Sunday, May 19, 2024
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संपादकीय – चार्जशीट दाख़िल… अब ?

भारत सरकार ने पहलवानों के प्रतिनिधियों को वचन दिया था कि 15 जून से पहले चार्जशीट दाख़िल कर दी जाएगी। दिल्ली पुलिस ने भारत सरकार द्वारा दिये गये वचन की लाज रख ली और भाजपा सांसद एवं भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध एक हज़ार पन्नों की  चार्जशीट दाखिल कर दी है। इस काम में देरी बहुत हुई और पूरे विश्व में जगहंसाई भी हुई। मगर हमें शायद ऐसी बातों की आदत पड़ चुकी है। वैसे भी भारत में न्याय-व्यवस्था को लेकर समय-समय पर सवाल उठते ही रहे हैं।

हमेशा कहा जाता है कि न्याय होना जितना ज़रूरी है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि न्याय होता हुआ दिखाई दे। जिस तरह महिला पहलवानों ने पिछले लगभग छः महीने में अपनी शिकायतों को लेकर संघर्ष किया है, उससे आम आदमी को यह अहसास होता है कि शायद सरकार की मर्ज़ी इन्साफ़ करने की नहीं है। पुरवाई संपादक मंडल इस ख़बर पर बराबर नज़र बनाए हुए था और तमाम चैनलों पर हो रही बहस को भी सुन रहा था। जिस दिन नई दिल्ली में भारतीय संसद के नये भवन का उद्घाटन समारोह हो रहा था, उसी दिन महिला पहलवानों को लेकर मन को विचलित करने वाले कुछ दृश्य दिखाई दे रहे थे।
भारत सरकार ने पहलवानों के प्रतिनिधियों को वचन दिया था कि 15 जून से पहले चार्जशीट दाख़िल कर दी जाएगी। दिल्ली पुलिस ने भारत सरकार द्वारा दिये गये वचन की लाज रख ली और भाजपा सांसद एवं भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध एक हज़ार पन्नों की  चार्जशीट दाखिल कर दी है। इस काम में देरी बहुत हुई और पूरे विश्व में जगहंसाई भी हुई। मगर हमें शायद ऐसी बातों की आदत पड़ चुकी है। वैसे भी भारत में न्याय-व्यवस्था को लेकर समय-समय पर सवाल उठते ही रहे हैं।
पुरवाई इस संपादकीय में प्रयास करेगी कि अपने पाठकों को समझा सके कि महिला पहलवानों के साथ हुई शर्मनाक घटनाओं को लेकर किस प्रकार की चार्जशीट दाखिल हुई है और इस मामले को लेकर अब तक लगातार किस प्रकार की राजनीति हो रही है। बृजभूषण शरण सिंह भारतीय जनता पार्टी के लिये राजनीतिक मजबूरी है और महिला पहलवानों को हरियाणा के राजनीतिज्ञ किस प्रकार इस्तेमाल कर रहे हैं – यह जानना हम सबके लिये आवश्यक है।
सबसे पहले हमें समझना होगा कि आरोपित नेता एवं कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने कुछ तो ऐसा किया है जिसके कारण दिल्ली पुलिस ने घोषणा की है कि उन्होंने बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल कर दी है और अदालत में डिजिटल सबूत भी जमा करवा दिये हैं। कोई भी डॉक्युमेंट सीलबंद लिफ़ाफ़े में नहीं दिया गया है।
