किंग चार्ल्स III (साभार : The Economic Times)

ब्रिटेन अभी कोरोनाग्रस्त आर्थिक व्यवस्था से जूझ ही रहा था कि रूस और यूक्रेन के युद्ध ने मंदी का दौर पैदा कर दिया। बिजली, गैस, खाद्य सामग्री… सभी के दाम आसमान को छू रहे हैं। लोग बेघर हो रहे हैं और सड़कों पर भिखारी दिखाई देने लगे हैं। कुछ-कुछ वैसा ही लग रहा है जैसे भारत में कोरोना काल में दिल्ली के मुख्यमंत्री ऑक्सीजन सिलेण्डर और दवाइयों के बारे में चिन्ता न करते हुए अपना शीशमहल बनवाने में मस्त थे… रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था।

आज जब पूरा विश्व कोविद महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामों से जूझ रहा है; और ब्रिटेन में मंदी की मार चल रही है ऐसे में महाराजा चार्ल्स का राज्याभिषेक विवादों के घेरे में आ जाना स्वाभाविक ही है। दरअसल इस समारोह पर लगभग बारह से पंद्रह अरब भारतीय रुपये के बराबर ख़र्चा आने का अनुमान है। विश्व भर से नेता इस समारोह में शामिल होने के लिये लंदन पहुंच गये हैं। भारत का प्रतिनिधित्व उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ एवं उनकी पत्नी डॉ. सुदेश धनखड़ कर रहे हैं।
ब्रिटेन अभी कोरोनाग्रस्त आर्थिक व्यवस्था से जूझ ही रहा था कि रूस और यूक्रेन के युद्ध ने मंदी का दौर पैदा कर दिया। बिजली, गैस, खाद्य सामग्री… सभी के दाम आसमान को छू रहे हैं। लोग बेघर हो रहे हैं और सड़कों पर भिखारी दिखाई देने लगे हैं। कुछ-कुछ वैसा ही लग रहा है जैसे भारत में कोरोना काल में दिल्ली के मुख्यमंत्री ऑक्सीजन सिलेण्डर और दवाइयों के बारे में चिन्ता न करते हुए अपना शीशमहल बनवाने में मस्त थे… रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था।
साभार : People.com
दरअसल ब्रिटेन में राजशाही के अस्तित्व के औचित्य पर ही सवालिया निशान लग रहे हैं। जहां ऐसे लोग भी हैं जो राजशाही के प्रति ख़ासे भावुक हैं तो ऐसे भी हैं जिन्हें यह फ़िज़ूलख़र्ची से अधिक कुछ नहीं लगता। दरअसल प्रिंस चार्ल्स राजा तो बहुत पहले से बन चुके हैं मगर आज उन्हें आधिकारिक रूप से चर्च ऑफ़ इंग्लैण्ड का मुखिया भी घोषित किया जाएगा।
आमतौर पर राजा की पत्नी को ब्रिटेन में रानी ही कहा जाता रहा है। मगर चार्ल्स का मामला कुछ दूसरा था। डायना का तलाक और मृत्यु… चार्ल्स का कैमिला से विवाह आदि के कारण महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने आदेश दिया था कि जब चार्ल्स राजा बनें तो कैमिला को ‘क्वीन’ नहीं ‘क्वीन कॉन्सॉर्ट’ कहा जाए। मगर इसी महीने जारी किये गये निमंत्रण पत्रों में कैमिला को महारानी कैमिला लिखा गया है।
