हमें देखना होगा कि जिस समय हमास ने इसराइल पर पांच हज़ार रॉकेट दागे थे, उस समय इसराइल के प्रधानमंत्री के विरोध में विपक्ष पूरी शिद्दत से जुटा हुआ था। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के त्यागपत्र की मांग की जा रही थी। मगर जैसे ही हमास का आक्रमण हुआ, पूरा देश एक मुट्ठी होकर नेतन्याहू के साथ खड़ा हो गया। कुछ इसी तरह यदि संसद पर हुए हमले के बाद भारतीय सांसद भी एकजुट हो कर संसद की सुरक्षा के बारे में सोचते और इस मुद्दे पर राजनीति न करते तो इतने महत्वपूर्ण बिल विपक्ष की अनुपस्थिति में पास नहीं करने पड़ते।

भारतीय संसद पर सबसे ख़तरनाक हमले की 22वीं बरसी पर सुरक्षा में कुछ ऐसी सेंध लगी कि किसी को कुछ समझ नहीं आया कि ये सचमुच का हमला था, नाटक था या फिर आतंकवादी घटना थी। ध्यान देने लायक बात तो यह भी है कि भारत के तमाम विपक्षी दल भी तय नहीं कर पा रहे थे कि हुआ क्या।
एक तरफ़ कहा जा रहा था कि संसद पर आतंकवादी हमला हुआ है और दूसरी तरफ़ इस घटना को यह कह कर वैध बताया जा रहा था कि यह कार्यवाही देश में बेरोज़गारी के कारण हुई है। ये तो सीधे सादे विद्यार्थी हैं, इनका आतंक से क्या लेना देना। वैसे ध्यान देने लायक बात यह भी है कि अमरीकी आतंकवादी पन्नू ने भी आतंकवादी हमले की चेतावनी दे रखी थी।
भारत के लिये कानून बनाने वालों ने कानून को किनारे पर रखा और दर्शक-दीर्घा से छलांग लगा कर संसद में बंदरों सी उछल-कूद करने वाले और स्मोक-बंब चलाने वाले दो युवाओं की जम कर पिटाई की। आप उनसे यह नहीं पूछ सकते कि आपने उनको सीधे सादे तरीके से सुरक्षा-कर्मियों के हवाले क्यों नहीं कर दिया।
अचानक इंडी गठबंधन के दिमाग़ में एक रौशनी प्रज्ज्वलित हुई। उन्होंने सोचा कि उनके गठबंधन का तो कोई भविष्य दिखाई दे नहीं रहा। तो क्यों न संसद की सुरक्षा के मामले को ही कैश किया जाए। उसके बाद शुरू हुआ संसद में हंगामा। नारेबाज़ी, पोस्टर, बैनर और लोकसभा अध्यक्ष व  राज्य सभा के सभापति की गुहारों का खुला उलंघन। माँग केवल एक ही दोहराई जा रही थी कि गृहमंत्री और प्रधानमंत्री सुरक्षा में हुई चूक पर संसद में बयान दें।
पता चला कि बेभाव संसद सदस्यों का निलंबन शुरू हो गया। लोकसभा हो या राज्यसभा दोनों में कोई भेदभाव नहीं था। सांसद यहां भी खेत रहे और वहां भी। ज़ाहिर है कि सांसद ऐसी अपेक्षा नहीं रख रहे थे कि इतनी बड़ी संख्या में उनका निलंबन हो सकता है। एक सोच यह भी है कि वे जानते थे कि वे जैसा व्यवहार कर रहे हैं, उनका निलंबन निश्चित है और यही वो चाहते भी थे… क्योंकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पराजय के बाद विपक्ष के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा था 2024 के चुनावों के लिये।
अब इंडी एलायंस ने जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन किया है और संसद के द्वार पर ही राज्यसभा के सभापति महामहिम जगदीप धनकड़ की मिमिक्री का कार्यक्रम आयोजित कर दिया जिसमें टी.एम.सी. के सांसद कल्याण बनर्जी ने जॉनी लीवर की कला का प्रदर्शन किया और  राहुल गांधी साहब को कैमरामैन का कॉँट्रेक्ट दिया गया। बीच-बीच में संवाद अदायगी भी हुई और राहुल गाँधी ने जवाब में कहा – “मैं लोकसभा से हूं।”
भारतीय संसद में चुनाव लड़ने के लिये कोई शैक्षिक योग्यता तय नहीं की गई है। इसलिये हो सकता है कि सांसदों को पता ही न हो कि लोकसभा और राज्यसभा में कैसा व्यवहार अपेक्षित है। वे शायद न जानते हों कि किस तरह का आचरण उन्हें निलंबित कर सकता है।
मुझे एक संपादक के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास हुआ और मैं पुरवाई के पाठकों के लिए संविधान के वे नियम खोज कर लाया हूं जिनके तहत सदस्यों को संसद से निलंबित किया जा सकता है। आप सब यूट्यूब पर वीडियो देख कर तय कर सकते हैं कि क्या सांसदों का आचरण इतना ख़राब था कि उन्हें निलंबित किया जाए या फिर उनके साथ अन्याय हुआ है।
