सांकेतिक चित्र (साभार : एबीपी न्यूज़)

स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा के साथ कृषि शिक्षा, कानूनी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसी व्यावसायिक शिक्षा भी नई शिक्षा नीति के दायरे में होगा। कला, संगीत, शिल्प, खेल, योग, सामुदायिक सेवा जैसे सभी विषयों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इन्हें सहायक पाठ्यक्रम नहीं कहा जाएगा।

नरेन्द्र मोदी सरकार ने मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदल कर एक बार फिर से शिक्षा मंत्रालय का नाम दे दिया है। यह एक स्वागत योग्य निर्णय है। भला कोई भी सरकार मनुष्य को संसाधन कैसे कह सकती है। 
जब से भारत स्वतन्त्र हुआ है तब से ही जिन दो क्षेत्रों की पूरी तरह से उपेक्षा की गयी है उनमें शामिल हैं – चिकित्सा और शिक्षा।
क़रीब 34 साल बाद, पिछले बुधवार को भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति को मंज़ूरी दे दी। इस नई नीति के तहत प्राइमरी, सेकेण्डरी और उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किये गये हैं। बच्चों पर से बोर्ड की परीक्षाओं का भार कम कर दिया जाएगा। शिक्षा पर सराकारी ख़र्च 4.43 प्रतिशत से बढ़ाकर जीडीपी का 6 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है।
नई शिक्षा नीति के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु कुछ इस प्रकार हैं
स्कूलों में 10+2 के स्थान पर 5+3+3+4 का फ़ॉर्मैट शुरू किया जाना तय किया गया है। अब छठी से बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी।  चौथी स्टेज नवीं से बारहवीं तक की होगी जिसमें विषय चुनने की स्वतन्त्रता होगी।
अब छात्र साइंस या गणित के साथ फ़ैशन डिज़ाइनिंग आदि जैसे विषय भी पढ़ने की आज़ादी होगी। पुरानी शिक्षा नीति के तहत कक्षा एक से दस तक सामान्य पढ़ाई होती थी। ऐच्छिक विषयों का चुनाव कक्षा ग्यारह से किया जा सकता था।
डॉ. कस्तूरी रंगन, जो कि नई नीति बनाने वाली समिति का नेतृत्व कर रहे थे, ने कहा कि – अब छठी कक्षा से ही विद्यार्थियों को प्रोफ़ेशनल और व्यवसायिक शिक्षा दी जाएगी। उनका कहना था कि नई शिक्षा नीति बेरोज़गार नहीं पैदा करेगी। स्कूल में ही बच्चों को नौकरी के लिये आवश्यक प्रोफ़ेशनल शिक्षा प्रदान की जाएगी। 
अब से पांचवी कक्षा तक पढ़ाई मातृभाषा में करवाई जाने का प्रावधान है। बच्चों की रिपोर्ट कार्ड में बदलाव होगा। उनका तीन स्तर पर आकलन किया जाएगा। एक स्वयं छात्र करेगा, दूसरा सहपाठी और तीसरा उसका शिक्षक। 
उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने बताया कि नई नीति में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट (बहु-स्तरीय प्रवेश एवं निकासी) व्यवस्था लागू किया गया है। चार साल के किसी कोर्स में नये मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और 3-4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। यह छात्रों के हित में एक बड़ा फैसला है।
स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा के साथ कृषि शिक्षा, कानूनी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसी व्यावसायिक शिक्षा भी नई शिक्षा नीति के दायरे में होगा। कला, संगीत, शिल्प, खेल, योग, सामुदायिक सेवा जैसे सभी विषयों को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। इन्हें सहायक पाठ्यक्रम नहीं कहा जाएगा।
नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की अनुमति मिलेगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे भारत के विद्यार्थी विश्व के बेस्ट इंस्टीट्यूट व यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले सकेंगे। उन्हें विदेश नहीं जाना पड़ेगा।
एससी, एसटी, ओबीसी और एसईडीजीएस स्टूडेंट्स के लिए नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल को बढ़ाया जाएगा। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाया जाएगा।
उच्च शिक्षा में एम. फ़िल. की डिग्री को समाप्त कर दिया जाएगा और एम.ए. के बाद सीधे पीएच. डी. की डिग्री के लिये अप्लाई किया जा सकेगा।
शशि थरूर ने ट्वीट कर शिक्षा नीति का स्वागत किया गया था, उन्होंने ट्वीट में लिखा था कि इसमें कुछ सुझाव माने गए हैं जो काफी अच्छे हैं। लेकिन सवाल यह है कि इसे पहले संसद में बहस के लिए क्यों नहीं लाया गया।
मगर कुछ लोगों ने केवल आलोचना करने के लिये कुछ बचकाने से सवाल भी कर डाले, जैसे एनडीटीवी की एक पत्रकार निधि राज़दान पूछती हैं कि “उस बच्चे के लिए कौन सी मातृ-भाषा होगी जिसके माँ बाप दो अलग अलग समुदाय से आते हों”।
वहीं राजदीप सरदेसाई ट्वीट करते हैं कि एंग्लो-इंडियन सोसाइटी के एक मित्र ने उनसे पूछा है कि उनकी मातृभाषा तो अंग्रेज़ी है। क्या उन्हें शुरूआती शिक्षा अंग्रेज़ी माध्यम से नहीं दी जा सकेगी।
मुख्य मुद्दा यही है कि नई शिक्षा नीति को लागू करने में ईमादारी दिखाई दे और इसका उद्देश्य छात्रों को बेहतर भविष्य प्रदान करना हो। 
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

2 टिप्पणी

  1. नई शिक्षा नीति को लेकर तेजेन्द्र शर्मा जी ने बहुत ही सकारात्मक एवं सुन्दर विवेचना की है। अब निधि राज़दान और राजदीप सरदेसाई जी जैसे लोगों को नीति समझ में न आये तो उसके लिए किया क्या जा सकता है! शर्मा जी की यह चिन्ता भी उचित ही है कि नई शिक्षा नीति को लागू करने में ईमानदारी दिखायी दे और इसका उद्देश्य छात्रों को बेहतर भविष्य प्रदान करना हो।

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