हाल ही में हुए ‘लोकल गवर्नमेंट’ चुनावों में डार्लिंगटन क्षेत्र के लेबर पार्टी के प्रत्याशी डेविड बैकेट ने ट्वीट करते हुए महाराज चार्ल्स तृतीय पर हमला करते हुए लिखा है, “क्या सच में हमें कहा जा रहा है कि हम महामहिम और उनके उत्तराधिकारियों के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा लें?”… महाराजा चार्ल्स के प्रति अपशब्द इस्तेमाल करते हुए डेविड बैकेट ने लिखा कि मरता मर जाऊंगा मगर ऐसा कभी नहीं करूंगा। ट्वीट पढ़ते ही लेबर पार्टी ने डेविड बैकेट को पार्टी की सदस्यता से बर्ख़ास्त कर दिया।
राजा चार्ल्स ने अपनी दिवंगत पत्नी लेडी डायना के भाई अर्ल स्पेंसर को अपने राज्याभिषेक में आमंत्रित नहीं किया है। अपने आप में यह भी एक विवाद को जन्म देता है। इसी कारण से राजा चार्ल्स के हम-नाम और डायना के भाई अर्ल चार्ल्स स्पेंसर वेस्टमिंस्टर एब्बे अतिथि सूची से बाहर हो गए हैं। याद रहे कि लेडी डायना की मृत्यु के पश्चात 1997 में इसी स्थल पर उनके भाई ने उनके पुत्रों की देखभाल करने का वादा किया था। विडंबना यह है कि यदि डायना जीवित होतीं और राजा चार्ल्स के साथ विवाहित होतीं तो आज वे ही ब्रिटेन की महारानी होतीं। मगर विधि का विधान कुछ अलग ही होता है।
आज के शपथ समारोह के बाद किंग चार्ल्स न सिर्फ ब्रिटेन के महाराजा बनेंगे बल्कि उन्हें 14 अन्य राष्ट्रमंडल देशों का सम्राट भी घोषित किया जाएगा। इसी के साथ उन्हें ब्रिटिश राजपरिवार की शाही शक्ति का प्रतीक ओर्ब, राजदंड और राज्याभिषेक की अंगूठी मिलेगी। उनका राज्याभिषेक यरूशलेम में विशेष रूप से पवित्र किए गए तेल से किया जाएगा। इस अवसर पर 15 देशों के प्रतिनिधियों को ब्रिटिश सम्राट के प्रति वफादारी की शपथ लेने के लिए आमंत्रित किया गया है।
साभार : People.com
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वर्तमान में ब्रिटेन के अलावा किंग चार्ल्स तृतीय को 14 देशों में राष्ट्र प्रमुख के तौर पर मान्यता प्राप्त हैं। इनमें एंटीगुआ और बारबुडा, ऑस्ट्रेलिया, बहामास, बेलीज, कनाडा, ग्रेनाडा, जमैका, न्यूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी, सेंट किट्स और नेविस, सेंट लूसिया, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, सोलोमन द्वीप और तुवालु शामिल हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के 70 साल के शासन में 17 देशों ने ब्रिटिश राजशाही को छोड़ दिया। इसमें सबसे नया देश बारबाडोस है, जिसने 2021 में ब्रिटिश राजशाही से अपना नाता तोड़ा है।
जमैका की राजधानी किंग्स्टन में एंग्लिकन पुजारी रेव सीन मेजर-कैंपबेल ने कहा, “ब्रिटिश राजघराने में रुचि कम हो गई है क्योंकि अधिक जमैका वासी इस वास्तविकता के प्रति जाग रहे हैं कि उपनिवेशवाद और गुलामी के सर्वनाश से बचे लोगों को अभी तक न्याय नहीं मिला है।”
हम सब जानते हैं कि भारत कभी ब्रिटिश साम्राज्य का गहना कहलाया करता था। ऐसा नहीं लगता कि भारत में राज्याभिषेक को लेकर लोगों के दिल में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी है। ग्रामीण इलाकों में तो लोग जानते ही नहीं कि किंग चार्ल्स कौन है।
