मौसम विज्ञान विभाग चार-धाम यात्रा क्षेत्रों के लिए हर तीन घंटे में मौसम की जानकारी मुहैया कराता है। हेलीकॉप्टर हादसे वाले दिन के लिए ही मौसम विभाग ने रुद्र-प्रयाग, गुप्तकाशी, फाटा, सोन-प्रयाग, गौरी-कुंड व अगस्त्य मुनि में बादल छाए रहने व बारिश का पूर्वानुमान जारी किया था। यदि हेलीकॉप्टर कंपनियां पूर्वानुमान को गंभीरता से लेती तो संभवतः दुर्घटनाग्रस्त हुए हेलीकाप्टर को उड़ान भरने की इजाज़त ही नहीं दी जाती।
मैं 15 और 16 अक्तूबर को ऋषिकेश में रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के साहित्य पर आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में भाग लेने गया था। वहां केदारनाथ और बद्रीनाथ की बातें भी हो रही थीं। मुझे केदारनाथ धाम की लकड़ी में बनी एक आकृति भेंट भी की गयी।
18 अक्तूबर को ही समाचार मिला कि केदारनाथ में एक यात्री हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसमें सवार पायलट समेत 7 लोगों की मृत्यु हो गयी। डीजीसीए सूत्रों ने बताया कि प्राथमिक जानकारी के अनुसार ये बेल 407 VT-RPN हेलिकॉप्टर था। यह हेलिकॉप्टर दिल्ली की कंपनी आर्यन एविएशन का है। इस दुर्घटना में मरने वाले यात्रियों के नाम थे पूर्वा रामानुज, कृति, उर्वी, सुजाता, प्रेम कुमार, काला और हेलिकॉप्टर चलाने वाल पायलट का नाम था कैप्टन अनिल सिंह।
बताया गया कि मौसम ख़राब होने के कारण पायलट हेलिकॉप्टर वापिस ले जाने की अनुमति मांग रहा था मगर उसे लगभग ज़बरदस्ती लैण्ड करने के लिये कहा गया। यह हैलिकॉप्टर आर्यन कंपनी का था। प्रश्न यह उठता है कि आख़िर सरकार ने बिना आवश्यक व्यवस्थाएं तैयार करे इतनी बड़ी संख्या में उड़ानों की अनुमति कैसे दी।
इस हेलिकॉप्टर दुर्घटना ने बहुत से सवाल खड़े कर दिये हैं। दरअसल केदारनाथ यात्रा के लिये हेलिकॉप्टर ठीक वैसे ही इस्तेमाल किये जाते हैं जैसे कि टैक्सी या फिर ऑटो रिक्शा। एक दिन में 260 उड़ानें केदारनाथ पहुंचती हैं और अभी तक वहां ए.टी.सी. (एअर ट्रैफ़िक कंट्रोल) जैसी सुविधा मौजूद नहीं है।
याद रहे कि केदारनाथ के लिये कई एविएशन कंपनियां हेलिकॉप्टर सेवाएं प्रदान कर रही हैं। गुप्तकाशी से आर्यन, एवं ऐरो एअरक्राफ़्ट कंपनियां केदारनाथ तक हेलिकॉप्टर सेवा प्रदान करती हैं। फाटा से पवन हंस, थंबी एविएशन, चिपसन एवं पिनेकल एअर जैसी कंपनियां केदारनाथ तक हेलिकॉप्टर सेवा उपलब्ध करवाती हैं; जबकि क्रिस्टल एविएशन देहरादून से केदारनाथ तक की यात्रा करवाती है।
लगता है कि डी.जी.सी.ए. (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) ने भी इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। याद रहे कि मई 2022 में एक हेलिकॉप्टर की ‘हेवी लैंडिंग’ के बाद डीजीसीए ने 7 और 8 जून को एक इंक्वायरी (ऑडिट) करवाई। उड़ानों की सुरक्षा को लेकर बहुत सी अनियमितताएं पाईं गयीं।
मगर जिस तरह हेलिकॉप्टर कंपनियां पैसे बना रही थीं, डीजीसीए ने भी पाँच कंपनियों पर सख़्त कार्यवाही न करते हुए पाँच कंपनियों पर पाँच-पाँच लाख रुपये का जुर्माना कर दिया। यानी कि उन्होंने भी पैसे बनाए। और कंपनियों के कुछ अधिकारियों को तीन-तीन महीने के निलंबित कर दिया। मगर हेलिकॉप्टर बेख़ौफ़ उड़ान भरते रहे। यह एक टिपिकल सरकारी रवैया है कि दुर्घटना से पहले मानकों के बारे में सही पड़ताल न करके दुर्घटना के बाद जांच करवाई जाए।
