शायद आज का एनकाउंटर भीड़ की मानसिकता और टीवी चैनलों के अनर्गल प्रचार के फलस्वरूप हुआ। कल को यही भीड़ की मानसिकता मॉब-लिंचिंग को भी न्याय-संगत साबित कर देगी। हमें अपने देश को बनाना-रिपब्लिक बनने से रोकना होगा। यदि पुलिस को यह अहसास हो गया कि वे इस प्रकार जुडीशियल किलिंग करके लोगों से वाहवाही पा सकती है, तो इस पर लगाम लगाना कठिन हो जाएगा। हमें एक और फ़्रैंकेस्टाईन नहीं पैदा करना है।
हैदराबाद की डॉ. प्रियंका रे़ड्डी के बलात्कार एवं हत्या के बाद पिछले ही सप्ताह हमने न्याय व्यवस्था को बदलने की बात कही थी। और अब स्थिति यह है कि चारों बलात्कारियों को पुलिस ने एक एनकाउंटर में मार गिराया है। नेशनल टीवी चैनल दिखा रहे थे कि आम जनता पुलिसकर्मियों पर फूलों की वर्षा कर रही थी।
यह एक ख़तरनाक स्थिति है क्योंकि आम जनता का न्याय-प्रक्रिया पर से विश्वास उठता दिखाई देता है। साइबराबाद के पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के रूप में जाने जाते हैं। उनके कार्यकाल के दौरान कई ऐसे एनकाउंटर हुए हैं जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देती रही। वी.सी. सज्जनार ने पूर्व में आंध्र प्रदेश में सक्रिय माओवादियों के खिलाफ भी कई एनकाउंटर किए थे। इनका नाम से ही माओवादी ख़ौफ़ खाते थे।
बताया यह गया है कि चारों आरोपित बलात्कारियों को घटनास्थल पर ले जाया गया ताकि घटना को रीकंस्ट्रक्ट किया जा सके। आरोप यह है कि उन्होंने वहां से भागने का प्रयास किया और एक ने तो पुलिस की रिवॉल्वर ही झपटने का प्रयास किया। और पुलिस ने बहुत शालीनता से उन्हें गोली मार दी और वे चारों मर गये। सबकुछ एकदम फ़िल्मी अन्दाज़ में हुआ।
सब कुछ सुनने में बहुत ग़लत लगता है मगर ना जाने क्यों दिल को बहुत अच्छा लग रहा है।
केवल मुझे ही नहीं, जया बच्चन, मायावती, उमा भारती समेत बहुत से नेताओं, फ़िल्मी हस्तियों और फ़ेसबुक के तमाम मित्रों ने पुलिस के इस कृत्य की सराहना की है। मायावती ने तो यहां तक कह डाला है कि उत्तर प्रदेश पुलिस को हैदराबाद पुलिस से कुछ सीखना चाहिये कि बलात्कारियों से कैसे निपटा जाए।
मगर इस एनकाउंटर ने हमारी न्याय प्रणाली पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। निर्भया के बलात्कारी सात साल बाद भी ज़िन्दा हैं और हमारी न्याय व्यवस्था का मज़ाक उड़ा रहे हैं। इससे विचलित हो कर राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द को आज कहना पड़ा कि बलात्कारियों के लिये माफ़ी की प्रार्थना का प्रावधान नहीं होना चाहिये।
हमारा सुझाव है कि बलात्कारियों के लिये केवल निचली अदालत तक फ़ास्ट ट्रैक न हो। बल्कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी ये केस फ़ास्ट ट्रैक से ही गुज़रें। वरना निचली अदालत तो छः महीने में अपना निर्णय सुना देंगी मगर केस हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लटकने के बाद राष्ट्रपति के पास मर्सी पेटीशन के रूप में पड़ा रहेगा।
इल्ज़ाम ये भी लगाए गये हैं कि संसदीय चुनावों में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने ऐसे दाग़ी लोगों को टिकट दिये जिन पर महिलाओं पर अत्याचार और रेप जैसे आरोप लगे हुए हैं और उन पर केस भी चल रहे हैं।
सवाल उठाए जा रहे हैं कि ऐसे नेताओं से भला हम कैसे यह उम्मीद लगा सकते हैं कि वे बलात्कार जैसे मामलों में कठोर सज़ा के हिमायती बनेंगे। यदि हम नियमों के प्रति गंभीर होते तो बलात्कारियों के लिये जीना मुश्किल हो जाता मगर हम क़ानून बनाना तो जानते हैं मगर उन्हें लागू करने की हमारी कोई नीयत नहीं होती।
उन्नाव में बलात्कार पीड़िता का परिवार पिछले तीन वर्षों से कोर्ट कचहरियों के चक्कर लगा लगा कर थक गया था। आरोपित बलात्कारियों ने पीड़िता को जला डाला और वह आज दम तोड़ गयी। सुन कर मन सोचने लगता है कि हैदराबाद पुलिस ने ठीक ही किया। अब तो यह कहने को भी मन करता है कि उन्नाव के मुजरिमों के साथ भी ऐसा ही सुलूक किया जाना चाहिये।
मगर डर भी लगता है कि शायद आज का एनकाउंटर भीड़ की मानसिकता और टीवी चैनलों के अनर्गल प्रचार के फलस्वरूप हुआ। कल को यही भीड़ की मानसिकता मॉब-लिंचिंग को भी न्याय-संगत साबित कर देगी। हमें अपने देश को बनाना-रिपब्लिक बनने से रोकना होगा।
यदि पुलिस को यह अहसास हो गया कि वे इस प्रकार जुडीशियल किलिंग करके लोगों से वाहवाही पा सकती है, तो इस पर लगाम लगाना कठिन हो जाएगा। हमें एक और फ़्रैंकेस्टाईन नहीं पैदा करना है।
आपके विचार प्रासंगिक ही नहीं अपितु विचारणीय हैं।
आवश्यक हस्तक्षेप तेजेंद्र जी,कठोर कानून,निष्पक्ष त्वरित न्याय के साथ-साथ इसे एक सामाजिक एवं संस्कार आंदोलन भी बनना होगा मानसिकता परिवर्तन हेतु।
सटीक विश्लेषण । यदि न्याय व्यवस्था का आलम यही रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पुलिस और जनता आक्रोश से खुद न्याय करने पर उतारु हो जाएगी । विचारणीय सम्पादकीय ।
तेजेन्द्र सर, नमस्कार। बहुत संतुलित लिखा है आपने। न्याय व्यवस्था की खामियों और पुलिस एनकाउंटर की चिंताओं पर भी समुचित प्रकाश डाला है आपने। कुल मिलाकर बहुत सुचिंतित आलेख। इस आलेख में एक बढ़िया चिंतक की भूमिका है आपकी सर।
आदरणीय संपादक
महोदय हैदराबाद प्रकरण के दोनों पहलुओं पर सोच
से सहमत हू
आपराधिक न्याय प्रणाली में फैसले में लगने वाले समय को लेकर पुनर्विचार कीआवश्यकता है
।,
तार्किक लेख अच्छा लिखा है आपने
पुलिस के द्वारा इस तरीके से न्याय व्यवस्था को अपने हाथ में ले लेना कहीं ना कहीं देश में अराजकता फैल सकती है। किसी भी तरह का गुनाह हो उसके लिए न्याय व्यवस्था ही एक सुरक्षित जगह है।
ऐसे एनकाउंटर करने लग गए तो अफवाहों के माध्यम से हो सकता है कितने बेगुनाह मारे जाए
देश में एक अराजकता फैल सकती है
फास्ट्रेक न्याय व्यवस्था बननी चाहिए