पुरवाई के दो संपादकीयों (‘टूथपेस्ट हैं या ज़हर’ और ‘भारत में कोरोना, ऑक्सीजन और राजनीति’) पर पाठकीय प्रतिक्रियाएं

शन्नो अग्रवाल
तेजेन्द्र जी, टूथपेस्ट पर एक सार्थक, रोचक और ज्ञानवर्धक संपादकीय लेख लिखने के लिये आपने तो टूथपेस्ट का सारा इतिहास ही खंगाल डाला।  बचपन में नीम की दातुन से लेकर लाल दंत मंजन और मीठा कॉलगेट टूथपेस्ट (जिसे हम जरा सा जानबूझ कर चाट भी जाते थे) की यादें ताजा कर दीं।
और आधुनिक समय में इस्तेमाल किये जाने वाले तमाम तरह के टूथपेस्ट पर शोध करके उनके फायदे, नुकसान आदि बताते हुये बाबा रामदेव के दंत मंजन की पोल भी खोल दी। छोटे बच्चों के लिये टूथपेस्ट किस तरह नुकसानदायक हो सकता है इसका उल्लेख व इससे संबंधित तमाम और जानकारी देने के लिये आपके लेखन पर बधाई।
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उषा साहू, हीरानंदानी कंप्लेक्स, मुम्बई
संपादकजी नमस्कार, इतने सुव्यस्थित ढंग से, आंकड़ाबद्ध तरीके से संपादकीय लिखने के लिए आपका बहुत-बहुत अभिनंदन !!!
संपादकीय लेख पढ़ते ही, इस बीमारी के, सारे विश्व के आंकड़े सहज ही उपलब्ध हो जाते हैं । लेकिन मैं जानती हूँ, इतनी सटीक जानकारी एकत्र करने के लिये आपने कितनी मशक्कत की होगी । पुन:शच अभिनंदन !
जैसा कि कहते हैं, भारतीय कृषि मानसून का जुआ है,  वैसे ही हमारे देश के हालात भी कुछ भारतीय राजनायिकों की (विक्षिप्त) मनोवृत्ति का जुआ है । पता नहीं कौन-सा राजा आयेगा, रियाया के भविष्य से खिलवाड़ करेगा और चला जाएगा ।
भारत विश्व का सबसे बड़ा गणतन्त्र है । बस ! इसी का फायदा उठाकर, कोई भी पाँच साल के लिये आता है और अपनी रोटियाँ सेंककर चला जाता है ।
आज की इस दुष्कर घड़ी में राजनीति छोडकर, ऐसे हालातों में, विकट परिस्थिति में सबको एकजुट होकर सामना करना है । एक जुट का कहीं पता ही नहीं है, बंदर बाँट चल रही है । फिलहाल, मेरा राज्य, तेरा राज्य, मेरी दिल्ली जैसी बातों छोडकर देश को इस विपदा से बचाना ज्यादा जरूरी है ।
वास्तव में, विश्व के सभी देश, अचानक आई इस आपदा का सामना करने में कुछ हद तक असफल ही हुये हैं । ऐसे में विपक्षी दल का काम, तमाशबीन बनकर, सत्तारूढ़ दल पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना ही है । जैसे वे सत्ता में होते तो ऐसा होता ही नहीं, शायद ये बीमारी आती ही नहीं ।
करोना की दूसरी लहर में, सबसे बड़ा मुद्दा बना ऑक्सीज़न । फिर ये मुद्दा आया कि दिल्ली सरकार ने, जरूरत से ज्यादा ऑक्सीज़न हड़प ली । हालाकि उस समय, मुंबई में भी उतने ही केस थे, जितने कि दिल्ली में । लेकिन मुंबई को अतिरिक्त ऑक्सीज़न नहीं दी गई । और इसके लिए केजरीवाल को जघन्य अपराधी ठहराया दिया गया ।
जांच-पड़ताल के लिए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा, आडिट टीम बनाई गई । देश के दो वरिष्ठ जजों ने इसकी रिपोर्ट की माँग की । ये तो आग लगने पर कुआ खोदने वाली बात हुई न । समय और योजना का समन्वय होना आवश्यक होता है।
अब राजनीति का उग्र रूप सामने आया । एक वरिष्ठ केंद्रीय नेता ने तो यहाँ तक कह दिया कि अनर्गल बातों के लिए शोर मचाना तो दिल्ली से ही सीखा जा सकता है । उनके तो ऑक्सीज़न के माँग के आंकड़े भी सही नहीं हैं । बल्कि दो अलग-अलग अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत किए आंकड़े भी अलग-अलग हैं ।
अब बताओ ! एक और तो कहा जा रहा है, दिल्ली सरकार ने जरूरत से ज्यादा ऑक्सीज़न लेकर, बटवारे की प्रक्रिया को बिगाड़ दिया, वहीं दूसरी ओर केजरीवाल कह रहे हैं, जब दूसरे लोग चुनाव रेलिया कर रहे थे, तब मैं, रात-रात भर जाग कर, लोगों की साँसे बचाने के लिए ऑक्सीज़न की व्यवस्था कर रहा था।
ये जानकर हंसी आती है कि दूसरों के आगे गिड़गिड़ाकर, केजरीवाल जी ने इतनी ऑक्सीज़न एकत्रित कर ली कि दूसरे राज्यों में इसकी कमी पड़ गई। क्या सही है, क्या गलत है, तथाकथित तीसरी लहर क्या कहर वरपाएगी, सारे सवाल अन-उत्तरित हैं । धन्यवाद।

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