हमें एक बात याद रखनी होगी कि आचरण की यह नियमावली वर्तमान भारतीय जनता पार्टी ने नहीं बनाई है। यह नियमावली कांग्रेस पार्टी द्वारा ही बनाई गई है और उन्होंने ही उनमें बदलाव भी किया है।
भारतीय सांसदों को समझना होगा कि नियम 373 के तहत लोकसभा अध्यक्ष किसी सदस्य के आचरण में गड़बड़ी पाए जाने पर उसे तुरंत सदन से हटने का निर्देश दे सकता है। और जिन सदस्यों को हटने का आदेश दिया गया है वे तुरंत ऐसा करेंगे और शेष दिन की बैठक के दौरान अनुपस्थित रहेंगे
नियम 374 के तहत  अध्यक्ष उस सदस्य का नाम ले सकता है जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या सदन के नियमों का लगातार और जान-बूझकर उल्लंघन कर कार्य में बाधा डालता है।
 इस प्रकार नामित सदस्य को शेष सत्र की अनधिक अवधि के लिये सदन से निलंबित कर दिया जाएगा। इस नियम के अधीन निलंबित कोई सदस्य सदन से तुरंत हट जाएगा।
नियम 374A को दिसंबर 2001 में नियम-पुस्तिका में शामिल किया गया था। इसके अनुसार  घोर उल्लंघन या गंभीर आरोपों के मामले में अध्यक्ष द्वारा नामित किये जाने पर सदस्य लगातार पाँच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिये स्वतः निलंबित हो जाएगा।
अब बात करते हैं राज्य सभा की… राज्यसभा की प्रक्रिया के सामान्य नियमों के नियम 255 (राज्यसभा) के तहत सदन का पीठासीन अधिकारी संसद सदस्य के निलंबन का आह्वान कर सकता है। सभापति इस नियम के अनुसार किसी भी सदस्य को जिसका आचरण उसकी राय में सही नहीं था या उच्छृंखल था निर्देश दे सकता है।
नियम 256 (राज्यसभा): यह सदस्यों के निलंबन का प्रावधान करता है। सभापति किसी सदस्य को शेष सत्र से अनधिक अवधि के लिये परिषद की सेवा से निलम्बित कर सकता है।
याद रहे कि इस निलंबन की भी कुछ शर्तें होती हैं। निलंबन मनमाने ढंग से या फिर मनमानी अवधि के लिये नहीं किया जा सकता है।
निलंबन की अधिकतम अवधि शेष सत्र के लिये हो सकती है।
निलंबित सदस्य कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकते हैं या समितियों की बैठकों में शामिल नहीं हो सकते हैं।
 वे चर्चा या प्रस्तुत करने के लिये नोटिस देने के पात्र नहीं होंगे।
वे अपने प्रश्नों का उत्तर पाने का अधिकार खो देते हैं।
एक महत्पूर्ण बात याद रखने वाली यह है कि संविधान का अनुच्छेद 122 कहता है कि संसदीय कार्यवाही पर अदालत के समक्ष सवाल नहीं उठाया जा सकता।
मैं पुरवाई के पाठकों के समक्ष यह स्वीकार करता हूं कि मैं कोई संविधान विशेषज्ञ नहीं हूं। मैंने केवल सरल भाषा में संसद की वो नियमावली अपने पाठकों के सामने रखी है जिसके तहत संसद सदस्यों का निलंबन किया जा सकता है।
आमतौर पर संसद की लाइव कार्यवाही देखने पर महसूस होता है कि भारतीय संसद सदस्यों को किसी प्रकार का प्रशिक्षण शायद नहीं दिया जाता। सत्ता का मद इतना नशीला होता है कि वे ये भी भूल जाते हैं कि उनका काम देश को सुचारू रूप से चलाना है। राष्ट्र हमेशा दल, चुनाव, और निजी सरोकारों से बड़ा होता है। राष्ट्रहित ही सांसदों के लिये सर्वोपरि होना चाहिये। यह ठीक है कि हर संसद सदस्य राजनीतिक दल का सदस्य होता है, मगर उसे राष्ट्र से जुड़े हर मुद्दे पर राजनीति करना ज़रूरी नहीं है। यह तो कतई आवश्यक नहीं है कि विपक्ष सत्ता पक्ष के हर निर्णय का विरोध करे और सत्ता पक्ष विपक्ष-मुक्त भारत की कल्पना को साकार करना अपना परम कर्तव्य समझने लगे।
कवि शैलेन्द्र ने लिखा था – “जो जिस से मिला सीखा हमने / ग़ैरों को भी अपनाया हमने।” हमें देखना होगा कि जिस समय हमास ने इसराइल पर पांच हज़ार रॉकेट दागे थे, उस समय इसराइल के प्रधानमंत्री के विरोध में विपक्ष पूरी शिद्दत से जुटा हुआ था। प्रधानमंत्री नेतन्याहू के त्यागपत्र की मांग की जा रही थी। मगर जैसे ही हमास का आक्रमण हुआ, पूरा देश एक मुट्ठी होकर नेतन्याहू के साथ खड़ा हो गया। कुछ इसी तरह यदि संसद पर हुए हमले के बाद भारतीय सांसद भी एकजुट हो कर संसद की सुरक्षा के बारे में सोचते और इस मुद्दे पर राजनीति न करते तो इतने महत्वपूर्ण बिल विपक्ष की अनुपस्थिति में पास नहीं करने पड़ते।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

57 टिप्पणी

  1. प्रत्येक व्यक्ति को इस संपादकीय को पढ़ना चाहिए… सर
    मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा जैसे बच्चे किसी खिलौने के लिए मारपीट पर उतर आते हैं… पता नहीं क्या क्या कर देते हैं…. ये लोग कुछ ऐसा ही कर रहें हैं…. राष्ट्र प्रति कर्तव्यवोध तो था नहीं कभी… अब निश्चिह्न होने का भय ने उनकी मानसिक अभिवृद्धि को ध्वस्त कर दिया है…..। जो भी हो…विश्वभर के पाठक निश्चित रूपसे इस संपादकीय को अवश्य पढ़ें एवं सत्य को सदैव प्रतिष्ठित रखें…. धन्यवाद सर

  2. सांसद पर कार्यवाही होनी चाहिए,लेकिन गाली गलौज करने वाले सांसद बिधूड़ी जी पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई।

  3. संपादक महोदय,
    इस समय भारतीय संसद में स्थिति यह है कि विपक्ष कानून बनाने या बनने वाले कानूनों में सुधार करवाने का प्रयास करने के बजाय संसद ही न चलने देने के प्रयास करता रहता है।यह अत्यन्त शोचनीय और लज्जाजनक स्थिति है।हो। सकता है कि विपक्ष के सांसदों निलंबन कुछ ज़्यादती हो, परन्तु पिछले पांच वर्षों के इतिहास को देखते हुए विपक्ष ही अधिक दोषी लगता है। राज्य उच्चसभा के अध्यक्ष का अभद्र परिहास सामान्य नागरिक से भी अपेक्षित नहीं है फिर सांसद की तो बात ही क्या!
    राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा होने के बाद शायद राम जी ही भारत के राजनेताओं को कुछ सद्बुद्धि दें।