ग़ौर करने लायक बात यह है कि दिल्ली पुलिस ने जिन धाराओं के तहत बृजभूषण शरण सिंह पर चार्जशीट दायर की है, वो मामले बहुत संगीन नहीं हैं। पहली धारा है धारा-354 (किसी महिला की लज्जा भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करना); दूसरी धारा है 354-ए (यौन उत्पीड़न) और 354-डी (पीछा करना)। इनके तहत एक से पांच वर्ष की सज़ा का प्रावधान है।
वरिष्ठ वकीलों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार बनाम अर्नेश कुमार मुकद्दमें में यह साफ़ कर दिया था कि जिन मामलों में सज़ा सात साल से कम हो रही हो, तो ऐसे में आरोपी को तुरत-फुरत गिरफ़्तार करने से बचना चाहिये। ऐसा लगता है कि बृजभूषण शरण सिंह को इन मामलों में कुछ शर्तों के साथ ज़मानत मिल सकती है।
बृजभूषण शरण सिंह के पक्ष में जो सबसे अहम घटना घटी है, वो है एक नाबालिग़ पहलवान का बयान बदलना कि उसका यौन उत्पीड़न किया गया है। पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शिकायतकर्ता इस मामले में सुबूत पेश करने में नाकामयाब रही। लिहाज़ा, सुबूत न मिलने के कारण इस मामले में क्लोज़र रिपोर्ट दाख़िल कर दी जाएगी।
पुलिस इस बात पर संतुष्ट है कि जब-जब बृजभूषण शरण सिंह को पूछताछ के लिये बुलाया, तब-तब वे हाज़िर हुए और पूछताछ में पूरा सहयोग दिया। जांच के दौरान पुलिस ने करीब 200 लोगों से पूछताछ की थी। पुलिस बृजभूषण सिंह के गृहनगर गोंडा भी गई थी। साथ ही कथित घटनाएं होने वाले दिन उनके ठिकाने के बारे में लोगों से पूछताछ की थी। सिंह से भी दो बार पूछताछ की गई। एक पहलवान को भी जांच के लिए डब्ल्यू.एफ.आई. कार्यालय ले जाया गया। ऐसे में उनके मुकदमे से बचने की कोई संभावना नहीं थी। शायद इसी वजह से पुलिस ने न तो भाजपा सांसद को गिरफ़्तार किया है और शायद करे भी न।
इस मामले में इतनी स्थितियां बदली हैं कि शायद पुरवाई के पाठकों को याद भी नहीं रहा हो कि मामला कब शुरू हुआ और कहां तक पहुंच गया है। जब मसले इतने लंबे समय तक लटके रहते हैं तो आम आदमी की रुचि भी कम होती चलती है।
दरअसल 18 जनवरी 2023 को  विनेश फोगाट, साक्षी मलिक के साथ बजरंग पूनिया ने नई दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन शुरू किया था। उन्होंने बृजभूषण शरण सिंह (उस समय के भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष) पर महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोप लगाया था।
विवाद गहराने लगा। इस समय तक पहलवानों ने किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन लेने से इन्कार कर दिया था। विवाद बढ़ता देख कर 21 जनवरी को केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने पहलवानों से मुलाकात कर कमेटी बनाई। मगर पहलवानों के साथ-साथ आम आदमी भी इस कमेटी की रिपोर्ट की प्रतीक्षा करता रह गया।
