Tuesday, October 15, 2024
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डॉ रूबी भूषण की दो ग़ज़लें

1.

वो फ़लक पर कयाम करता है
जब परिंदा उड़ान भरता है

आदमी ग़म के बोझ से दुहरा
उम्र सारी तमाम करता है

हुस्न के सैंकड़ो मिले आशिक़
इश्क़ पर कोई – कोई मरता है

राह कितनी कठिन है पनघट की
आदमी आग से गुज़रता है

ख़्वाब में उसने ऐसा क्या देखा
नींद में जाने क्यों वो डरता है

एक उम्मीद की किरण सी है
शब को जुगनू अगर गुज़रता है

2.

शीशा हूं या कोई पत्थर, समझो ना
आंखों की भाषा को पढ़ कर,समझो ना

होंठो से निकली वाणी पर मस्त हुए
क्या कहते हैं मेरे मंतर , समझो ना

कहने से पहले शब्दों का चयन करो
क्या गुज़रे गी मेरे दिल पर, समझो ना

सुंदरता की साक्षी हैं ये आंखें भी
तुम से ही हैं कपड़े ज़ेवर,समझो ना

जोड़ दो अपने प्यार भरे शब्दों से मुझे
टूट रही हूं अंदर अंदर समझो ना

दूर ही से हमको नसीहत क्यों करते हो
मरज़ हमारा मुझसे मिलकर समझो ना

कैसे बताऊं शेर से मन की परिभाषा
मैं तो हूं जज्बों पर निर्भर,समझो ना

कैसे बताऊं शेर से मन की परिभाषा
मैं तो हूं जज्बों पर निर्भर,समझो ना

रूबी भूषण
102, शिवराज अपार्टमेंट,
ईस्ट बोरिंग कैनल रोड,
पंचमुखी हनुमान मंदिर के समीप,
पटना-800001
मोबाइल – +91-9931918723
Email –  [email protected]
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4 टिप्पणी

  1. अच्छी हैं ग़ज़लें आपकी।एक शेर बहुत अच्छा लगा
    “वो फ़लक पर कयाम करता है
    जब परिंदा उड़ान भरता है”
    पर हमें कयाम का अर्थ नहीं पता।
    हमने गूगल में भी सर्च किया था तो वह कायम का बता रहे हैं कयामत का नहीं।

  2. बहुत-बहुत शुक्रिया नीलिमा जी
    मैंने कयाम लिखा है
    कयाम का अर्थ होता है स्थिर होना। मैं पूरी ग़ज़ल भेज रही हूं।

    वो फ़लक पर कयाम करता है
    जब परिंदा उड़ान भरता है

    आदमी ग़म के बोझ से दुहरा
    उम्र सारी तमाम करता है

    हुस्न के सैंकड़ो मिले आशिक़
    इश्क़ पर कोई – कोई मरता है

    राह कितनी कठिन है पनघट की
    आदमी आग से गुज़रता है

    ख़्वाब में उसने ऐसा क्या देखा
    नींद में जाने क्यों वो डरता है

    एक उम्मीद की किरण सी है
    शब को जुगनू अगर गुज़रता है

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