भारत में राजनीति चलती रहेगी। कोरोना की तीसरी, चौथी और पाँचवीं लहर आती रहेगी। लोग मरते रहेंगे और राजनीतिज्ञ एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहेंगे। अब समय आ गया है कि कोरोना पर ब्राउनी पाइंट्स स्कोर करना बंद करें। राजनीति में चुनाव जीतना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है मगर याद रखा जाए – यदि नागरिक बचेंगे तो राष्ट्र बचेगा; यदि राष्ट्र बचेगा तभी चुनाव होंगे… तभी कोई दल सत्तारूड़ बनेगा और दूसरा विपक्ष। सब मिल कर एक ही मुहिम का हिस्सा बनें – “हमें राष्ट्र बचाना है, और कोरोना जैसी महामारी को हराना है!”
‘पुरवाई’ ने हमेशा कहा है कि कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं जिनमें यह आशा की जाती है कि देश का हर राजनीतिक दल देश को केन्द्र में रख कर सोचे और राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम न करें। मगर ऐसा हो नहीं पाता। विपक्ष और सत्ता पक्ष एक दूसरे को कटघरे में खड़ा करने में अधिक ताकत व्यर्थ करते दिखाई देते हैं; आपदा को लेकर कोई ज़िम्मेदार रवैया नहीं दिखाते।
जब भारत में कोरोना की दूसरी लहर आई तो न तो केन्द्र सरकार ही इसके लिये तैयार थी और न ही राज्य सरकारें। पहली लहर से निपटने के बाद सब ने सोच लिया था कि भारत महान् है और कोरोना पर विजय पाने वाला अद्भुत देश है।
भारत की राजनीति विचित्र है। यहां विपक्ष और सत्तापक्ष को यह बात कभी समझ नहीं आती कि देश है तो राजनीति है। बस एक दूसरे की टाँग घसीटना मुख्य गतिविधि रहती है।
वैसे पूरे विश्व में कोरोना कहर के चलते हर सत्तारूड़ दल अक्षम साबित हुआ और हर विपक्षी दल सर्वज्ञ। क्योंकि विपक्ष को कुछ करना धरना तो था नहीं… उसका बस एक ही काम था कि ट्वीट करो और सत्तापक्ष को घेरो। वहीं सत्तापक्ष ने क्योंकि ऐसे वायरस का पहले कभी सामना किया नहीं था, बस अंग्रेज़ी का ’हिट एण्ड ट्रायल’ तरीका अपनाया।
जिन देशों में कोविद-19 और उसके दूसरे स्वरूपों से एक लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है, उनमें शामिल हैं – अमरीका (6,18,294), ब्राज़ील (5,07,240), भारत (3,92,014), मेक्सिको (2,31,847), पेरू (1,91,073), रूस (1,30,895), ब्रिटेन (1,28,027), इटली (1,27,352), फ़्रांस (1,10,862), कोलम्बिया (1,01,947)। मगर जो राजनीति पुरवाई ने भारत में होती देखी है, वो किसी अन्य देश में नहीं देखी। दूसरे देशों में जो बातचीत होती है वहां की संसद में होती है।
भारत में जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो कोहराम मच गया कि ऑक्सीजन की कमी है। दिल्ली सरकार और वहां के हस्पतालों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई कि दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी है। दिल्ली सरकार ने दावा किया कि उन्हें 1140 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की ज़रूरत है। चारों तरफ़ हाहाकार मचा था। ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीज़ मर रहे थे और उनके रिश्तेदार ऑक्सीजन के लिये दर-दर भटक रहे थे। अस्पतालों में भी ऑक्सीजन की किल्लत थी… ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक ऑक्सीजन ऑडिट टीम बनाई गई थी, जिसकी शुरुआती रिपोर्ट अब सामने आई है।
याद रहे कि उसी दौरान सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एम. आर. शाह की बेंच ने 12 सदस्यीय टास्क फ़ोर्स का गठन कर उनसे ऑक्सीजन वितरण, जरूरत और सप्लाई पर एक ऑडिट रिपोर्ट तलब की थी।
इस टास्क फोर्स में दो सरकारी अधिकारी और देश के दस जाने माने डॉक्टर्स भी शामिल थे… सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस टास्क फोर्स को 6 महीने का वक्त दिया गया था…
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऑक्सीजन के आवंटन का मैकनिज्म बनाने और सुझाव देने के लिए गठित नैशनल टास्क फोर्स की ओर से पेश रिपोर्ट में बताया गया है कि मार्च और अप्रैल 2020 में केंद्र सरकार ने कई कारगर कदम उठाए थे और पहली लहर के दौरान केंद्र सरकार ने जो कदम उठाए थे उस कारण दूसरे वेब के समय जल्द उत्पादन बढ़ाने में मदद मिली। पहली लहर के दौरान भारत सरकार ने लिक्विड ऑक्सीजन की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए थे और इसी कारण दूसरी लहर के दौरान तुरंत ऑक्सीजन उपलब्धता में मदद मिली।
ऑक्सीजन टास्क फोर्स ने आगे कहा है कि 29 अप्रैल से 10 मई के बीच कुछ हस्पतालों में डाटा ठीक किया गया… दिल्ली सरकार ने इस दौरान 1140 मीट्रिक टनऑक्सीजन की ज़रूरत बताई… जबकि असल में यह ज़रूरत केवल 209 एम.टी. थी।
रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि दिल्ली की इसी मांग के कारण करीब 12 राज्यों में ऑक्सीजन की किल्लत पैदा हुई थी, क्योंकि तब की जा रही मांग के मुताबिक ऑक्सीजन की अतिरिक्त सप्लाई दिल्ली में की जा रही थी।ज़्यादा ऑक्सीजन की मांग करने से देश के बाकी उन राज्यों पर असर पड़ा, जो खुद भी ऑक्सीजन की किल्लत से जूझ रहे थे… और एक ख़ास बात ध्यान देने की ये है कि मुंबई में भी करीब इतने ही केस थे जितने कि दिल्ली में, लेकिन वहां ऑक्सीजन की डिमांड नहीं बढ़ाई गई थी। ऑक्सीजन का ऑडिट करने वाली कमेटी की इसी रिपोर्ट के आधार पर आज बीजेपी ने दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को घेरा और आरोप लगाया कि आपने तो एक जघन्य अपराध कर दिया।
एन.टी.एफ. ने ये सुझाव भी दिए कि शीर्ष न्यायालय के आदेश के अनुरूप राज्य-वार ऑक्सीजन ऑडिट समितियों का गठन किया जाए। केंद्रीय स्तर पर सिलेंडरों की खरीद, ऑक्सीजन का उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाई जाए और ऑक्सीजन की राज्यों की ज़रूरतों का आकलन कर आपूर्ति के इंतजाम किए जाएं।
इस रिपोर्ट आने के बाद राजनीति थमने के बजाए और अधिक उग्र रूप से सामने आने लगी। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट कर लिखा कि ऑक्सीजन की जितनी आवश्यक्ता थी उससे 4 गुना ज्यादा की माँग करने से बाकी प्रदेशों को उसका नुकसान उठाना पड़ा, उनको ऑक्सीजन की कमी पड़ी… शोर मचाना कोई दिल्ली सरकार से सीखे…
दिल्ली सरकार द्वारा जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन की मांग को लेकर भाजपा नेता संबित पात्रा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा और कहा कि उन्होंने एक जघन्य अपराध किया है। इसके लिए उन्हें माफ़ी मांगनी चाहिए। इसके तुरंत बाद दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आरोपों पर जवाब देते हुए कहा कि ऐसी कोई रिपोर्ट है ही नहीं…
संबित पात्रा ने कहा, “केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उन्होंने आई.सी.एम.आर. की गाइडलाइंस के मुताबिक ऑक्सीजन की कैल्कुलेशन की। लेकिन जब कमेटी ने अरविंद केजरीवाल से आई.सी.एम.आर. की गाइडलाइन्स की कॉपी मांगी तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। इसका मतलब अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोला।”
संबित पात्रा ने आगे कहा, “6 मई को केजरीवाल प्रेस कॉन्फ्रेंस कर 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग करते हैं… उसके कुछ घंटे बाद राघव चड्डा कहते हैं कि उन्हें 976 मीट्रिक टन ऑक्सीजन चाहिए… एक ही दिन में दो-दो लोग अलग आंकड़ा बताते हैं। ये कहीं न कहीं एक साज़िश के तहत किया गया है, दिल्ली सरकार ने अपनी गलती छिपाने के लिए केंद्र पर ठीकरा फोड़ दिया।”
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि उन्होंने “ऑडिट कमेटी के सदस्यों से बात की, उन्होंने कोई रिपोर्ट साइन नहीं की है। जब कमेटी के सदस्यों ने अप्रूव ही नहीं की, तो फिर ये रिपोर्ट है कहां? ये कौन सी रिपोर्ट है… कहां से आई? बीजेपी के नेता जो सुबह से चैनल्स पर बैठकर चिल्ला रहे हैं, वो ठंडा पानी पियें… वो रिपोर्ट कहां हैं, क्या ऑक्सीजन ऑडिट कमेटी की रिपोर्ट है? ऐसी रिपोर्ट दिखाइये जिस पर साइन किये गये हों। वो रिपोर्ट लाइए… मैं चुनौती देता हूं कि वो रिपोर्ट लेकर आएं!”
