इन्सान चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले कहीं न कहीं उसके व्यक्तित्व में एक शैतान छिपा रहता है। जब तक बल्ब में विद्युत का संचार होता है और बिजली का उजाला फैला रहता है, भीतर का हिंसक पशु सोता रहता है। जहां रौशनी बाधित हुई, आत्मा मरने लगती है और शैतान हुंकार भर कर खड़ा हो जाता है और चारों ओर फैल जाता है हिंसा और अपराध!
भारत या पाकिस्तान में लोड शेड्डिंग यानी कि बिजली की कटौती से सब परिचित हैं। मगर ब्रिटेन, यूरोप, अमरीका या कनाडा में जो पीढ़ी पचास वर्ष की हो चुकी है, उन्होंने कभी इसका अनुभव नहीं किया होगा। कोविद-19, रूस-यूक्रेन युद्ध और अब इज़राइल-हमास संघर्ष ने पूरे विश्व के हालात बदल डाले हैं।
मैं पहली बार लंदन एअर इंडिया के फ़्लाइट परसर के रूप में वर्ष 1978 में आया था। उसके बाद निरंतर ब्रिटेन, यूरोप, अमरीका, कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि में जाने का अवसर मिलता रहा। 1998 में मैं लंदन में बसने के लिये आ गया। पिछले 45 वर्षों में मैंने स्वयं लोड-शेड्डिंग जैसा शब्द लंदन में नहीं सुना था। हां कभी-कभार तकनीकी ख़राबी हो सकती है मगर निरंतर ऐसी किसी प्रक्रिया का अनुभव नहीं हुआ।
हैरानी हुई जब हफ्ता दस दिन पहले ब्रिटेन के उप-प्रधानमंत्री ऑलीवर डाउडेन ने चेतावनी देते हुए कहा, कि “जनता को बिजली आपूर्ति में कटौती की स्थित में मोमबत्तियां, टॉर्च, और बैटरी से चलने वाले रेडियो घर में रखने चाहिये।… ब्रिटेन के निवासियों को व्यक्तिगत रूपस से अधिक लचीला होना चाहिये। हमारे देश के लोग इंटरनेट द्वारा संचालित उपकरणों पर बहुत अधिक निर्भर रहते हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि जनता को अपने व्यवसायों को भविष्य की महामारियों, प्राकृतिक आपदाओं और साइबर हमलों के लिये तैयार होने में सहायता करने के लिये एक राष्ट्रीय ‘रेज़िलिएंस अकादमी’ शुरू की जाएगी। ‘रेज़िलिएंस’ का अर्थ है लचीलापन। यानी कि हमें अपनी सुविधाओं पर आधारित आदतों को लचीला बनाना होगा। यदि बिजली में कटौती होगी तो हमारे बहुत से उपकरण तो काम ही नहीं कर पाएंगे।
विश्व के ऐसे दो आविष्कार हैं जिन्होंने इन्सान के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। पहला आविष्कार है पहिया। पहिये से पहले इन्सान या तो पैदल चलता था या फिर घोड़े या ऊंट पर। पहिये ने इन्सान के जीवन में गति पैदा की। पहिए के आविष्कार के कारण ही घोड़ागाड़ी, बैलगाड़ी, साइकिल, रिक्शा जैसे उपकरण बन पाए। कुएं से पानी निकालने वाली पुली भी पहिए पर ही आधारित थी तो कपड़े सीने की मशीन भी।
दूसरा सबसे बड़ा आविष्कार है बिजली। बिजली सच में एक जादुई आविष्कार है जो दिखाई नहीं देता मगर आत्मा की तरह हर जगह मौजूद रहती है। बिजली ने साइकल को मोटर साइकल और स्कूटर बना दिया। फिर कार बनी और विमान बना। हस्पताल के सभी उपकरण बिजली से चलते हैं। टीवी, रेडियो, कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन की आत्मा भी बिजली ही है। सोचिये यदि अचानक बिजली बननी बंद हो जाए तो क्या हम सैंकड़ों वर्ष पीछे नहीं चले जाएंगे।
