कुछ लोगों की सोच है कि राहुल गांधी के विरुद्ध कांग्रेस पार्टी में ही षड़यंत्र रचा जा रहा है। तो कुछ का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि राहुल ही विपक्ष का चेहरा बना रहे क्योंकि चुनावों में उसे हराना आसान रहेगा। सच तो यह है कि छवि भारत की ख़राब हो रही है।

राहुल गांधी का मसला इतना जटिल और उलझा हुआ है कि राजनीतिक पंडित भी इसे समझ नहीं पा रहे हैं। राहुल गांधी भारत यात्रा पूरी करते हैं… लंदन के लंबे दौरे पर निकल जाते हैं। वहां भारत के लोकतंत्र पर कुछ विवादित बयान देते हैं। भारत में सूरत की एक अदालत उनको एक क्रिमिनल मानहानि केस में दो वर्ष की कारावास की सज़ा सुनाती है। राहुल गांधी की संसद सदस्यता खारिज हो जाती है। राहुल गांधी के वकील ऊंची अदालत में जाने को टालते रहते हैं। राहुल गांधी को सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस मिल जाता है। जर्मनी और अमरीका जैसे देश राहुल गांधी के पक्ष में बयान जारी कर देते हैं। यदि सलीम जावेद इक्ट्ठे काम कर रहे होते तो एक परफ़ेक्ट स्क्रीनपले और स्क्रिप्ट लिखने का जबरदस्त अवसर था उन दोनों के लिये।
अंग्रेज़ी में एक कहावत है – ‘Politics is all about perception’ यानी कि राजनीति अवधारणाओं का खेल है। क्या सच है उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि सच के रूप में क्या दिखाया जा रहा है और जनता किसे सच मान रही है।
राहुल गांधी ने लंदन एवं केंब्रिज में भारतीय लोकतंत्र के ख़तरे में होने के बारे में बयान दिये और अमरीका वा युरोपीय देशों को इस पर कुछ करने को कहा। मगर दो दिन बाद ही उन्हें शायद अपनी ग़लती का अहसास हो गया और उन्होंने कह दिया कि यह सब भारत का अंदरूनी मामला है और इसका हल भारत में ही ढूंढा जाना चाहिये।
यानी कि राहुल गांधी ने यह अवधारणा स्थापित कर दी कि वह भारतीय लोकतंत्र की रक्षा के लिये विदेशी ताकतों को भारत में दख़लंदाज़ी के लिये निमंत्रण दे रहे हैं। भारत में भारतीय जनता पार्टी ने उनके पहले बयान पर राहुल को घेरा तो कांग्रेस ने दूसरे बयान पर अपना सुरक्षा कवच खड़ा करने का प्रयास किया। यदि भारतीय जनता पार्टी इसी अवधारणा को भुनाने का प्रयास करती रहती तो राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी आत्म-सुरक्षा में ही लगे रहते।
भारतीय जनता पार्टी इस बात पर ज़ोर देती रही कि राहुल गांधी को माफ़ी मांगनी होगी और कांग्रेस कहती रही कि माफ़ी मांगने जैसा कुछ कहा ही नहीं। अब तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। सियासत हो रही थी। दोनों पक्ष अपने आप को सही साबित करने में लगे हुए थे। बस नुकसान हो रहा था भारतीय संसद का और मतदाताओं का। संसद पूरी तरह से ठप्प पड़ी थी। कोई काम नहीं हो रहा था। अब तो लगने लगा है कि न तो सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष संसद में बहस और बातचीत करने में रुचि रखता है। आरोप प्रत्यारोप ही लगते रहते हैं। दोनों पक्षों में कुछ वकीलनुमा व्यक्ति मौजूद हैं जो अपनी-अपनी दलीलें भिन्न टीवी चैनलों पर देते रहते हैं।
आजकल भारत की संसद में कोई काम नहीं होता… किसी विषय पर बहस नहीं होती। बस टीवी चैनलों पर चिल्ल-पों मची रहती है। भारत पहुंचने के बाद राहुल गांधी ने अडानी और मोदी के रिश्तों पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिये। मगर विपक्ष अभी तक पूरी तरह राहुल के साथ खड़ा नहीं दिखाई दे रहा था। ख़ास तौर पर ममता बनर्जी और अखिलेश यादव तो पूरी तरह से कांग्रेस से दूरी बनाए खड़े थे।
अब अचानक 2019 के एक केस पर सूरत की एक अदालत अपना फ़ैसला सुना देती है। 2019 में राहुल ने एक चुनावी रैली में कहा था – “सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है… चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो चाहे नरेंद्र मोदी।” राहुल यहीं पर नहीं थमे राहुल ने आगे कहा, “नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी अभी और ढूढेंगे तो और भी नाम निकल जाएंगे।”
इससे पहले राहुल ने अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला था। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को घेरते हुए कहा था, “चौकीदार ही चोर है। नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, विजय माल्या, ललित मोदी, अनिल अंबानी और नरेंद्र मोदी चोरों की टीम है।” राहुल आरोप लगाया था कि जनता का पैसा इन्हीं लोगों के बीच घूमता रहता है।
भाजपा के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने सूरत की अदालत में राहुल गांधी के विरुद्ध केस दर्ज करवा दिया कि उन्होंने पूरे मोदी समाज की मानहानि की है। बहुत से घुमावदार पेचों से गुज़रते हुए अंततः राहुल गांधी को इस क्रिमिनल मानहानि के जुर्म में दो साल की सज़ा सुना दी गयी। मगर जज ने उन्हें तुरंत ज़मानत देते हुए ऊपरी अदालत में अपील करने की 30 दिन की छूट भी दे दी।
