ये जरुरी नहीं कि प्रयोग सिर्फ वैज्ञानिक या पढ़े लिखे लोग ही करें | हमारे देश में तो हर कोई आजाद है प्रयोग करने लिए यहाँ तक कि नेता भी | यदि यूँ कहें कि हमारे नेता और सरकार ही प्रयोगवादी होने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं तो गलत नहीं होगा | उनके प्रयोगों का असर और साइड इफेक्ट सरकारी डिपार्टमेंट ,सरकारी अस्पताल और सरकारी स्कूलों पर बिना किसी दूरबीन का प्रयोग किये देखा जा सकता है |
जितनी सरकार उतने प्रयोग, यहाँ तक कि सरकारी स्कूलों की हालत तो उस चूहे जैसी हो चुकी है जिस पर दवाओ का क्या असर होगा ? ये प्रयोग किया जाता है | पर सरकार सिर्फ प्रयोग करती है | नेता जी किसी देश का भ्रमण पर गए.. वहां के स्कूलों में क्या क्या होता है.. देखा और आते ही अपनी बुद्धि अनुसार सरकारी स्कूलों पर लागू कर दिया खुद के फ्रेश आयडिया के नाम पर अब जो लागू हुआ उसका असर क्या होगा ? ये पता करने की ना तो फुरसत है ना ही …
एक सरकार आई उसने प्रस्ताव पारित किया.. किसी बच्चे को आठवी तक फेल नहीं किया जाएगा | इन्होने जो करना था कर दिया | अब बच्चा निश्चिंत हो गया पढना नहीं पड़ेगा …..मास्टर जी निश्चिंत पढाना नहीं पड़ेगा | अब बच्चा कापी में लिखे, ना लिखे, क्या फर्क पड़ता है ? नंबर ही तो चढाने हैं, चढ़ा डालो, काम ख़त्म वैसे भी मास्टरजी घर घर जाकर सर्वे करेंगे.. चुनावी ड्यूटी देंगे या बच्चों को पढ़ाएंगे ?
नेताजी भूल गए प्रकृति के सिद्धांत को …कि यदि पेड़ की जड़ ही काट दी जायेगी तो वो बढेगा कैसे ? हरा कैसे रहेगा ? अब कोई नेता जी से पूछे, आज तक जिस बच्चे ने ठीक से अ आ इ ई याद नहीं किया वो रातों रात बड़े बड़े सवालों के जबाब लिखना कैसे सीखेगा ? बिना पढ़े पास होने का नियम तो आठवीं तक ही था सो नवमी में पहुँच तो गए.. अब आगे पास कैसे होंगे ? मास्टर जी भी नियम में बंधे हैं नतीजा 40 में से चार बच्चे पास |
नई सरकार का माथा ठनका कहाँ तो सरकारी स्कूल को पब्लिक स्कूल बनाने की सोच रहे थे जोर जोर से बोल भी चुके थे | ये तो नाक कटने वाली बात हो गयी यही हाल रहा तो वोट भी कट जायेंगे |
सो नेता जी कैमरा -शेमरा चेले – शेले लेकर पहुँच गए स्कूल… मास्टरजी की क्लास में …बच्चों के टेस्ट लिए और मास्टरजी जी की क्लास ले डाली उनके ही विधार्थियों के सामने यानी मास्टर जी की इज्जत उतारो अभियान पूरा और सर्वे भी पूरा ….नतीजा …नया प्रस्ताव
अब हुआ बच्चों का बंटवारा बुद्धि के हिसाब से होशियार बच्चे …औसत बच्चे और कमजोर बच्चे तीन अलग हिस्सों में बाँट दिए गए | अब जिस देश का नागरिक अपने पालतू जानवर को भी महाबुद्धिमान घोषित करे उस देश में उसके बच्चे को कमजोर माना जायेगा तो गुस्सा आना तो एक साधारण स्वाभाविक प्रक्रिया में गिना जायेगा | अब जब गुस्सा आएगा तो कहीं तो निकलेगा ही अब नेता जी तो हाथ आने से रहे …मास्टरजी ठहरे साधारण प्राणी सो बच्चे के माता पिता से मिली पूरी डोज बिना कुछ बोले झेल गए |
नई सरकार ने सर्वे कराने बंद किये तो बच्चों के घर भेजना शुरू कर दिया | अब वर्षों से जिन बच्चों को क्लासें बंक करने की आदत पड़ी है, उसमे खलल पड़ेगा तो दिमाग तो ख़राब होगा ही और फेल होने और अपने कर्मो की शिकायत घर तक पहुँचने की बात को कोई बच्चा दिल पर ले गया तो …. मास्टरजी को तो तैयार रहना ही होगा ना ..हर वार के लिए क्योंकि आज के छात्र गाँधी विचारधारा को नहीं मानते ये अहिंसावादी तो कतई नहीं है| ये आतंकवाद युग के बच्चे हैं सो तुरंत सफाए की नीति अपनाते हैं |
बेचारे मास्टरजी “नौकरी क्यों करी गर्ज पड़ी यो करी” की कहावत पर अमल करते हुए मजबूर हैं | अब यदि नेताजी ने प्रयोग किया है तो असर तो मास्टरजी को ही झेलना होगा, नियम का पालन करना ही उनका परम कर्तव्य है (चाहे अपनी जान देकर ही करना पड़) | वैसे भी प्रयोग के नतीजे से नेता जी को क्या लेना देना ?