29 मई 2020 का दिन एक मामले में मनहूस ही कहा जा सकता है कि भिन्न क्षेत्रों से तीन विभूतियों ने इसी दिन जीवन त्याग दिया। फ़िल्मी गीतकार योगेश (गौड़) (77 वर्ष), प्रख्यात ज्योतिषाचार्य बेजान दारूवाला (90 वर्ष) एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमन्त्री अजित जोगी (74 वर्ष) का निधन इस एक दिवस को हो गया।
हालाँकि तीनों ही विभूतियां अपने क्षेत्रों में इस समय सक्रिय नहीं थीं। मगर तीनों ही अपने अपने सक्रिय काल में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभा गये।

योगेश (गौड़)
हिन्दी सिनेमा में गीतकारों की एक परम्परा है। जैसे उर्दू के महत्वपूर्ण नामों मजरूह सुल्तानपुरी, साहिर लुधियानवी, राजेन्द्र कृष्ण, हसरत जयपुरी, असद भोपाली, कैफ़ी आज़मी, शकील बदायुंनी, आदि ने सिनेमा के गीतों में बेहतरीन शायरी का सृजन किया ठीक उसी तरह एक हिन्दी गीतों की भी ऐसी गौरवशाली परम्परा बनी जिसके वाहक बने – पंडित नरेन्द्र शर्मा, भरत व्यास, शैलेन्द्र, इन्दीवर, अन्जान, गुलशन बावरा, नीरज जैसे नाम।
इसी परम्परा में 1963 के आसपास एक नया नाम जुड़ा था – योगेश। फ़िल्म थी सखी रौबिन, और संगीतकार थे रॉबिन बनर्जी। गीत का मुखड़ा था “तुम जो आओ तो प्यार आ जाए, ज़िन्दगी में बहार आ जाए।” मन्ना डे और सुमन कल्याणपुर के गाये इस गीत ने योगेश को पहली बार लोकप्रियता का स्वाद चखाया था।
योगेश की जोड़ी बनी संगीतकार सलिल चौधरी के साथ। इससे पहले सलिल दा के प्रिय गीतकार थे शैलेन्द्र और शैलेन्द्र की मृत्यु के बाद उन्हें उस स्तर का कोई गीतकार मिल नहीं पा रहा था। कवि योगेश ने वह कमी पूरी की और सलिल चौधरी के साथ मिल कर कुछ अविस्मरणीय गीतों का सृजन किया। फ़िल्म आनन्द, रजनीगन्धा और मिली के गीतों ने तो बाक़ायदा धूम मचा दी थी।
सलिल चौधरी स्वयं एक उच्च श्रेणी के कवि थे। शायद इसीलिये वे योगेश गौड़ के साहित्यिक गीतों को पहचान पाए और अपनी फ़िल्मों में उन्हें स्थान दिया।
संगीतकार जयकिशन की ही तरह गीतकार योगेश भी मानते थे कि धुन पर लिखने से गीतकार के लेखन में वैराइटी आ जाती है। हर धुन गीतकार के सामने एक नया छंद और चुनौती रखती है जिस पर गीतकार को अपनी महारथ से बेहतरीन गीत रचना होता है।
योगेश का जन्म 19 मार्च 1943 को लखनऊ में हुआ था। उनके बारे में सोचने पर एक पंक्ति ज़रूर याद आती है – “कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते कहीं से निकल आएं जन्मों के नाते!”

बेजान दारूवाला
बेजान दारूवाला एक ऐसा नाम है जिसे टीवी पर देखते देखते बहुत सी पीढ़ियां जवान हुई होंगी। वे बड़े ज्योतिषाचार्य थे। उन्होंने बहुत सी भविष्यवाणियाँ की थीं जो कि सच निकलीं। अटल बिहारी वाजपेयी, मोरार जी देसाई, मनमोहन सिंह एवं नरेन्द्र मोदी को लेकर उनकी तमाम भविष्यवाणियां सही सिद्ध हुईं।
बेजान दारूवाला का जन्म 11 जुलाई 1931 एक पारसी परिवार में हुआ था। उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में पीएच.डी. की डिग्री हासिल की थी अहमदाबाद में अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर थे। उनका व्यक्तित्व बहुत ही मिलनसार था। एक हंसीयुक्त मुस्कान उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग थी।
बेजान दारूवाला अब 90 साल के हो चुके थे और कुछ समय से स्वास्थ्य संबन्धी समस्याओं से जूझ रहे थे। कहा जा रहा है कि उनकी मृत्यु कोरोना वायरस के कारण हुई हालांकि उनके पुत्र का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं। फिर भी अहमदाबाद निगम ने कोरोनाग्रस्त मरीज़ों की जो सूचि 22 मई 2020 को जारी की थी उसमें बेजान दारूवाला का नाम भी शामिल था।
पूर्व साँसद उदित राज ने बेजान दारूवाला की मृत्यु पर भी एक शरारतपूर्ण ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा – “ज्योतिषी बेजान दारूवाला का कोरोना के चलते अहमदाबाद में निधन। बड़े ज्योतिषी थे और अपना ही भविष्य नहीं जान सके। मूर्ख अब भी नहीं समझेंगे।” बहुत लोगों ने उन्हें ट्रोल भी किया।

“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि…..” श्रीमद्भगवद्गीता के इस श्लोक का पाठ भी, एक ही दिवस तीन विभूतियों के महाप्रयाण का मलाल शायद ही कम कर सके। ओम् शान्ति:।