इस मुद्दे पर राजनीति शुरू होना लाज़मी था। कांग्रेस इसे विपक्ष की आवाज़ दबाने की कार्यवाही कहने लगी तो गृहमंत्री अमित शाह ने सत्तारूड़ दल भाजपा का पक्ष ऱखते हुए कहा, “कांग्रेस की ओर से बहुत बड़ी भ्रांति फैलाने का काम किया जा रहा है। हमारे कानून में प्रावधान है कि यदि किसी भी व्यक्ति को दो वर्ष की सजा होती है तो 3 महीने का समय उसको मिलेगा, अपनी सजा को स्टे कराने के लिए। सजा (Punishment) को स्टे कराना और दोष (Conviction) को स्टे कराना दो अलग बातें हैं। कानून में ये प्रोविजन ही नहीं है कि अदालत जब किसी भी व्यक्ति को दो साल या उससे अधिक सजा करती है, वो उस दोष पर रोक लगा सके।”
पुरवाई के पाठकों को याद होगा कि यूपीए-2 की मनमोहन सिंह सरकार एक ऑर्डिनेंस लेकर आई थी जिसमें सज़ा मिलने के बाद भी दोषी उच्च अदालत में अपील करने तक संसद की सदस्यता बरकरार रख सकता था। मगर राहुल गांधी ने पूरे देश के सामने उस ऑर्डिनेंस को नॉनसेंस कह कर फाड़ दिया था। राहुल गांधी के इस कारनामे के बाद उस ऑर्डिनेंस को वापस ले लिया गया था। यदि आज वह कानून होता तो राहुल गांधी की सदस्यता बच सकती थी। राहुल गांधी और उनके वकील कुछ अजब सा व्यवहार कर रहे हैं। वे उच्च न्यायालय में अपील भी नहीं कर रहे और चाहते हैं कि राहुल गांधी की संसद की सदस्यता बची भी रहे।
न्यायिक प्रक्रिया तक तो ठीक था। मगर जिस तेज़ी से राहुल गांधी को उनका घर ख़ाली करने को कहा गया, उसने एक नई अवधारणा का जन्म दे दिया – बेघर राहुल गांधी। अब राहुल गांधी के हाथ एक ज़बरदस्त ‘विक्टिम कार्ड’ आ गया। अब वो विपक्षी दल भी राहुल के साथ हो लिये जो उससे कन्नी काट रहे थे। हालांकि राहुल गांधी किसी रैन बसेरे में नहीं रहने वाले थे। मगर जैसा कि मैंने पहले ही कहा था कि – Politics is all about perception!
मामले को और पेचीदा बनाने के लिये पहले अमरीका और फिर जर्मनी ने भारत के अंदरूनी मामलों में टांग अड़ाने का काम किया। अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने सोमवार को एक प्रेस वार्ता के में कहा, “कानून के शासन और न्यायिक स्वतंत्रता का सम्मान किसी भी लोकतंत्र की आधारशिला है। हम भारतीय अदालतों में श्री गांधी के मामले को देख रहे हैं। हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता पर भारत सरकार के साथ संपर्क में हैं।”
जर्मनी के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्वीट किया, “हमने भारत में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ आए कोर्ट के फैसले के साथ-साथ उनकी संसद से सदस्यता रद्द होने के मामले पर ध्यान दिया है… हमें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार राहुल गांधी इस फैसले के खिलाफ अपील करने की स्थिति में हैं…”
प्रवक्ता ने आगे लिखा, “अपील पर सुनवाई के बाद ये स्पष्ट हो जाएगा कि क्या ये फैसला कायम रहेगा और क्या उन्हें लोकसभा से निलंबित करने का कोई आधार है… हमें भरोसा है कि इस मामले की कार्रवाई न्यायिक स्वतंत्रता और उनके मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांतों को ध्यान में रखकर की जाएगी।”
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पहले तो नाटक करते हुए कहा कि उनका घर राहुल गांधी का अपना घर है। मगर जर्मनी के बयान पर तालियां बजा कर दिग्विजय सिंह ने माहौल को और ख़राब कर दिया।
कुछ लोगों की सोच है कि राहुल गांधी के विरुद्ध कांग्रेस पार्टी में ही षड़यंत्र रचा जा रहा है। तो कुछ का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि राहुल ही विपक्ष का चेहरा बना रहे क्योंकि चुनावों में उसे हराना आसान रहेगा। सच तो यह है कि छवि भारत की ख़राब हो रही है।
पत्रकार प्रदीप सिंह ने अपने यूट्यूब ब्रॉडकास्ट में कहा है, “पिछले 75 वर्षों में भारत में नरेन्द्र मोदी सबसे मज़बूत नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं। वूरे विश्व में उन्होंने जो अपना क़द बनाया है वैसा आजतक कभी नहीं हुआ। इससे केवल भारत का विपक्ष ही परेशान नहीं है, बल्कि विश्व के तमाम बड़े देश भी चिन्तित हैं। वे नहीं चाहते कि भारत एक मज़बूत देश के रूप में स्थापित हो सके। वे चाहते हैं कि भारत में ‘हंग पार्लियेमेंट’ हो और देश इतना कमज़ोर हो जाए कि विदेशों के इशारों पर नाचे।”
भारत में राजनीति के हालात इतने उलझ गये हैं कि आम नागिरक सोचने को मजबूर हो रहा है कि जिन नेताओं को देश चलाने के लिये चुना था वे आख़िर अपने अहम की ख़ातिर देश की बलि चढ़ाने को कयों तुले हुए हैं। भारत में अभी तक नेताओं को यह मूल बात नहीं मालूम है कि देश चलाने के लिये सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की सकारात्मक भूमिका की आवश्यक्ता होती है। यदि दोनों पक्ष संसद को चलने ही नहीं देंगे तो संसद अपना काम कैसे कर पाएगी? न तो सत्ता पक्ष का उद्देश्य विपक्षहीन संसद बनाने का होना चाहिये और न ही विपक्ष का निशाना केवल सत्ता पक्ष को सत्ता से बाहर करना होना चाहिये।

