काश तुम समझ पाते
मेरे मन में छिपी सवेंदनाओं को,
आँसुओं के उमड़ते सैलाब को
जो तुम्हारी याद में निकले।
काश तुम देख पाते
मेरे सुनहले ख़्वाबों का संसार,
जो तुम्हारे एक पल के दीदार
के लिए बुना था मैंने।
काश तुम देख पाते
मेरे दिल में जमी यादों रूपी,
जंग की उस गहरी परत को
जो मिलन की टोह में
चढ़ती चली गयी।
काश सहलाते तुम
मेरी काली झुल्फ़ों को,
अपनी नरम-नरम उँगलियों के पौरों से
जोकि मेरे यौवन ढलने के साथ-साथ
सफ़ेदी की चादर ओढ़ने लगी हैं।
काश तुम देख पाते
घूँघट में छिपे इस चाँद को,
जिस पर अब झुर्रियों का साया पड़ गया है
मेरे रुख़सारों का वो काला तिल
जिसकी एक झलक पाने को
मन लालायित रहता था कभी ।