    • माननीय संपादक जी,
      क्षमा चाहता हूँ । मुझे लगता है यह संपादकीय पूर्वाग्रह पूर्ण एवं सरकार के तरफ से अनाधिकृत सफाई प्रस्तुत करती हुई सी है। विपक्ष ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष जो भी किया, निःसंदेह उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। उपराष्ट्रपति महोदय की मिमिक्री करना गलत था। सांसदों के असंसदीय व्यवहार का उन्हें दंड मिला। सब कुछ निश्चित रुप से हीं कानून एवं संवैधानिक दायरे में हो रहा है। जरुरत पड़ी तो संभवतः आगे भी कारवाई हो।
      साथ हीं नव संसद भवन सुरक्षा में सरकारी चूक एवं चुप्पी को भी पुरी तरह निर्दोष नहीं माना जा सकता भवन सुरक्षा चूक का जबाव सरकार को हर हाल में देना चाहिए। और उसके लिए जो दोषी है उसकी धड पकड़ तथा उनपर कारवाई होनी चाहिए
      संपादकीय में देश के दो चर्चित प्रश्न छूट रहे हैं। प्रमं महोदय का एक मिमिक्री करता हुआ पुराना विडियो और हाल हीं मे कुछ महिने पूर्व एक भाजपाई सांसद द्वारा किसी विपक्षी सांसद को फटकार लगाते समुदाय सूचक अपशब्द।
      मानता हूँ पक्ष पर थोड़ी नम्रता और विपक्ष पर थोड़ी सख्ती के साथ परंतु संसद का कानून पक्ष विपक्ष सभी पर निश्चित तौर पर हीं लागू होने चाहिए।
      असहमति के लिए क्षमा याचनाओं सहित।
      सादर

  4. बहुत सही उदाहरण आपने प्रस्तुत किया है…देश की बात जब आती है तो सभी को एकजुट होना जरूरी है, इतनी महत्वपूर्ण बात हमारे नेता लोग भूल कैसे जाते है? आपने बहुत सटीक तरीके से सही लिखा है.

  5. भारतीय संसद में विपक्ष की गरिमा 40 वर्षो से दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है। लोहिया अटल फर्नांडिस इत्यादि जब विपक्ष में थे तो इंदिरा नेहरू भी उठकर उनकी इज्जत करते थे दरअसल 77 के बाद विश म् कोई भी हो ड्रामा ही ज्यादा हुआ है । ज़ब्ज़ ज्यादा संसद कार्य का नुकसान अनुशासनिक कार्यवाही भी हुई है। इमरजेंसी के दौरान विपक्ष की गैरमौजूदगी म् पूरा का पूरा संविधान ही बदल दिया गया।
    इतना कुछ होने के बाद यह अवश्य विचारणीय है कि संसार का सबसे बड़ा लिखित संविधान क्या त्रुटि विहीन है। खैर यह विशषज्ञों का विषय है।
    तेजेन्द्र जी आप साधुवाद के हकदार हैं जो हरदम अपने संपादकीय में एक अनछुए विषय को लाते हैं।

    • सर आपका स्नेह अमूल्य है। आप हर सप्ताह संपादकीय न केवल पढ़ते हैं हमारा मार्गदर्शन भी करते हैं। हार्दिक आभार।

  6. जितेन्द्र भाई: आज के समपादकीय में तो आप ने एक मँझे हुये शिक्षक की भान्ति सांसद नियमों को बहुत सुन्दर ढँग से समझाया है। बहुत बहुत साधुवाद और धन्‌यबाद।

  7. संसद में जो भी हुआ, दोनों ही घटनाओं को आक्रमण कहा जाएगा। आक्रमण तो सीधा सीधा सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है, परन्तु हमारे माननीय सांसदों का आचरण तो स्पष्ट ही निंदनीय और छिछोरापन कहा जाएगा। काश जनता इस बात को समझ सकती कि किन विदूषकों को संसद में भेज रही है।
    हर तीसरा स्वघोषित देशभक्त मंहगाई का रोना रोता देखा जा सकता है। जाहिर है कि इन सांसदों का वेतन, इनके दूसरे खर्चे जनता की जेब से निकले पैसे होते हैं। ऐसे में यह सोचने वाली‌ बात है कि क्या हम सांसद मिमिक्री करने के लिए चुनते हैं?
    हमारे माननीय सांसदों को यह नहीं सोचना चाहिए कि संसद में इस तरह का आचरण उस जनता के साथ धोखा ही नहीं नमक हरामी है जो आपको मोटी रकम देकर पाल रही है? बजाए अपनी हरकतों पर लज्जित होने के आप देश के उपराष्ट्रपति की मिमिक्री करके खुद को जोकर सिद्ध कर रहे हैं। मैं तो राजनीति का ककहरा भी नहीं जानती, परन्तु यह आचरण तो आम घर परिवार में भी निंदनीय ही कहा जाएगा। ऐसे में एक सशक्त सम्पादक का इस विषय पर लेखनी उठाना बहुत महत्वपूर्ण है। आपने श्रम करके संविधान की धारायें खोजीं और आम आदमी के सामने रखीं, इसके लिए आप‌ साधुवाद के पात्र हैं। इतने पर भी जनता यदि समझ पाए कि किसे चुनकर संसद में भेजना है और किसे नहीं तभी देश का हित हो सकता है।
    मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगी कि वह हमें इस्राइली समझ दे।

