साभार : MY BRAND BOOK

अब चाहे थोड़ा समय और लग जाए मगर वो दिन दूर नहीं जब भारतीय कारों में और् स्मार्टफ़ोन में भारत के मछुआरों को समर्पित नेविगेशन सिस्टम ‘नाविक’ सक्रिय रूप से कार्य करने लगेगा। भारत चाहे जी-5 का हिस्सा न हो मगर एन-5 यानी कि नेवीगेशन-5 का हिस्सा तो अवश्य बन चुका है।

कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। दूसरे महायुद्ध में जब हिटलर को विस्फोटक बनाने के लिये नाइट्रिक एसिड की ज़रूरत पड़ी और दूसरे देशों से आयात संभव नहीं था तो वैज्ञानिक ऑस्टवॉल्ड ने नाइट्रिक एसिड बनाने का नया तरीका ईजाद किया जिसे ‘ऑस्टवॉल्ड प्रोसेस’ कहा जाता है।
कुछ इसी तरह 1999 में जब पाकिस्तान ने कारगिल पर अचानक हल्ला बोल दिया तो भारतीय सेना ने अपनी सरकार से ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम उपलब्ध करवाने की मांग की ताकि दुश्मन की स्थिति निर्धारण में सहायता मिल सके। भारत  के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अमरीका से संपर्क कर उससे अपने अंतरिक्ष द्वारा संचालित नेविगेशन सिस्टम को देने के लिये आग्रह किया जिसे अमरीका ने ठुकरा दिया।
भारतीय सेना को नेविगेशन सिस्टम की अनुपस्थिति में बहुत से जवानों की जान गंवानी पड़ी। अटल जी को उसी दिन एक भारतीय नेविगेशन सिस्टम की आवश्यकता महसूस हो गयी और ‘नाविक’ के आविष्कार के बीज पड़ गये।
वर्ष 2007 में पहली बार इस बारे में आधिकारिक घोषणा की गयी कि भारत स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम बनाएगा। यह भी बताया गया था कि 2012 तक यह प्रणाली काम करने लगेगी। सात उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने की योजना बनाई गयी। मगर सरकारी फ़ाइलों की धीमी गति के कारण पहला उपग्रह 2013 में छोड़ा जा सका। 
पाठकों को समझा दें कि विश्व भर में गूगल मैप्स के माध्यम से हर कार / टैक्सी चालक अमरीकी नेविगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करता है। अमरीका इस मामले में विश्व नेता कहा जा सकता है क्योंकि 1977 में अमरीका ने पहला प्रयोगात्मक नेविगेशन सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजा था। उसकी सफलता से ख़ुश होकर 22 फ़रवरी 1978 को पहला नैविगेशन सैटेलाइट स्थापित किया था।
अमरीका ने वैसे तो 55 सैटेलाइट अंतरिक्ष में ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम के लिये स्थापित कर रखे हैं मगर किसी एक समय पर 31 सैटेलाइट ही सक्रिय रूप से काम करते हैं। यह प्रणाली अमरीकी सेना ने अपने लिये विकसित करवाई थी। मगर आज यह हर आम आदमी के काम आ रही है। हम गूगल मैप्स में अपने घर का पता डाल कर अपने घर को फ़ोन या लैपटॉप की स्क्रीन पर देख सकते हैं।
‘नाविक’ को अंग्रेज़ी में NavIC लिखा जाता है। इसका अर्थ है – नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन यानी NavIC (‘नाविक’)। इस नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम को इसरो (ISRO) ने बनाया है। बताया जा रहा है कि वर्ष 2018 से यह प्रणाली सक्रिय हो चुकी है। 
ख़ुशी की ख़बर यह है कि भारत के देसी जीपीएस यानी कि ‘नाविक’ (Navigation With Indian Constellation – NaVIC) को अंतरराष्ट्रीय संस्था 3GPP ने मान्यता दे दी है। अब अंतरराष्ट्रीय और मोबाइल सेवा प्रदान करने वाली कंपनियां ‘नाविक’ का उपयोग कर पाएंगी।
भारत की वर्तमान सरकार विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता को घटाने के प्रयासों में जुटी है। इसी नीति के मद्देनज़र सरकार ने टेलिफ़ोन बनाने वाली कंपनियों से भारत में लाँच होने वाले अपने नए स्मार्टफोन को भारतीय नेविगेशन सिस्टम ‘नाविक’ के सपोर्ट के साथ लॉन्च करने के आदेश दिए हैं।  कहा जा रहा है कि भारत सरकार ने सैमसंग, एपल, शाओमी और वीवो जैसी स्मार्टफोन कंपनियों की मुश्किलें बढ़ा दी है।  इस आदेश के बाद इन कंपनियों को अपने स्मार्टफोन के हार्डवेयर में बदलाव में आने वाली लागत का डर सताने लगा है। 