पुरवाई के पाठकों के लिये यह जानना ज़रूरी है कि हेलिकॉप्टर को केदारनाथ जाने में कई बार दो संकरी घाटियों से होकर गुजरना पड़ता है. इस दौरान अगर कोहरा और बादल हो तो ये सफर जानलेवा बन सकता है।
विमान और हेलिकॉप्टरों की रख-रखाव का एक निश्चित तरीका होता है। यह तय होता है कि कितने घंटे की उड़ान के बाद उनकी सर्विसिंग करना आवश्यक है। हर उड़ान के पश्चात विमानों एवं हेलिकॉप्टरों की air-worthiness (उड़ान योग्यता) की जांच होनी चाहिये। यहां तो ऐसी कोई एजेंसी मौजूद ही नहीं जो इन मानकों के लिये प्रमाणपत्र दे सकें। शायद पूरे विश्व में यह एकमात्र क्षेत्र होगा जहां बिना ए.टी.सी. की मौजूदगी के पाँच-पाँच कंपनियां दिन-भर उड़ानें भरती रहती हैं और श्रद्धालुओं के जीवन से खेलती रहती हैं।
18 अक्टूबर को जो Bell-407 हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ वो आर्यन कंपनी का था। इन हेलिकॉप्टरों का निर्माण अमरीका एवं कनाडा में किया जाता है। इनका निर्माण 1995 में पहली बार हुआ था और तब से अब तक विश्व के बहुत से देशों में इस हेलिकॉप्टर का उपयोग नागरिक उड्डयन के लिए किया जा रहा है। आमतौर पर इसे सिविल यूटिलिटी हेलिकॉप्टर कहते हैं।
बेल-407 हेलिकॉप्टर को एक ही पायलट उड़ाता है। इसकी लंबाई 41.8 फ़ुट होती है। इसमें सात लोगों के बैठने की क्षमता होती है। यह हेलिकॉप्टर 11.8 फ़ुट ऊंचा होता है। इस हेलिकॉप्टर में सिंगल इंजिन लगा होता है। इसकी अधिकतम गति 260 किलोमीटर प्रति घंटा तक जा सकती है। वैसे इसे 246 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से ही उड़ाया जाता है।
अब ध्यान देने लायक बात यह है कि यह हेलिकॉप्टर अधिकतम 18,690 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है जबकि केदारनाथ पहाड़ की ऊंचाई 22,411 फीट है और घाटी की ऊंचाई करीब 11,755 फीट है। यानी कि इस प्रकार के हेलिकॉप्टर का केदारनाथ की उड़ान को सुरक्षित कहना सही नहीं होगा।
यह घाटी संकरी है और मौसम यहां पल-पल में रंग बदलकर परीक्षा लेता है। ऐसी विषम परिस्थितियों में यहां हेलीकॉप्टर उड़ानों की संख्या रोजाना 260 से अधिक तक भी पहुंच जाती है। अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अधिकतम उड़ान वाले दिन आसमान में केवल हेलीकॉप्टर ही मंडराते दिखाई देते होंगे।
इन जटिल परिस्थितियों के बीच ताबड़तोड़ उड़ानों में यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि यहां एटीसी की स्थाई व्यवस्था की जाए। उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग ने सुरक्षा के लिये जो मानक तय भी किये हैं, उनके पालन का ज़िम्मा हेलिकॉप्टर कंपनियों पर ही छोड़ दिया है। ज़ाहिर सी बात है कि जब चुनाव मुनाफ़े और सुरक्षा मानकों के बीच हो तो कंपनियों का झुकाव तो फ़ायदे की तरफ़ ही होगा।
उत्तराखंड के नागरिक उड्डयन विभाग ने हेली सेवाओं का संचालन ‘रोस्टर’ के अनुरूप तय करने की व्यवस्था बनाई थी। इसके तहत तय किया गया था कि घाटी में एक समय में केवल छह हेलीकॉप्टर ही हवा में रह सकेंगे। श्रद्धालुओं और उड़ानों की संख्या को ध्यान में रखते हुए एक ही सवाल सामने आता है, “क्या इस नियम का पालन हो पाता होगा?”