अंग्रेज़ी के लेखक और पूर्व राजनायिक पवन वर्मा का कहना है कि, “भारत आगे बढ़ गया है। अधिकांश भारतीयों का शाही परिवार से कोई भावनात्मक संबंध नहीं है।” उनका मानना है कि राजघराने के लोगों को केवल मशहूर हस्तियों की तरह ही देखा जाता है। यह सच है कि भारत अभी भी ब्रिटेन के साथ अपने आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को महत्व देता है, मगर भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन से आगे निकल गई है।
प्रिंस हैरी और उसकी पत्नी मेघन मार्कल को लेकर भी काफ़ी अटकलें लगाई जा रही थीं। फिर भी राजा चार्ल्स ने अपने छोटे पुत्र को राज्याभिषेक के लिये आमंत्रित किया मगर यह ज़ाहिर है कि उन्हें इस समारोह में ‘बैक-बेंचर’ से अधिक कोई भूमिका नहीं मिलेगी। अपने चाचा प्रिंस एंड्रू की तरह हैरी भी पिछली कुर्सियों पर बैठा दिखाई देगा।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति और व्यवसायी डोनाल्ड ट्रम्प ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि प्रिंस हैरी और मेघन मार्कल को बुक स्पेयर में किए गए दावों के बाद भी किंग चार्ल्स के राज्याभिषेक में आमंत्रित किया गया। ट्रंप ने इसे बहुत अपमानजनक बताया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति की तरफ से ये टिप्पणी हैरी द्वारा अपना संस्मरण ‘स्पेयर’ जारी करने के बाद आई है, जिसमें शाही परिवार के बारे में धमाकेदार और रोमांचक खुलासे शामिल हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने हैरी के स्पेयर को “भयानक” बताया और कहा कि वो हैरान हैं कि हैरी को 6 मई, 2023 को होने वाले समारोह में आमंत्रित किया गया है।
इस समारोह में कोई बड़े फ़िल्मी या संगीत सितारों के भाग लेने की भी संभावना नहीं है। एल्टन जॉन, हैरी स्टाइल्स, स्पाइस गर्ल्स, एड शीरन जैसे बड़े नामों ने कार्यक्रम में भाग लेने से मना कर दिया। इस लिये कैटी पैरी, लायनल रिची जैसे कलाकारों को शामिल किया जाएगा।
राजसी निशानियां और हीरे भी विवादों के घेरे में आए हुए हैं। कोहिनूर और अन्य हीरों को लेकर भी विवाद खड़े हो चुके हैं। महारानी कैमिला को 1685 में बना जो राजदण्ड दिया जाएगा वो भी हाथी-दांत का बना है। हाथी-दांत से बनी चीज़ों को लेकर एक अलग ही विवाद खड़ा है। वन्य जीवन संरक्षण से जुड़ी डॉ. पॉला काहुंबू हाथी-दांत से बनी वस्तुओं के प्रति अपनी नाराज़गी पहले ही ज़ाहिर कर चुकी हैं।
मेरी अपनी परेशानी का कारण है कि मेरे कमरे में टीवी पर भव्य राज्याभिषेक दिखाया जा रहा है और मैं अपने संपादकीय में उन सभी पहलुओं के बारे में लिख रहा हूं जो इस समारोह के औचित्य पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। और मेरे दिलो दिमाग़ में गूंज रहा है शैलेन्द्र का लिखा गीत – “होंगे राजे राज कुंवर / हम बिगड़े दिल शहज़ादे / हम सिंहासन पर जा बैठे / जब-जब करें इरादे…”
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