ऑलीवर डाउडेन संभवतः इसी बारे में बात कह रहे थे कि अब ब्रिटेन निवासियो को भी निकट भविष्य में शायद ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़े जैसा कि विकासशील देशों को करना पड़ता है। उप-प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन के सामने निकट भविष्य में आपने वाली चुनौतियों के बारे में बात करते हुए यूक्रेन पर रूस के आक्रमण, साइबर हमलों, कोविद महामारी और कृत्रिम बुद्धिमता (आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस) के दुरुपयोग और पर्यावरण में बदलाव पर चिन्ता जताई।
ऑलीवर डाउडेन का वक्तव्य जैसे एक प्रकार की भविष्यवाणी ही साबित हुआ। सात दिसम्बर 2023 को लंदन की नई नवेली एलिज़ाबेथ लाइन में चार घंटों के लिये पावर कट हो गया। यात्री चार घंटे घुप्प अंधेरे में फंसे रहे। बहुत से यात्री तो गाड़ी छोड़ पैदल ही पटरी के साथ-साथ चलने लगे। याद रहे कि सर्दियों में लंदन में शाम चार बजे ही रात हो जाती है।
अंधेरे के साथ न जाने क्यों नकारात्मकता ही जुड़ी रहती है। हर धर्म में भूत, प्रेत, चुड़ैल, शैतान सबका रिश्ता अंधेरे से जुड़ा रहता है। शायद इसीलिये इन्सान के भीतर का शैतान भी अंधेरे का लाभ उठा कर तन कर खड़ा हो जाता है। कुछ ऐसा हुआ भी। 7 दिसंबर की शाम जब एलिज़ाबेथ लाइन की एक गाड़ी पावर कट के कारण फंस गई तो एक व्यक्ति ने अंधेरे का लाभ उठा कर एक युवती के साथ बदतमीज़ी करने का प्रयास किया। लड़की चिल्लाई और
अंधेरे के दौरान महिला के साथ हुए दुर्व्यवहार को लेकर एक यात्री ने कहा, “ट्रेन की लाइट बंद होने की वजह कुछ ऐसी घटना हुई जो हमें भीतर तक परेशान करती है। मुझे नहीं पता कि वह महिला कौन थी, लेकिन जब वह चिल्लाने लगी तब सबका ध्यान उसकी तरफ़ गया। वह कह रही थी, ‘ओ गॉड, तुम मुझे क्यों छू रहे हो।’ इसे सुनने के बाद ही महिला के बचाव में एक युवक आता है और कथित छेड़छाड़ को लेकर उस व्यक्ति से हाथापाई करने लगता है।”
सुकून की बात यह है कि अभी समाज पूरी तरह से मरा नहीं है। अभी भी किसी महिला के साथ अन्याय होते देख कोई सामने आकर चुनौती देने का साहस रखता है। ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस ने घटना की पुष्टि की और कहा कि एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि, बाद में उन्हें आगे की पूछताछ होने तक रिहा कर दिया गया। एक प्रवक्ता ने कहा, ”7 दिसंबर को पैडिंगटन स्टेशन पर हुई घटना पर प्रतिक्रिया करते समय मौके पर मौजूद अधिकारियों को यौन उत्पीड़न की रिपोर्टों से अवगत कराया गया। बताया गया कि हमला एलिजाबेथ लाइन पर रात करीब 8.30 बजे हुआ। एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया और बाद में रिहा कर दिया गया। घटना से जुड़ी परिस्थितियों का पता लगाने के लिए पूछताछ जारी है।”
