1- यह अंत नहीं है
सहमे-सहमे बीत रहे दिन
सहमी-सहमी रातें ।
खामोशी  के  सागर में
डूबी  जीवन  की बातें ।
दिखता नहीं  है जो आँखों से
कहर है  उसका  ऐसा ।
नभ खोकर ज्यों बंद घरों में
मानव  पंछी जैसा ।
कहाँ  गये वे सैर-सपाटे?
कहाँ  गयीं मुलाकातें ?
यह दुनिया  का अंत नहीं है
रात  का है अँधियारा ।
एक-दूजे  को  बढ़कर थामो,
आयेगा उजियारा ।
प्यार की जोत जलाकर गाओ
टूटेंगे सन्नाटे ।
सब अपने में व्याकुल हैं पर
वे सेवा  करते   हैं ।
मौत टहलती  जहाँ वहाँ वे
जीवन  को  रचते  हैं  ।
देव भी  इन  चेहरों  में  ही
धरती  पर  होंगे  आते ।
2-  दो-चार  दिन
दु:ख के बादल  छँट जायेंगे,
आँधी के दिन दो-चार ज़रा।
पर  सृष्टि  तुमसे  रूठी  है
आओ, कर लो मनुहार ज़रा।
हो गयीं  दूरियाँ, घर-घर  के
दरवाजे बंद,  सड़क निर्जन।
ये  बीज हमारे बोये उनको,
बेबस  काट  रहे  हैं   हम।
अब तो  मनमानी  छोड़ो भी,
गलती कर लो  स्वीकार ज़रा।
परवत-नदियाँ,  पंछी-प्राणी,
सब माँ की गोदी के हैं सुख।
बेदर्दी से  इंसानों  ने तोड़ा-
काटा , कुछ हुआ न दुःख ।
आहें प्रकृति की निकल रहीं
हैं, कम होगा दु:ख-भार ज़रा।
तुम्हें  गर्व था  तुम कर सकते
हो इस दुनिया  का   विनाश ।
फिर एक अलख, अस्तित्वहीन
क्यों बंद कर रहा सबकी साँस?
क्या  जानेगे ? नादान हो तुम,
यह बात  समझ  के पार ज़रा ।
वह रस्ता जिस पर साथ-साथ,
सब चलते थे, क्यों भूल गये ?
अब अपने से अपने तक ही
जाते  हैं  निर्जन  पंथ  नये ।
सबसे अपनापन जोड़ो, भू को
दे  दो   नेह – दुलार ज़रा ।
कवि-कथाकार एवं गीतकार अंजना वर्मा का नाम समकालीन हिन्दी रचना-परिदृश्य का एक जाना-पहचाना नाम है । कविता, कहानी, गीत, समीक्षा, यात्रावृत्त एवं बाल साहित्य में इनकी डेढ़ दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पाँच वर्षों तक इन्होंने 'चौराहा' पत्रिका का संपादन एवं प्रकाशन किया। इनकी रचनाओं के अनुवाद अंग्रेजी, मराठी तथा कन्नड़ भाषाओं में हो चुके हैं । इन्हें कई सम्मानों से विभूषित किया गया है। संपर्क - anjanaverma03@gmail.com

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.