40 टिप्पणी

  1. हर बात को इतनी बारीक़ी से कहना आप ही के बस की बात है, कमाल कहते हैं आप, ऐसे लोग भी समझ पाते हैं जो इसकी अधिक जानकारी नहीं रखते या दिलचस्पी नहीं रखते।
    बाक़ी वक़्ती हालात का मुज़ाहिरा करना इतना सह्ल नहीं जितना आप कह पाते हैं।।ख़ूब

    • उर्मिला आपकी टिप्पणी पुरवाई पत्रिका और संपादक दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। हार्दिक आभार।

  2. ब्रिटेन व दुनिया के असंतुष्ट लोगों की भावनाओं को दर्शाती हुई संपादकीय अच्छी है। यहाँ दिल्ली के शीशमहल का चर्चा अनावश्यक लगा।

  3. Congratulations for covering both the contradictory response to n the celebration of the splendid spectacle of the coronation in a most objective manner.
    Very informative as well as thought-provoking.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  4. ब्रिटेन के आर्थिक हालात और ताजपोशी की भव्यता के बीच आम नागरिक की व्यथा का चित्रण ,प्रजातंत्र में राजतंत्र की दास्तान है ।
    कवि ह्रदय सम्पादक को इस परिस्थिति में
    शैलेंद्र की याद आना स्वाभाविक है ।
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  5. मुझे इस मामले में रत्ती भर भी जानकारी नहीं को कुछ जाना आपके संपादकीय से जान पाया। जिस तरह के। हालातों का जिक्र आपने किया है और साथ ही बताया है कि भारत के ग्रामीण इलाकों के लोग तो प्रिंस के बारे में जानते भी नहीं होंगें। यहां यह कहूंगा कि ग्रामीण क्या शहर के लोग भी नहीं जानते होंगे। प्रिंस का नाम भले सुन लिया होगा कभी उन्होंने पर मामला तो भारत के बड़े शहरों में भी नहीं जानते होंगे लोग। खैर यह पढ़कर काफ़ी कुछ समझ आया लगा जैसे राजस्थान पत्रिका, भास्कर आदि में संपादकीय पढ़ रहा हूं। पत्रिका की प्रतिष्ठा आपके संपादकीय ऐसे ही बढ़ाते रहें।

    • जब युवा पीढ़ी से ऐसी प्यारी टिप्पणी पढ़ने को मिलती है तो लिखना सार्थक हो जाता है।

  6. आज का आपका संपादकीय ब्रिटेन की राजगद्दी और विवाद ने एक आम इंसान को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। आज पूरा विश्व ज़ब अभी तक कोविड तथा रूस उक्रेन युद्ध के कारण मंदी की मार से उबार नहीं पाया है तब इस आयोजन में इतनी धन की बर्बादी क्यों? सच तो यह है चाहे राजघराने हों या लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी सरकार ज़ब इन्हें अपनी अपनी शानोशौकत दिखानी होती है तब इन्हें आम जन की परवाह नहीं होती। अगर होती तो वे अपनी शानोशौकत का नग्न प्रदर्शन नहीं करते!!

    महाराजा चा‌र्ल्स और महारानी कैमिला का चार हजार किलोग्राम सोने से बनी शाही बग्घी पर सवार होकर अपने निवास बैकिंघम पैलेस पर जाना, आज के युग में भी इनकी राजशाही मानसिकता को ही प्रकट करता है। ऐसे समय में इस फजुलखर्ची पर आपका कहना सर्वथा उचित है…रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था।

    ब्रिटेन के राजतन्त्र के बारे में उम्दा संपादकीय के लिए साधुवाद।

  7. आपके संपादकीय के माध्यम से अच्छी जानकारियां मिली तेजेंद्र जी। मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं।

  8. संपादक महोदय,
    इतने रोचक संपादकीय के लिए अजस्र बधाइयां!! मेरे लिए तो यह संपादकीय न जाने कितने रसों से भरपूर है।, लेख के आरंभ में उत्सुकता जागी फिर थोड़ा उपेक्षा और अनादर का भाव आया ब्रिटेन के साम्राज्य के प्रति ,जो आज भी अपनी सत्ता के मद में कुछ अंशों में लिप्त है ।और अंत आते आते तो हास्य रस से हृदय ओतप्रोत हो गया।
    ब्रिटेन की आंतरिक स्थिति का लेखा-जोखा देने वाले इस रोचक एवं ज्ञानवर्धक संपादकीय के लिए अनेकानेक साधुवाद एक बार फिर से स्वीकार करें।

  9. दुनिया भर में छल-क्षद्म, भीषण रक्तपात कर अपना राज स्थापित करने वाले राजपरिवार के प्रति अब भी आस्था रखने वालों को विचार करना चाहिए कि क्या वह सही हैं? जिस राजपरिवार ने सनातन संस्कृति, सनातन देश को नष्ट भ्रष्ट करने के लिए भीषण अत्याचार किए, अपने मोहरे तथाकथित नेताओं को आगे कर देश के टुकड़े किए ऐसे परिवार के इस कार्यक्रम का भारत को बहिष्कार करना चाहिए था, उप राष्ट्रपति को भेजना उन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों, आमजनमानस के बलिदान का अपमान है जिन्होंने इन अत्याचारियों के चंगुल से देश को मुक्त कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया था.
    तेजेन्द्र जी आपने वहीं रहते हुए उन्हें दर्पण दिखाने का जो साहस पूर्ण उसके लिए आपको हार्दिक धन्यवाद.