केदारनाथ में एटीसी उपलब्ध न होने के कारण हवा के रुख़, मौसम की स्थिति आदि के हिसाब से उड़ानों की संख्या घटाने या बढ़ाने का निर्णय हेलिकॉप्टर कंपनियों पर ही निर्भर करता है। कंपनियों के कर्मचारी वायरलेस के ज़रिये एक दूसरे से संपर्क साधते हैं। यह तरीका कितना सुरक्षित हो सकता है इस पर सवालिया निशान तो लगता ही है।
याद रहे कि केदारनाथ क्षेत्र में वर्ष 2003 में हेलिकॉप्टर सेवा की शुरूआत की गयी थी। डीजीसीए ने पिछले 19 वर्षों से अब तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। अब कहीं जाकर डीजीसीए यहां अपना स्थानीय कार्यालय खोलने के बारे में सोचने लगी है।
मौसम विज्ञान विभाग चार-धाम यात्रा क्षेत्रों के लिए हर तीन घंटे में मौसम की जानकारी मुहैया कराता है। हेलीकॉप्टर हादसे वाले दिन के लिए ही मौसम विभाग ने रुद्र-प्रयाग, गुप्तकाशी, फाटा, सोन-प्रयाग, गौरी-कुंड व अगस्त्य मुनि में बादल छाए रहने व बारिश का पूर्वानुमान जारी किया था। यदि हेलीकॉप्टर कंपनियां पूर्वानुमान को गंभीरता से लेती तो संभवतःदुर्घटनाग्रस्त हुए हेलीकाप्टर को उड़ान भरने की इजाज़त ही नहीं दी जाती।
हेलिकॉप्टर की सुरक्षित उड़ान के पीछे तीन चीज़ों को आवश्यक माना जाता है। सब से पहले वज़न… इस हेलिकॉप्टर में 400 किलो वज़न की अनुमति रहती है। दुर्घटना वाले दिन हेलिकॉप्टर का वज़न 404 किले था जिसे ठीक माना जा सकता है। उसमें सात लोग बैठे थे… दूसरा ऊंचाई, उसके बारे में पता नहीं चल पाया है। लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि हेलिकॉप्टर 13 से 18 हजार फीट के बीच ही उड़ान भर रहा होगा। तीसरा – हवा की गति। केदारनाथ घाटी में हवा 14 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चल रही थी, जिस समय यह हादसा हुआ। लेकिन एक तरफ बह रही हवा से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है।
तीर्थ-स्थलों की यात्रा के साथ जुड़ी होती है आस्था और श्रद्धा। ऐसे में केदारनाथ से वापिस आ रहे 6 श्रद्धालुओं एवं एक पायलट की मृत्यु कई सवाल खड़े करती है। घने कोहरे के बीच हेलिकॉप्टर ने उड़ान भरी थी। खराब मौसम की वजह से यह हादसा हुआ। हेलिकॉप्टर में आग लग गई। पूरे हादसे की जांच की जा रही है।
सवाल यह उठता है कि इस क्षेत्र में लगातार गड़बड़ियां हो रही हैं। हेलिकॉप्टर दुर्घटनाएं हो रही है। श्रद्धालु और दूसरे लोग जान खो रहे हैं। हर हादसे के बाद कहा जाता है कि एक्शन लिया गया। मगर एक बात बिल्कुल मझ नहीं आ रही कि ये घटनाएं रुकने में क्यों नहीं आ रहीं। समय आ गया है कि केन्द्र सरकार (ज्योतिरादित्य सिंधिया) एवं राज्य सरकार को ज़िम्मेदारी लेते हुए कुछ कठोर निर्णय लेने होंगे। हम श्रद्धालुओं को मरने के लिये हेलिकॉप्टर कंपनियों के लालची मालिकों के रहम-ओ-कर्म पर नहीं छोड़ सकते।
इन दुर्घटनाओं के मूल में तो यही है कि यदि “चुनाव मुनाफ़े और सुरक्षा मानकों के बीच हो तो कंपनियों का झुकाव तो फ़ायदे की तरफ़ ही होगा ” … ज़ाहिर सी बात है पैसे की ताक़त के आगे तो किसी भी प्रकार की धुंध दिखाई नहीं देती है, न हैलिकॉप्टर कम्पनियों को और न ही संबंधित अधिकारियों को । यात्रियों की जान की तो कोई कीमत ही नहीं है । दुर्घटना के बाद ज़रा सा शोर शराबा मचता है , एक दो दिन में सब भूल जाते हैं और यह व्यापार बेरोकटोक जारी रहता है । दुखद है यह सबकुछ।
सरकार को इन गतिविधियों को लेकर कठोर होना ही होगा । यात्रीगण भी ज़रा जागरूक बनें तो बेहतर क्योंकि अंततः भुगतने वाला पक्ष उन्हीं का है ।
ज़रूरी जानकारियों से भरपूर सामयिक संपादकीय के लिए साधुवाद!
बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख है सर समस्या भी बहुत गंभीर है इस ओर सरकार को ध्यान अवश्य देना चाहिए…
बाकी आपके लेख में बहुत सी ऐसी जानकारियाँँ भी होती हैं जिससे सामान्य पाठक अनभिज्ञ रहता है… बहुत बहुत बधाई आपको और धन्यवाद!
सर, आपने अपने संपादकीय द्वारा हमारे राज्य की व्यवस्था की पोल खोल के रख दी। यह जरूरी और विचारणीय भी है। केवल देवभूमि-देवभूमि कहने से काम नहीं चलता।
बहरहाल।
इस देवभूमि में देश-विदेश के श्रद्धालु आस्था लेकर आते हैं और मौत लेकर जाते हैं। आपने जितने भी बिंदु गिनाए हैं, सब इस राज्य की लापरवाही को दर्शाते हैं। जबकि सुंदर व्यवस्था बनाई जा सकती है। धन की नहीं, बस मन और लगन की कमी है।
उत्तराखंड का दुर्भाग्य रहा कि
औसतन डेढ़ दो वर्ष में मुख्यमंत्री बदल जाते हैं,
जिन्हें सिर्फ और सिर्फ अपनी पड़ी होती है।
एविएशन के संबंध में बहुत सी जानकारी मिली, हार्दिक धन्यवाद। भारत की जनसंख्या इतनी है कि जनसामान्य के मरने से देश और व्यवस्था को शायद कोई फर्क़ नहीं पड़ता। यदि कोई गणमान्य हादसे का शिकार हो तो व्यवस्था चाक-चौबंद होने की संभावना हो सकती थी।
विषय चिंताजनक और विचारणीय है। एक तीर्थ स्थल पर जो विमान कम्पनियाँ, निम्नस्तरीय सेवायें देकर मुनाफ़ा तो अवश्य कमा लेंगी, परन्तु परलोक (यदि होता है) बिगाड़ लेंगी।
ईश्वर सभी को सद्बुद्धि दे। आपकी आवाज़ प्रशासन तक पहुँचे। सभी ट्विटर प्रयोग करने वाले पी एम ओ, डी जी सी ए, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री मन्त्री आदि को टैग कर इसे शेयर करें, सुना जाता है कि ट्विटर की पोस्ट का संज्ञान लिया जाता है।
केदारनाथ हादसा के विषय में आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी ने अत्यंत विचारोत्तेजक संपादकीय लिखा है। यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि वर्ष 2003 से केदारनाथ धाम में हेलीकॉप्टर सेवा जारी है और एटीसी को अब अपना कार्यालय खोलने की सुध आई है। इसके अलावा एक दिन में इतनी अधिक उड़ानें बिना किसी एयर ट्रैफिक कंट्रोल के होना और किसी को इसका भान भी न हो कि संकरी घाटियों और पहाड़ियों में यह कितना खतरनाक हो सकता है, गंभीर सवाल खड़े करता है और प्रशासन की चूक को उजागर करता है। अब किसी हेलीकॉप्टर पर चढ़ने से पहले यात्री को ही यह देखना पड़ेगा कि उसका रखरखाव ठीक है कि नहीं और एटीसी सेवा सरकार दे रही है या नहीं तो फिर सरकार क्या करेगी। आपके सवालों पर सरकार को गौर करना चाहिए और जहां भी हेलीकॉप्टर सेवा जारी है, वहां सुरक्षा के पुख़्ता इंतजाम, यातायात नियंत्रण और जांचें आदि की व्यवस्था करनी होगी वरना हम मैंगो मैन मरते रहेंगे, सरकारें सोती रहेंगी और व्यापारी पैसे बनाते रहेंगे। एक आंख खोलने वाला संपादकीय लिखने के लिए आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी साधुवाद के पात्र हैं।
Very informative Editorial about the risks of traveling by unsafe helicopters where a few of them are not even registered with/approved by the Civil Aviation Department.
You have also mentioned the tragic death of the passengers n the pilot of one such helicopter.