तीन महीने बीत जाने के बाद 23 अप्रैल को पहलवान एक बार फिर जंतर मंतर पर पहुंच गये। इस बार उन्होंने एक शर्त भी रख दी कि जब तक बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा तब तक वे धरने पर से नहीं हटेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दिल्ली पुलिस ने 28 अप्रैल 2023 को पहलवानों की एक याचिका पर बृजभूषण पर छेड़छाड़ और पॉक्सो एक्ट में दो एफ़.आई.आर. दर्ज कीं। मगर 3 मई की रात को पहलवानों और पुलिसकर्मियों के बीच जंतर-मंतर पर झड़प सी हो गई। इस झड़प में पांच पुलिस वाले घायल हुए मगर साथ ही पहलवान राकेश यादव और दुष्यंत भी घायल हुए। दुष्यंत पहलवान विनेश फ़ोगाट के भाई हैं।
मामला और उलझ गया और 7 मई को जंतर-मंतर पर हरियाणा, यूपी, राजस्थान और पंजाब की खापों की महा-पंचायत हुई। इसमें बृजभूषण की गिरफ्तारी के लिए केंद्र सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया गया। 28 मई को नये संसद भवन का उद्घाटन समारोह के दौरान महा-पंचायत ने धरना स्थल से नये संसद भवन तका का मार्च कार्यक्रम घोषित कर दिया। मगर पहलवानों ने जब यह प्रयास किया तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। इस दौरान कुछ ऐसे चित्र टेलिविज़न पर देखने को मिले जिन्होंने आम आदमी के दिलों को विचलित किया।
पहलवानों ने अपने-अपने मेडल गंगा जी में बहाने की घोषणा की। जब पहलवान हरिद्वार में हरि के पौड़ी पर मेडल बहाने पहुंचे तो किसान नेता नरेश टिकैत के समझाने पर उन्होंने अपना निर्णय वापिस ले लिया। मगर ऐसा करते समय उन्होंने सरकार को उनकी बात मानने के लिये 5 दिनों का अल्टीमेटम भी दे डाला।
2 जून को कुरुक्षेत्र में एक बार फिर महा-पंचायत हुई। इसमें 9 जून तक बृजभूषण को गिरफ्तार करने लिए अल्टीमेटम सरकार को दे दिया गया। इसके बाद दिल्ली पुलिस को इस मामले में 4 गवाह मिले हैं, जिन्होंने बृजभूषण पर लगे आरोपों की पुष्टि की है। इनमें एक-एक ओलिंपियन, कॉमनवेल्थ गोल्ड मेडलिस्ट, इंटरनेशनल रेफरी और स्टेट लेवल कोच शामिल थे।
विनेश, साक्षी और बजरंग ने रेलवे में ड्यूटी जॉइन कर ली। हालांकि साक्षी ने कहा कि उनका आंदोलन जारी रहेगा। अमित शाह से मीटिंग का पता चलने पर किसानों और खाप-पंचायत ने 9 जून को जंतर-मंतर पर होने वाल अपना प्रदर्शन स्थगित कर दिया। 7 जून को पहलवान खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मिले; और उनकी यह बैठक 6 घंटे चली थी।
जैसा कि हमने पहले भी ऊपर लिखा है पहलवानों को न्याय मिलना आवश्यक है। इस बीच बृजभूषण शरण सिंह भगवे कपड़े पहन कर राजनीतिक सभाएं करते नज़र आए हैं। अपने भाषणों के दौरान कविताएं भी सुनाते दिखाई दिये हैं। उनके व्यवहार से देखने वालों के मन में उनके प्रति कुछ धारणाएं बन रही हैं। सार्वजनिक जीवन में सच्चाई से अधिक महत्व धारणाओं का हो जाता है। जनता की आपके प्रति क्या धारणा बन गई है इसे समझना बहुत ज़रूरी है। बस सब की कामना यही है कि यह चार्जशीट केवल इतिहास बन कर न रह जाए।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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28 टिप्पणी