    • बहुत सुंदर विवेचना की आपने सर इस विवादित मुद्दे पर। विशेष बात यह रही कि आपने संसद के निलंबन से जुड़े नियमों को सामने रखा, जो कि हम जैसे कई मित्रों को पता भी नहीं होंगे; और शायद केवल पार्टी विचारधारा के स्तर पर पक्ष विपक्ष में बटे होंगे।
      सुंदर सटीक संपादकीय के लिए साधुवाद आदरणीय।

      • विरेन्द्र भाई मेरा प्रयास रहता है कि मुद्दे की पूरी जानकारी पाठकों तक पहुंचे।

  8. संसद में कार्य काज और व्यवहार हमारे लोकतंत्र की सेहत का बैरोमीटर है। निश्चित रूप से यह देश और देश से बाहर के भारतीयों और समूचे वैश्विक पटल के लिए दर्शनीय विषय है कि यदि मर्यादा युक्त आचरण है तो वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा भी और अधिक पुष्ट होती है।भारत का विश्व गुरु बनने का सपना भी उतना ही संजीव हो जाता है परंतु आज के संपादकीय में आदरणीय श्री तेजेंद्र शर्मा ने सारी स्थिति को विधि सम्मत यानी विधि के प्रावधानों का साक्षी देकर निलंबन को औचित्य पूर्ण तरीके से बताया है।
    परंतु मिमिक्री वाली घटना से मुझे उतना इत्तेफाक नहीं है यदि आप स्टैंड अप कॉमेडी की तरफ जाएं तो बहुत राजनेताओं या पब्लिक फिगर या अभिनेताओं की मिमिक्री आम बात है जिस पर उपराष्ट्रपति जैसे सम्मानित पद पर बैठे हुए व्यक्ति का आक्रोश जताना उतना उचित नहीं। इस बात के बारे में पक्ष लिया जा रहा है कि मिमिक्री पर निलंबन और बवाल सही है। उपराष्ट्रपति चाहते तो इसे इग्नोर कर सकते थे कहीं ना कहीं अब निलंबन का मामला व्यक्तिगत और बेवजह है और प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा है ।
    मिमिक्री के मामले में ऐसे सांसदों को आप वार्निंग दे सकते थे और मामला शांत कर सकते थे परंतु ऐसा नहीं किया गया बस यही सत्ता पक्ष की सबसे बड़ी गलती और भारी भूल साबित सकती है।
    शेष निलंबन नियम अनुसार विधि सम्मत है और कहीं ना कहीं सर्व दलीय बैठक बुलाकर इसका भी निराकरण होना ही चाहिए।
    शैलेंद्र का गीत सभी के सभी 543 या उससे भी अधिक सांसदों और राज्यसभा के सांसदों तथा जनप्रतिनिधियों को एक जगह बैठ कर सुनना चाहिए ताकि भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाली सरकार अपने जनप्रतिनिधियों को भी संवेदनशील बना सके।
    तेजेंद्र शर्मा जी को बधाई के उन्होंने इस विचारों ठीक समीकरण पर अपना संपादक अपना संपादकीय बेहद निडरता और सुस्पष्टता से लिखा है।

    • भाई सूर्यकांत जी जिसका काम उसी को साजे। मिमिक्री कलाकार के शो में हम मिमिक्री देखने जाते हैं। सांसद से यह अपेक्षा नहीं रखते। हम सब जानते हैं कि फ़िल्म कलाकार कुछ पैसा चेक से लेते हैं कुछ नक़द। मगर जब यही काम कोई सांसद या मंत्री करते हैं तो उसे दलाली या काला धन कहां जाता है। यदि हर सांसद नियमों के दायरे में रह कर काम करें, तो संसद सुचारू रूप से चल सकती है।