 

 

 

 

 

 

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

26 टिप्पणी

  1. बस एक ही बात में सम्पादकीय का सार है”यदि सलीम जावेद मिलकर काम कर रहे होते तो एक परफेक्ट स्क्रीनप्ले और स्क्रिप्ट लिखने का जबरदस्त अवसर था दोनों के लिए
    साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  2. विचार परक संपादकीय। दो तीन प्रूफ की कमी को छोड़ दें तो एक समझ विकसित करता है यह। आपकी बात से सहमत हूं की राजनीति में अभी जनता कुछ समझ नहीं पा रही इसी का फायदा कुछ राजनीतिक लाभ उठा रही हैं। विपक्ष का मजबूत होना कितना जरूरी होता है इसके कई उदाहरण हमारे देश में मिल जाएंगे।

    • विचारपूर्ण संपादकीय। किसी भी पब्लिक फिगर को किसी जाति वर्ग विशेष के प्रति अपशब्द नहीं कहने चाहिए फिर चाहे वह सत्तापक्ष का हो या विपक्ष का परंतु राजनीति में एक नया खेल शुरू हो रहा है जहां अनर्गल बातें कर कर सत्ता पक्ष को तानाशाह ठहराने का षड्यंत्र रचा जा रहा है।

  3. आवश्यक आलेख ,स्थिति अत्यंत चिंताजनक एवं पेचीदा है। 2024 के चुनाव तक का यह समय भारतीय प्रजातंत्र की बड़ी परीक्षा है !