‘नाविक’ प्रणाली के विकास के साथ भारत अमरीका (जीपीएस), रूस (ग्लोनास), चीन (बीडाऊ) और यूरोप (गैलिलियो) के साथ आ खड़ा हुआ है जिन्होंन अपने-अपने नेविगेशन सिस्टम विकसित किये हुए हैं। यह भी दावा किया जा रहा है कि  NavIC नेविगेशन सिस्टम जीपीएस की तुलना में ज्यादा सटीक जानकारी देता है। इस सिस्टम से पांच मीटर तक की सटीक पोजीशन की जानकारी हासिल की जा सकती है। यहां एक ध्यान देने लायक बात यह भी है कि ग्लोनास और बीडाऊ बना तो भारत से पहले दिये गये थे मगर अभी तक इन्होंने पूरी तरह से काम करना शुरू नहीं किया है। 
स्वदेशी ‘नाविक’ से रक्षा क्षेत्र और अर्थव्यवस्था को फायदे की उम्मीद है। सरकारी वाहनों की ट्रैकिंग व मछुआरों को आपात समय में चेतावनी भेजने और प्राकृतिक आपदाओं में मदद पहुंचाने में यह काम आ रही है। ‘नाविक’ के आने से विदेशी निर्भरता, खासतौर पर रणनीति और संवेदनशील मामलों में निर्भरता घटेगी।
‘नाविक’ सिस्टम से भारत को बहुत से लाभ होने की संभावनाएं हैं – जैसे कि भारत को अब कारगिल जैसे हालात से निपटने में बहुत आसानी होगी। यह सिस्टम पूरी तरह से स्वदेशी है और इस पर पूरी तरह से भारत का ही नियंत्रण रहेगा। यह सिस्टम अमरीकी जीपीएस से कई गुना बेहतर और सटीक है। यह सिस्टम 5 मीटर तक की सटीक लोकेशन बता सकेगा जबकि अमरीकी जीपीएस 20 मीटर तक ही सटीक बता सकता है।
अब किसी प्राकृतिक आपदा के समय भारत को अमरीका से सहायता मांगने की कोई ज़रूरत नहीं रहेगी। स्वदेशी होने के कारण इसका उपयोग तेज़ी से किया जा सकता है। इस सिस्टम के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की धाक बनेगी। सैन्य मिशन और विमानों की ट्रैकिंग में भी इस सिस्टम से भारत लाभान्वित होगा। किसी भी मौसम में दुर्गम क्षेत्रों में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा। 
भारत ने अभी तक केवल 8 सैटेलाइट लगाए हैं जो कि पूरे भारत और भारत से 1500 किलोमीटर के दायरे में अपना काम सुचारू रूप से कर सकेंगे। इससे भारत के पड़ोसी देश भी इस सिस्टम के दायरे में आ सकेंगे और इसका लाभ उठा सकेंगे। 
इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन ने एक अंग्रेजी अखबार से बात करते हुए कहा है कि 3GPP द्वारा नाविक को मान्यता दिए जाने से उन्हें बेहद खुशी है। साथ ही उन्होंने बताया कि नाविक पूरी तरह से काम कर रहा है। इसके लिए हमारे 8 सैटेलाइट्स भारत के ऊपर तैनात हैं। सात सैटेलाइट नेविगेशन के लिए हैं। एक सैटेलाइट मैसेजिंग के लिए है। नाविक पर आधारित कुछ ऐप पहले से काम कर रहे हैं, जबकि कुछ जल्द ही शुरू हो जाएंगे। जल्द ही हम नाविक आधारित और ऐप लाँच करेंगे। ताकि, आम आदमी को इसका लाभ मिल सके।
स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां सरकार के कदम से घबराई दिख रही हैं। सैमसंग, शाओमी और एपल जैसी कंपनियां इसे लागू करने करने के लिए दो साल की मोहलत मांग रही हैं। उनका कहना है कि इतनी जल्दी नाविक सिस्टम लागू करने पर फोन की लागत पर भी असर होगा। इसके साथ ही तकनीकी बाधाएं भी आएंगी। कंपनियां नाविक की वजह से उत्पादन और शोध लागत बढ़ने की बात कह रही हैं। ऐसे में इसे अगले साल की शुरुआत से ही लागू करने की कोशिश हुई तो आर्थिक नुकसान होगा।
अब चाहे थोड़ा समय और लग जाए मगर वो दिन दूर नहीं जब भारतीय कारों में और् स्मार्टफ़ोन में भारत के मछुआरों को समर्पित नेविगेशन सिस्टम ‘नाविक’ सक्रिय रूप से कार्य करने लगेगा। भारत चाहे जी-5 का हिस्सा न हो मगर एन-5 यानी कि नेवीगेशन-5 का हिस्सा तो अवश्य बन चुका है।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