A warning to us before booking a helicopter
Regards
Deepak Sharma
बहुत ही स्पष्ट तरीके से आपने इस दुर्घटना के बारे में लिखा। बहुत सी जानकारियां भी उपलब्ध हुईं। जानते समझते भी ऐसी मानवजनित दुर्घटनाएं होना बहुत चिंता का विषय है। आम मनुष्य की मृत्यु सिर्फ आंकड़े भर रह गए। इसी कारण कुछ समय बाद फिर हादसों की पुनरावृत्ति होती है।
आपने केदारनाथ के पहाड़ों की ऊंचाई तथा हेलीकाप्टर की क्षमता पर बेहतरीन जानकारी दी है। न जाने क्यों इन सब पर हमारे एवीऐशन डिपार्टमेंट का ध्यान क्यों नहीं जाता या वे जानकर भी अनजान बने रहते हैं। दुर्घटनायें हमारे देश में आम हैं या कहें सिर्फ अख़बारों की सुर्खियों तक सीमित रहती हैं। शायद इनके लिए इंसानी जान की कोई परवाह नहीं है। श्याक्स आपका यह संपादकीय सोये हुए लोगों को जगा दे।
2009 जून में की थी चारधाम की यात्रा और फाटा से हैलिकाप्टर में बैठे थे । यह सिर्फ दो पैसेन्जर को लेता था और वह भी यात्रियों का बराबर का वजन चेक करके। बाकी सभी सुविधाओं और सुरझा का भी ध्यान रखा जाता था। पर खराब मौसम में इक्की-दुक्की दुर्घटनायें होती रहती थीं पर अधिक नहीं। अब १३ साल बाद तो निश्चित ही अधिक सुरझित होनी चाहिए यह उडान! शायद ज्यादा यात्रियों वाले बडे हैलिकौप्टर के लिए रास्ता सुगम नहीं!
जिस तन लागे सौ तन जाने। सरकारों पर कभी भी इसका कोई प्रभाव नहीं होता वह दो लाइन में ही बात को खत्म कर देते हैं। संज्ञान लिया जा रहा है जिसकी गलती होगी कार्रवाई की जाएगी। ना जाने हमारे देश में से कितने ऐसे मुद्दे हैं जिनका संज्ञान लिया जा रहा है और मात्र दिखावे के लिए कुछ बेगुनाह लोगों पर कार्रवाई की जाती हैऔर बात समाप्त।
मौसम विभाग, केदारनाथ में हेलीकॉप्टर दुर्धटना ,निजी कंपनियों और सरकार के उत्तरदायित्व की वैज्ञानिक व्याख्या की है ।
विकसित देश इसीलिए विकसित हैं कि वहाँ नई सुविधा आरम्भ होने के पूर्व आपदा प्रबंधन किया जाता है, दुर्धटना तो होती है किंतु उसके कारण अलग तरह के होते हैं, और विकासशील देशों में दुर्धटना के बाद आपदा प्रबंधन की ओर ध्यान जाता है । जो भी है यात्रियों के जीवन से खिलवाड़ दुखद है ।
Dr Prabha mishra
वर्तमान समय बाजारवाद का है. जिसका एकमात्र सिद्धांत होता है न्यूनतम निवेश, अधिकतम लाभ. इसकी परिधि में मानव जीवन, जीवन मूल्यों, मानवीय संवेदनाओं का कोई स्थान नहीं होता. जैसे भी हो मुनाफा कमाना है बस यही एक मात्र उद्देश्य होता है. ऐसी स्थिति में ऐसी दुर्घटनाएं, मानव जीवन की हानि एक घटना के सिवा और कोई महत्व नहीं रखतीं. ऐसी समस्त समस्याओं का समाधान बाजारवाद के मकड़जाल से निकले बिना संभव नहीं है. जिसकी संभावना शुन्य ही दिखती है, क्योंकि आखरी पायदान के व्यक्ति से लेकर उद्योगपति, देश सभी बाजारवाद के चंगुल में फंसे हुए हैं. हम बस आशा ही कर सकते हैं कि भविष्य में ऐसी दुखद दुर्घटनाएं नहीं होंगी. आप अपनी कहानियों की तरह संपादकीय में भी ज्वलंत विषयों पर अपने बेबाक विचार रखते रहते हैं इसके लिए आपको धन्यवाद.
