विपक्ष को चाहिये था कि इस मुद्दे के साथ राजनीति न करते हुए, इस पर संसद में बहस करता। मगर विपक्ष ने तकनीकी मुद्दों को लेकर हमेशा की तरह केवल हंगामा खड़ा किया और सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। दरअसल भारतीय जनता पार्टी समझ गई है कि विपक्ष को उलझाए रखा जाए और सदन की कार्यवाही स्थगित होती रहे। पूरे का पूरा सत्र बरबाद हो जाए… किसी मुद्दे पर कोई बहस न हो पाए, और कारवां चलता रहे।
4 मई 2023 हर भारतीय व भारतवंशी के लिये शर्मसार होने का दिन बनता है। इसी दिन मणिपुर में मैतेई समाज के लगभग एक हज़ार लोगों ने कुकी समाज के एक गांव पर हमला बोल दिया और वहां दो महिलाओं को कपड़े उतार कर नंगा होने पर मजबूर कर दिया और फिर उनका पास के खेत में गैंगरेप किया। उनमें से एक महिला 42 वर्ष की थी तो दूसरी केवल 21 वर्ष की।
याद रहे कि पिछले लगभग तीन महीने से मणिपुर हिंसा की लपेट में है। मुझे पुरवाई के बहुत से पाठकों से बात करने का मौक़ा मिला, तो हमने पाया कि किसी को भी मणिपुर हिंसा के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं थी। मुझे याद आया कि बचपन में तो हमें उत्तर-पूर्वी राज्यों के नाम तक याद नहीं होते थे। हमें कभी ऐसा महसूस ही नहीं करवाया गया कि वो तमाम राज्य भी भारत का हिस्सा हैं।
अपने पाठकों को याद दिलाना चाहूंगा कि उत्तर पूर्वी राज्यों को ‘सेवन सिस्टर्स’ के नाम से भी जाना जाता था। इनमें शामिल थे असम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर। मगर 16 मई 1975 को सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना और सेवन सिस्टर्स बदल कर ऐट सिस्टर्स बन गईं और सिक्किम का नाम उनके साथ जुड़ गया।
पुरवाई परिवार इसे अपनी ज़िम्मेदारी समझता है कि पहले तो मणिपुर हिंसा के बारे में अपने पाठकों को विस्तार से बताए कि वहां चल रही हिंसा का कारण क्या है… आख़िर क्यों ऐसी वीभत्स घटनाएं घटित होनी शुरू हो गईं और इन्सान दरिंदा बन गया।
जैसा कि हमने पहले ही बताया कि मणिपुर में मुख्य रूप से दो जातियां रहती हैं – घाटी में मैतेई और पहाड़ी क्षेत्रों में कुकी। इन दोनों जातियों में विवाद का कारण एक तरह से भारतीय संविधान की आरक्षण नीति को माना जा सकता है। 19 अप्रैल 2023 को मणिपुर उच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी किया जिसके अनुसार बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का निर्णय सुना दिया गया। बस इस आदेश के बाद ही दोनों समुदायों में विवाद बढ़ गया और धीरे-धीरे इस विवाद ने हिंसक रूप धारण करना शुरू कर दिया। यहां एक बात और ध्यान देने लायक है कि कुकी समुदाय में ईसाई धर्म के लोग अधिक हैं।
पुरवाई के पाठकों के लिये यह जानना बहुत आवश्यक है कि कुकी समुदाय मणिपुर का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है। मैतेई समुदाय के जनजातीय समुदाय के रूप में घोषणा के बाद कुकी समाज को नौकरियों और अन्य आरक्षण सुविधाओं के अवसर कम होने का डर तो लगना स्वाभाविक ही है। बस इसी को लेकर दोनों समुदायों में ठन गई और हिंसा भड़क उठी।
मणिपुर में सरकार है भारतीय जनता पार्टी की और मुख्यमंत्री हैं – बिरेन सिंह। 30 जून को बिरेन सिंह ने राज्य के हालात को देखते हुए त्यागपत्र देने की घोषणा कर दी। मगर उसके बाद कुछ इस तरह का नाटक रचा गया जिसे देख कर कोई भी उसकी वैधता को चुनौती दे सकता है। एक भीड़ इकट्ठा की गई और एक महिला ने मुख्यमंत्री का त्यागपत्र फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। और मुख्यमंत्री बिरेन सिंह ने बेचारगी ज़ाहिर करते हुए कहा कि राज्य की जनता नहीं चाहती कि वे त्यागपत्र दें; इसलिये वे अपना त्यागपत्र वापस ले रहे हैं।
अब क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की सरकार है तो कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तमाम अन्य विपक्षी दल मणिपुर हिंसा के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधने लगे। इन दलों का अपने-अपने राज्य का ट्रैक-रिकॉर्ड चाहे कितना भी ख़राब क्यों न हो, मौके पर चौका लगाने से कोई भी नहीं चूकता। भारतीय जनता पार्टी भी इससे अछूती नहीं है। जब-जब मणिपुर हिंसा की बात उठाई गई, वे दूसरे राज्यों के मामले गिनवाने लगे। यदि सभी राजनीतिक दल अपने-अपने राज्य में प्रशासन को सुशासन में बदल दें (नितीश कुमार वाला सुशासन नहीं) तो देश के हालात ख़ासे बदल सकते हैं।
मगर एक सवाल का जवाब तो भारत के गृह-मंत्रालय और मणिपुर की पुलिस एवं नौकरशाही को देना ही पड़ेगा। जब 29 मई को अमित शाह मणिपुर तीन दिन के दौरे पर गये तो इस चार मई की घटना की जानकारी उन्हें क्यों नहीं दी गई। यानी कि अमित शाह के अपने ही विभाग के लोग उनसे सब छिपा गये और अमित शाह अंजान बने रह गये।
ऐसे जघन्य अपराध के बाद जिस तरह मामले के साथ निपटा गया इससे साफ़ ज़ाहिर है कि अपराधियों को पुलिस का मूक समर्थन मिला हुआ था। अब थके हारे मुख्यमंत्री के इस बयान का कोई अर्थ नहीं कि अपराधियों को पकड़ कर मृत्यु दण्ड दिया जाएगा। उनके पास केवल एक ही विकल्प है – पद से त्यागपत्र देना।
उत्तर प्रदेश के पूर्व डी.जी.पी. विक्रम सिंह ने एक टीवी कार्यक्रम में बहुत ज़ोर दे कर कहा, “अगर पुलिस ने 2 महीने बाद एफ़.आई.आर. की है, तो इसकी क्या वजह रही। साथ ही कहा कि पुलिस पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि उस जिले के डी.एम.-एस.एस.पी. को बर्खास्त क्यों नहीं किया गया?”