18 टिप्पणी

  1. Thank you,Tejendra ji,for giving your readers these details about the functions n advantages of NavIC.
    This will certainly help our country and our countrymen in the detection of alien objects in our sky or ocean.
    Also the plan to utilize its knowhow in the manufacture of smartphones appears promising
    Regards
    Deepak Sharma

  2. भविष्य की उम्मीद! बहुत सुंदर एवं ज्ञानोपार्जन करता उपयोगी लेख।

  3. तकनीकी के क्षेत्र में इस नवाचार से भारत को
    निश्चित ही लाभ होगा ।सम्पादकीय के माध्यम से आपने हमारे ज्ञान में वृद्धि कर दी ।
    ‘नाविक ‘की विस्तृत जानकारी अद्भुत है ।
    साधुवाद
    DrPrabha mishra

    • धन्यवाद प्रभा जी। पुरवाई का प्रयास रहता है कि अपने पाठकों को संपादकीय के माध्यम से कुछ नई जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके।

  4. इस अंक का संपादकीय मेरे देश भारत के गौरव को बढ़ाने वाला ,हर भारतवासी के आत्म
    सम्मान में वृद्धिकारक होने के साथ साथ तकनीकी ज्ञानदायक भी है।
    मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से इसलिए रोचक रहा कि मेरे पति ने भारत की खनिज तेल अन्वेषण करने वाली संस्था में काम किया है और अस्सी के दशक में सैटेलाइट नेविगेशन का प्रशिक्षण ब्रिटेन में पाया।उस समय इस तकनीक का प्रयोग सागर में तेल के भंडार खोजने के लिए मुंबई के निकटअरब सागर में किया जा रहाथा।
    एक और बढ़िया संपादकीय के लिए बधाई।

    • धन्यवाद सरोजिनी जी। सच में भारत द्वारा अपने नेविगेशन सिस्टम बना लेने से प्रत्येक भारतवंशी को गर्व की अनुभूति तो हो ही रही है।

    • शशि जी क्षमा, राजेन्द्र शर्मा भाई के लिए लिखे जवाब आपकी टिप्पणी पर पोस्ट हो ग्रे। आपकी सार्थक टिप्पणी के लिए विशेष धन्यवाद।

  5. नाविक प्रणाली के आविष्कार से लेकर उसके विकास और सुरक्षा के लिए विभिन्न उपकरणों के साथ प्रयोग में लाने की बात जानकर भारत के ज्ञान -विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे कार्यों की सफलता पर हर भारतवासी को गर्व महसूस होता है । नाविक आम आदमी के लिए भी उतना ही सहायक होगा जितना भारतीय सेना के लिए । 1999 के कारगिल युद्ध के समय यह भारत को मिल जाता तो स्थिति और होती । देर से सही लेकिन इसके सुचारू रूप से प्रयोग की सूचना पाकर भारत की सीमाओं के सुरक्षित भविष्य के लिए आश्वस्त हो सकती हूँ । इस उपलब्धि के लिए हमारे वैज्ञानिक धन्यवाद के पात्र हैं । इतनी विस्तृत जानकारी के लिए संपादक श्री तेजेंद्र जी का धन्यवाद ।
    शशि पाधा
    यूएसए

  6. संपादकीय तो आपके हमेशा ही समसामयिक होते ही हैं साथ ही इन्हें पढ़ते हुए महसूस होता है जैसे लेखक मात्र हिंदी साहित्य लेखन तक सीमित नहीं है वह समय पड़ने पर और भी बहुत कुछ बन सकता है। रोचक तथ्य परक, विचारशील स्मपादकीय सर

  7. यह भारत की क्षमता का पर्याय है.यह हर्षित करता क्षण है.यह तकनीकी उपलब्धि और आत्मनिर्भरता का पुनर्पाठ है.सम्पादकीय की बधाई. हौसलों को पंख लगे

  8. नवीन जाकारी प्रदान करता हुआ लेख , सामायिकता से आगे बढ़कर नाविक की जानकारी.…. ारतीय होने पर गर्वित करती हुई है। भारत के N 5 में पहुचने की हम सभी के साथ आपको भी बधाई । आपके लेख सदैव बहुत सटीक और ज्ञान वर्धक होते हैं ।

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