  4. राहुल मामले में अब तक के सम्पूर्ण तथ्यों का विश्लेषण करते हुए अपने अब तक बन रही परसेप्शन की बात कही है। आपने वह तथ्य भी बता दिया है कि कैसे राहुल गांधी ने उस आर्डिनेंस की प्रति की.वी.पर नानसेंस कहते हुए फाड़ दी थी जबकि उस आर्डिनेंस को उच्चतम न्यायालय के फैसला। के प्रभाव से बचने के लिए मनमोहन सरकार लाई थी। उस समय राहुल गांधी ने मनमोहन सरकार या कि अपनी सरकार का अपमान तो किया था बल्कि उच्चतम न्यायालय के उसी फैसले के अंतर्गत राहुल की सदस्यता रद्द हुई। आम जनता कानून के इन नआइसइटइज़ को नहीं समझती और जनता के मन में किसी सीमा तक यज्ञ परसेप्शन बन सकती है कि राहुल गांधी को सरकार तंग कर रही है। जब राहुल गांधी ने उस आर्डिनेंस को फ़ाड़ा था तो जनता में राहुल गांधी के खिलाफ काफी गुस्सा था और समझो जा रहा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जब अमरीका से लौटे गए तो इस तरह के अपमान के कारण सीधा अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंप देंगे और सोनिया से कहें गए कि संभालो यह प्रधानमंत्री पद, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि वापस लौट कर मनमोहन सिंह ने कहा कि अगर राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह उनके मातहत काम कर खुश होंगे। राहुल गांधी को राजनीति में बिगाड़ा ही गया है अतः वह खुद को हमेशा कानून और देश से उंचा समझते हैं। जिस केस में राहुल को सजा हुई, उसमें उन्हें सही सलाह नहीं दी गई। इसके पीछे क्या है कोई साजिश है या कुछ और, पता नहीं। हम तो यहीं चाहते हैं हो वहीं, जो देश हित में हो

  5. देश के अशक्त- सशक्त होने की कौन सोचता है?,
    सबका परम लक्ष्य (इन दिनों) केवल सत्ता है!
    सबके सिर पर भूत चढ़ा है साल चौबीस का,
    सब आपस में शत्रु है, मीत न कोई किसी का,
    ,येन-केन प्रकारेण बस कुर्सी मिल जाए
    सामने वाला स्वर्ग पाए या फिर नर्क पहुंच जाए।

  6. Politics is all about perception! चरितार्थ सर नतमस्तक हूं मैं,सर बहुत पैनी धार है आपकी कलम की

  7. सलीम-जावेद नहीं, राहुल- सूरजेवाला की जोड़ी भी अच्छी पिक्चर बना रही है, दुनिया तमाशा देख रही है। दुःखद स्थिति है। मोदी की सशक्त छवि और उभरता भारत, विश्व के कई देशों को खटक रहा है। भारत के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र चल रहा है। राहुल के साथ दिक्कत यही है कि उन्हें ख़ुद ही नहीं पता कि उनकी वास्तविक औक़ात क्या है। कॉंग्रेस ने उनको यूटोपिया में रखा हुआ है। उनका रिंग मास्टर कौन है या कितने हैं ये तो सोनिया गांधी को ही पता होगा। दूसरों की सीख पर चल रहे राहुल दिग्भ्रमित हैं। सत्ता पक्ष भी कॉंग्रेस विहीन भारत के लिए कृतसंकल्प है। ऐसे में देश दूसरे स्थान पर आ गया। सही मुद्दों को उठाता सुशोधित सम्पादकीय पठनीय है। धन्यवाद तेजेन्द्र जी।

    • शैली जी, आप हमेशा पुरवाई के संपादकीय पर सृजनात्मक टिप्पणी देती हैं। हार्दिक आभार

  8. हर बार की भाँति आपकी दृष्टि ने बारीकी से खंडहरों के कोनों में से कुरेदकर सवाल परोसे हैं। सबको अपनी ही तो पड़ी है। चिंतनीय यह है कि पक्ष और विपक्ष दोनों अपने मोर्चों पर सही प्रकार डटे रहें।
    अपनी समस्याओं के समाधान स्वयं ही तलाशने होंगे। कोई दूसरा आख़िर क्यों आपके लिए शुभचिंतक बना रहेगा?
    राजनीतिक दलों को दूर से प्रणाम। यदि समझकर भी मूर्खता होती है तो इसका कोई हल कैसे निकल सकता है?स्थिति कष्टप्रद है।जिसका भुगतान तो आम नागरिक को ही करना है।
    आपके जागरूकता अभियान के लिए साधुवाद। शेष सब महानुभावों पर।

