पिछले दिनों में देखा गया कि ट्विटर और फ़ेसबुक जैसे सोशल साइट विश्व के सबसे ताकतवर इन्सान यानि कि अमरीका के राष्ट्रपति तक को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकते हैं। देखना यह होगा कि वे भारत सरकार द्वारा बनाए गये नये नियमों पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। अब लड़ाई भारत सरकार, भारत के करोड़ों सोशल मीडिया यूज़र्स और ट्विटर, फ़ेसबुक और व्हटस्एप जैसी सोशल मीडिया साइट्स के बीच है।
आजकल सोशल मीडिया में एक नाम बहुत पॉपुलर है – ‘फ़ेक न्यूज़’! मगर उस फ़ेक न्यूज़ की ज़िम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं होता। भारत सरकार ने पहले एक विवादित कानून की घोषणा की थी जिसके तहत फ़ेक न्यूज़ के मामले में पत्रकारों की मान्यता समाप्त करने का प्रावधान था। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद यह कानून रद्द कर दिया गया था।
दो दिन पहले भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने ऑनलाइन न्यूज पोर्टल और मीडिया वेबसाइटों और ओ.टी.टी. प्लैटफॉर्म को रेग्युलेट करने के लिए नियम बना लिये हैं। मंत्रालय ने इसके लिए एक अधिसूचना भी जारी कर दी है, जिसके मुताबिक अब ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल, ऑनलाइन कॉन्टेंट प्रोवाइडर सूचना व प्रसारण मंत्रालय के दायरे में आएंगे।
समस्या बढ़ती जा रही है। नेटफ़्लिक्स और अमेज़ॉन जैसी ओटीटी प्लैटफ़ॉर्म पर रिलीज़ की जा रही फ़िल्मों और कार्यक्रमों पर किसी प्रकार का सेंसर बोर्ड नहीं है। और न ही ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल किसी संस्था को जवाबदेह हैं। एक तरह की अराजकता है इस क्षेत्र में।
इस सिलसिले में भारत सरकार ने एक दस सदस्यीय कमेटी बनाई थी। इस कमेटी में सूचना व प्रसारण मंत्रालय, कानून मंत्रालय, गृह मंत्रालय, आईटी मंत्रालय और डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी और प्रमोशन के सचिवों को शामिल किया गया था। इसके अलावा ‘माई गव’ के चीफ़ एग्ज़िक्यूटिव और प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन और इंडियन ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों को भी सदस्य बनाया गया था। कमेटी से ऑनलाइन मीडिया, न्यूज़ पोर्टल और ऑनलाइन कॉन्टेंट प्लैटफॉर्म के लिए ‘उचित नीतियों’ की सिफ़ारिश करने को कहा गया था।
एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस को सम्बोधित करते हुए कानून मंत्री रवि प्रसाद और सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने नयी नीति पर चर्चा की। नए नियमों के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आपत्तिजनक और ग़ैर-कानूनी पोस्ट को छत्तीस घंटे के भीतर हटा दिया जाएगा।
पहले यह समय सीमा बहत्तर घंटों की थी। फ़ेसबुक, ट्विटर, व्हॉट्सएप, गूगल जैसी कंपनियों को अब सरकार की बात माननी पड़ेगी और तय समय सीमा के भीतर उन्हें कंटेट भी हटाना होगा। यही नहीं, सरकार कंपनियों से ग़ैर-कानूनी कंटेंट के सोर्स के बारे में भी जानकारी मांग सकती है ताकि उनपर कार्रवाई की जा सके।
एक रिपोर्ट के अनुसार, क़ानून में संशोधन के बाद पचास लाख से अधिक यूज़र्स वाली सोशल- मीडिया कंपनियों को भारत में अपना ऑफ़िस खोलना अनिवार्य हो सकता है। साथ ही कंपनी को एक नोडल ऑफिसर की भी नियुक्ति करनी होगी ताकि सरकार और एजेंसियां ज़रूरत पड़ने पर उनसे संपर्क कर सकें। नए नियम नोटिफ़ाई होने के बाद लागू कर दिए जाएंगे। इसके बाद सोशल मीडिया कंपनी को कोर्ट या सरकार के आदेश का पालन करना ही होगा।
नए दिशानिर्देशों के तहत डिजिटल न्यूज़ आउटलेट को केबल टेलीविज़न नेटवर्क्स रेगुलेशन एक्ट के तहत प्रोग्राम कोड और भारतीय प्रेस परिषद पत्रकारिता संहिता के नियमों का पालन करना होगा, जो व्यापक तौर पर टीवी और प्रिंट मीडिया के कंटेंट पर निगरानी रखता है।
डिजिटल न्यूज वेबसाइट के लिए सरकारी निगरानी तंत्र स्थापित करने की जरूरत के बारे मे पूछने पर बताया गया कि भारतीय प्रेस परिषद प्रिंट मीडिया की देखरेख करता है। डिजिटल मीडिया के लिए अभी तक ऐसी कोई संस्था नहीं थी। अब उन पर भी नकेल कसी जा सकेगी।
इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2021 के नाम से लाए गए ये दिशानिर्देश देश के टेक्नोलॉजी नियामक क्षेत्र में करीब एक दशक में हुआ सबसे बड़ा बदलाव हैं। ये इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस) नियम 2011 के कुछ हिस्सों की जगह भी लेंगे।
दरअसल हाल ही में दिल्ली और फिर लाल किले पर हिंसा और दंगे फैलाए गये उसमें सोशल मीडिया का भी बहुत बड़ा हाथ है। कानून मंत्री ने यह भी साफ़ किया कि इंटरनेट की सुविधा मूलभूत अधिकारों का हिस्सा नहीं है। रवि प्रसाद ने साफ़ किया कि अब सोशल मीडिया साइट को यह बताना होगा कि शरारती पोस्ट की शुरूआत कहां से हुई। पहली फ़ेक पोस्ट डालने वाले का नाम बताने की बाध्यता होगी।
पिछले दिनों में देखा गया कि ट्विटर और फ़ेसबुक जैसे सोशल साइट विश्व के सबसे ताकतवर इन्सान यानि कि अमरीका के राष्ट्रपति तक को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकते हैं। देखना यह होगा कि वे भारत सरकार द्वारा बनाए गये नये नियमों पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। अब लड़ाई भारत सरकार, भारत के करोड़ों सोशल मीडिया यूज़र्स और ट्विटर, फ़ेसबुक और व्हटस्एप जैसी सोशल मीडिया साइट्स के बीच है।