  1. इस मामले में इतनी स्थितियां बदली हैं कि शायद पुरवाई के पाठकों को याद भी नहीं रहा हो कि मामला कब शुरू हुआ और कहां तक पहुंच गया है। जब मसले इतने लंबे समय तक लटके रहते हैं तो आम आदमी की रुचि भी कम होती चलती है।

    बहुत सही कहा आपने क्योंकि भारतीयों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है। फिर जब मैडल गंगा में प्रवाहित होने की खबर आई उस समय लगा अब तो आर पार होकर रहेगा। लेकिन बीच में जैसे ही टिकैत बंधु आए बेचारे खिलाड़ी पिस गए। मुझे पूर्वाग्रह कभी नहीं रहा लेकिन पहले दिन से जब टिकैत बंधु खबरों में आने लगे थे किसान आंदोलन से तभी से इनके बारे में नकारात्मक ही सुना अपने गांव देहात के किसान लोगों से भी। फिर बात खिलाड़ियों की जब आई तब भी इन्होंने वही चेहरा दिखाया।

    मैडल जब वापस ले जाए गए गंगा में नहीं बहाया गया तब मुझे यह पक्का अहसास हो गया था कि यह अब पूरी तरह से राजनितिक हो गया है। इसलिए मैंने भी फेसबुक पर लिखा था।

    राजनीति हमेशा हर आंदोलन को चौपट कर देती है और आपका घर खा जाती है।

    खैर कारण जो भी हो। लेकिन इस वाक्ये ने मेरे मन में दो धारणाओं को जन्म दिया एक खिलाड़ियों की तरफ से सकारात्मक थी और दूसरी नकारात्मक। कुलमिलाकर मेरे मन में अभी तक दो धारणाएं हैं।

  2. Your Editorial of the day gives us a sympathetic n detailed account of the Wrestlers ‘ problematic experience with Brij Bhushan n their demand for getting him penalised n jailed.
    It is a much discussed issue in our social media too n we hope with you that it gets resolved soon.
    Warm regards
    Deepak Sharma.

  3. लगता तो यही है कि चार्जशीट मात्र इतिहास बन कर रह जाएगा… आज न्याय और न्याय की बात करने में बहुत बड़ा फासला हो गया है…
    Anarchy is flowing deep inside which is not inly hidden but INVISIBLE… only one cud feel it..
    हमेशा की तरह संलिष्ट सम्पादकीय तेजेंद्रजी

  4. आदरणीय संपादक महोदय
    ‘बृजमोहन बनाम पहलवानों ‘के इस प्रकरण का पुनरावलोकन कराने के लिए धन्यवाद !
    इतने लंबे समय तक चला यह आंदोलन कुछ लोगों के बीच आरंभ से इस दृष्टि से देखा गया कि कुश्ती की राजनीति में हरियाणा के जाटों का वर्चस्व स्थापित करने के लिए इसका बीज बोया गया है। अतः बहुत बड़े जन समुदाय की रुचि इसमें नहीं रही। श्री टिकैत के पदार्पण से इसके प्रति जन सहानुभूति और भी कम हो गई।
    शायद मेरे कुछ कथन राजनीति के विरुद्ध हों, परंतु स्त्रियों का एक समुदाय यह भी मानता है कि ‘यदि स्त्री पहलवान भी यौन शोषण की शिकार हो जाए तो फिर उसकी पहलवानी व्यर्थ है’ और फिर ऐसी पहलवान जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में भाग लेने योग्य हो!! ना तो उसमें बल की कमी है और ना ही जानकारी की!
    सत्य चाहे जो भी हो परंतु चार्ज शीट का पूरा परिणाम जानने की प्रतीक्षा अवश्य रहेगी।

    • सरोजिनी आपने सारे मामले को सही परिप्रेक्ष्य देने का प्रयास किया है। हार्दिक आभार।

  5. यही है राजनीति का स्तर, जब ऐसी परिस्थितियों में बदलाव नही होता है तब अतीक अहमद पैदा होते हैं और इन्हें ऐसा मोहरा बना दिया जाता है कि पूरी राजनीति इन्हीं मोहरों के इर्द-गिर्द घूमती है। और जब यह फंसने लगते हैं तब इन्हीं मोहरों को आगे कर खुद सेफ हो जाते हैं। आज रानी को बचाते बचाते कहीं राजा मात न रखा जाए। सर, समाज पर इन सब घटनाओं का इतना बुरा प्रभाव पड़ता है। इस भयावह स्थिति के कारण आज भी 51% लड़कियों की शादी बालिक होते ही कर दी जाती है। राजनीति के लिए यह मात्र एक घटना है जबकि समाज के लिए आईना बन जाता है।