  10. ब्रिटेन की राजगद्दी जिस तरह आधुनिक मूल्यों से दूर है , उसके रिवाज और रस्म भी जीर्णशीर्ण हैं।
    एलिजाबेथ द्वितीय के पति को प्रिंस ही कहा जाता था, राजा नहीं। फिर चार्ल्स की पत्नी रानी कैसे हुई?
    क्योंकि राजा शब्द में मालकियत है वह रानी में नहीं। रानी के पति को राजा नहीं कहा । वैसे है उत्तराधिकार भी लिंग भेदभाव से भरपूर है।
    उसी प्रकार राजा धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की शपथ नहीं लेता । वह प्रोटेस्टेंट होने और चर्च ऑफ इंग्लैंड के प्रति वफादारी की शपथ लेता है।
    धन्यवाद, तेजेंद्र जी ! ध्यानाकर्षण के लिए।

    • हरिहर भाई राजा की पत्नी रानी हो सकती है, रानी का पति राजा नहीं। जैसे डॉक्टर की पत्नी डॉक्टरनी कहलाती है, मगर डॉक्टरनी का पति डॉक्टर नहीं कहलाता!

      • यानी पत्नी की स्थिति, पति की स्थिति से प्रभावित होती है क्योंकि उसकी अपनी पहचान नहीं है, छाया है पति की। पति चाहे साम्राज्ञी का हो, उसकी अपनी व्यक्तिगत, स्वतंत्र पहचान बनी रहती है…

        • शैली जी इसमें नाराज़ होने की आवश्यकता नहीं। जिस समाज में हम रहते हैं उसमें इंदु सूद विवाह के बाद इंदु शर्मा हो जाती है। जब समाज में ऐसा परिवर्तन होगा कि तेजेन्द्र शर्मा इंदु सूद से विवाह करने के बाद तेजेन्द्र सूद हो जाएगा, तो चलन वैसा हो जाएगा। हमने केवल वही कहा जो समाज में हो रहा है। हम न तो उसके पक्ष में कह रहे हैं और न ही विपक्ष में।

  11. सच है कि भारतवासियों को अब ब्रिटेन के नये महाराज और उनकी ताजपोशी में कोई दिलचस्पी नहीं। यह बस एक किसी भी अन्य आयोजन की तरह ही है । सोचनीय बात यह है कि डांवाडोल आर्थिक स्थिति के बावजूद पानी के जैसे पैसा बहाया जा रहा है। बढ़ती हुई मंदी और गिरती हुई अर्थव्यवस्था की अनदेखी ब्रिटेन को मंहगी पड़ सकती है । ख़ैर, हमारे देश को लूटने वाले आततायियों के प्रति हमें संवेदना स्वाभाविक रूप से नहीं है .. हम भी शैलेन्द्र के इसी गीत को ही गुनगुनाना पसंद करेंगे।
    हमेशा की भांति बेहतरीन संपादकीय सर,
    साधुवाद!

  12. ब्रिटेन में रह कर, MBE हो कर भी, ऐसा संपादकीय लिखाना आपके साहस और लेखक धर्म का परिचायक है, बधाई और साधुवाद ।
    ब्रिटेन, एक देश की तरह, विश्व में अपने स्थान और महत्व को काफ़ी हद खो चुका है, ऐसे में राजशाही का ऐसा अपव्ययी प्रदर्शन, अश्लील है। ये भी स्पष्ट होता है कि यह राजवंश, सत्ता मद में मदान्ध है। जिसको अपनी ‘प्रजा’ की कोई चिंता नहीं, इसका पतन निश्चित है।
    भारत की जनता को ब्रिटेन के राजशाही से कोई लेना-देना नहीं है, ये सत्य है। समय आ गया है जब गुलामी के प्रतीक रूप कॉमन वेल्थ की सदस्यता का भारत को त्याग करना चाहिए।
    केजरीवाल के राजमहल का उद्धरण, सोने में सुगन्ध है। एक कुशल गायक की तरह यह अनुवादी स्वर लगा कर सम्पादकीय-राग को आकर्षक बना दिया। धन्यवाद।