  9. परिश्रम साध्य संपादकीय के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं ।
    संसद में बेरोकटोक घुसना, प्रदर्शन करना अपराध है। पर प्रश्न यह भी है कि किस की स्वीकृति से उनका प्रवेश संभव हुआ ? क्या इस पर
    पड़ताल आवश्यक नहीं है ? सांसदों का निलंबन उनकी अनुपस्थिति और महत्वपूर्ण बिलों का पास होना विचारणीय बिंदु है।

  10. कुछ खुलासों पर हैरान, कुछ पर शर्मसार हूँ। विश्व के अन्य देश ऐसी घटनायें देख कर भारत के बारे में क्या सोचते होंगे? हम इस देश के वासी हैं जहां संसद की इज़्ज़त दाँव पर लगती है…वह सेंध मारी हो, मिमिक्री हो या निलम्बन। भारत की किरकिरी हुई है।
    खुशी इस बात की है कि निलम्बन के नियमों की जानकारी हुई। आभार सम्पादक जी।

    • शैली जी संपादक के तौर पर मेरा प्रयास रहता है की अपने पाठकों को मामले की सही जानकारी दे सकूं।

  11. महत्वपूर्ण संपादकीय सर
    और यह कि “आमतौर पर संसद की लाइव कार्यवाही देखने पर महसूस होता है कि भारतीय संसद सदस्यों को किसी प्रकार का प्रशिक्षण शायद नहीं दिया जाता। सत्ता का मद इतना नशीला होता है कि वे ये भी भूल जाते हैं कि उनका काम देश को सुचारू रूप से चलाना है।” इसे देश की ढुलमुल व्यवस्था के मूल कारण के रूप में देखना समझना चाहिए।

  12. हमास और इज़राइल युद्ध का हवाला देकर सम्पादकीय ने स्पष्ट कर दिया है कि विपक्ष की बेबुनियाद एनार्की किस दिशा में जा रही है।
    यह संयमहीन और प्रक्षिक्षण विहिन आचरण है।
    सम्पादकीय में विपक्षी सांसदों के निलंबन पर संवैधानिक धाराओं का उल्लेख यह बताता है कि विपक्षी सांसदों का असंवैधानिक आचरण निलंबन पर जायज ठहराया जा सकता है।
    सासंदों का उदण्ड व्यवहार जनता को दिख रहा है।
    बेबात के मुद्दे उठाकर सनसनी पैदा करना क्षोभनीय है।
    यह आचरण इनके विपरीत जायेगा और जा रहा है।यही है विपक्ष की विवेकशून्यता जो इन्हें समझ नहीं आ रही है।
    आपके सम्पादकीय गहरे होते हैं जो, दूरगामी परिणामों का एहसास देते हैं। इस दायित्व को बख़ूबी निभाने का आभार और बधाई

    • आपने सख़्त शब्दों में विपक्ष तक अपना संदेश पहुंचाया है मीरा जी। हार्दिक आभार।

  13. ससंद पर हमला एक संगीन मामला है l विद्यार्थी कह कर अपराध को हल्के में नहीं लिया जा सकता l राजनीति इतना गिर गई है कि हर मुद्दे पर देश हित से पहले निजी हित देखने की आदत लग गई है l हमेशा की तरह बहुत जाकारी युक्त लिखा है l काश ! सुरक्षा के मसले पर एक होने की इजराइल जैसी समझ हमारे सांसदों को भी आए l

  14. आदरणीय तेजे आपकी संपादकीय का शीर्षक भी उतना ही गंभीर है जितनी गंभीर संसद में सुरक्षा दृष्टि से हुई चूक ।
    पूरा संपादकीय पढ़ा।और बहुत दुख हुआ।
    संसद की सुरक्षा में चूक हुई,जो नहीं होनी चाहिये थी।यह गंभीर ,प्रमुख और महत्वपूर्ण बात थी। यहाँ सब का एक मत होना जरुरी ही था।
    आपने सही कहा ; सांसदों ने अपनी ही दादागिरी दिखाते हुए उन दोनों की पिटाई कर दी जबकि उन्हें चाहिए था कि पकड़ कर सुरक्षा-कर्मियों के हवाले कर देते ।जो लोग दादागिरी से चुनाव जीतते हैं, दादागिरी उनके नस-नस में भरी होती है, जो मौका पाकर अपना दम दिखा ही देती है।
    पर आप उनसे प्रश्न नहीं कर सकते कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्योंकि यह अधिकार किसी के पास नहीं है नेता कुछ भी कर सकता है!
    यहांँ विपक्ष को भी चाहिए था कि गलती को भुनाने के बजाय समस्या की गंभीरता को समझते हुए उस पर एक मत होते।

