निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल
बुढ़ापे में उसका नहीं कोई सानी।
चढ़ी ही नहीं जो वो उतरेगी कैसे।
जो पीते नहीं हैं वो जीते हैं कैसे।
पता सबको है ज़िंदगी चार दिन की।
न आने की चाहत न जाने का ग़म है।
तुझे क़ब्र में है अकेले ही जाना।
निज़ाम इस जहाँ में जियो मस्त रह कर।
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