दरअसल महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस का रवैय्या कुछ ऐसा रहा है कि शक की सुई ख़ुद-बख़ुद उनकी तरफ़ संकेत करने लगती है। मुंबई पुलिस ने 60 दिन के बाद भी कुछ बताया नहीं कि वे लोग तहकीक़ात किस दिशा में कर रहे हैं।
भारत की सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय सुना दिया कि सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु की जांच सी.बी.आई. करेगी। सिंगल जज बेंच के जस्टिस ऋषिकेश रॉय ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि बेशक यह केस मुंबई पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन इस मामले में सभी लोग सच जानना चाहते हैं। इसलिए कोर्ट ने विशेष शक्ति का प्रयोग करते हुए केस को सीबीआई के हाथों में सौंपने का फैसला किया है।
याद रहे कि सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के घंटे भर में ही घोषणा कर दी थी कि सुशांत सिंह राजपूत ने पंखे से लटक कर आत्महत्या की है। मगर पुलिस ने न तो सुशांत सिंह राजपूत के पंखे से लटके होने का वीडियो बनाया और न ही 60 दिन बीत जाने के बाद भी कोई एफ़.आई.आर. दर्ज की।
आजतक के विवादास्पद पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने कहा था कि सुशांत सिंह राजपूत कोई इतने बड़े स्टार नहीं थे कि उनकी मृत्यु से कोई दबाव बन सकता है। वे भी सीबीआई जांच के समर्थन में खड़े नहीं दिखाई दिये। रवीश कुमार जो हमेशा विपक्ष के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं, इस मामले में शिवसेना और काँग्रेस के पक्ष में खड़े दिखाई दिये।
अर्णव गोस्वी और उनकी पूरी टीम, टाइम्स नाऊ के राहुल शिवशंकर, नाविका कुमार और पद्मजा जोशी, आजतक की अंजना ओम कश्यप की टीम सभी ने मिलकर सुशांत सिंह राजपूत के लिये न्याय की लड़ाई शुरू कर दी। अर्णव गोस्वामी ने तो एक तरह से इस मामले में महाराष्ट्र सरकार एवं पुलिस के विरुद्ध जंग का ही ऐलान कर दिया।
सच तो यह है कि किसी भी समझदार व्यक्ति के लिये यह नतीजा निकाल लेना बहुत आसान था कि मुंबई पुलिस राजनीतिक दबाव में अपराधियों को बचाने का भोण्डा प्रयास कर रही है। वरना क्या कारण है कि बिहार से मुंबई आए पुलिस दल के साथ कोई सहयोग नहीं किया गया और पटना के आई.पी.एस. के अधिकारी विनय तिवारी को मुंबई में क्वारन्टीन कर दिया। यह एक तरह की नज़रबन्दी कही जा सकती है।
सवाल उठता है कि मुंबई पुलिस को अपनी ही जमात के बड़े अधिकारी के विरुद्ध ऐसा व्यवहार करने की ज़रूरत क्यों पड़ी। दरअसल महाराष्ट्र सरकार और मुंबई पुलिस का रवैय्या कुछ ऐसा रहा है कि शक की सुई ख़ुद-बख़ुद उनकी तरफ़ संकेत करने लगती है। मुंबई पुलिस ने 60 दिन के बाद भी कुछ बताया नहीं कि वे लोग तहकीक़ात किस दिशा में कर रहे हैं।

सम्पादकीय भारत में चल रही महत्वपूर्ण घटना की विवेचना है
सी बी आई की जाँच से दृश्य बदलेगा ऐसा विश्वास सभी
व्यक्त कर रहे हैं।
सिनेमा अब उद्योग/व्यवसाय हो गया है पर इसमे राजनैतिक
हस्तक्षेप ,गुटबाजी समाप्त होनी चाहिये।, नतीजे भविष्य पर
निर्भर हैं ।
चिंतन के लिए साधुवाद
प्रभा