वर्ष 2020 में सबसे अधिक विवाद श्रेष्ठ गीतकार को लेकर हुआ है। ‘गली ब्वॉय’ के गीत – ‘अपना टाइम आएगा / तू नंगा ही तो आया है / क्या घंटा लेकर जाएगा / अपना टाइम आएगा’ को श्रेष्ठतम लिरिक्स का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार घोषित किया गया है। यानि हमें यह मान लेना होगा कि गीत संगीत का स्तर अब यह हो गया है। ऐसे घटिया शब्दों वाले गीत को वर्ष का श्रेष्ठतम गीत मानना फ़िल्मफ़ेयर की मजबूरी हो सकती है। श्रोताओं को यह हक़ है कि वे अपना विरोध इस चयन के विरुद्ध दर्ज करवा सकें।

65वें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड समारोह की मानें तो जबसे हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री बनी है तबसे आजतक की श्रेष्ठतम हिन्दी फ़िल्म ‘गली ब्वॉय’ है। कुल मिला कर 10 फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड इस फ़िल्म को मिले जिसमें बेस्ट फ़िल्म, बेस्ट निर्देशक, बेस्ट एक्टर, बेस्ट एक्ट्रेस, बेस्ट सहायक अभिनेता, बेस्ट सहायक अभिनेत्री, बेस्ट संगीत और बेस्ट गीत भी शामिल हैं। 

एक ज़माना था जब भारत में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों को ऑस्कर के मुकाबले माना जाता था। भारतीय फ़िल्मकारों के लिये यह ऑस्कर का भारतीय वर्ज़न माना जाता था। उस समय कोई और सम्मान या पुरस्कार होते ही नहीं थे… बस एक राष्ट्रीय पुरस्कार और दूसरे फ़िल्मफ़ेयर। 

सम्मानों की सूचि पर हमेशा ही उंगलियां उठती रही हैं। बलराज साहनी को ना तो ‘दो बीघा ज़मीन’ के लिये पुरस्कार मिला और ना ही ‘गर्म हवा’ के लिये। जबकि हिन्दी सिनेमा के इतिहास में ये दो भूमिकाएं अदाकारी की मिसाल मानी जाती हैं। धर्मेन्द्र को ‘सत्यकाम’, ‘अनुपमा’, ‘नया ज़माना’, ‘चुपके चुपके’ जैसी फ़िल्में करने के बाद भी पूरे जीवन में एक बार भी फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार से नहीं नवाज़ा गया। 

राजेन्द्र कुमार, जीतेन्द्र और सलमान ख़ान जैसे अभिनेताओं को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर ना मिलना समझ में आता है मगर माला सिन्हा और साधना भी इस सम्मान से वंचित रहीं। ऋषि कपूर ने जब ‘बॉबी’ के सिलसिले में पुरस्कार ख़रीदने वाली बात कही थी तो ख़ासा विवाद खड़ा हो गया था। 

संगीत के मामले में तो फ़िल्मफ़ेयर ग़ज़ब ही करता रहा है। ‘गाईड’ और ‘तीसरी कसम’ में शैलेन्द्र के गीत – ‘कांटों से खींच कर ये आंचल’, और ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ के मुक़ाबले हसरत जयपुरी को ‘बहारो फूल बरसाओ’ के लिये पुरस्कृत किया गया और संगीत के मामले में भी ‘गाईड’ से बेहतर ‘सूरज’ फ़िल्म को ही माना गया। 

‘मुग़ल-ए-आज़म’ का संगीत भी दिल ‘अपना और प्रीत पराई’ के सामने हार गया। शकील बदायुनी को श्रेष्ठ गीतकार माना गया मगर ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के लिये नहीं बल्कि ‘चौदहवीं का चाँद’ के लिये। ‘पाकीज़ा’ भी बेईमानी का शिकार हुई जब उस साल के श्रेष्ठ संगीत का अवार्ड ‘बेईमान’ फ़िल्म को दे दिया गया। कहा जाता है कि प्राण ने इससे नाराज़ हो कर श्रेष्ठ सह-कलाकार का पुरस्कार लेने से इन्कार कर दिया था।

वर्ष 2020 में सबसे अधिक विवाद श्रेष्ठ गीतकार को लेकर हुआ है। ‘गली ब्वॉय’ के गीत – ‘अपना टाइम आएगा / तू नंगा ही तो आया है / क्या घंटा लेकर जाएगा / अपना टाइम आएगा’ को श्रेष्ठतम लिरिक्स का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार घोषित किया गया है। यानि हमें यह मान लेना होगा कि गीत संगीत का स्तर अब यह हो गया है। ऐसे घटिया शब्दों वाले गीत को वर्ष का श्रेष्ठतम गीत मानना फ़िल्मफ़ेयर की मजबूरी हो सकती है। श्रोताओं को यह हक़ है कि वे अपना विरोध इस चयन के विरुद्ध दर्ज करवा सकें। 

निःसंदेह 2019 का श्रेष्ठतम गीत मनोज मुंतशिर का ‘केसरी’ फ़िल्म के लिये लिखा गीत ‘तेरी मिट्टी…’ ही माना जाएगा। यह गीत आसानी से हिन्दी साहित्य की किताबों में स्थान पा सकता है और हमें शैलेन्द्र के युग की याद करवाता है। इस गीत को सुन कर लगता है कि अभी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ।

आज भी हमें फ़िल्मों में ऐसे गीत सुनने को मिल सकते हैं जिन्हें सुन कर हम नाज़ कर सकें कि हमारे गीतकार चलताऊ भाषा के ग़ुलाम नहीं बने हैं। ‘ओ माई मेरी क्या फ़िक्र तुझे? / क्यूं आँख से दरिया बहता है? / तू कहती थी तेरा चाँद हूं मैं / और चाँद हमेशा रहता है’ – जैसी पंक्तियों को नकारना और ‘घंटा लेकर जाएगा’ को सम्मानित करना हम सब सिने-दर्शकों का अपमान है।

मनोज मुंतशिर ने अपनी फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा है कि वह इससे बेहतर नहीं लिख सकता। मैं मनोज से कहना चाहूंगा कि मनोज रॉबर्ट ब्राउनिंग के शब्दों में, “दि बेस्ट इज़ येट टु कम”। तुम्हें अभी बहुत से गीत लिखने हैं और ‘केसरी’ के गीत से बहुत आगे के गीत लिखने हैं। तुम हतोत्साहित ना होना। आज अपना हो ना हो पर कल तुम्हारा है।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

1 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.