  6. पहलवानों का आंदोलन भले ही वाजिब कारणों से शुरु हुआ हो लेकिन नेपथ्य में भूपेन्द्र हुड्डा की उपस्थिति का संशय बना ही रहा है । खाप पंचायत वाले टिकैत जी भी अपनी राजनीति चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ते ,चाहे उनकी समझ के दायरे में आंदोलनों के कारण स्थान पाते भी न हों । एक्टिंग तो सभी कमाल की करते हैं ।
    हाल ही में इस आंदोलन का एक पहलू और जानने को मिला – जाट और राजपूत वाला ।
    जाट पहलवान अपना नेतृत्व किसी राजपूत के स्थान पर किसी जाट से ही करवाना चाहते हैं। यह एक और घटिया व दुखदायी बिंदु सामने आ रहा है ।
    कारण जो भी हो, खिलाड़ियों की ,विशेष तौर पर महिला खिलाडियों की अस्मिता का ध्यान रखना सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी है ,इसके साथ खिलवाड़ न हो । ज़रूरी यह भी है कि खिलाड़ी ख़ुद भी अपनी ज़िम्मेदारियों को समझें और कोशिश करें कि बस मोहरे बनकर न रह जायें ।
    सदा की भाॅंति एक खोजपरक आलेख के लिए साधुवाद!

  7. सार्वजनिक जीवन में सच्चाई से अधिक महत्व धारणाओं का हो जाता है
    आज का यथार्थ है सम्पादकीय में ।
    शुक्रिया
    Dr Prabha mishra

  8. विस्तार से पहलवानों के धरने को बताते तथ्यात्मक संपादकीय के लिए धन्यवाद। बृज भूषण गोंडा के हैं जो मेरी ससुराल है। इसलिये इनके बारे में अक्सर सुनने को मिलता है। बन्दा पर्याप्त बदनाम है, दबंगई के लिए। लेकिन चरित्र के बारे में बदनामी नहीं है।
    रही बात महिलाओं के पीड़ित होने की तो जैसा सरोजिनी जी ने कहा शारीरिक रूप से सक्षम पहलवान लड़की के लिए, ज़बर्दस्ती पीड़ित होने की बात तार्किक नहीं लगती। विनेश का एक वीडियो भी है। जिसमें वह इसी बात को कहती हैं कि “मेरे साथ ऐसा नहीं हो सकता” कुछ इसी तरह की बात, और यह वीडियो उस समय के बाद का है, जिस समय का उल्लेख आरोप में किया गया है। वास्तविकता तो आरोपी और मुल्जिम ही जानते होंगे। लेकिन एक अखाड़े के अलावा अन्य अखाड़े के पहलवानों ने भी इसमें भाग नहीं लिया। हाँ राजनीतिक दल ज़रूर पहुँच गये। ऐसे में प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं। बीजेपी के लिये, बृज भूषण, राहुल गांधी जैसे महत्वपूर्ण नहीं कि एक राष्ट्रीय दल अपनी छवि दाँव पर लगाये।
    इधर कुछ वर्षो से, महिला होते हुए भी, मुझे ऐसा नहीं लगता कि बलात्कार का आरोप लगाने वाली महिला सच ही बोल रही है (बहुत से लोग मुझे तिरस्कार से देखेंगे)। इस लिए हम पुलिस, राजनीति और आरोपी को अपनी दृष्टि से दोषी ठहराने से पहले, न्यायालय की कार्यवाही की प्रतीक्षा कर लें तो उचित है।

    • आप तो स्थितियों की अन्दर की जानकारी रखती हैं शैली जी। आप की टिप्पणी महत्वपूर्ण है।

  9. पत्रकारिता में बेहद संतुलित और सटीक टिप्पणी की भारी आवश्यकता रहती है और आज के समीचीन संदर्भ में तो यह चील के घोसले में मांस ढूंढने के बराबर है। आदरणीय संपादक श्री तेजेंद्र शर्मा का संपादकीय यथा चार्जशीट, इसी संतुलित और सटीक नजरिए की नजीर है।
    पत्रकारिता के विद्यार्थी और नवोदित पत्रकार इस प्रकार के सृजनात्मक और सकारात्मक संपादकीय को अवश्य पढ़ें ताकि भविष्य में संतुलित संपादकीय कैसे लिखा जा सकता है उसकी नजीर इसी तरह के संपादकीय हुआ करते हैं।

