Saturday, July 27, 2024
होमग़ज़ल एवं गीतआशीष मिश्रा की ग़ज़ल : 'इस तरक्क़ी की ख़ुशी में, आज मैं...

आशीष मिश्रा की ग़ज़ल : ‘इस तरक्क़ी की ख़ुशी में, आज मैं बेघर हुआ’

कुछ दिक़्क़तों के दिन रहे, शोर रात भर हुआ
इस तरक़्क़ी की ख़ुशी में, आज मैं बेघर हुआ   
दूर बस होता गया, फिज़ूल अपनी ज़िद लिए
ना हो मग़रूर आप पर, सोचा बहोत मगर हुआ 
चाँद उगता देश में भी, सूरज भी आता रोज़ होगा
पर खोजता परदेस में, कुछ हाल इस क़दर हुआ 
सुबह लाने के लिए, शाम बेचता है नगर ये
घर के सजाए ख़ूब कोने, ना वो गाँव ना शहर हुआ 
यूँ तो रेशमी रंगीनसी, है ख़्वाहिशों की ये ज़मी
और चाँद पाने के लिए, पहरदोपहर हुआ 
दौड़ थी बस जीत की, सो छोड़ आया मीत भी
उन्नति को क्या सज़ा दूँ, ख़ुद मैं दरबदर हुआ
कुछ दिक़्क़तों के दिन रहे, शोर रात भर हुआ
इस तरक़्क़ी की ख़ुशी में, आज़ मैं बेघर हुआ   
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest