डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का गीत – कभी सोचा नहीं था
कभी सोचा नहीं था घर ये मेरा घर नहीं होगा
हमारी बागवानी देखकर दुनिया तरसती थी
हमारी भूल थी या भूल पुरखों की विरासत थी
बड़े अरमान से साहब बनाया अपने बेटे को
उड़ा था शौक से, लेकिन बला लिपटी गले ऐसी
गया वह दूर इतना, भूल बैठा, किसका बेटा है
कभी सोचा नहीं, मैं भी जिऊँ दो-चार पल सुख से
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