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस विषय में एक ट्वीट करते हुए लिखा, “मैं अपने दो करोड़ लोगों की सांसों के लिए लड़ा… जब आप चुनावी रैली कर रहे थे, मैं रात-रात भर जग कर का इंतज़ाम कर रहा था। लोगों को ऑक्सिजन दिलाने के लिए मैं लड़ा, गिड़गिड़ाया लोगों ने ऑक्सीजन की कमी से अपनों को खोया है… उन्हें झूठा मत कहिए, उन्हें बहुत बुरा लग रहा है।”
भारत में राजनीति चलती रहेगी। कोरोना की तीसरी, चौथी और पाँचवीं लहर आती रहेगी। लोग मरते रहेंगे और राजनीतिज्ञ एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहेंगे। अब समय आ गया है कि कोरोना पर ब्राउनी पाइंट्स स्कोर करना बंद करें। राजनीति में चुनाव जीतना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है मगर याद रखा जाए – यदि नागरिक बचेंगे तो राष्ट्र बचेगा; यदि राष्ट्र बचेगा तभी चुनाव होंगे… तभी कोई दल सत्तारूड़ बनेगा और दूसरा विपक्ष। सब मिल कर एक ही मुहिम का हिस्सा बनें – “हमें राष्ट्र बचाना है, और कोरोना जैसी महामारी को हराना है!”
Tejendra ji has rightly pointed out the unfortunate situation arisen out of Corona patients falling victim to bad management and yet the politicians making hate speeches n playing blame games
एक मानीखेज़ सम्पादकीय। आपदा को अवसर में कैसे बदला जाए, बस इसी की जद्दोजहद है। जनता मरे तो मरे, बस अपना उल्लू सीधा होना चाहिए। सरकार को इस संकटकाल में सहयोग देना विपक्षी पार्टियों के मेनिफेस्टो में नहीं।
एक कड़वा सच लिखा आपने सर राजनीति का भद्दा खेल हैं अपने फायदे के लिए जलते मुर्दों पर भी रोटी सेंक लेना।
पक्ष ,विपक्ष को अपने वोटों से मतलब है जनता मरे तो मरे।
ज्वलन्त समस्या पर तेजेन्द्र शर्मा जी का सामयिक लेख अति प्रामाणिक है। इस विषय पर मेरा एक दोहा……
राजनीति के खेल में, कौन किसे समझाय।
उल्लू सीधा चाहिए, देश भले बिक जाय।।
Tejendra ji has rightly pointed out the unfortunate situation arisen out of Corona patients falling victim to bad management and yet the politicians making hate speeches n playing blame games
ज्ञानवर्धक।
सादर नमन आदरणीय समसामयिक विषय पर बढ़िया लेख
सड़ी गली राजनीति का भद्दा खेल । जनता को ठगने की उल्लू बनाने की राजनीति । झूठ के पर्दे में छिपा हुआ सच। रक्षक ही भक्षक बन जाए तो कौन हवाल
एक मानीखेज़ सम्पादकीय। आपदा को अवसर में कैसे बदला जाए, बस इसी की जद्दोजहद है। जनता मरे तो मरे, बस अपना उल्लू सीधा होना चाहिए। सरकार को इस संकटकाल में सहयोग देना विपक्षी पार्टियों के मेनिफेस्टो में नहीं।
खरी-खरी बात लिख दी आपने। उम्दा।
Very important issue of politicisation . Right now all issues are being politicised.
Deadly pandemics like Corona require that all parties come togeth to deal with this crisis unitedly.
Nation first should be our guiding motto.
Quite informative and accurate analysis.
Archana Painulu
एक कड़वा सच लिखा आपने सर राजनीति का भद्दा खेल हैं अपने फायदे के लिए जलते मुर्दों पर भी रोटी सेंक लेना।
पक्ष ,विपक्ष को अपने वोटों से मतलब है जनता मरे तो मरे।
ज्वलन्त समस्या पर तेजेन्द्र शर्मा जी का सामयिक लेख अति प्रामाणिक है। इस विषय पर मेरा एक दोहा……
राजनीति के खेल में, कौन किसे समझाय।
उल्लू सीधा चाहिए, देश भले बिक जाय।।