Friday, October 4, 2024
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ग़ज़ल – नीलम वर्मा

इन काले अंधेरों को दुनिया से मिटा दें हम
जब तक ना सवेरा हो इक शम्आ जला दें हम
अब उसकी जफ़ाओं का, कुछ ऐसा सिला दें हम
त्आल्लुक़ ना पशेमाँ हो, इतना तो निभा दें हम
रुसवाई के अब चर्चे, इस दर्जा हैं महफ़िल में
अपनी ही निगाहों से, ख़ुद को ना गिरा दें हम
मशहूर जो होता है, बदनाम भी होता है
तल्खियाँ ज़माने की हंस हंस के उड़ा दें हम
ये कैसा है मयखाना, मिल कर है बिछड़ जाना
अब याद करें किसको, और किसको भुला दें हम
बेदाग़ नहीं कोई, मालूम है साक़ी को
जो जुर्म हुए हमसे, ख़ुद ही ना गिना दें हम
साहिल भी सागर भी, तन्हा सभी ‘नीलम’ हैं
इस लम्हा-ए-रुख़सत में, अब किसको सदा दें हम

नीलम वर्मा (दिल्ली)
[email protected]
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2 टिप्पणी

  1. अच्छी ग़ज़ल है आपकी नीलम जी! कुछ शेर जो अच्छे लगे

    इन काले अंधेरों को दुनिया से मिटा दें हम
    जब तक ना सवेरा हो इक शम्आ जला दें हम

    मशहूर जो होता है, बदनाम भी होता है
    तल्खियाँ ज़माने की हंस हंस के उड़ा दें हम

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