आशा शैली की ग़ज़ल – साथ तू था न तेरा साया था
जिससे दामन बहुत बचाया था
राज़ वह क्या करोगे तुम सुनकर
जिन्दगी इक भरम में गुज़री है
मैं इबादत से बहल जाती हूँ
सर को सजदे में उसके झुकने दे
जीत पाये न हार ही पाये
उस पे फिर से यकीन क्यों शैली
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मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए आभार