विक्रम सिंह ने महिलाओं से दरिंदगी करने वालों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की मांग की है। मणिपुर में महिलाओं पर हुए जुल्म की तस्वीरें देखकर पूरा देश स्तब्ध है। हिंसा का दंश झेल रहे इस राज्य में जो हैवानियत हुई, उसने समाज में इंसानियत पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस दरिंदगी पर अब सियासत हो रही है। विक्रम सिंह ने आगे कहा कि, “इस मामले में अभी तक कठोरतम कार्रवाई नहीं की गई है। साथ ही कहा कि अगर मैं वहां होता तो लोग जनरल डायर को भूल जाते। उन्होंने कहा कि पुलिस इसलिए नहीं हैं कि वह मूक दर्शक बनी रहे। अगर मैं होता तो यह दरिंदगी करने वाले किसी महिला की तरफ आंख उठाकर देखने के काबिल नहीं रहते।”
हमें लगता है कि श्री विक्रम सिंह ने हर भारतीय के दिल की बात कह दी है। यही अंतर है एक पूर्व पुलिस अधिकारी एवं एक राजनीतिज्ञ में। उन्होंने मामले के साथ राजनीति नहीं की। उन्हें किसी पक्ष या विपक्ष की कोई परवाह नहीं थी। उनके स्वर में उन दो औरतों के प्रति दर्द सुनाई दे रहा था जिनका अपमान सरे बाज़ार कुछ गुंडों ने किया।
तीन महीने से चुप प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी चुप्पी तोड़ी और वीडियो पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मणिपुर के हालात देखकर मेरा ह्रदय दुःख और क्रोध से भरा हुआ है। किसी भी तरह की हिंसा को बातचीत से सुलझाया जा सकता है। मणिपुर का वीडियो परेशान करने वाला है, (महिलाओं के साथ) जो घटना सामने आई है वो अस्वीकार्य है। किसी भी सभ्य समाज के लिए ये शर्मसार करने वाली है। पाप करने वाले, गुनाह करने वाले कितने हैं कौन हैं, वे अपनी जगह पर हैं। लेकिन बेइज्ज़ती पूरे देश की हो रही है। 140 करोड़ देशवासियों को शर्मसार होना पड़ रहा है। जिन्होंने यह कृत्य किया है उन्हें माफ़ नहीं किया जाएगा। मैं देश को विश्वास दिलाता हूं कि इस मामले में सख़्त से सख़्त कार्रवाई की जाएगी।”
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगे कहा, “मैं सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वे अपने-अपने राज्य में कानून व्यवस्था को और मजबूत करें। ख़ासकर हमारी माताओं और बहनों की सुरक्षा के लिए कठोर से कठोर कदम उठाएं। घटना चाहे राजस्थान की हो, छत्तीसगढ़ की हो या मणिपुर की हो। इस देश में हिंदुस्तान के किसी भी कोने में किसी भी राज्य सरकार में राजनीति से ऊपर उठ कर के कानून व्यवस्था का महत्व और नारी सम्मान होना चाहिए।”
भारतीय विपक्ष की 26 पार्टियां अभी-अभी बंगलूरु से एक साझा मंच बना कर हटी हैं। और यह बदनुमा दाग़ जैसा वीडियो संसद सत्र से ठीक एक दिन पहले वायरल हुआ। विपक्ष को चाहिये था कि इस मुद्दे के साथ राजनीति न करते हुए, इस पर संसद में बहस करता। मगर विपक्ष ने तकनीकी मुद्दों को लेकर हमेशा की तरह केवल हंगामा खड़ा किया और सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। दरअसल भारतीय जनता पार्टी समझ गई है कि विपक्ष को उलझाए रखा जाए और सदन की कार्यवाही स्थगित होती रहे। पूरे का पूरा सत्र बरबाद हो जाए। किसी मुद्दे पर कोई बहस न हो पाए, और कारवां चलता रहे।
इस बेबाक संपादकीय के लिए आपको साधुवाद।
आरक्षण? पता नहीं कब तक इस आकाश कुसुम के लिए हमारे दिलों में दरारें रहेंगी?
महीनों बीत जाते हैं और केंद्र को पूर्वोत्तर की खबर नहीं मिलती! आज के समय में यह संभव है क्या?
क्यों नहीं पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को भी तिब्बत- कश्मीर की ही तरह केंद्र शासित बना दिया जाता?
और क्यों नहीं सेवन सिस्टर्स के लिए वहीं यानी नगालैंड, मिजोरम आदि में केंद्र का सचिवालय स्थापित किया जाता?
वह इलाका इतना सुंदर है कि केवल पर्यटन से उसकी जीडीपी बहुत ऊपर चली जाएगी।
बहरहाल, इस उत्तम संपादकीय हेतु पुनः साधुवाद।
भाई डॉक्टर आर.वी. सिंह साहब आपने संपादकीय के कुछ मुद्दों पर टिप्पणी करते हुए उत्तर पूर्वी राज्यों को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की वकालत की है। आपकी बात केन्द्र सरकार तक पहुंचाने का प्रयास रहेगा। हार्दिक आभार।
पूर्णत: तटस्थ दृष्टि और पत्रकारीय दायित्व के साथ लिखी गई संपादकीय।
बिना किसी का बचाव किए या फिर किसी पर अनावश्यक दबाव बनाए बिना लिखी गई यह सम्पादकीय पत्रकारिता के दीप स्तंभ का काम कर रही है।
हार्दिक आभार आदरणीय!
