होम ग़ज़ल एवं गीत आशीष मिश्रा की ग़ज़ल : ‘इस तरक्क़ी की ख़ुशी में, आज मैं... ग़ज़ल एवं गीत आशीष मिश्रा की ग़ज़ल : ‘इस तरक्क़ी की ख़ुशी में, आज मैं बेघर हुआ’ द्वारा आशीष मिश्रा - May 3, 2020 235 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet कुछ दिक़्क़तों के दिन रहे, शोर रात भर हुआ इस तरक़्क़ी की ख़ुशी में, आज मैं बेघर हुआ दूर बस होता गया, फिज़ूल अपनी ज़िद लिए ना हो मग़रूर आप पर, सोचा बहोत मगर हुआ चाँद उगता देश में भी, सूरज भी आता रोज़ होगा पर खोजता परदेस में, कुछ हाल इस क़दर हुआ सुबह लाने के लिए, शाम बेचता है नगर ये घर के सजाए ख़ूब कोने, ना वो गाँव ना शहर हुआ यूँ तो रेशमी रंगीन–सी, है ख़्वाहिशों की ये ज़मी और चाँद पाने के लिए, पहर–दोपहर हुआ दौड़ थी बस जीत की, सो छोड़ आया मीत भी उन्नति को क्या सज़ा दूँ, ख़ुद मैं दर–बदर हुआ कुछ दिक़्क़तों के दिन रहे, शोर रात भर हुआ इस तरक़्क़ी की ख़ुशी में, आज़ मैं बेघर हुआ संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं नीलम वर्मा की ग़ज़ल त्रिलोक सिंह ठकुरेला का गीत – मैं उजाला बाँटता हूँ, तिमिर में डूबे घरों में डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ के दो गीत कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.