गीत
प्यास नदिया की इक टक निहारे तुम्हें
मेघ अब और मुझको सताना नहीं
बाँह दोनों उठाकर पुकारूँ तुम्हें
अब चलेगा तनिक भी बहाना नहीं..!
रात से भोर तक कितनी लहरें उठीं
चाँद तारे सभी ने गवाही भी दी
आस में कंठ जब सूखने था लगा
ओस ने आके मीठी सुराही भी दी
ए पवन बैर मुझसे नहीं पालिये
मेघ को यूँ अचानक उड़ाना नही..!
अब चलेगा तनिक भी बहाना नहीं..!
याचना बन गयी, भोर की इक दुआ
लाज की रीति भी टूटने से टली
भाव पगने लगे, उर के मधुकोष में
और नदिया हुई ज्यूँ शहद की डली
बंद पलकें हैं और होंठ ख़ामोश हैं
क्या कहूँ मुझपे किसका ठिकाना नहीं..!
अब चलेगा तनिक भी बहाना नहीं…!
बेल बूटे भरी प्रीत की चूनरी
जुगनुओं से सजी मन की बारात है
हार कर भी जहां जीतने का नियम
प्रेम में शह नही ना कोई मात है
कान में राज़ की बात कह दी मगर
सारी दुनिया को हरगिज़ बताना नहीं..!
अब चलेगा तनिक भी बहाना नहीं..!!
गीत
जब उत्सव का गीत लिखें तब, भाव कृत्रिम हो जाते हैं
हम पीड़ा को कैसे गाएं, हमको यह अधिकार नहीं ……!
खोना पाना सिर्फ नियति है, जग कहता मत क्रंदन कर
विपदाओं को गले लगा, या फिर माथे का चंदन कर
हांड माँस की इक काया हूँ, देवी का अवतार नहीं…….
हम पीड़ा को कैसे गाएं, हमको यह अधिकार नहीं……..!
जब जब आस बँधायी उसने, तब तब छलकर जीत गया
मेरा मधुमासी मन जैसे, पतझड़ बनकर रीत गया
पीड़ाओं की इक सूची है, कहने को दो चार नहीं…….
हम पीड़ा को कैसे गाएं, हमको यह अधिकार नहीं…….!
घाट घाट से खाकर ठोकर, पास हमारे आया वो
बिसरा दूँ अब सारी बातें, कह-कह कर पछताया वो
क्षमा दान की किसी क्रिया पर, अंतर्मन तैयार नहीं……..
हम पीड़ा को कैसे गायें, हमको यह अधिकार नहीं……..!