जबकि विपक्ष सत्तारूढ़ सरकार पर संविधान की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगा रहा है, एक सवाल तो उठता ही है कि आखिर – संविधान दिवस के उपलक्ष्य में सर्वोच्च संवैधानिक संस्था यानी संसद में आयोजित कार्यक्रम का विरोध कर संविधान का अपमान कौन कर रहा है? विपक्ष एक सीधी सी बात क्यों समझ नहीं पा रहा कि संविधान दिवस समारोह भारतीय जनता पार्टी नहीं मना रही। यह भारत की संसद में मनाया जा रहा है। 

26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को अंगीकार किया था, जिसके उपलक्ष्य में संविधान दिवस मनाया जाता है। भारतीय संसद ने संविधान दिवस समारोह मनाने के लिये एक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें रॉष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित सांसदों ने भाग लिया। इस समारोह का आयोजन लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने किया था।
भारत के 14 राजनीतिक दलों ने इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया जिनमें कांग्रेस, त्रिणमूल कांग्रेस, शिव सेना, वाम दल, समाजवादी दल, बसपा, डी.एम.के., एन.सी.पी., आर.जे.डी., ए.आई.एम.यू.एम जैसी पार्टियां शामिल हैं।
भारत के संविधान में अमरीका, फ़्रांस, ऑस्ट्रेलिया, रूस, आयरलैण्ड, दक्षिण अफ़्रीका के संविधानों से कुछ मूलभूत विचार जोड़े गये। 
कांग्रेस पार्टी के अनुसार बीजेपी संविधान का पालन नहीं कर रही है, इस लिए उन्होंने इस कार्यक्रम से दूर रहने का फैसला किया है। कुल मिलाकर समूचा विपक्ष इस कार्यक्रम में हिस्सा न लेकर मोदी सरकार के खिलाफ विरोध जता रहा है। कांग्रेस नेता मलिकार्जुन खरगे ने कहा हम (भाजपा) पूरे साल संविधान का अपमान करते हैं आज संविधान दिवस है। कांग्रेस संविधान दिवस कार्यक्रम में शामिल नहीं होगी। फिर भी मंच पर लोकसभा एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता के लिये मंच पर कुर्सियां लगाई गयी थीं, जो कि बाद में उठवा दी गयीं। 
शिवसेना नेता संजय राउत ने बयान दिया, संविधान का देश में महत्व है। डॉ. बाबा साहब अंबेडकर के नेतृत्व में जनता को अधिकार दिए गए लेकिन आज राज्य, जनता को कुचल दिया जाता है, तो संविधान का मतलब क्या होता है? कहां है संविधान? हमारी सरकार बहुमत में है फिर भी हमारे पीछे कभी जांच एजेंसी तो कभी राजभवन लग जाते हैं।
कुछ सवाल उठने लाज़मी हैं। जिस संविधान की सभी राजनीतिक दल दुहाई देते हैं, उस संविधान में स्वतंत्रता के 75 वर्षों में लगभग 104 संशोधन हो चुके हैं। क्या ऐसे संविधान पर सवाल उठने न्यायोचित नहीं हैं? क्या यह सवाल नहीं पूछा जा सकता कि ऐसे संविधान का उत्सव मनाने की क्या आवश्यकता है। 
संविधान का पहला संशोधन तो 1951 में ही हो गया था। यह संशोधन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पेश किया था।  इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता एवं संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने संबंधी कुछ व्यवहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया गया… भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर इसमें उचित प्रतिबंध की व्यवस्था की गई… साथ ही, इस संशोधन द्वारा संविधान में नौवीं अनुसूची को जोड़ा गया, जिसमें उल्लिखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्गत परीक्षा नहीं की जा सकती।
1975 में इमरजेंसी की दौरान तो तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने संविधान की प्रस्तावना में ही बदलाव कर डाला। सच तो यह है कि उस समय संसद भंग हो चुकी थी और तमाम विपक्षी नेता जेल में थे। उस समय संविधान की प्रस्तावना में धर्म-निर्पेक्ष एवं समाजवाद जैसे शब्द जोड़े गये। 