प्रदीप श्रीवास्तव
आपने बहुत ही सारगर्भित जानकारी बड़ी ही बेबाकी से दी, जो नि:संदेह प्रशंसनीय है | संयोग से जिस दिन ये हादसा हुआ उस दिन मैं भी फाटा में ही थी और हमें टिकट नहीं मिल पाई | तकनीकी से संबंधित बहुत सारी जानकारी श्रद्धालुओं को नहीं होती है और सभी को बाबा के दर्शन की लालसा होती है, लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह की तकनीकी जानकारी होनी चाहिए तथा जांच एजेंसियों को भी थोड़ी सी संवेदनशीलता रखनी चाहिए क्योंकि आम नागरिक का जीवन भी बहुत अनमोल है |
डॉ ममता श्रीवास्तवा सरुनाथ
(लेखक, समीक्षक)
जानकारी भरा आलेख। इस प्रकार के आलेख हेतु कितना अध्यन करना पड़ता है यह परिलक्षित है। आपकी साहित्य साधना वन्दनीय है।
धन्यवाद सुरेश भाई। प्रयास हर सप्ताह रहता है।
इन दुर्घटनाओं के मूल में तो यही है कि यदि “चुनाव मुनाफ़े और सुरक्षा मानकों के बीच हो तो कंपनियों का झुकाव तो फ़ायदे की तरफ़ ही होगा ” … ज़ाहिर सी बात है पैसे की ताक़त के आगे तो किसी भी प्रकार की धुंध दिखाई नहीं देती है, न हैलिकॉप्टर कम्पनियों को और न ही संबंधित अधिकारियों को । यात्रियों की जान की तो कोई कीमत ही नहीं है । दुर्घटना के बाद ज़रा सा शोर शराबा मचता है , एक दो दिन में सब भूल जाते हैं और यह व्यापार बेरोकटोक जारी रहता है । दुखद है यह सबकुछ।
सरकार को इन गतिविधियों को लेकर कठोर होना ही होगा । यात्रीगण भी ज़रा जागरूक बनें तो बेहतर क्योंकि अंततः भुगतने वाला पक्ष उन्हीं का है ।
ज़रूरी जानकारियों से भरपूर सामयिक संपादकीय के लिए साधुवाद!
धन्यवाद रचना है। आपने मुद्दे की जड़ को पकड़ा है।
बहुत अच्छी जानकारी। भ्रष्ट तंत्र की वजह से पिसते मासूम। आपके माध्यम से अच्छी जानकारियां मिलती हैं।
धन्यवाद प्रगति जी।
बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख है सर समस्या भी बहुत गंभीर है इस ओर सरकार को ध्यान अवश्य देना चाहिए…
बाकी आपके लेख में बहुत सी ऐसी जानकारियाँँ भी होती हैं जिससे सामान्य पाठक अनभिज्ञ रहता है… बहुत बहुत बधाई आपको और धन्यवाद!
धन्यवाद पूर्वा। सहयोग बनाए रखियेगा।
अत्यंत दुखद स्थिति है , तेजेंद्र जी !
सच कहा हरिहर भाई।
सर, आपने अपने संपादकीय द्वारा हमारे राज्य की व्यवस्था की पोल खोल के रख दी। यह जरूरी और विचारणीय भी है। केवल देवभूमि-देवभूमि कहने से काम नहीं चलता।
बहरहाल।
इस देवभूमि में देश-विदेश के श्रद्धालु आस्था लेकर आते हैं और मौत लेकर जाते हैं। आपने जितने भी बिंदु गिनाए हैं, सब इस राज्य की लापरवाही को दर्शाते हैं। जबकि सुंदर व्यवस्था बनाई जा सकती है। धन की नहीं, बस मन और लगन की कमी है।
उत्तराखंड का दुर्भाग्य रहा कि
औसतन डेढ़ दो वर्ष में मुख्यमंत्री बदल जाते हैं,
जिन्हें सिर्फ और सिर्फ अपनी पड़ी होती है।
और
जनता, जनता तो जी ही रही है जैसे जीना है।
सोमन भाई आपने संपादकीय के मर्म को समझा है। हार्दिक आभार।
एविएशन के संबंध में बहुत सी जानकारी मिली, हार्दिक धन्यवाद। भारत की जनसंख्या इतनी है कि जनसामान्य के मरने से देश और व्यवस्था को शायद कोई फर्क़ नहीं पड़ता। यदि कोई गणमान्य हादसे का शिकार हो तो व्यवस्था चाक-चौबंद होने की संभावना हो सकती थी।
विषय चिंताजनक और विचारणीय है। एक तीर्थ स्थल पर जो विमान कम्पनियाँ, निम्नस्तरीय सेवायें देकर मुनाफ़ा तो अवश्य कमा लेंगी, परन्तु परलोक (यदि होता है) बिगाड़ लेंगी।
ईश्वर सभी को सद्बुद्धि दे। आपकी आवाज़ प्रशासन तक पहुँचे। सभी ट्विटर प्रयोग करने वाले पी एम ओ, डी जी सी ए, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री मन्त्री आदि को टैग कर इसे शेयर करें, सुना जाता है कि ट्विटर की पोस्ट का संज्ञान लिया जाता है।