यह लंदन अंडरग्राउंड पर वहशी व्यवहार की पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी लंदन अंडरग्राउंड की पिकेडिली लाइन पर बाउण्ड्स ग्रीन स्टेशन पर वर्ष 2020 में एक दर्दनाक घटना घटित हु चुकी है। सुबह के पांच बजे रॉय जॉन्स्टन नामक व्यक्ति ने एक 20 वर्षीय युवती का ब्लातकार अन्य यात्रियों के सामने कर दिया। कोई उसे रोक नहीं पाया। एक फ़्रांसिसी महिला अपने 11 वर्ष के पुत्र के साथ उस ट्रेन में यात्रा कर रही थी। उस बच्चे ने भी ब्लात्कार होते देखा। यह व्यक्ति पहले चोरी के चक्कर में भी जेल की यात्रा कर चुका था। क्राउन कोर्ट ने इस अपराधी को नौ वर्ष की जेल की सज़ा सुनाई।
पावर कट में इन्सान की दरिंदगी का सबसे बड़ा उदाहरण 1977 में अमरीका के शहर न्युयॉर्क में महसूस किया गया। उन दिनों दक्षिण बुख़ानन बिजली स्टेशन पर हड़ताल चल रही थी। 13 और 14 जुलाई को बिजली की सप्लाई पूरी तरह से बाधित हो गई थी। ऐसे में इन्सान के भीतर का पशु पूरी तरह से सड़कों पर उतर आया था। डिपार्टमेंट स्टोर लूटे गये, आगज़नी की बहुत सी घटनाएं हुईं। मनुष्य की पाश्विक और हिंसात्मक प्रवृत्तियां पूरी तरह से उभर कर सामने आ गईं। न्युयॉर्क इस समय आर्थिक मंदी के हालात से जूझ रहा था और हर व्यक्ति उस चिलचिलाती जुलाई के गर्मी में अपने-अपने हिस्से की लूट इकट्ठी कर रहा था।
यह सोच कर हैरानी हो रही थी कि लुटेरों को भी लूटा जा रहा था। यदि किसी के हाथ टीवी लगा तो उससे अधिक ताकतवर लुटेरा उससे टीवी छीन कर अपने रास्ते हो लिया। कार शोरूम से कारें उठा ली गईं। कच्छे बनियान से लेकर बड़े ब्रैंड के सूट-बूट लूटे गये। औरतों ने मेकअप के सामान से घर भर लिये। नारी एक तरफ़ लुट रही थी तो दूसरी तरफ़ लूट भी रही थी। अंधेरा लूट-मार की ताकत होता है। न्युयॉर्क के ये दो दिन अमरीका की सोच पर कलंक का टीका थे।
इन्सान चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले कहीं न कहीं उसके व्यक्तित्व में एक शैतान छिपा रहता है। जब तक बल्ब में विद्युत का संचार होता है और बिजली का उजाला फैला रहता है, भीतर का हिंसक पशु सोता रहता है। जहां रौशनी बाधित हुई, आत्मा मरने लगती है और शैतान हुंकार भर कर खड़ा हो जाता है और चारों ओर फैल जाता है हिंसा और अपराध!
वाह वाह तेजेन्द्र जी❤ बहुत ही सुंदर शब्दों और फिर हमेशा की तरह ही एक नये और अलग विषय के साथ आपकी संपादकीय वाह जी बहुत अद्भुत है बिजली मे बसती आत्मा बहुत ही सही कहा…..
संपादकीय आज के विकसित इंसान की खोज खबर दी मुख्य आविष्कारों यथा पहिए और उस से भी महत्वपूर्ण बिजली पर निर्भरता से लेता है।इसके साथ इंसानी वृतियों की भी बेबाक बेलौस एग्जामिनेशन करता है।भूत प्रेत,नकारात्मक प्रवृत्तियों शक्तियों और अंधेरे का साथ चोली दमन का रहा है। साहित्य संस्कृति और सिनेमा ने इस बेहद पक्का करके रख दिया है।लूट चोरी और विशेष रूप से महिलाओं के प्रति अपराध चरम सीमा पर आ जाते हैं,इसमें प्रवासी यानी माइग्रेंट जन समूह का भी बड़ा हिस्सा रहता है। यूं भी इन्ही दो आविष्कारों का अविकसित ,विकासशील और विकसित का टैग देने का जिम्मा है।
लोडशेडिंग तो अविकसित और विकासशील देशों का सिक्का है जो जम कर चलता है।राजनीति उसका प्रयोग शह और मात से करती है। बात बिजली की?! आज विकसित राष्ट्र और उसके नागरिक पूर्णतया इसी बिजली पर निर्भर हैं या फिर निकम्मेपन की हद तक!