-गुणशेखर
मणिपुर की ये घटना तो निंदनीय है ही, लेकिन उससे ज्यादा दुखद है विपक्षी दलों का रवैया और 2024 में इसे चुनावी मुद्दा बनाने का। उन महिलाओं का न जाने कितनी बार बलात्कार किया जाता है राजनीतिक दलों द्वारा, क्या इस बात पर कोई गौर करेगा? जब अपने प्रदेशों में ऐसी कोई घटना होती है तो विरोधी दलों के मुँह पर ताला क्यों लग जाता है? हाल ही में राजस्थान और बिहार में भी जघन्य अपराध हुए हैं स्त्रियों के साथ। उस पर कॉंग्रेस क्यों चुप है? मोदीजी सामने आए, बिना कोई सफ़ाई दिए, या अपनी पार्टी का बचाव किए बिना स्पष्ट शब्दों में बलात्कारियों को कठोरतम सज़ा देने की बात की है और उन अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई करने की भी बात की है। आशा है पीड़िताओं को इंसाफ़ मिलेगा।
आदरणीय संपादक महोदय ,
आपके बचपन के भारतऔर इस समय के भारत में उत्तर पूर्वी प्रदेशों के प्रति स्थिति बहुत बदली है। जहां तक कुकी और मैतेई समुदायों की बात है उससे धर्म का कोई लेना देना नहीं है। मैतेई मणिपुर के मूल निवासी हैं और कुकी में अधिकांश दूसरे प्रदेशों से आकर बसे हुए लोग हैं। वास्तविक मुद्दा मूल निवासियों और प्रवासियों का है।
भारतीय संचार माध्यमों से पूर्वोत्तर की स्थिति देश में बराबर प्रसारित होती रही है यह कहना कि किसी को मणिपुर की स्थिति का ज्ञान नहीं था ,सही नहीं है ।
हां जो घृणित ,नृशंस और वीभत्स घटना स्त्रियों के साथ हुई उसको प्रसारित करके विरोधी पक्ष ने अपना उल्लू साधना चाहा है ,इस बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती। विपक्ष ने इस घटना को भी इतने दिनों तक दबाकर क्यों रखा। सदन के समय ही इतनी पुरानी घटना का संज्ञान देकर उसे प्रचारित और प्रसारित किया गया यह केवल राजनीति है। एक स्त्री होने के नाते मुझे इस बात से निरंतर पीड़ा होती रहती है कि स्त्री का शरीर ढकना, स्त्री की नग्नता, उसका जीवित रहना, उसका मरना सभी कुछ समाज और राजनीति अपने सीमित स्वार्थों के लिए के लिए प्रयोग करती है।
क्या कभी ऐसा समय आएगा जब स्त्री समाज में आधे की वास्तविक हिस्सेदार होगी? काश,कुछ ऐसा चमत्कार हो जाए कि पुरुष स्त्री से पशु बल में निर्बल हो जाए तभी शायद यह संभव हो।।
सरोजिनी जी आपकी दिल से महसूस की गयी टिप्पणी और नारी के प्रति हिंसा पर आपकी महसूस की गई पीड़ा हमारे पाठकों तक पहुंची है। उम्मीद करते हैं कि देश में एक मुहिम शुरू होगी ताकि नारियों पर अत्याचार पर लगाम लग सके।
यह बेहद दुखद और शर्मनाक घटना है। 4 मई को एक मोटर वर्कशॉप में भी दो युवतियों के साथ ऐसी ही घटना घटी थी,जिसका संज्ञान नहीं लिया गया। दोनों युवतियां वर्कशॉप की केयर टेकर थीं। भीड़ में महिलाएं भी थीं जिनके कहने के बाद भीड़ में लोगों ने एक कमरे में दोनोँ के साथ सामूहिक बलात्कार किया और मरणासन्न दोनों को सड़क किनारे फेंक दिया था। बाद में दोनोँ की मृत्यु हो गयी।
बंगाल, राजस्थान, बिहार, उ.प्र.,केरल—कोई भी राज्य ऐसा नहीं जहां ऐसे जघन्य अपराध नहीं हो रहे। संसद में विपक्ष की भूमिका दुर्भाग्यपूर्ण है। वह हर घटना में 2024 का गणित देखता है। यह विषय राजनीति करने का नहीं पक्ष-विपक्ष को मिलकर समाधान खोजने का है।
रूप भाई आपने सही कहा कि नारियों के प्रति हिंसात्मक रवैया किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। मणिपुर के साथ-साथ आपने बंगाल, राजस्थान, बिहार, उ.प्र.,केरल का भी ज़िक्र किया है। बहुत धन्यवाद।
बहुत जरूरी मुद्दों के साथ सार्थक, चिंतनपरक संपादकीय।
सालों साल से अनेक बार ऐसी स्थितियों ने महिलाओं में डर और असुरक्षा की भावना भरी है।
हर बार, हर जगह कठोरतम सजा मिलनी ही चाहिए।
आपका संपाकीय बहुत ज़रूरी विषय पर है, आज के समय में कोई साहित्यकार इस घटना से कतराकर नहीं निकल सकता| आपने इस पर संपादकीय को केन्द्रित किया यह अच्छी बात है| लेकिन धर्म का घालमेल और केन्द्रीय सरकार को निर्दोष जैसा बताना उचित नहीं| ज़िम्मेदारी विपक्ष की नहीं, सरकार की बनती है और सवाल भी सरकार से ही किए जाने चाहिए| यह असंभव है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री मणिपुर के वास्तविक हालात से अनजान हों| राहुल गांधी मणिपुर होकर आ गए लेकिन हमारा प्रधानमंत्री वन्दे भारत ट्रेन के उदघाटन के लिए झंडे हिलाता रह गया| जब प्रधानमंत्री ने बयान भी दिया तो उससे विपक्षियों पर आरोप लगाने की बू आ रही थी| जब अमेरिका में भारतीय लोकतंत्र पर सवाल उठाए गए तो बेशर्मी और बडबोलापन के अलावा कुछ नहीं निकला प्रधानमंत्री के बयान में| बार-बार मणिपुर से मंत्रियों-नेताओं का प्रतिनिधिमंडल आकर लौटता रहा लेकिन मोदी को उनसे मिलने का वक्त नहीं था, हाँ दिल्ली मेट्रो में ड्रामा करने के लिए काफी समय था| इस्तीफा सिर्फ मुख्यमंत्री से नहीं बल्कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से भी माँगा जाना चाहिए, जिसमें आप चूक गए|
बिपिन भाई आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद। हमने लोकतंत्र के बारे में ब्रिटेन से शिक्षा ली है जहां बताया जाता है कि किसी भी देश के चलाने में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की भूमिका होती है। भारत में कानून-व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। जब कभी केन्द्रीय गृह मंत्री या प्रधान मंत्री बोलेंगे उन्हें पूरे देश में महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचार का संज्ञान लेना होगा। संसद में संवाद के लिये भी पक्ष और विपक्ष दोनों बराबर रूप से ज़िम्मेदार हैं। आप के दर्द को समझता हूं। टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।
सादर प्रणाम..
आपका संपादकीय हमेशा की तरह. सारगर्भित. तथ्यपूर्ण. और सार्थक…लगा.इस संवेदनशील मुद्दे को सरल रूप में समझाने की कोशिश सराहनीय है.मैं समस्त राजनीतिक दाव पेच से अलग केवल महिलाओ के सम्मान के लिए अपनी बात कहना चाहूंगी..संपादकीय का हर शब्द मुखर है जिसके लिए..
मणिपुर हिंसा की घटनाओं ने देश को हिला दिया है.और ऐसी.शर्मनाक स्थिति उत्पन्न कर दी है कि.हम कुछ भी कह पाने में सक्षम नहीं पा रहे हैं .एक. महिला होने के नाते मै यह कहना चाहूगी कि हम महिलाए .और प्प्रबुद्ध नागरिक नारी अस्मिता के लिए आवाज भी ऊठाना चाहते हैं..और दोषियो को सजा दिलवाना भी.. तो सरकारऔर कानून को सजग होकर अपना काम करने दें किसी भी तरह की अफवाह. सूचना न फैलाकर शांतिपूर्ण माहौल बनाएं .यह एक. अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है और हमारे सम्मान से जुडा हुआ है .संसद के गलियारो से निकल कर विश्व पटल तक फैल रहे इस विवाद को.लेकर राजनीतिक दलों को भी अपनी श्रेष्ठ भूमिका निभानी होगी.सबसे बडी भूमिका प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया की है अभी ….इतनी बडी संख्य में हिंसा को रोकने के लिए सकारात्मक सूचनाये प्रकाशित करें..भविष्य में ऐसी घटनायें न हों..लोग समाचारों के माध्यम से भ्रमित न हों ..महिलाए अपमानित होती रहें .यह बात उस प्रदेश ही नहीं .देश और समाज के लिए भी लज्जा का कारण है.दुबारा ऐसी घटना न हो .इसकी पूरी कोशिश हो.हां अपराधी कोई भी हो .किसी भी धर्म.समाज. वर्ग या जाति का हो उसे सजा अवश्य मिले .और जितना घृणित कृत्य था उतनी ही कठिन सजा भी होनी चाहिए. ताकि आने वाला समय याद रखे..आपका हार्दिक धन्यवाद आभार भाई..
