत में बहुत ही पीड़ा दायक होता है। आदरणीय तेजेंद्र जी ने मानवता को जख्म देने वाले युद्धों और आतंकवादी गुटों के बारे में बेहद सहज परंतु सारगर्भित अंदाज में बताया है। वस्तुतः दुष्ट का संग कभी भी पलटवार या भस्मासुरी बारूद से अपने मित्रों को नष्ट कर सकता है।
    भारत की सहिष्णु प्रवृत्ति आज उसके मित्रों में इज़ाफा ही कर रही है।आज के राममय वातावरण में भारत अब पुनः विकास का
    सोपान प्राप्त करने को अग्रसर है।
    यही इस संपादकीय की उपलब्धि है।

  3. आदरणीय संपादक महोदय,
    राजनीति अर्थनीति विदेश नीति ,प्रसार नीति चाहे जिस नीति और नियत के वशीभूत होकर यह आतंकवाद पोषित होता, फैलता है श्री राम से प्रार्थना रहती है कि वे इस” राम लला प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान ‘”वाले वर्ष से सभी आतंकवादियों को ‘वाल्मीकि’ के ही समान ऐसी प्रेरणा दें कि वे मार मार या ‘मरा -मरा’के बजाए ‘राम-राम ‘सुनने का प्रयास और इच्छा करें .।
    जय श्री राम

  4. Your Editorial of today acquaints us with this present political scene where Pakistan n Iran are at loggerheads with each other n how the West as well as India are following the situation.
    Besides giving important informative details you have also discussed its economic repercussions too.
    Warm regards
    Deepak Sharma

    • Deepak Ji, my endeavour has been to take stock of a situation where two countries notorious for harbouring terrorism are at loggerheads with each other. The impact on world oil prices it could have on.

  5. आपका हर संपादकीय सारगर्भित है।
    इतनी महत्वपूर्ण जानकारी आप देते हैं कि ऐसी अखबारों में भी उपलब्ध नहीं होती।
    बधाई।

  6. सम्पादकीय इस्लामिक देशों के अन्तर्सम्बन्धों पर
    विस्तृत विवेचना है ।
    पढ़ते हुए कभी सोचती हूं कि पहले दुनिया का नक्शा उठा कर देखा जाए कि ये सब देश किधर हैं ,फिर टिप्पणी की जाए ☺️
    अद्भुत बातें हैं ,नमन
    Dr Prabha mishra

    • हार्दिक आभार प्रभा जी। संपादकीय की सफलता यही है कि पाठक को सोचने के लिए मजबूर करता है।

  7. आपके ईमानदार प्रयास के लिए बधाई और साधुवाद। दो “एक से देशसी” लड़ रहे हैं हमें क्या दिक्कत???
    यहां यहूदी, हिन्दू, ईसाई, काले गोरे का मुद्दा और भेदभाव नहीं है। नाटो- वाटो का भी चक्कर नहीं।विश्व के अन्य देश क्यों उलझें? रहिमन चुप ह्वै बैठिए। यही मोदी जी भी कर रहे हैं।काश सभी ऐसे देश यदुवंशियों की तरह निबट लें…

    अपना देश बदल रहा है…। वैश्विक प्रभाव बढ़ रहा है।
    आगे सब शुभ मंगल होगा… जै श्री राम (कल दीवाली है विजयोत्सव है, शुभ- शुभ सोचें, दूसरों की लड़ाई में ना पड़ें)

  8. नमस्कार तेजेंद्र शर्मा सर जी।

    सारगर्भित लेख, इतनी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए साधुवाद।
    आप की कोशिश इसी तरह साहित्य में सफल होती रहे।
    इसी प्रकार पाठकों का स्नेह प्राप्त होता रहे।

  9. जितेन्द्र भाई: सदा की तरह आपका यह सम्पादकीय बहुत रोचक था और इसे पढ़कर बहुत सारी जानकारी मिली। आजकल जो विश्व में हालात चल रहे हैं मैं उन्हीं का reference और आपके इस सम्पादकीय को पूरी तरह से ध्यान में रखते हुए कुछ कहना चाहूंगा।
    विश्वशान्ती और आतंकवाद को समाप्त करने की सारे बड़े बड़े देशों ने खूब शोर मचा रखा है लेकिन इस बारे में वो कया कर रहे हैं आप से छुपा नहीं है। सब से पहले रूस और युक्रेन की लड़ाई। बजाये इसके कि लड़ाई को समाप्त करने के कदम उठाये जायें, सब अपनी अपनी राजनीति की रोटियाँ सेक रहे हैं; और इस में मर कौन रहा है? आम जन्ता और बच्चे। रूस को नीचा दिखाने के लिए युक्रेन को अस्त्र दिये जारहे हैं। टीवी पर जो दोनों तरफ़ नुकसान दिखाय़ा जारहा है क्या वो कभी पूरा हो सकता है। उसके बाद आता है इज़राइल और हमास का युद्ध। ग़लती चाहे किसी की भी हो यहां भी किसी भी बड़े देश ने इन दोनों गुटों में समझौता कराने कि कोशिश नहीं की, उलटे हथियार दे देकर एक दूसरे को ख़तम करने पर उकसाया जारहा है। तीसरे front का ज़िक्र आपके सम्पादकीय में है। यहाँ न ही ईरान और न ही पाकिस्तान दूध के धुले हैं। दोनों parties एक दूसरे को blame देकर ख़तम करना चाहते हैं। वो भूल रहे हैं कि अगर जँग छिड़ गई तो दोने देश ही नहीं, आसपास के देश भी तबाह हो जायेंगे। अभी हाल ही में भारत – मालदीस का एक चौथा front खुल गया है। क्या यह सब हालात विनाश की ओर नहीं ले जारहे है?

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