ब्रिटेन या अन्य देश जिसमें पड़ोसी देश भी है दूसरों की संपदा को हड़पने में माहिर रहे हैं परंतु हर चीज की सीमा होती है और वह प्रकृति के आधीन होती है।अतः अब पुरातन अंदाज़ को ध्यान में रख कर जीने की पद्धति को चाहे अनचाहे अपनाना ही होगा।
संपादकीय अमर गीत कार शैलेंद्र रचित गीतों की याद दिलाता है,
भला कीजे भला होगा ,बुरा कीजे बुरा होगा। बही लिख लिख के क्या होगा? ज्यादा की नहीं लालच हमको ,,थोड़े में गुजारा होता है।
एक और संपादकीय जो सुविधाओं में डूबे उच्चशृंखल मानव को उसके भविष्य का आईना दिखाता है।
आदरणीय संपादक को साधुवाद।
बिजली बिजली, मैंने देखा है कोलकाता में 16 16 घण्टों की लोड शेडिंग 22 तल्ला मकान पर चढ़ कर जाना छोटे हौंडा जेनसेट का जमाना , आज तो भारत मे लोड शेडिंग नाम की कोई चीज नहीं भारत अब पावर सरप्लस देश है कर्टसी वैकल्पिक ऊर्जा, हैं बिजली से आगे आवश्यक आवश्यकता आज मोबाइल ह्यो गयी है जिसके बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है।
आपका लेख सदा की तरह सीधा स्पष्ट सरल और हृदयस्पर्शी है। धन्यवाद तेजेन्द्र जी।
सादर नमस्कार सर इस संपादकीय को पढ़कर ऐसा अनुभव हुआ कि अंधकार यदि किसी नूतन आवश्यकता के अविष्कार में सहायक बना एवं बिजली का उद्भावन हुआ वही अंधकार विकृत मानसिकता का जन्मदाता भी है। वास्तविक स्थिति को हृदयंगम करना मनुष्य के वश में तो है परंतु अमानव में नहीं है….। कहीं न कहीं शारीरिक इच्छाओं , वस्तुवादि इच्छाओं एवं अनावश्यक आशाओं के कारण ही मनुष्यता का मूल्य घट गया है।
परंतु जीवित मानवीय चिंताधारा भी धीरे धीरे दिकपरिवर्तन में लगी है….। मैं अपना विचार व्यक्त करते हुए यही कहूँगी कि रहस्य यदि रहस्य रहता तो धरापृष्ठ पर अराजकता नहीं होती। मनुष्य आवश्यकता की सीमा लांघते हुए अनावश्यक रहस्य का भी मुक्त कर दिया। जिस समय के अंतराल में जो नहीं जानना चाहिए वह सबकुछ आज विदित हो रहा…। मानवीय विकास अर्थात मस्तिष्क का विकास अब सकारात्मक ढंग से न होकर कलुषित विचार एवं कृति से हो रहा है। न कोई आयु है न समय…न ही अध्यात्मिक संपर्क स्थापित हो पाता है अपने कर्मों में। इसलिए जो हमारे पूर्वजों दिया है…वह हमारी आवश्यकता थी सहज जीवन यापन हेतु… किंतु कालक्रम में इसका उपयोग स्वार्थनिहित एवं भोग – विलास का योग्य हो गया।…. सर…. मुझे आपके संपादकीय में सदैव अपने विचारों की धारा दृष्ट होती है। कुछ मन की भावनाएँ व्यक्त भी हो जातीं हैं। धन्यवाद आपका सर
रौशनी (बिजली )अंधेरा ,मनुष्य की सोच उसकी
प्रवृति और विश्व में घटती बुनियादी आवश्यकताओं पर उम्दा सम्पादकीय है । विकासशील देशों के जैसी समस्याएं विकसित देश में होना ध्यानाकर्षण तो है पर अंतराष्ट्रीय समस्याओं से अब वे भी प्रभावित हो रहे हैं ।बिजली हो या पानी उत्पादन से अधिक उपभोग समस्या का विषय तो है ।
Dr Prabha mishra
सच्ची बातें.जो मन और जीवन के सटीक रूप में प्रस्तुत हों सदैव ग्राह्य होती हैं.बहुत सुंदर. सारगर्भित और सार्थक संपादकीय के लिए आपको बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभ कामनाए भाई..आपकी कलम ऐसे ही अंधेरे उजालों के बीच जीवन के.सार्थक मुद्दो को उठाती रहे.अशेष शुभ कामनाए..सचमुच विद्युत आज की सबसे बडी और सर्वप्रथम उपयोगिता है.जिसके बिना जीवन का संचरण ही कठिन लगता है.यदि उस व्यवस्था में कोई व्यवधान आ जाए तो निरुपाय और असहाय सी अनुभूति होती है .लेकिन यहां सब कुछ शाश्वत नहीं होता .यह मानकर चलना होगा.अगर उजाले हैं तो अंधेरा भी होगा.ही.जैसे अमावस की रात में दीवाली मनाकर अंधेरे को दूर हटाते हैं.वैसे ही विद्युत की व्यवस्था चरमराये तो हमें वैकल्पिक साधन अपनाने में हिचकिचाना नहीं चाहिए. भारत में प्राय: हर घर में टार्च. मोमबत्ती और इनवर्टर की व्यवस्था रखते हैं सभी.