पद्मा मिश्रा.. साहित्यकार..जमशेदपुर
विभिन्न आंदोलनों क्रांतियों युद्धों में स्त्रियाॅ ही निशाना बनती है।
मणिपुर में हुई घटना से पूरा देश परिचित है। स्त्री के प्रति की गई हिंसा किसी भी रूप में निंदनीय है परंतु इस घटना को विपक्ष केवल भुना आ रहा है।
हमेशा की तरह बेबाक निष्पक्ष संपादकीय के लिए आपको साधुवाद
सामयिक घटना आधारित उम्दा सम्पादकीय
भारत के नीतिगत निर्णयों में बेहद उथल पुथल का समय है ये । सत्ता पक्ष भविष्य ठीक करने की भूमिका में और विपक्ष वर्तमान के सुख को हमेशा की तरह सुनिश्चित करने में व्यस्त । पुलिस के लिए सब कुछ एक घटना या दुर्धटना भर है ।
Dr Prabha mishra
आपने घटना का निष्पक्ष विश्लेषण करते हुए सरकार की मंशा को उजागर किया है। देश स्तब्ध है तब संसद में मजाक हो रहा है। ये घटना राजनीतिक रोटियाँ सेकने की नहीं है। सिर्फ एक राष्ट्र की सम्पूर्ण महिला वर्ग को शर्मसार करने का विषय है।
आधे से अधिक मामलों में पुलिस का मूक दर्शक बने रहना है। विक्रम सिंह जी के कथन की सराहना करती हूँ, जब कोई वर्ग इतना धृष्ट हो जाय तो किसी डायर की ही जरूरत है।
आपने निष्पक्षता से लिखा है, आपकी लेखनी को नमन। काश पूरा देश शर्मसार होता, लेकिन नहीं। कुछ हैं जो आपदा में मौका तलाश रहे हैं और स्थिति से दुःखी या शर्मिंदा नहीं, अपना भविष्य संँवार रहे हैं। रही बात महिलाओं के अपमान की, वो तो हमारे देश ही नहीं पृथ्वी के सारे पुरुषों का विशेषाधिकार रहा है। कारण कोई भी भी हो स्त्री का शीलभंग होता रहा है आगे भी कोई आशा दिखती नहीं… जब तक स्त्रियाँ हैं, घर से बाहर तक अपमानित ही होती रहेंगी, तभी पुरुष का अहंकार और सत्ता कायम रहेगी।
मामला मात्र आरक्षण का नहीं है, मैतेई समुदाय के existence का है। कूकी समुदाय तेज़ी से इसाई बनता जा रहा है। बाहर से आये मिशनरी वालों के साथ मिल कर सैकड़ों चर्च बना कर ये लोग मैतेई समाज को, वहां से रेड इंडियन्स की तरह से या कश्मीर के पंडितों की तरह से बेदखल कर रहे हैं। बहुत दिनों से ये मूल निवासी अस्तित्व के खतरे में जी रहे थे। 64% के लगभग आबादी वाले मैतेई 9% ज़मीन पर रहने को मजबूर हैं, जबकि कूकी पहाड़ों के अलावा घाटी की ज़मीन पर भी कब्ज़ा कर रहे हैं। मैतेई उन क्षेत्रों की ज़मीन ख़रीद नहीं सकते, कानून उन्हें ये हक़ नहीं देता। जो ज़मीन उनकी हैै उन है वो भी हाथ से जा रही है। ऐसे में आरक्षण मिलने पर अपने को सुरक्षित अनुभव करके, अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं। यहां भी एक जेहाद चलाया जा रहा, इसाइयों द्वारा। दुर्भाग्य है की महिलाओं को मोहरा बनाया जा रहा है।
आदरणीय शैली जी, आपने मैतेई समुदाय के अस्तित्व पर सवाल उठाया है और उनकी तुलना कश्मीरी पंडितों से की है। आपने स्थिति को एक अलग ही दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। हम अपने पाठकों से आग्रह करते हैं कि आपके दृष्टिकोण को समझते हुए उस पर अवश्य अपनी राय दें।
Your Editorial of today gives vent to our anguish and distress over the horrific violence meted out to women in Manipur.
You have also given the background of this whole issue and condemned the delay caused by the irresponsible police personnel in taking action against the culprits.
You have also rightly pointed out how
twisting it for a political advantage is equally deplorable.
Warm regards
Deepak Sharma
मन व्यथित है, आँखों में पानी,
क्या यूँ ही होती रहेगी मनमानी?
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गुज़रते बेशर्म लम्हों से
—————————-
हस्तक्षेपों के बीच से गुज़रते हुए
गर्म हवाओं से
होड़ करने की ठानी उसने
द्रौपदी के चीर सी लंबी
गर्म साँसों का हिसाब लगाना
बेशक नामुमकिन लगा उसे
संभवतः मुमकिन था भी नहीं
बाज़ार के अधिक माल की तरह
अपनी पारी की प्रतीक्षा में
बोझल होते उसके मन प्राण
पड़ते रहे शिथिल
एक बेहतर समाज की कल्पना
एक मुस्कान भरी छनक
तारों की छाँव में पलक पाँवड़ों
की खनक
मोह के धागे में बँधे दिलोदिमाग़,
लगाए टकटकी सुदूर क्षितिज पर
मुस्कानों के लिबास में
रही सजती अभिलाषा
गुनगुनाते हुए
सजन रे झूठ मत बोलो
ख़ुदा के पास जाना है – – –
क्या सच ही है भय किसी को?
ये रेशमी उजालों के वायदों की सीढ़ी—
उन पर डगमगाते शिथिल पाँव
एक और बेग़ैरत इतिहास की नींव
और – – ढेरों बेशर्म तमाशाबीन !
जन मानस की बेहयाई
जाति के, बहशियत के नाम पर
बेहयाई भरे घिनौने, टुच्चे करम
कभी न सुलझने वाले मसले
टूटकर बिखरते
होते चकनाचूर
काँच के खिलौनों से शरीर…
पाया उसने स्वयं को
कैद जंजीरों में
परिवार की, पड़ौस की,
समाज की, दुनिया जहान की
खोखले विचारों को
जकड़ने वाली
दोमुखे व्यक्तित्वों से घिरी
साँसों के बीच
घुटते दम को
ज़रूरत थी, शीतल पवन की
किंतु पवन को कर लिया गया था कैद—-
वह आश्चर्य चकित थी
पवन हो सकती है कैसे कैद?
ऊँचाइयों पर जमे लोग
लगा रहे थे ठहाके
बिना किसी चिंता के
बिना किसी दुविधा के
भ्रम के जालों में फँसे लोग
अमरत्व को ओढ़ कंधों पर
नाच रहे अधनंगे नाच
सुबह के सीने से उतरती
भोर की लालिमा ने
कब ओढ़ ली संध्या
करने लगी हवाले ख़ुद को
उत्तुंग लहरों में
न पड़ी ख़बर
किसी पर कोई न असर
ज़िंदगी की हथेली पर
उगा सूरज कर रहा था
कत्ल करने की तैयारी
उसने लपककर उतरते सूरज को
भींच लिया मुट्ठी में
नहीं खोलेगी वह भिंची मुट्ठी
जब तक न उगेंगे नए उजाले
बंद मुट्ठी में कुनमुनाता सूरज
थपकी देने का झूठा प्रयास
चारों ओर अट्ठहास….
उसकी कठोर मुष्टिकाओं में
बंद थे गोले, बारूद
वह चिंगारी भर आँखों में
चल पड़ी उस ओर
जहाँ काली पड़ गई थी ज़मीन,
आसमान, दिशाएँ….
कँपकंपाता रहा संदेश
कुछ शाश्वत सत्यों की
ओढ़े छाल जो शनैः-शनैः
काली और काली पड़ती जा रही
देखते ही देखते !!!
If India could just focus upon the first half-sentence of our Constitution – *WE THE PEOPLE OF INDIA* …. India would be truly Independent. The various forms of *RESERVATIONS* have stretched far beyond their stipulated 10 years life term. We need a hard core dictator to excise it from our country. But alas, in a democratic set up , RESERVATIONS is an untouchable word; no one can dare to touch it ! It will keep piercing deeper and deeper layers of our society …. with more pain, anger and violence.
WE THE PEOPLE OF INDIA…. have to bear with it .
न जाने क्यों इस बार मुझे आभास था कि इस बार का आपका संपादकीय मणिपुर की घटना पर ही आधारित होगा। सच आज आपने अपने संपादकीय ‘ पूरा भारत शर्मिंदा है’ में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं तथा निराकरण भी किया है लेकिन एक बात जो मुझे कचोट रही है कि 4 मई को हुई इस घटना का वीडियो संसद के प्रारम्भ होने से पहले ही क्यों वाइरल किया गया। क्या इस निंदनीय, शर्मनाक घटना का भी राजनैतिक फायदा उठाना ही तो मकसद नहीं। क्या हम इतने संवेदनहीन हो गये हैं कि स्त्री अस्मिता से जुडी इस घटना को भी हम अपने लाभ हानि के तराजू में तौल रहे हैं।
माननीय कोर्ट ने भी मणिपुर की घटना का तो स्वतः संज्ञान ले लिया किन्तु बंगाल, राजस्थान या अन्य जगहों पर हो रही ऐसी घटनाओं पर स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लेता!!
कुछ दिनों पहले ही मैंने पढ़ा था कि चेन्नई में हुई रेप की घटना के आरोपियों को जिन पुलिस वालों ने एनकाउंटर कर मार दिया था, वे जेल में बंद हैं, उन पर मुकदमा चल रहा है। आखिर पुलिस क्यों अपना दायित्व निभाएगी?
मणिपुर में दो समुदायों के बीच हुई इस घटना में सैकड़ों लोग सम्मिलित थे किन्तु उनमें से एक भी ऐसा क्यों नहीं था जो इस शर्मनाक घटना का विरोध कर पाता। कहीं न कहीं हमारी परवरिश में ही गलती है जो हम युवाओं को अच्छे संस्कार नहीं दे पा रहे हैं।
घृणा होती हैं देश में स्त्री के साथ बार बार बलात्कार होते रहते हैं, नया नहीं है, पर स्त्री सुरक्षा के लिए क्या किया गया है अब तक, एक के बाद एक गुनाह होते रहते हैं, शुरुआत में तो बड़ी चर्चा बड़ा विरोध, बाद में सब शान्त। ऐसे की जा रही स्त्री सुरक्षा..?
अब स्त्री सुरक्षा का मुद्दा सर्वोपरि होना चाहिए, पहले इसके लिए कोई न कोई ठोस कदम उठाने ही होंगे।
वरना कोई भी स्त्री घर से बाहर जानें में भी डरेगी।
अब और नहीं।
इस बेबाक संपादकीय के लिए आपको साधुवाद।
आरक्षण? पता नहीं कब तक इस आकाश कुसुम के लिए हमारे दिलों में दरारें रहेंगी?
महीनों बीत जाते हैं और केंद्र को पूर्वोत्तर की खबर नहीं मिलती! आज के समय में यह संभव है क्या?
क्यों नहीं पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को भी तिब्बत- कश्मीर की ही तरह केंद्र शासित बना दिया जाता?
और क्यों नहीं सेवन सिस्टर्स के लिए वहीं यानी नगालैंड, मिजोरम आदि में केंद्र का सचिवालय स्थापित किया जाता?
वह इलाका इतना सुंदर है कि केवल पर्यटन से उसकी जीडीपी बहुत ऊपर चली जाएगी।
बहरहाल, इस उत्तम संपादकीय हेतु पुनः साधुवाद।
भाई डॉक्टर आर.वी. सिंह साहब आपने संपादकीय के कुछ मुद्दों पर टिप्पणी करते हुए उत्तर पूर्वी राज्यों को केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की वकालत की है। आपकी बात केन्द्र सरकार तक पहुंचाने का प्रयास रहेगा। हार्दिक आभार।
पूर्णत: तटस्थ दृष्टि और पत्रकारीय दायित्व के साथ लिखी गई संपादकीय।
बिना किसी का बचाव किए या फिर किसी पर अनावश्यक दबाव बनाए बिना लिखी गई यह सम्पादकीय पत्रकारिता के दीप स्तंभ का काम कर रही है।
हार्दिक आभार आदरणीय!