शाह बानो प्रकरण में भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दबाव में आकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को संसद में अपने प्रचंड बहुमत से बदल दिया। यानी कि कांग्रेस जानती है कि संविधान का उत्सव मनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। 
जबकि विपक्ष सत्तारूढ़ सरकार पर संविधान की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगा रहा है, एक सवाल तो उठता ही है कि आखिर – संविधान दिवस के उपलक्ष्य में सर्वोच्च संवैधानिक संस्था यानी संसद में आयोजित कार्यक्रम का विरोध कर संविधान का अपमान कौन कर रहा है? विपक्ष एक सीधी सी बात क्यों समझ नहीं पा रहा कि संविधान दिवस समारोह भारतीय जनता पार्टी नहीं मना रही। यह भारत की संसद में मनाया जा रहा है। 
जो विपक्ष संविधान दिवस के समारोह में शामिल होने से इनकार कर रहा है, भला भविष्य में इस संविधान की दुहाई कैसे दे पाएगा। क्या इस समारोह का बहिष्कार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. अंबेडकर एवं जवाहर लाल नेहरू का अपमान नहीं है?
यदि विपक्ष भारत के प्रधानमंत्री को तानाशाह कहना चाहता है तो यह उनका हक़ है। वे जिसे चाहें जो चाहें समझें और कहें। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन्हें इस बात की इजाज़त देती है। मगर नरेन्द्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिये भारत की संविधानिक ज़िम्मेदारियों से उन्हें मुक्ति नहीं मिल सकती। कुछ संविधानिक ज़िम्मेदारियां तो निभानी ही पड़ती हैं।
विपक्षी दलों के लिये आवश्यक है कि वे संसदीय प्रणाली से जुड़ी हर संस्था का सम्मान करें। जहां तक वर्तमान सरकार का सवाल है विपक्ष को पूरा हक़ है कि प्रधानमंत्री एवं मंत्री परिषद समेत सत्तारूड़ दल की नीतियों के बखिये उधेड़ दे। मगर उसके लिये उनके दिल में सबसे पहले संविधान के प्रति सम्मान होना आवश्यक है। आज ब्रिटेन में लेबर पार्टी के विपक्षी सांसदों ने वर्तमान प्रधानमंत्री बॉरिस जॉन्सन की रातों की नींद हराम कर रखी है। दूसरी ओर उनकी बातों की सच्चाई को समझते हुए सत्तारूड़ टोरी पार्टी के सांसदों ने भी अपने ही नेता के विरुद्ध लामबंदी कर दी है। 
राजनीतिक नेता शायद मीडिया के हाथों में खेल रहे हैं। मीडिया में सुर्खियां बटोरने के चक्कर में वे ग़ैर-जिम्मेदाराना बयान देते चले जाते हैं। संविधानिक समारोहों के साथ राजनीति करना देश का अपमान माना जा सकता है।
26 नवंबर 2008 को यानी कि आज से ठीक 13 साल पहले 10 पाकिस्तानी आतंकवादी समुद्र मार्ग से मुंबई पहुंचे थे और कई स्थानों पर अंधाधुंध गोलीबारी की थी जिसमें 18 सुरक्षाकर्मी समेत 166 लोग मारे गए थे। मृतकों में 15 देशों के नागरिक शामिल थे।  करीब 300 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। यह हमला तीन दिनों तक चला। आतंकवादियों ने मुंबई के ताज महल पैलेस होटल, नरीमन हाउस, मेट्रो सिनेमा और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस सहित कई जगहों पर हुए हमले किए थे… सुरक्षा बलों ने 29 नवंबर की सुबह तक 9 आतंकी हमलावरों को मार गिराया था… वहीं, अजमल कसाब को पुलिस ने ज़िन्दा गिरफ़्तार कर लिया था।
भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद एवं सरकार के तमाम मंत्रियों ने 26 नवंबर के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। यदि 14 दलों ने समारोह का बहिष्कार न किया होता तो उस कार्यक्रम के दौरान वे भी इन शहीदों को याद कर सकते थे। 
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