शैली जी, आपकी इस बेहतरीन टिप्पणी के लिए धन्यवाद बहुत छोटा शब्द है।
यदि चुनाव मुनाफे और सुरक्षा के बीच है तो चुनाव मुनाफे का ही होगा।
लालची व्यापारिक प्रवृत्ति की ओर इंगित करके सरकारी तंत्र की पोल खोलता हुआ आलेख है।
धन्यवाद कीर्ति जी। हार्दिक आभार।
केदारनाथ हादसा के विषय में आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी ने अत्यंत विचारोत्तेजक संपादकीय लिखा है। यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि वर्ष 2003 से केदारनाथ धाम में हेलीकॉप्टर सेवा जारी है और एटीसी को अब अपना कार्यालय खोलने की सुध आई है। इसके अलावा एक दिन में इतनी अधिक उड़ानें बिना किसी एयर ट्रैफिक कंट्रोल के होना और किसी को इसका भान भी न हो कि संकरी घाटियों और पहाड़ियों में यह कितना खतरनाक हो सकता है, गंभीर सवाल खड़े करता है और प्रशासन की चूक को उजागर करता है। अब किसी हेलीकॉप्टर पर चढ़ने से पहले यात्री को ही यह देखना पड़ेगा कि उसका रखरखाव ठीक है कि नहीं और एटीसी सेवा सरकार दे रही है या नहीं तो फिर सरकार क्या करेगी। आपके सवालों पर सरकार को गौर करना चाहिए और जहां भी हेलीकॉप्टर सेवा जारी है, वहां सुरक्षा के पुख़्ता इंतजाम, यातायात नियंत्रण और जांचें आदि की व्यवस्था करनी होगी वरना हम मैंगो मैन मरते रहेंगे, सरकारें सोती रहेंगी और व्यापारी पैसे बनाते रहेंगे। एक आंख खोलने वाला संपादकीय लिखने के लिए आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी साधुवाद के पात्र हैं।
भाई पुनीत जी इतनी विस्तृत एवं अर्थपूर्ण टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।
Very informative Editorial about the risks of traveling by unsafe helicopters where a few of them are not even registered with/approved by the Civil Aviation Department.
You have also mentioned the tragic death of the passengers n the pilot of one such helicopter.
A warning to us before booking a helicopter
Regards
Deepak Sharma
Deepak ji it’s a dangerous nexus and fatal game!
बहुत ही स्पष्ट तरीके से आपने इस दुर्घटना के बारे में लिखा। बहुत सी जानकारियां भी उपलब्ध हुईं। जानते समझते भी ऐसी मानवजनित दुर्घटनाएं होना बहुत चिंता का विषय है। आम मनुष्य की मृत्यु सिर्फ आंकड़े भर रह गए। इसी कारण कुछ समय बाद फिर हादसों की पुनरावृत्ति होती है।
सुधा तुमने स्थिति को सही पकड़ा है। ख़तरनाक खेल…
आपने केदारनाथ के पहाड़ों की ऊंचाई तथा हेलीकाप्टर की क्षमता पर बेहतरीन जानकारी दी है। न जाने क्यों इन सब पर हमारे एवीऐशन डिपार्टमेंट का ध्यान क्यों नहीं जाता या वे जानकर भी अनजान बने रहते हैं। दुर्घटनायें हमारे देश में आम हैं या कहें सिर्फ अख़बारों की सुर्खियों तक सीमित रहती हैं। शायद इनके लिए इंसानी जान की कोई परवाह नहीं है। श्याक्स आपका यह संपादकीय सोये हुए लोगों को जगा दे।
सोते हुओं को जगाना ही उद्देश्य है सुधा जी।
2009 जून में की थी चारधाम की यात्रा और फाटा से हैलिकाप्टर में बैठे थे । यह सिर्फ दो पैसेन्जर को लेता था और वह भी यात्रियों का बराबर का वजन चेक करके। बाकी सभी सुविधाओं और सुरझा का भी ध्यान रखा जाता था। पर खराब मौसम में इक्की-दुक्की दुर्घटनायें होती रहती थीं पर अधिक नहीं। अब १३ साल बाद तो निश्चित ही अधिक सुरझित होनी चाहिए यह उडान! शायद ज्यादा यात्रियों वाले बडे हैलिकौप्टर के लिए रास्ता सुगम नहीं!