-गुणशेखर
भाई गुणशेखर जी आपकी स्नेह से परिपूर्ण टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।
मणिपुर की ये घटना तो निंदनीय है ही, लेकिन उससे ज्यादा दुखद है विपक्षी दलों का रवैया और 2024 में इसे चुनावी मुद्दा बनाने का। उन महिलाओं का न जाने कितनी बार बलात्कार किया जाता है राजनीतिक दलों द्वारा, क्या इस बात पर कोई गौर करेगा? जब अपने प्रदेशों में ऐसी कोई घटना होती है तो विरोधी दलों के मुँह पर ताला क्यों लग जाता है? हाल ही में राजस्थान और बिहार में भी जघन्य अपराध हुए हैं स्त्रियों के साथ। उस पर कॉंग्रेस क्यों चुप है? मोदीजी सामने आए, बिना कोई सफ़ाई दिए, या अपनी पार्टी का बचाव किए बिना स्पष्ट शब्दों में बलात्कारियों को कठोरतम सज़ा देने की बात की है और उन अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई करने की भी बात की है। आशा है पीड़िताओं को इंसाफ़ मिलेगा।
प्रिय रिंकु, आपकी टिप्पणी संपादकीय में उठाए गये मुद्दों को राजनीतिक दलों की सिलेक्टिव प्रतिक्रिया के परिप्रेक्ष्य में देखती है। हार्दिक आभार।
आदरणीय संपादक महोदय ,
आपके बचपन के भारतऔर इस समय के भारत में उत्तर पूर्वी प्रदेशों के प्रति स्थिति बहुत बदली है। जहां तक कुकी और मैतेई समुदायों की बात है उससे धर्म का कोई लेना देना नहीं है। मैतेई मणिपुर के मूल निवासी हैं और कुकी में अधिकांश दूसरे प्रदेशों से आकर बसे हुए लोग हैं। वास्तविक मुद्दा मूल निवासियों और प्रवासियों का है।
भारतीय संचार माध्यमों से पूर्वोत्तर की स्थिति देश में बराबर प्रसारित होती रही है यह कहना कि किसी को मणिपुर की स्थिति का ज्ञान नहीं था ,सही नहीं है ।
हां जो घृणित ,नृशंस और वीभत्स घटना स्त्रियों के साथ हुई उसको प्रसारित करके विरोधी पक्ष ने अपना उल्लू साधना चाहा है ,इस बारे में कोई दो राय नहीं हो सकती। विपक्ष ने इस घटना को भी इतने दिनों तक दबाकर क्यों रखा। सदन के समय ही इतनी पुरानी घटना का संज्ञान देकर उसे प्रचारित और प्रसारित किया गया यह केवल राजनीति है। एक स्त्री होने के नाते मुझे इस बात से निरंतर पीड़ा होती रहती है कि स्त्री का शरीर ढकना, स्त्री की नग्नता, उसका जीवित रहना, उसका मरना सभी कुछ समाज और राजनीति अपने सीमित स्वार्थों के लिए के लिए प्रयोग करती है।
क्या कभी ऐसा समय आएगा जब स्त्री समाज में आधे की वास्तविक हिस्सेदार होगी? काश,कुछ ऐसा चमत्कार हो जाए कि पुरुष स्त्री से पशु बल में निर्बल हो जाए तभी शायद यह संभव हो।।
सरोजिनी जी आपकी दिल से महसूस की गयी टिप्पणी और नारी के प्रति हिंसा पर आपकी महसूस की गई पीड़ा हमारे पाठकों तक पहुंची है। उम्मीद करते हैं कि देश में एक मुहिम शुरू होगी ताकि नारियों पर अत्याचार पर लगाम लग सके।
तेजेंद्र शर्मा सर जी
बहुत सुंदर ढंग से लिखा है।
मणिपुर की घटना शर्मनाक है।
संपूर्ण नारी जाति के लिए चिंता का विषय है।
डॉ. मुक्ति आपकी सार्थक टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।
यह बेहद दुखद और शर्मनाक घटना है। 4 मई को एक मोटर वर्कशॉप में भी दो युवतियों के साथ ऐसी ही घटना घटी थी,जिसका संज्ञान नहीं लिया गया। दोनों युवतियां वर्कशॉप की केयर टेकर थीं। भीड़ में महिलाएं भी थीं जिनके कहने के बाद भीड़ में लोगों ने एक कमरे में दोनोँ के साथ सामूहिक बलात्कार किया और मरणासन्न दोनों को सड़क किनारे फेंक दिया था। बाद में दोनोँ की मृत्यु हो गयी।
बंगाल, राजस्थान, बिहार, उ.प्र.,केरल—कोई भी राज्य ऐसा नहीं जहां ऐसे जघन्य अपराध नहीं हो रहे। संसद में विपक्ष की भूमिका दुर्भाग्यपूर्ण है। वह हर घटना में 2024 का गणित देखता है। यह विषय राजनीति करने का नहीं पक्ष-विपक्ष को मिलकर समाधान खोजने का है।
रूप भाई आपने सही कहा कि नारियों के प्रति हिंसात्मक रवैया किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। मणिपुर के साथ-साथ आपने बंगाल, राजस्थान, बिहार, उ.प्र.,केरल का भी ज़िक्र किया है। बहुत धन्यवाद।
बहुत जरूरी मुद्दों के साथ सार्थक, चिंतनपरक संपादकीय।
सालों साल से अनेक बार ऐसी स्थितियों ने महिलाओं में डर और असुरक्षा की भावना भरी है।
हर बार, हर जगह कठोरतम सजा मिलनी ही चाहिए।
आपकी टिप्पणी से सहमत अनिता जी।
आपका संपाकीय बहुत ज़रूरी विषय पर है, आज के समय में कोई साहित्यकार इस घटना से कतराकर नहीं निकल सकता| आपने इस पर संपादकीय को केन्द्रित किया यह अच्छी बात है| लेकिन धर्म का घालमेल और केन्द्रीय सरकार को निर्दोष जैसा बताना उचित नहीं| ज़िम्मेदारी विपक्ष की नहीं, सरकार की बनती है और सवाल भी सरकार से ही किए जाने चाहिए| यह असंभव है कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री मणिपुर के वास्तविक हालात से अनजान हों| राहुल गांधी मणिपुर होकर आ गए लेकिन हमारा प्रधानमंत्री वन्दे भारत ट्रेन के उदघाटन के लिए झंडे हिलाता रह गया| जब प्रधानमंत्री ने बयान भी दिया तो उससे विपक्षियों पर आरोप लगाने की बू आ रही थी| जब अमेरिका में भारतीय लोकतंत्र पर सवाल उठाए गए तो बेशर्मी और बडबोलापन के अलावा कुछ नहीं निकला प्रधानमंत्री के बयान में| बार-बार मणिपुर से मंत्रियों-नेताओं का प्रतिनिधिमंडल आकर लौटता रहा लेकिन मोदी को उनसे मिलने का वक्त नहीं था, हाँ दिल्ली मेट्रो में ड्रामा करने के लिए काफी समय था| इस्तीफा सिर्फ मुख्यमंत्री से नहीं बल्कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से भी माँगा जाना चाहिए, जिसमें आप चूक गए|
बिपिन भाई आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद। हमने लोकतंत्र के बारे में ब्रिटेन से शिक्षा ली है जहां बताया जाता है कि किसी भी देश के चलाने में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की भूमिका होती है। भारत में कानून-व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है। जब कभी केन्द्रीय गृह मंत्री या प्रधान मंत्री बोलेंगे उन्हें पूरे देश में महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचार का संज्ञान लेना होगा। संसद में संवाद के लिये भी पक्ष और विपक्ष दोनों बराबर रूप से ज़िम्मेदार हैं। आप के दर्द को समझता हूं। टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।
सादर प्रणाम..
आपका संपादकीय हमेशा की तरह. सारगर्भित. तथ्यपूर्ण. और सार्थक…लगा.इस संवेदनशील मुद्दे को सरल रूप में समझाने की कोशिश सराहनीय है.मैं समस्त राजनीतिक दाव पेच से अलग केवल महिलाओ के सम्मान के लिए अपनी बात कहना चाहूंगी..संपादकीय का हर शब्द मुखर है जिसके लिए..