  9. आपने सब कह ही दिया है लेकिन इसमें राहुल गांधी अधिक दोषी हैं और उनके द्वेष भाव के बयान बीजेपी को खूब फायदा देते रहे हैं और बीजेपी इसे यथावत जारी रखे हुए थी लेकिन सूरत के कोर्ट के फैसले ने बीजेपी का भी खुब बिगाड़ किया जिसे कोर्ट से स्टे न लेकर अपनी राजनीति को खुब चमकाया कांग्रेस ने । बाकी किसी भी संसद सदस्य के साथ होता रहा है वैसे ही सामान्य तरीके से उनकी सदस्यता गई और घर छोड़ने की नोटिस मिली और कांग्रेस का मानना है कि राहुल गांधी के साथ ऐसे सामान्य तरीके से कुछ कैसे कर दिया गया। वे इस देश के कानून से ऊपर है तो जिस मोदी सरकार ने अमेरिका चीन की नहीं सुनी उसके लिए राहुल गांधी तो सामान्य से भी नीचे हैं फिर जिसे जो चिल्लाना हो चिल्लाए

    • जी, आज पता चला है कि राहुल गांधी सूरत की कोर्ट में ही अपने कन्विक्शन को खारिज करवाने की अर्जी दे रहे हैं और वहां अपने दस पंद्रह बड़े नेताओ को साथ लेकर जा रहे हैं।

  10. सम्पादकीय के अंत में आपने जो बात कही है, वहीं स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र का आधार है। लेकिन लगता है कि पक्ष और विपक्ष दोनों ही इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है। एक लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहने से विपक्ष बौखला गया है और साम दाम दण्ड भेद की नीति अपनाकर सत्ता पक्ष को सत्ता से बाहर करना चाहता है क्योंकि उसके मुंह भ्रष्टाचार और सत्ता कि खून पिछले 75 वर्षों से लगा हुआ है और उसने सत्ता को अपनी बपौती समझ लिया है। लेकिन विडम्बना यह है कि इन सबसे देश की छवि का नुक़सान हो रहा है और विदेशी नेता इसी ताक में बैठे रहते हैं कि कब हमारा पप्पू विदेश में जाकर देश की छवि खराब करे और कब उन्हें हमारे आन्तरिक मामलों में बोलने का मौका मिले। कुल मिलाकर स्थिति चिंताजनक है और इस पर विचार करना आवश्यक है। उत्कृष्ट सम्पादकीय हेतु हार्दिक बधाई।
    – सरिता सुराणा
    स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका

  11. आज का आपका संपादकीय भारत की आज की मूल समस्या पर आधारित है। सच लोकतंत्र में जितना सत्ता पक्ष का मजबूत होना आवश्यक है उतना ही विपक्ष का…किन्तु जितनी सकारात्मकता की लोग सत्ता पक्ष से उम्मीद करते हैं उतनी ही विपक्ष से। केवल सरकार का विरोध ही विपक्ष का मूल आधार नहीं होना चाहिए। जबकि पिछले दशक से लगातार यही हो रहा है। यह प्रवृति लोकतंत्र के लिए घातक है।

    जहाँ तक राहुल गाँधी का प्रश्न है उनको और उनकी पार्टी को समझना चाहिए कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष पश्चात् देश की और अपनी समस्याओं में बाहरी देशों से उन्हें सुलझाने के लिए आग्रह करना मानसिक गुलामी का सूचक है। नेहरू जी एक बार ऐसी गलती कर चुके हैं, उन्हें इस प्रवृति से बचना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें स्वयं निर्णय करना होगा कि वे ग़ुलाम देश में रह रहे हैं या स्वतंत्र देश में। एक आत्मसम्मानी व्यक्ति के लिए देश से बड़ा कुछ नहीं है। देश है तो हम हैं।

    • सुधा जी संपादकीय को बेहद ख़ूबसूरत ढंग से आपने पाठकों तक पहुंचा दिया है। बेहतरीन टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार।

  12. समसामयिक होने के साथ ही सटीक एवं सार्थक सम्पादकीय हेतु हार्दिक बधाई।

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