हमारे शहर में टाटा की बिजली जो उपयोग करते हैं.उनकी बिजली कटती नहीं है कभी .फिर भी उनका अनुरोध रहता है कि हम वैकल्पिक व्यवस्था भी जरूर रखें..आपकी अंधेरे और उजाले से जीवन के नकारात्मक और सकारात्मक भावों और स्थितियों की तुलना बहुत अच्छी लगी **इन्सान चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले कहीं न कहीं उसके व्यक्तित्व में एक शैतान छिपा रहता है। जब तक बल्ब में विद्युत का संचार होता है और बिजली का उजाला फैला रहता है, भीतर का हिंसक पशु सोता रहता है। जहां रौशनी बाधित हुई, आत्मा मरने लगती है और शैतान हुंकार भर कर खड़ा हो जाता है और चारों ओर फैल जाता है हिंसा और अपराध!* सचमुच अंधेरा यदि डरावना है तो उसका सामना कर हराने की प्रवृत्ति भी विकसित हो..आपातकाल तो कभी भी आ सकता है ..हम उसके लिए सक्षम हों.सन्नद्ध हों..यह भी एक आधुनिक प्रगतिशीलता है.मेरी अपनी जितनी समझ थी.मैने समझा और लिखा..आप विद्वज्जन की राय की प्रतीक्षा है .पुन: सप्रणाम धन्यवाद. बधाई हो भाई..सुप्रभात
अच्छा है। भारत को अन्धेरे-उजाले में जीने का अनुभव है। यहाँ बिजली 24 घण्टे सिर पर सवार नहीं रहती। चंचला है… आती-जाती रहती है। कम से कम मनुष्य को नैसर्गिक रूप से मनुष्य बनाये रहती है।
भारत में दिन- रात का आधा-आधा ही हिस्सा रहता है। यानी 24 घंटों में 12 घण्टे दिन 12 घण्टे रात। बिजली तो कई बार 3-4 दिनों तक नहीं आती लेकिन अपराध के आंकड़ों में ऐसी कोई बढ़ोत्तरी नहीं होती। आंकड़े देखने पर पता चला कि अमेरिका और इंग्लैंड दोनों ही विकसित देश, अपराधों में हमसे आगे हैं। यानी बिजली के रहने या ना रहने से हमारा चारित्रिक पतन नहीं होता।
हम चाहे जितना विकास कर लें, कोई आपदा हमें कभी ना कभी आदिम युग में खड़ा करेगी। जब बिना बिजली, बिना इंटरनेट हमें स्वयं की शक्ति और चरित्र पर जीना पड़ेगा। यह सत्य हम जितनी जल्दी स्वीकार कर लें अच्छा है।
सम्पादकीय में सम्पूर्ण सभ्यता के विकास और विनाश को पहिये और बिजली से संपृक्त करके मनुष्य के शैतानी रूप को भी अनावृत कर के रखा गया है …विकसित देशों और विकासशील देशों में हिंसा समान रूप में होती है सिर्फ मानवीय सांख्यिकी और शिक्षा का स्केल घटनाओं की कमी और बढ़ोतरी को दर्शाता है …सम्पादक महोदय ने ठीक ही इंगित किया है कि उजाले में इंसान का शैतान दबा रहता है परंतु अंधेरा होने पर वही असली रूप दिखाता है . अंधेरा ..उजाला ..इंसान साहित्यिक रूपक आप सम्पादकीय में गढ़ते है ..वाह…अलबत्ता आजकल शुद्ध पत्रकारिता में साहित्य back seat पर ही नहीं, कहें तो नदारद है …साधुवाद!!
आपका यह संपादकीय भविष्य के अंधकार में प्रकाश की रोशनी बिखेरने वाला, सावधान करने वाला है बहुत धन्यवाद सर। बिजली या कहें आत्मा चली जाती है यानी मर जाती है तो अंधकार यानी शैतान का जन्म होता है इस शैतान के अवसान के लिए प्रकाश करना अनिवार्य है। प्रकाश को बचाए बनायें रखने के लिए सूझ बूझ का होना आवश्यक है। बचपन में पापा ने एक शब्द का अर्थ खोलकर समझाया था जब हम रात में कहीं जाने के लिए जिद कर रहे थे उन्होंने कहा बेटा रात में निशाचर घूमते हैं निशाचर मन निशा में विचरण करने वाले और निशाचर का मतलब होता है राक्षस यानी शैतान।
रौशनी बाधित हुई और आत्मा मरने लगती है…बिजली का कितना महत्त्व है हमारे जीवन में इसे सम्पादकीय में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बहुत ही गहराई से समेटा गया है.
बहुत सुंदर तेजेन्द्र सर। आप का अक़्सर इस तरह नए मुद्दे
पर अपनी बात रखना और साथ में भिन्न भिन्न उद्धाहरण के साथ उसे जस्टिफाय करना सहज ही संपादकीय को जीवंत कर देता है। बिजली मे बसती है आत्मा… कितना सही कहा आपने.
हार्दिक बधाई सहित साधुवाद।
वाह वाह तेजेन्द्र जी❤ बहुत ही सुंदर शब्दों और फिर हमेशा की तरह ही एक नये और अलग विषय के साथ आपकी संपादकीय वाह जी बहुत अद्भुत है बिजली मे बसती आत्मा बहुत ही सही कहा…..
संपादकीय आज के विकसित इंसान की खोज खबर दी मुख्य आविष्कारों यथा पहिए और उस से भी महत्वपूर्ण बिजली पर निर्भरता से लेता है।इसके साथ इंसानी वृतियों की भी बेबाक बेलौस एग्जामिनेशन करता है।भूत प्रेत,नकारात्मक प्रवृत्तियों शक्तियों और अंधेरे का साथ चोली दमन का रहा है। साहित्य संस्कृति और सिनेमा ने इस बेहद पक्का करके रख दिया है।लूट चोरी और विशेष रूप से महिलाओं के प्रति अपराध चरम सीमा पर आ जाते हैं,इसमें प्रवासी यानी माइग्रेंट जन समूह का भी बड़ा हिस्सा रहता है। यूं भी इन्ही दो आविष्कारों का अविकसित ,विकासशील और विकसित का टैग देने का जिम्मा है।
लोडशेडिंग तो अविकसित और विकासशील देशों का सिक्का है जो जम कर चलता है।राजनीति उसका प्रयोग शह और मात से करती है। बात बिजली की?! आज विकसित राष्ट्र और उसके नागरिक पूर्णतया इसी बिजली पर निर्भर हैं या फिर निकम्मेपन की हद तक!
ब्रिटेन या अन्य देश जिसमें पड़ोसी देश भी है दूसरों की संपदा को हड़पने में माहिर रहे हैं परंतु हर चीज की सीमा होती है और वह प्रकृति के आधीन होती है।अतः अब पुरातन अंदाज़ को ध्यान में रख कर जीने की पद्धति को चाहे अनचाहे अपनाना ही होगा।
संपादकीय अमर गीत कार शैलेंद्र रचित गीतों की याद दिलाता है,
भला कीजे भला होगा ,बुरा कीजे बुरा होगा। बही लिख लिख के क्या होगा? ज्यादा की नहीं लालच हमको ,,थोड़े में गुजारा होता है।
एक और संपादकीय जो सुविधाओं में डूबे उच्चशृंखल मानव को उसके भविष्य का आईना दिखाता है।
आदरणीय संपादक को साधुवाद।
भाई सूर्य कांत जी आपने संपादकीय को शैलेन्द्र के गीतों से जोड़ कर सृजनात्मक टिप्पणी की है। आभार।
सादर आभार आपका आदरणीय।आस पास के परिवेश और समस्याओं के बीच से निकलता ज्वलंत स्थाई और वैश्विक मुद्दा।
आपको हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
इन्सान की पोल खोलता संपादकीय, एक डराने वाला सच जो रोशनी गुल होते ही चमकने लगता है हालांकि शीर्षक से ऐसा पता नहीं चलता
हार्दिक आभार आपका आलोक।
बिजली बिजली, मैंने देखा है कोलकाता में 16 16 घण्टों की लोड शेडिंग 22 तल्ला मकान पर चढ़ कर जाना छोटे हौंडा जेनसेट का जमाना , आज तो भारत मे लोड शेडिंग नाम की कोई चीज नहीं भारत अब पावर सरप्लस देश है कर्टसी वैकल्पिक ऊर्जा, हैं बिजली से आगे आवश्यक आवश्यकता आज मोबाइल ह्यो गयी है जिसके बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है।
आपका लेख सदा की तरह सीधा स्पष्ट सरल और हृदयस्पर्शी है। धन्यवाद तेजेन्द्र जी।
आपका स्नेह हमारे लिये अमूल्य है सुरेश भाई। हार्दिक आभार।
सादर नमस्कार सर इस संपादकीय को पढ़कर ऐसा अनुभव हुआ कि अंधकार यदि किसी नूतन आवश्यकता के अविष्कार में सहायक बना एवं बिजली का उद्भावन हुआ वही अंधकार विकृत मानसिकता का जन्मदाता भी है। वास्तविक स्थिति को हृदयंगम करना मनुष्य के वश में तो है परंतु अमानव में नहीं है….। कहीं न कहीं शारीरिक इच्छाओं , वस्तुवादि इच्छाओं एवं अनावश्यक आशाओं के कारण ही मनुष्यता का मूल्य घट गया है।
परंतु जीवित मानवीय चिंताधारा भी धीरे धीरे दिकपरिवर्तन में लगी है….। मैं अपना विचार व्यक्त करते हुए यही कहूँगी कि रहस्य यदि रहस्य रहता तो धरापृष्ठ पर अराजकता नहीं होती। मनुष्य आवश्यकता की सीमा लांघते हुए अनावश्यक रहस्य का भी मुक्त कर दिया। जिस समय के अंतराल में जो नहीं जानना चाहिए वह सबकुछ आज विदित हो रहा…। मानवीय विकास अर्थात मस्तिष्क का विकास अब सकारात्मक ढंग से न होकर कलुषित विचार एवं कृति से हो रहा है। न कोई आयु है न समय…न ही अध्यात्मिक संपर्क स्थापित हो पाता है अपने कर्मों में। इसलिए जो हमारे पूर्वजों दिया है…वह हमारी आवश्यकता थी सहज जीवन यापन हेतु… किंतु कालक्रम में इसका उपयोग स्वार्थनिहित एवं भोग – विलास का योग्य हो गया।…. सर…. मुझे आपके संपादकीय में सदैव अपने विचारों की धारा दृष्ट होती है। कुछ मन की भावनाएँ व्यक्त भी हो जातीं हैं। धन्यवाद आपका सर
अनिमा आपकी टिप्पणी गहन चिंता और सोच का नतीजा है। हार्दिक आभार।
रौशनी (बिजली )अंधेरा ,मनुष्य की सोच उसकी
प्रवृति और विश्व में घटती बुनियादी आवश्यकताओं पर उम्दा सम्पादकीय है । विकासशील देशों के जैसी समस्याएं विकसित देश में होना ध्यानाकर्षण तो है पर अंतराष्ट्रीय समस्याओं से अब वे भी प्रभावित हो रहे हैं ।बिजली हो या पानी उत्पादन से अधिक उपभोग समस्या का विषय तो है ।
Dr Prabha mishra
प्रभा जी आपने सही इंगित किया है। हार्दिक आभार।
सच्ची बातें.जो मन और जीवन के सटीक रूप में प्रस्तुत हों सदैव ग्राह्य होती हैं.बहुत सुंदर. सारगर्भित और सार्थक संपादकीय के लिए आपको बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभ कामनाए भाई..आपकी कलम ऐसे ही अंधेरे उजालों के बीच जीवन के.सार्थक मुद्दो को उठाती रहे.अशेष शुभ कामनाए..सचमुच विद्युत आज की सबसे बडी और सर्वप्रथम उपयोगिता है.जिसके बिना जीवन का संचरण ही कठिन लगता है.यदि उस व्यवस्था में कोई व्यवधान आ जाए तो निरुपाय और असहाय सी अनुभूति होती है .लेकिन यहां सब कुछ शाश्वत नहीं होता .यह मानकर चलना होगा.अगर उजाले हैं तो अंधेरा भी होगा.ही.जैसे अमावस की रात में दीवाली मनाकर अंधेरे को दूर हटाते हैं.वैसे ही विद्युत की व्यवस्था चरमराये तो हमें वैकल्पिक साधन अपनाने में हिचकिचाना नहीं चाहिए. भारत में प्राय: हर घर में टार्च. मोमबत्ती और इनवर्टर की व्यवस्था रखते हैं सभी.हमारे शहर में टाटा की बिजली जो उपयोग करते हैं.उनकी बिजली कटती नहीं है कभी .फिर भी उनका अनुरोध रहता है कि हम वैकल्पिक व्यवस्था भी जरूर रखें..आपकी अंधेरे और उजाले से जीवन के नकारात्मक और सकारात्मक भावों और स्थितियों की तुलना बहुत अच्छी लगी **इन्सान चाहे कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले कहीं न कहीं उसके व्यक्तित्व में एक शैतान छिपा रहता है। जब तक बल्ब में विद्युत का संचार होता है और बिजली का उजाला फैला रहता है, भीतर का हिंसक पशु सोता रहता है। जहां रौशनी बाधित हुई, आत्मा मरने लगती है और शैतान हुंकार भर कर खड़ा हो जाता है और चारों ओर फैल जाता है हिंसा और अपराध!* सचमुच अंधेरा यदि डरावना है तो उसका सामना कर हराने की प्रवृत्ति भी विकसित हो..आपातकाल तो कभी भी आ सकता है ..हम उसके लिए सक्षम हों.सन्नद्ध हों..यह भी एक आधुनिक प्रगतिशीलता है.मेरी अपनी जितनी समझ थी.मैने समझा और लिखा..आप विद्वज्जन की राय की प्रतीक्षा है .पुन: सप्रणाम धन्यवाद. बधाई हो भाई..सुप्रभात