मणिपुर हिंसा की घटनाओं ने देश को हिला दिया है.और ऐसी.शर्मनाक स्थिति उत्पन्न कर दी है कि.हम कुछ भी कह पाने में सक्षम नहीं पा रहे हैं .एक. महिला होने के नाते मै यह कहना चाहूगी कि हम महिलाए .और प्प्रबुद्ध नागरिक नारी अस्मिता के लिए आवाज भी ऊठाना चाहते हैं..और दोषियो को सजा दिलवाना भी.. तो सरकारऔर कानून को सजग होकर अपना काम करने दें किसी भी तरह की अफवाह. सूचना न फैलाकर शांतिपूर्ण माहौल बनाएं .यह एक. अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है और हमारे सम्मान से जुडा हुआ है .संसद के गलियारो से निकल कर विश्व पटल तक फैल रहे इस विवाद को.लेकर राजनीतिक दलों को भी अपनी श्रेष्ठ भूमिका निभानी होगी.सबसे बडी भूमिका प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया की है अभी ….इतनी बडी संख्य में हिंसा को रोकने के लिए सकारात्मक सूचनाये प्रकाशित करें..भविष्य में ऐसी घटनायें न हों..लोग समाचारों के माध्यम से भ्रमित न हों ..महिलाए अपमानित होती रहें .यह बात उस प्रदेश ही नहीं .देश और समाज के लिए भी लज्जा का कारण है.दुबारा ऐसी घटना न हो .इसकी पूरी कोशिश हो.हां अपराधी कोई भी हो .किसी भी धर्म.समाज. वर्ग या जाति का हो उसे सजा अवश्य मिले .और जितना घृणित कृत्य था उतनी ही कठिन सजा भी होनी चाहिए. ताकि आने वाला समय याद रखे..आपका हार्दिक धन्यवाद आभार भाई..
पद्मा मिश्रा.. साहित्यकार..जमशेदपुर
पद्मा आपकी टिप्पणी गंभीर, विस्तृत और सार्थक है। हम सबको इस पर ध्यान देना होगा। हार्दिक आभार।
घटना की जितनी निंदा की जाए वो कम है लेकिन ये सही कहा आपने कि सब अपनी राजनीति कर रहे हैं
धन्यवाद आलोक भाई।
विभिन्न आंदोलनों क्रांतियों युद्धों में स्त्रियाॅ ही निशाना बनती है।
मणिपुर में हुई घटना से पूरा देश परिचित है। स्त्री के प्रति की गई हिंसा किसी भी रूप में निंदनीय है परंतु इस घटना को विपक्ष केवल भुना आ रहा है।
हमेशा की तरह बेबाक निष्पक्ष संपादकीय के लिए आपको साधुवाद
आपने एक ऐतिहासिक सत्य की ओर ध्यान दिलाया। हार्दिक आभार।
सामयिक घटना आधारित उम्दा सम्पादकीय
भारत के नीतिगत निर्णयों में बेहद उथल पुथल का समय है ये । सत्ता पक्ष भविष्य ठीक करने की भूमिका में और विपक्ष वर्तमान के सुख को हमेशा की तरह सुनिश्चित करने में व्यस्त । पुलिस के लिए सब कुछ एक घटना या दुर्धटना भर है ।
Dr Prabha mishra
प्रभा जी आपने सही स्थिति की ओर संकेत किया है। हार्दिक आभार।
आपने घटना का निष्पक्ष विश्लेषण करते हुए सरकार की मंशा को उजागर किया है। देश स्तब्ध है तब संसद में मजाक हो रहा है। ये घटना राजनीतिक रोटियाँ सेकने की नहीं है। सिर्फ एक राष्ट्र की सम्पूर्ण महिला वर्ग को शर्मसार करने का विषय है।
आधे से अधिक मामलों में पुलिस का मूक दर्शक बने रहना है। विक्रम सिंह जी के कथन की सराहना करती हूँ, जब कोई वर्ग इतना धृष्ट हो जाय तो किसी डायर की ही जरूरत है।
रेखा जी विक्रम सिंह जी के कथन से मैं पूरी तरह सहमत हूं। पुलिस के कुछ ज़िम्मेदार कर्मियों को नौकरी से निकाला जाना ज़रूरी है।
आपने निष्पक्षता से लिखा है, आपकी लेखनी को नमन। काश पूरा देश शर्मसार होता, लेकिन नहीं। कुछ हैं जो आपदा में मौका तलाश रहे हैं और स्थिति से दुःखी या शर्मिंदा नहीं, अपना भविष्य संँवार रहे हैं। रही बात महिलाओं के अपमान की, वो तो हमारे देश ही नहीं पृथ्वी के सारे पुरुषों का विशेषाधिकार रहा है। कारण कोई भी भी हो स्त्री का शीलभंग होता रहा है आगे भी कोई आशा दिखती नहीं… जब तक स्त्रियाँ हैं, घर से बाहर तक अपमानित ही होती रहेंगी, तभी पुरुष का अहंकार और सत्ता कायम रहेगी।
मामला मात्र आरक्षण का नहीं है, मैतेई समुदाय के existence का है। कूकी समुदाय तेज़ी से इसाई बनता जा रहा है। बाहर से आये मिशनरी वालों के साथ मिल कर सैकड़ों चर्च बना कर ये लोग मैतेई समाज को, वहां से रेड इंडियन्स की तरह से या कश्मीर के पंडितों की तरह से बेदखल कर रहे हैं। बहुत दिनों से ये मूल निवासी अस्तित्व के खतरे में जी रहे थे। 64% के लगभग आबादी वाले मैतेई 9% ज़मीन पर रहने को मजबूर हैं, जबकि कूकी पहाड़ों के अलावा घाटी की ज़मीन पर भी कब्ज़ा कर रहे हैं। मैतेई उन क्षेत्रों की ज़मीन ख़रीद नहीं सकते, कानून उन्हें ये हक़ नहीं देता। जो ज़मीन उनकी हैै उन है वो भी हाथ से जा रही है। ऐसे में आरक्षण मिलने पर अपने को सुरक्षित अनुभव करके, अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं। यहां भी एक जेहाद चलाया जा रहा, इसाइयों द्वारा। दुर्भाग्य है की महिलाओं को मोहरा बनाया जा रहा है।
आदरणीय शैली जी, आपने मैतेई समुदाय के अस्तित्व पर सवाल उठाया है और उनकी तुलना कश्मीरी पंडितों से की है। आपने स्थिति को एक अलग ही दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। हम अपने पाठकों से आग्रह करते हैं कि आपके दृष्टिकोण को समझते हुए उस पर अवश्य अपनी राय दें।
Your Editorial of today gives vent to our anguish and distress over the horrific violence meted out to women in Manipur.
You have also given the background of this whole issue and condemned the delay caused by the irresponsible police personnel in taking action against the culprits.
You have also rightly pointed out how
twisting it for a political advantage is equally deplorable.
Warm regards
Deepak Sharma
Deepak ji, thanks a lot for supporting our editorial on this sensitive issue. You have always understood Purvai’s point of view.
मन व्यथित है, आँखों में पानी,
क्या यूँ ही होती रहेगी मनमानी?