    • भाई सूर्यकान्त जी प्रयास रहता है कि संपादकीय में संतुलन बना रहे। आपकी टिप्पणी हमारे लिये महत्वपूर्ण है।

  10. आज का आपका संपादकीय – चार्जशीट दाख़िल… अब ? न केवल विचारणीय है वरन मन में अनेकों प्रश्न भी छोड़ जाता है। लचर न्याय व्यवस्था तथा पुलिस का ढीला रवैया ऐसे केसेस में न केवल प्रश्न खड़े करती है वरन न्याय प्रणाली से भी लोगों का भरोसा टूटता है। विशेषतया तब ज़ब इसमें प्रभावशाली लोग हों, राजनीति का प्रवेश हो जाए।

    बृजभूषण को सजा मिलती है या छूट जायेगा, यह तो समय ही बताएगा किन्तु जो प्रश्न मेरे मन में आता है कि अपने क्षेत्र में विख्यात प्रभावशाली स्त्रियां यौन शोषण की शिकार कैसे और क्यों होती हैं!! क्या सफल होने के लिए वे इस तरह की हरकतों को सहने के लिए मजबूर हो जातीं हैं? अगर उनके लिए सफलता के लिए इस तरह की हरकतें झेलना आवश्यक है तो बाद में विरोध क्यों? तात्कालिक लाभ के लिए ऐसी हरकतों को झेलना अपराधी को और अपराध करने के लिए प्रेरित करता है।

    यही कुछ वर्ष पूर्व ‘मी टू ‘ अभियान के अंतर्गत देखा गया था। अब तो इसमें राकेश टिकेत जैसे लोग आ गये हैं। अब पहलवानों के इस आंदोलन में राजनीति का भी प्रवेश हो गया है। देखना शेष है कि आगे -आगे होता है क्या!!

  11. बहुत ही विचारणीय. सारगर्भित और सार्थक संपादकीय..हार्दिक स्वागत भाई..सचमुच हमारे देश में न्याय मिल पाना ..हजारों सवालों.मुद्दों और संघर्षों के दौर से गुजरना है.कुछ भी सरल नही आम आदमी के लिए..यह तो सामान्य हो गया है आजकल. लेकिन जब देश को सम्मान दिलाने वाली महिला खिलाडियों के साथ अन्याय होता है तो दुख होता है..आपका संपादकीय जब सत्य उद्घाटित करता है तो आश्चर्य होता है..कि यह तो हमें पता ही नही था..पुरवाई टीम की.पारखी नजर और सक्रियता के लिए साधुवाद..बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाए…….पद्मामिश्रा.जमशेदपुर

  12. तेजेन्द्र जी….आपकी तथ्यात्मक सम्पादकीय हमेशा की तरह बहुत सराहनीय है, किन्तु य़ह मामला जो दिखाई दे रहा है वास्तव में इस तरह का है नहीं, इसकी नींव में एक और सवाल भी छुपा हुआ है…… कि एक ही अखाड़े का वर्चस्व कुश्ती के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होना कहाँ तक उचित है?
    मौके को फायदे में बदलने वालीं धींगामुश्ती को राजनैतिक रूप दिया जा रहा है…. जिसमें नेताओ का कुछ नहीं बिगड़ना.. खिलाडियों की थू थू और छीछालेदर ज्यादा हो रही है… l TV पर खबर बनना ही काफी नहीं होता…यौन शौषण वो भी पहलवान महिलाओं का….सच पूछिये तो सीधे तौर पर साजिश की बू आ रही है वो भी पदक प्राप्ति के बाद…शेष सब समय बताएगा. आपकी तीखी और पारखी कलम को नमन है

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