    निलंबन से संबंधित जानकारी जो आपने दी वह महत्वपूर्ण है। इस जानकारी ने हर पाठक को समृद्ध किया होगा। वास्तव में संवैधानिक जानकारियांँ होना सभी के लिए बेहद आवश्यक है।
    एक बिल ऐसा भी पास होना जरूरी है जिसमें चुनाव लड़ने के लिए हर नेता के लिए निर्धारित शैक्षणिक योग्यता, निर्धारित हो।बड़ी से बड़ी सर्विस के लिए भी जब योग्यताएंँ निर्धारित है तो शासकों के लिए क्यों नहीं, जिनको देश को चलाना है?एक आचार- संहिता बनना भी जरूरी है जिसमें अपने कार्यालयीन अवसर पर विधानसभा , लोक सभा और राज्य सभा में आपके व्यवहार कैसे होने चाहिए इसकी जानकारी चुनाव जीतते ही रटा दी जाए।
    पर ऐसा करना कोई भी नहीं चाहेगा, चाहे वह प्रधानमंत्री हो, राष्ट्रपति हो, पक्ष हो या विपक्ष हो।
    इस पूरी संपादकीय का सबसे महत्वपूर्ण पैराग्राफ-
    *”आमतौर पर संसद की लाइव कार्यवाही देखने पर महसूस होता है………..से लेकर पूरा पैराग्राफ है।*
    महत्वपूर्ण बात यह भी है-
    १-महत्वपूर्ण यह भी है कि जरूरी नहीं कि विपक्ष सत्ता पक्ष के हर निर्णय का विरोध करे।
    और इसी पैराग्राफ की महत्वपूर्ण बात

    २- सत्तापक्ष विपक्षमुक्त भारत की कल्पना को साकार करना परम कर्तव्य समझने लगे।
    यह दोनों ही बातें दोनों ही पक्ष को समझना बहुत जरूरी है।
    हर बार की तरह आपने निष्पक्ष रूप से संपादकीय लिखी है।,वह बात अलग है कि बहुत लेट पढ़ पाए और लेट ही जवाब दे पाए।
    आपने निलंबन के संबंध में जो नियमों को तलाश कर बताया उससे और समृद्ध हुए।नई जानकारी से अवगत कराने के लिये एक बार पुनः आपका शुक्रिया। आपके संपादकीय से हर बार कुछ नया ही सीखने को मिलता है। यह हमारे लिए उपलब्धि की तरह है
    चलते -चलते एक बात याद आ गई । आज एक वीडियो देखा। जिस पर ब्रॉडकास्ट बिल पर चर्चा हो रही थी। उसे पूरा देखने के बाद
    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम या बंधन के अहसास सा लग रहा है।

    आगे-आगे देखिये होता है क्या? आभार पुरवाई

    बहुत-बहुत बधाइयाँ ,शुभकामनाएंँ व आभार भी।

  15. संसद में घुसपैठ करना ,आतंकी घटना से किसी भी प्रकार कमतर नहीं आंकी जा सकती। विद्यार्थियों हो अथवा सांसद किसी को भी संसद की मर्यादा भंग करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। हमारे देश में विपक्ष नीति विरोध करते करते , व्यक्तिगत विरोध में शालीनता और राष्ट्रीयता दोनों की सुरक्षा की सीमा लाँघ जाता है। कभी-कभी लगता है लोग चुनाव में देश की सुरक्षा और विकास के स्थान पर अपने लिए जीजा का चुनाव करने हेतु वोट देते हैं। व्यक्तिगत आधार पर वोट देश हित की अनदेखी कराता है। यही कारण है सांसद में गलत लोगों का प्रवेश हो रहा है l हर पद की अपनी गरिमा होती है, जिसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी सबकी निजी होती है l सुरक्षा में सेंध लगना गहन जांच का विषय है। दोषियों को सजा अनिवार्य है। जिससे राष्ट्रीय संस्कारों को भी उचित दिशा ज्ञान प्राप्त होता है। सुन्दर सटीक संपादकीय के लिए आपको हार्दिक बधाई,। संसदीय व्यवहार के निहितार्थ कानूनी जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

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