नीलम वर्मा की ग़ज़ल
अब हवा आशिक़ी की ये चलने लगी
चाँदनी की कसक जाने शबनम फ़क़त
रौशनी के परिंदे उतर आए हैं
है तपिश उसकी आहों में बाकी अभी
एक रंगीं फ़साना हिना लिख गई
वस्ल की रात में ये दिया न बुझे
वक्त-ए-रुखसत वो ‘नीलम’ हटा ही नहीं
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