    • शैली जी आपको केजरीवाल के राजमहल का उद्धरण सोने में सुगंध जैसा लगा। मगर ऊपर भाई राजनंदन सिंह जी ने इस पर आपत्ति जताई है।

  13. हमेशा की तरह उम्दा सम्पादकीय। राज्याभिषेक से संबद्ध सभी प्रासंगिक बातों को बड़े सहज तरीक़े से आपने समग्रता की माला में पिरोया है।

  14. ब्रिटिश राजवंश,राजतंत्र और राज्याभिषेक से संबंधित इतिहास व वर्तमान में ब्रिटिश राज की स्थिति परिस्थिति का परिदृश्य, समारोह में शामिल होने वाले प्रतिनिधियों का विवरण , राज्य अभिषेक में होने वाले खर्च का अनुमान और उससे संबंधित जनता की राय , विभिन्न राजनयिकों, विद्वानों के ब्रिटिश राज परिवार , संबंधो व शासन संबंधी मान्यताओं, इस ताजपोशी से संबंधित विरोधी विचारों,भारत से ब्रिटिश शासन का पूर्व वर्तमान संबंध, भारत की तुलनात्मक वर्तमान अवस्था, इस संदर्भ में कलाकारों की रूचि-अरुचि, राजसी निशानियों संबंधी विवाद आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर आपने इस रोचक संपादकीय को रच कर सही मायने में इस ऐतिहासिक राज्याभिषेक की उपयुक्तता का ही मूल्यांकन किया है, जैसा कि मैंने पहले भी कहा है,आपका संपादकीय देशकाल, वातावरण की सीमा को ना स्वीकार कर मात्र निष्पक्षता और सत्य को ही स्वीकृति प्रदान करता है।
    साथ ही साहित्यिक उक्तियों और गीतों की उपयुक्त मधुर पंक्तियां आपके संपादकीय के गहन विषय को भी सरल और सहज रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर देती हैं, जो आपके सुमधुर स्वभाव और सार्थक विनोदप्रियता का ही प्रतिफल है।
    एक बार फिर उत्तम संपादकीय के लिए आपको बधाई।

  15. हर बात की जानकारी तो मुझे होती ही नहीं है।
    पर आपके संपादकिय लेख पढ़ कर मैं इससे बहुत कुछ जान जाती हूँ साथ ही ज्ञान रूपी वृक्षपर आपके द्वारा दी जानकारी फूल की तरह खिलती है तथा उसमें वृद्धि कर जाती हैं।
    धन्यवाद सर

  16. आपके संपादकीय से इस शाही परिवार की जानकारी मिली। आपने बहुत सूक्ष्मता से इसे समझाया है आपको साधुवाद

  17. तेजेन्द्र जी, आप तो हम जैसे सोते हुओं को भी जगा देते हैं। जिस बात का पता न हो, जिसके विषय में कुछ भी जानकारी न हो उसके बारे में भी पाठ पढ़ा देते हैं।
    बहुत बहुत बधाई व साधुवाद आपको

  18. मन्दी की मार में डूबे हुए ब्रिटेन में राजघराने द्वारा देश व जनता के धन की इतनी बर्बादी …… इस नाज़ुक विषय पर इतने साहस और निर्भीकता के साथ खरी बात कहने का साहस तेजेन्द्र शर्मा जी के अतिरिक्त और किसमें हो सकता है भला ? बधाई और साधुवाद स्वीकारें, आदरणीय !

  19. बदल रही हैं फ़ज़ा और कहूॅं…. सत्य को बोध कराता आपका लेख, साधु -साधु

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