जी दीदी इन्सान का लालच उससे कुछ भी करवा देता है।
जिस तन लागे सौ तन जाने। सरकारों पर कभी भी इसका कोई प्रभाव नहीं होता वह दो लाइन में ही बात को खत्म कर देते हैं। संज्ञान लिया जा रहा है जिसकी गलती होगी कार्रवाई की जाएगी। ना जाने हमारे देश में से कितने ऐसे मुद्दे हैं जिनका संज्ञान लिया जा रहा है और मात्र दिखावे के लिए कुछ बेगुनाह लोगों पर कार्रवाई की जाती हैऔर बात समाप्त।
अंजु जी इस सार्थक टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
मौसम विभाग, केदारनाथ में हेलीकॉप्टर दुर्धटना ,निजी कंपनियों और सरकार के उत्तरदायित्व की वैज्ञानिक व्याख्या की है ।
विकसित देश इसीलिए विकसित हैं कि वहाँ नई सुविधा आरम्भ होने के पूर्व आपदा प्रबंधन किया जाता है, दुर्धटना तो होती है किंतु उसके कारण अलग तरह के होते हैं, और विकासशील देशों में दुर्धटना के बाद आपदा प्रबंधन की ओर ध्यान जाता है । जो भी है यात्रियों के जीवन से खिलवाड़ दुखद है ।
Dr Prabha mishra
प्रभा जी हमेशा की तरह अपने मुद्दे की जड़ को पकड़ा है।
वर्तमान समय बाजारवाद का है. जिसका एकमात्र सिद्धांत होता है न्यूनतम निवेश, अधिकतम लाभ. इसकी परिधि में मानव जीवन, जीवन मूल्यों, मानवीय संवेदनाओं का कोई स्थान नहीं होता. जैसे भी हो मुनाफा कमाना है बस यही एक मात्र उद्देश्य होता है. ऐसी स्थिति में ऐसी दुर्घटनाएं, मानव जीवन की हानि एक घटना के सिवा और कोई महत्व नहीं रखतीं. ऐसी समस्त समस्याओं का समाधान बाजारवाद के मकड़जाल से निकले बिना संभव नहीं है. जिसकी संभावना शुन्य ही दिखती है, क्योंकि आखरी पायदान के व्यक्ति से लेकर उद्योगपति, देश सभी बाजारवाद के चंगुल में फंसे हुए हैं. हम बस आशा ही कर सकते हैं कि भविष्य में ऐसी दुखद दुर्घटनाएं नहीं होंगी. आप अपनी कहानियों की तरह संपादकीय में भी ज्वलंत विषयों पर अपने बेबाक विचार रखते रहते हैं इसके लिए आपको धन्यवाद.
प्रदीप श्रीवास्तव
भाई प्रदीप जी इस सार्थक टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।
बहुत सारगर्भित, जानकारी से युक्त संपादकीय। बधाई तेजेंद्र जी।
काश सरकार उचित ध्यान देती।
धन्यवाद प्रमिला। अच्छा लगा कि तुमने संपादकीय पढ़ा उससे सहमति जताई।
आपने बहुत ही सारगर्भित जानकारी बड़ी ही बेबाकी से दी, जो नि:संदेह प्रशंसनीय है | संयोग से जिस दिन ये हादसा हुआ उस दिन मैं भी फाटा में ही थी और हमें टिकट नहीं मिल पाई | तकनीकी से संबंधित बहुत सारी जानकारी श्रद्धालुओं को नहीं होती है और सभी को बाबा के दर्शन की लालसा होती है, लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह की तकनीकी जानकारी होनी चाहिए तथा जांच एजेंसियों को भी थोड़ी सी संवेदनशीलता रखनी चाहिए क्योंकि आम नागरिक का जीवन भी बहुत अनमोल है |
डॉ ममता श्रीवास्तवा सरुनाथ
(लेखक, समीक्षक)