आशीष मिश्रा की ग़ज़ल : ‘इस तरक्क़ी की ख़ुशी में, आज मैं बेघर हुआ’
कुछ दिक़्क़तों के दिन रहे, शोर रात भर हुआ
दूर बस होता गया, फिज़ूल अपनी ज़िद लिए
चाँद उगता देश में भी, सूरज भी आता रोज़ होगा
सुबह लाने के लिए, शाम बेचता है नगर ये
यूँ तो रेशमी रंगीन–सी, है ख़्वाहिशों की ये ज़मी
दौड़ थी बस जीत की, सो छोड़ आया मीत भी
कुछ दिक़्क़तों के दिन रहे, शोर रात भर हुआ
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