17 टिप्पणी

  1. Thank you,Tejendra ji,for raising a very important issue and affirming that the Constitution of a country always demands full regard and participation of all parties when it is being commemorated on the Constitution Day.
    Congratulations for reminding the Opposition of their responsibilities.
    I also wish to thank you for the mention of the terror attack that had taken place on this very day a few years back.
    Regards
    Deepak Sharma

  2. भारतीय संविधान में पिछले 75 वर्षों में 104 संशोधन हुए यह संशोधन भारत के संविधान के लचीलेपन को दर्शाता है ।अर्थात भारत का संविधान बड़ा लचीला है और सरलता से इसमें संशोधन किए जा सकते हैं ।यह लचीलापन ही भारत के संविधान को महान बनाता है!

  3. सम्पादकीय एक गंभीर मुद्दे पर ध्यानाकर्षित कर रही है ,लोकतंत्र के बहाने घोर अराजकता का वातावरण विपक्ष दलों द्वारा निर्मित किया जा रहा है।राष्ट्र और राष्ट्रीयता का असली चेहरा सामने लाये जाने की कोशिशों को (BJP)की, लामबंद होकर नकारा जाना यही सिद्ध कर रहा है कि गैर राष्ट्रवादी ताकतों को देश और संविधान से सरोकार नहीं है सिर्फ सत्ता में बने रहने की चाहत ही है।
    देश के लिए चिंतन हेतु साधुवाद
    Dr prabha mishra

  4. जब घुड़सवार घोड़े से बड़ा हो जाए- तो ऐसा होता है- लेकिन फिर घोड़ा तो घोड़ा होता है! निश्चिंत रहें!

  5. Opposition is very important in a democracy. Unfortunately ,our opposition parties have really disappointed the nation by their negative approach. Due to their constant losing of elections and desperation, their lines between anti -modism and anti- nationalism have become very blurred which does not augur well for our democracy.

    God save the nation!

    Sabko sanmati de Bhagwan!

  6. संविधान को या देश को सर्वोपरि मानना विपक्ष को पसंद नहीं।आपकी यह बात शतप्रतिशत सत्य है बहुत वर्षों से सत्तारूढ़ रही कांग्रेस सत्ता को अपनी बपौती मानती रही है, सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जा रही है । बाकी दल उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। मोदी-विरोध और राष्ट्र-विरोध में विपक्ष को अन्तर करना नहीं आता। देश का राम ही मालिक है। 26/11के शहीदों को श्रद्धांजलि .

  7. जो राजनैतिक दल देश के संविधान का मान-सम्मान नहीं कर सकते, उनको राजनीति करने का अधिकार भी नहीं देना चाहिए। संसद के जिस कार्यक्रम में राष्ट्रपति तक मौजूद हों, वहाँ सभी विपक्षी दलों को भी अवश्य उपस्थिति दर्ज़ करानी चाहिए थी।
    आदरणीय तेजेन्द्र जी ! आपने देश के संविधान जैसे सम्वेदनशील विषय पर पाठकों को सजग किया है, साथ ही संविधान की सूक्ष्मताओं की ओर भी इंगित किया है ; एतदर्थ आप श्लाघा के पात्र हैं।

  8. आपने भारत में वर्तमान स्थितियों का तथ्यपरक आंकलन किया है. संविधान दिवस पर मोदी जी का हर कदम पर विरोध करने वाले विपक्षी, संविधान दिवस की मर्यादा को भी नहीं निभा सके, संद में घोर अमर्यादित आचरण उनका सामान्य स्वभाव बन गया है..! आपने ठीक ही कहा है, देश विषम परिस्थितियों से गुज़र रहा है.. यहां तक कि अधिकांश मीडिया भी सच को छिपा कर झूठ को परोसता है.!
    आपके संपादकीय पढ़ कर बहुत अच्छा लगता है. कि दूर देश में बैठे ही एक देश प्रेमी वर्ग तो है

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