पद्मा आपने अपने शहर जमशेदपुर के साथ तुलना करते हुए संपादकीय की सही समीक्षा की है। हार्दिक आभार।
अच्छा है। भारत को अन्धेरे-उजाले में जीने का अनुभव है। यहाँ बिजली 24 घण्टे सिर पर सवार नहीं रहती। चंचला है… आती-जाती रहती है। कम से कम मनुष्य को नैसर्गिक रूप से मनुष्य बनाये रहती है।
भारत में दिन- रात का आधा-आधा ही हिस्सा रहता है। यानी 24 घंटों में 12 घण्टे दिन 12 घण्टे रात। बिजली तो कई बार 3-4 दिनों तक नहीं आती लेकिन अपराध के आंकड़ों में ऐसी कोई बढ़ोत्तरी नहीं होती। आंकड़े देखने पर पता चला कि अमेरिका और इंग्लैंड दोनों ही विकसित देश, अपराधों में हमसे आगे हैं। यानी बिजली के रहने या ना रहने से हमारा चारित्रिक पतन नहीं होता।
हम चाहे जितना विकास कर लें, कोई आपदा हमें कभी ना कभी आदिम युग में खड़ा करेगी। जब बिना बिजली, बिना इंटरनेट हमें स्वयं की शक्ति और चरित्र पर जीना पड़ेगा। यह सत्य हम जितनी जल्दी स्वीकार कर लें अच्छा है।
शैली जी आपकी व्यंग्यात्मक टिप्पणी बढ़िया है। हार्दिक आभार।
सम्पादकीय में सम्पूर्ण सभ्यता के विकास और विनाश को पहिये और बिजली से संपृक्त करके मनुष्य के शैतानी रूप को भी अनावृत कर के रखा गया है …विकसित देशों और विकासशील देशों में हिंसा समान रूप में होती है सिर्फ मानवीय सांख्यिकी और शिक्षा का स्केल घटनाओं की कमी और बढ़ोतरी को दर्शाता है …सम्पादक महोदय ने ठीक ही इंगित किया है कि उजाले में इंसान का शैतान दबा रहता है परंतु अंधेरा होने पर वही असली रूप दिखाता है . अंधेरा ..उजाला ..इंसान साहित्यिक रूपक आप सम्पादकीय में गढ़ते है ..वाह…अलबत्ता आजकल शुद्ध पत्रकारिता में साहित्य back seat पर ही नहीं, कहें तो नदारद है …साधुवाद!!
भाई देवेन्द्र जी, आपने संपादकीय पर शुद्ध साहित्यिक टिप्पणी की है। हार्दिक आभार।
बिजली और पहिए का उदाहरण देकर अपने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है हमें निर्भरता और आत्मनिर्भरता में अंतर समझना होगा।
हार्दिक आभार संगीता जी।
आपका यह संपादकीय भविष्य के अंधकार में प्रकाश की रोशनी बिखेरने वाला, सावधान करने वाला है बहुत धन्यवाद सर। बिजली या कहें आत्मा चली जाती है यानी मर जाती है तो अंधकार यानी शैतान का जन्म होता है इस शैतान के अवसान के लिए प्रकाश करना अनिवार्य है। प्रकाश को बचाए बनायें रखने के लिए सूझ बूझ का होना आवश्यक है। बचपन में पापा ने एक शब्द का अर्थ खोलकर समझाया था जब हम रात में कहीं जाने के लिए जिद कर रहे थे उन्होंने कहा बेटा रात में निशाचर घूमते हैं निशाचर मन निशा में विचरण करने वाले और निशाचर का मतलब होता है राक्षस यानी शैतान।
रौशनी बाधित हुई और आत्मा मरने लगती है…बिजली का कितना महत्त्व है हमारे जीवन में इसे सम्पादकीय में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बहुत ही गहराई से समेटा गया है.
इस भावपूर्ण टिप्पणी के लिये आभार जया।
बहुत सुंदर तेजेन्द्र सर। आप का अक़्सर इस तरह नए मुद्दे
पर अपनी बात रखना और साथ में भिन्न भिन्न उद्धाहरण के साथ उसे जस्टिफाय करना सहज ही संपादकीय को जीवंत कर देता है। बिजली मे बसती है आत्मा… कितना सही कहा आपने.
हार्दिक बधाई सहित साधुवाद।