Saturday, July 27, 2024
होमग़ज़ल एवं गीतप्रवासी गीत - शैलजा सिंह

प्रवासी गीत – शैलजा सिंह

प्रवासी गीत – शैलजा सिंह
हम परिंदों से उन्मुक्त उड़ते रहे।
पंख मोड़े हवाओं ने मुड़ते रहे।
हम वहां थे कभी अब यहां आ गये।
छोड़ कर के हसीं आशियां आ गये।
ये भी अपना है घर हम जहां आ गये।
दो घड़ी में कहां से कहां आ गये।
कुछ नए मीत भी हमसफ़र हो गये।
कुछ तो अपने भी हम से बिछुड़ते रहे।
हम परिंदों से उन्मुक्त।।
मन हमारा है काशी की गंगा का तट।
चहचहाये भी कादम्बिनी के निकट।
पंख फैला के बैठे कभी छांव में ,
भूल पाएगा क्या वो कभी वंशी वट।
है प्रवासी सरीखा ये जीवन रहा।
ख़्वाब बढ़ते रहे पर सिकुड़ते रहे।
हम परिंदों से उन्मुक्त।।
लहलहाते हुए ख़ूब गुलशन मिले ।
फूल उम्मीद के ख़ुशनुमा भी खिले।
आंधियां और तूफ़ान झेले बहुत।
पस्त लेकिन हुए ना कभी हौसले।
कितनी किवदंतियां और कहानी बनी।
हम से लाखों फ़साने जुड़ते रहे।
हम परिंदों से उन्मुक्त।।
शैलजा सिंह
शैलजा सिंह
संपर्क - 09910974587
RELATED ARTICLES

2 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest