Saturday, October 12, 2024
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कुलदीप दहिया ‘मरजाणा दीप’ की कविता – काश तुम समझ पाते

काश तुम समझ पाते
मेरे मन में छिपी सवेंदनाओं को,
आँसुओं के उमड़ते सैलाब को
जो तुम्हारी याद में निकले।
काश तुम देख पाते
मेरे सुनहले ख़्वाबों का संसार,
जो तुम्हारे एक पल के दीदार
के लिए बुना था मैंने।
काश तुम देख पाते
मेरे दिल में जमी यादों रूपी,
जंग की उस गहरी परत को
जो मिलन की टोह में
चढ़ती चली गयी।
काश सहलाते तुम
मेरी काली झुल्फ़ों को,
अपनी नरम-नरम उँगलियों के पौरों से
जोकि मेरे यौवन ढलने के साथ-साथ
सफ़ेदी की चादर ओढ़ने लगी हैं।
काश तुम देख पाते
घूँघट में छिपे इस चाँद को,
जिस पर अब झुर्रियों का साया पड़ गया है
मेरे रुख़सारों का वो काला तिल
जिसकी एक झलक पाने को
मन लालायित रहता था कभी ।
काश तुम समझ पाते
मेरे बिखरते जज्बातों को,
मेरी मज़बूरियों के पीछे
मेरे बेबस हालातों को।
काश महसूस कर पाते
मेरी आँखों में तुम्हारे लिये,
छिपे गहरे समंदर से शांत
पाक पवित्र प्रेम को,
दिल में उठती हूक को
जो अब नासूर बन गयी है।
काश तुम समझ पाते
मेरे महोब्बत-ए-चमन में,
कुम्हलाते हुए उस बूटे की पीड़ा
जो चाहत रूपी उर्वरा की आस में
अर्पण रूपी बूंदों की
आहट सुनकर चहकने लगा था।
काश महसूस कर पाते
रूह में बजते तार को,
धधकते कोमलांगो की तपन को
जिसे जल उठा था रोम-रोम मेरा।
काश कुछ लम्हे रुक पाते
मैं नदिया सी हो जाती कुर्बान,
मेरा हर सुकूँ उड़ेल देती
जो सदियों से पिरो रखा था
चाह की लड़ी में
कि तुम आओगे इस पार।
काश तुम आ जाते
समा जाती अपनी समस्त
आकाँक्षाओं के साथ
जो मेरी रूह के तहख़ाने में
बसा रखी थी तुम्हारे लिए।
काश तुम आ जाते
और मेरा ये ख़्वाब
हो जाता मुक़म्मल
हो जाती मैं फ़ना तुम पर
मगर तुम भूल गए
बुझा डाले यादों के “दीप”
मेरी हर पीड़ा
मेरे अहसास,मेरा समर्पण
मेरी चाहतों का गुलिस्तां
उन पलों की कीमत।
काश तुम समझ पाते
काश महसूस कर पाते।
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