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गुज़रते बेशर्म लम्हों से
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हस्तक्षेपों के बीच से गुज़रते हुए
गर्म हवाओं से
होड़ करने की ठानी उसने
द्रौपदी के चीर सी लंबी
गर्म साँसों का हिसाब लगाना
बेशक नामुमकिन लगा उसे
संभवतः मुमकिन था भी नहीं
बाज़ार के अधिक माल की तरह
अपनी पारी की प्रतीक्षा में
बोझल होते उसके मन प्राण
पड़ते रहे शिथिल
एक बेहतर समाज की कल्पना
एक मुस्कान भरी छनक
तारों की छाँव में पलक पाँवड़ों
की खनक
मोह के धागे में बँधे दिलोदिमाग़,
लगाए टकटकी सुदूर क्षितिज पर
मुस्कानों के लिबास में
रही सजती अभिलाषा
गुनगुनाते हुए
सजन रे झूठ मत बोलो
ख़ुदा के पास जाना है – – –
क्या सच ही है भय किसी को?
ये रेशमी उजालों के वायदों की सीढ़ी—
उन पर डगमगाते शिथिल पाँव
एक और बेग़ैरत इतिहास की नींव
और – – ढेरों बेशर्म तमाशाबीन !
जन मानस की बेहयाई
जाति के, बहशियत के नाम पर
बेहयाई भरे घिनौने, टुच्चे करम
कभी न सुलझने वाले मसले
टूटकर बिखरते
होते चकनाचूर
काँच के खिलौनों से शरीर…
पाया उसने स्वयं को
कैद जंजीरों में
परिवार की, पड़ौस की,
समाज की, दुनिया जहान की
खोखले विचारों को
जकड़ने वाली
दोमुखे व्यक्तित्वों से घिरी
साँसों के बीच
घुटते दम को
ज़रूरत थी, शीतल पवन की
किंतु पवन को कर लिया गया था कैद—-
वह आश्चर्य चकित थी
पवन हो सकती है कैसे कैद?
ऊँचाइयों पर जमे लोग
लगा रहे थे ठहाके
बिना किसी चिंता के
बिना किसी दुविधा के
भ्रम के जालों में फँसे लोग
अमरत्व को ओढ़ कंधों पर
नाच रहे अधनंगे नाच
सुबह के सीने से उतरती
भोर की लालिमा ने
कब ओढ़ ली संध्या
करने लगी हवाले ख़ुद को
उत्तुंग लहरों में
न पड़ी ख़बर
किसी पर कोई न असर
ज़िंदगी की हथेली पर
उगा सूरज कर रहा था
कत्ल करने की तैयारी
उसने लपककर उतरते सूरज को
भींच लिया मुट्ठी में
नहीं खोलेगी वह भिंची मुट्ठी
जब तक न उगेंगे नए उजाले
बंद मुट्ठी में कुनमुनाता सूरज
थपकी देने का झूठा प्रयास
चारों ओर अट्ठहास….
उसकी कठोर मुष्टिकाओं में
बंद थे गोले, बारूद
वह चिंगारी भर आँखों में
चल पड़ी उस ओर
जहाँ काली पड़ गई थी ज़मीन,
आसमान, दिशाएँ….
कँपकंपाता रहा संदेश
कुछ शाश्वत सत्यों की
ओढ़े छाल जो शनैः-शनैः
काली और काली पड़ती जा रही
देखते ही देखते !!!
डॉ प्रणव भारती
प्रणव जी इस बार के संपादकीय ने आपके भीतर के कवि के मन को आंदोलित कर दिया। मन को छू गईं आपकी पंक्तियां।
If India could just focus upon the first half-sentence of our Constitution – *WE THE PEOPLE OF INDIA* …. India would be truly Independent. The various forms of *RESERVATIONS* have stretched far beyond their stipulated 10 years life term. We need a hard core dictator to excise it from our country. But alas, in a democratic set up , RESERVATIONS is an untouchable word; no one can dare to touch it ! It will keep piercing deeper and deeper layers of our society …. with more pain, anger and violence.
WE THE PEOPLE OF INDIA…. have to bear with it .
So Well said Dr. Neelam. This is the issue with which our editorial opens up. Thanks so much.
न जाने क्यों इस बार मुझे आभास था कि इस बार का आपका संपादकीय मणिपुर की घटना पर ही आधारित होगा। सच आज आपने अपने संपादकीय ‘ पूरा भारत शर्मिंदा है’ में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं तथा निराकरण भी किया है लेकिन एक बात जो मुझे कचोट रही है कि 4 मई को हुई इस घटना का वीडियो संसद के प्रारम्भ होने से पहले ही क्यों वाइरल किया गया। क्या इस निंदनीय, शर्मनाक घटना का भी राजनैतिक फायदा उठाना ही तो मकसद नहीं। क्या हम इतने संवेदनहीन हो गये हैं कि स्त्री अस्मिता से जुडी इस घटना को भी हम अपने लाभ हानि के तराजू में तौल रहे हैं।
माननीय कोर्ट ने भी मणिपुर की घटना का तो स्वतः संज्ञान ले लिया किन्तु बंगाल, राजस्थान या अन्य जगहों पर हो रही ऐसी घटनाओं पर स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लेता!!
कुछ दिनों पहले ही मैंने पढ़ा था कि चेन्नई में हुई रेप की घटना के आरोपियों को जिन पुलिस वालों ने एनकाउंटर कर मार दिया था, वे जेल में बंद हैं, उन पर मुकदमा चल रहा है। आखिर पुलिस क्यों अपना दायित्व निभाएगी?
मणिपुर में दो समुदायों के बीच हुई इस घटना में सैकड़ों लोग सम्मिलित थे किन्तु उनमें से एक भी ऐसा क्यों नहीं था जो इस शर्मनाक घटना का विरोध कर पाता। कहीं न कहीं हमारी परवरिश में ही गलती है जो हम युवाओं को अच्छे संस्कार नहीं दे पा रहे हैं।
सुधा जी आपने बहुत सार्थक मुद्दे उठाए हैं। सवाल बहुत से हैं, जवाब हमारे नेताओं को देने हैं।
सटीक और बेबाक संपादकिय लेख
मणिपुर हिंसा,अत्यंत शर्मनाक़_असहनीय
घृणा होती हैं देश में स्त्री के साथ बार बार बलात्कार होते रहते हैं, नया नहीं है, पर स्त्री सुरक्षा के लिए क्या किया गया है अब तक, एक के बाद एक गुनाह होते रहते हैं, शुरुआत में तो बड़ी चर्चा बड़ा विरोध, बाद में सब शान्त। ऐसे की जा रही स्त्री सुरक्षा..?
अब स्त्री सुरक्षा का मुद्दा सर्वोपरि होना चाहिए, पहले इसके लिए कोई न कोई ठोस कदम उठाने ही होंगे।
वरना कोई भी स्त्री घर से बाहर जानें में भी डरेगी।
अब और नहीं।
सदियों से एक ही सवाल “स्त्री सुरक्षा”
डॉ. सपना आपने स्त्री सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण सवाल पूछे हैं।